नेशनल हुक
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यूपी विधान सभा चुनाव से पहले नेता जमकर पाले बदल रहे हैं। हालांकि इस राज्य में ये पहली बार नहीं हो रहा, हर बार ऐसा होता है। मगर पहले और अब के दलबदल में बड़ा फर्क है। पहले बसपा, सपा, कांग्रेस से टूटकर थोक में नेता भाजपा में आते थे मगर इस बार भाजपा से भी टूट रहे हैं। ये अंतर राजनीतिक विश्लेषकों को चकित कर रहा है। कांग्रेस में तो काफी समय से यही चल रहा है। पार्टी नेता तैयार करती है और फिर वो दूसरी राह पकड़ लेते हैं।
छोटे से कांग्रेस विधायक दल में इस बार भी टूट फूट हुई है। मगर लाभ सपा को ज्यादा हुआ है। जबकि गत तीन साल से प्रियंका गांधी ने यूपी में कांग्रेस को खड़ा करने के लिए कड़ी मेहनत भी की है। उसके बावजूद कांग्रेस छोड़कर जाने का रिवाज रुका नहीं है जो पार्टी के लिए चिंता की वजह तो है।
इस बार अशोक राजभर ने भी भाजपा को छोड़ अखिलेश यादव का दामन थामा है। जिससे सपा को शक्ति मिली है। ठीक इसी तरह जयंत चौधरी भी खुलकर अखिलेश के साथ आये हैं। ये भी जातीय समीकरण नया बना रहे हैं। इसके पीछे किसान आंदोलन भी बड़ा कारण है।

भूमिहर ब्राह्मण पहले से ही तीखे तेवर दिखा भाजपा के लिए परेशानी खड़ी कर चुके हैं। पिछले डेढ़ दशक में यूपी में दलबदल से भाजपा ही मजबूत हुई और पिछले विधान सभा चुनाव में उसे अकल्पनीय सफलता मिली।
मगर इस बार बहुत बड़ी भाजपा भी यूपी में टूट फूट का शिकार ऐन चुनाव से पहले हो रही है। मंत्री, विधायक तक पार्टी छोड़ रहे हैं और अखिलेश का दामन थाम रहे हैं। जिस समय भाजपा दिल्ली में अपने उम्मीदवार तय करने के लिए बैठक कर रही थी, उसी समय कद्दावर नेता और मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने भाजपा छोड़ दी। तीन विधायकों ने भी इस्तीफा दे दिया। अगले दिन एक और मंत्री दीवान सिंह ने इस्तीफा दे दिया। फिर तो कईयों के दलबदल की संभावना जाग गई। ये टूट भाजपा को भी सकते में डाल रही है और उसे अपनी रणनीति में बदलाव करना पड़ रहा है। क्योंकि उसे छोड़कर जाने वाले सीधे अखिलेश से संपर्क साध रहे हैं।

यूपी में भाजपा से ये हो रहा दलबदल चुनावी समीकरण बदल रहा है। सपा और भाजपा के बीच मुख्य मुकाबले की स्थिति बन गई है। जातीय समीकरण परिणाम में उलटफेर करेगा, ये सभी विश्लेषक मान रहे हैं। इसीलिए भविष्यवाणी करने से बच रहे है। यूपी के हर दिन बदलते राजनीतिक परिदृश्य से लगता है कि अभी तो कई नेता पाले बदलेंगे। इसी कारण इस बार यूपी का ये चुनाव चकित करने वाले परिणाम की तरफ बढ़ रहा है। राजनीति के जानकार तभी तो इस बार मौन है और भविष्यवाणी से बच रहे हैं। दलबदल और नये बनते जा रहे जातीय समीकरणों के कारण इस बार यूपी विधान सभा के चुनाव ज्यादा रोचक हो गये हैं।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार