• मनीषा आर्य सोनी

इस सृष्टि में कुछ अनावश्यक नहीं होता विधाता अपने बनाए समस्त उपमानों से जगत को एक श्रेष्ठ संदेश देता है। सकल ब्रह्मांड के समस्त उपमान एकनिष्ठ होकर इस संसार को श्रेष्ठ जीवन जीने का संदेश देते हैं। लता मंगेशकर का नाम भी विधाता प्रदत्त उन श्रेष्ठतम उपमानों में से एक है । लता मंगेशकर भारत ही नहीं समूचे विश्व में भारत की गर्वोक्ति बनकर छाईं और स्वरों की क्षमता से बेसुरे संसार को एक सुरीला आश्वस्ति गान दिया ।

इंदौर में सन् 1929 जन्मी लता मंगेशकर का मार्ग उतना सुगम नही रहा जितना हमें प्रथम दृष्टया देखने को मिलता है। लता का फिल्म इंडस्ट्री में आना समूची इंडस्ट्री का इतना बडा़ आधार बनेगा ये स्वयं लता ने भी शायद ना सोचा होगा। आपने दस वर्ष की अल्प आयु में जब गरीबी से जूझते हुए फिल्मों में अभिनय करने का निश्चय किया और वहां से सुंदरता के पैमाने पर ना सिर्फ खारिज की गयीं अपितु इनकी भवों को उस्तरे से मूंडकर मेकअप के साथ नकली भवें बनाकर कैमरे के सामने लाया गया, ये वो दिन था जब बालिका लता ने यह दृढ़ निश्चय किया कि अब स्वरों का प्रश्रय लेकर ही इस फिल्म जगत को चमत्कृत करना है। लता जी के साथ इस तरह की अनेकानेक किस्से जुड़े हैं जो लता के लता मंगेशकर बनने के सफर के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं। लता जी ने स्वयं से की गयी प्रतिज्ञा को इतनी निष्ठा से निभाया कि स्वयं वाग्देवी का साक्षात प्रमाण बनकर लौकिक जगत में छा गयीं।

लता मंगेशकर का विराट स्वरूप, आंकने का विषय नहीं अपितु जीवन जीने का वो सुंदर तरीका है पेश करता है जिसे हम आज के संदर्भ में ‘जीने की कला’ कहकर भी संज्ञापित कर सकते हैं। अपने परिवार के पोषण की प्राथमिकता को मन मे लेकर आगे बढऩे वाली लता ने क्या कभी ये सोचा था उनके स्वर माधुर्य से ये संपूर्ण धरा भी पोषित हो रही है । मराठी फिल्मों से अभिनय व गायिकी का जो सफर आरंभ हुआ वो भारत की लगभग हर भाषा में गीत गाते हुए आगे बढ़ता रहा। पचास हजार के आंकड़े को छूकर गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज करवाना, उनकी निजी उपलब्धि न होकर भारत के लिए गर्व का विषय बन गया।

फिल्म महल के लिए गाए गीत आएगा आने वाला से उत्तरोत्तर ऊंचाईयों को छूने वाली लता ने हिंदी फिल्मों के लिए हर दौर के बदलते रूप के साथ अपनी स्वर यात्रा जारी रखी। हर काल खण्ड के बदलते गीतों के स्वरूप के साथ उनकी आवाज न्याय करती गयी । मधुबाला से लेकर काजोल तक के चेहरे पर लता की आवाज किरदार की अपनी आवाज प्रतीत होती थी।

लता मंगेशकर के मुरीद सिर्फ फिल्म जगत के लोग ही नही थे अपितु शास्त्रीय घरानों के दिग्गजों की भी वे पहली पसंद बनी रहीं। बड़े गुलाम अली खां ने एक बार कहा था कि ‘कमबख्त कभी बेसुरी नहीं होती चाहे कितना भी खामी ढूंढने की कोशिश कर लो’। पं भीमसेन जोशी ने राम श्याम गुण एलबम में लता के साथ संगत करते हुए कहा था कि साक्षात सरस्वती के साथ गायन का अवसर मिला, वहीं गजल शिरोमणि जगजीत सिंह के साथ सजदा नामक एलबम में अनोखे ठहराव और दर्द की गहरी गूंज के साथ गजलों को पेश करके अदब के संसार को चमत्कृत कर दिया। अपने उर्दू के बेहद शुद्ध तलफ्फ़़ुज़ के कारण ही नूरजहां जैसी गजल साम्राज्ञी लता की बेहद मुरीद रहीं और अपने साक्षात्कारों में इस बात का जिक्र करती रहीं की विभाजन की सबसे बड़ी त्रासदी ये है कि भारत के हिस्से में लता आईं । मैं लता से अब उतना सहजता से जाकर नहीं मिल सकूंगी। पाकिस्तानी गजल गायक गुलाम अली और मेंहदी हसन के लफ्जों में लता को सुनना ही इबादत है उनके साथ गाने का अवसर तो अल्लाह की मेहरबानी से कम नहीं ।

लता नाम में ताल समहित है ।अपने गायन में लता ने कभी भी स्वरों की बाजीगरी नहीं दिखाई ना ही शास्त्रीयता की वैभव से गीत पर अनावश्यक भार थोपा अपितु इनके गाये गीतों में गहरी साधना की गूंज सुनाई देती है ।कुछ गीत हैं जो लता के कंठ ‘स्केल’ की परीक्षा लेते प्रतीत होते हैं पर लता सहज योगिनी सी हर वो स्वर छूकर गुजऱ जाती हैं जो किसी अन्य के लिये असंभव प्रतीत होता है, ‘जिस देश में गंगा बहती है’ का गीत ‘ओ बसंती पवन पागल’ इस बात का सबसे बडा उदाहरण है।

ऐसे हजारों उदाहरण है जहां लता के गायन ने श्रोताओं को चमत्कृत किया है। लता के गाये हर गीत पर शोध संभव है ।उनके हर गीत में आलाप और स्वर इतना अफूका लगता है मानो पंछी के पंख को हल्की सी फूंक से सहलाया गया हो। रेशमा और शेरा फिल्म का गीत ‘तू चंदा मैं चांदनी’ सुनकर इस बात पर सहमति की मुहर लगाई जा सकती है। लता ने आध्यात्म को अपनी स्वरांजली जिस भाव से दी है उसे समझने के लिए ‘लता सिंग्स मीरा’ हर संगीत प्रेमी को सुनना ही चाहिए। हर संगीतकार के लिए लता एक आवश्यक शर्त बन कर उभरीं और लता ने हर संगीतकार की मंशानुरूप गाकर हर गीत के साथ न्याय किया ।

आज कोई दिन ऐसा नहीं गुजरता जब कहीं न कहीं लता की आवाज सुनाई दे जाती है। एक स्वर की सिद्धि का इससे बड़ा उदाहरण और क्या होगा कि हजारों की भीड़ में खुले मंच से जब लता ऐ मेरे वतन के लोगों गीत का आलाप छेड़ती हैं तो पं जवाहर लाल नेहरू जैसे दिग्गज प्रधानमंत्री के भी भाव विभोर होकर अश्रु छलक पड़ते हैं ये स्वरों की ही ताकत मानी जाएगी।

लता कभी स्कूल नही जा सकीं पर आज वे संगीत का साक्षात विश्वविद्यालय बन कर हर संगीत प्रेमी का प्रथम पाठ बन चुकी हैं। अपने पिता से घर पर ही संगीत की शिक्षा ग्रहण की और आजीवन रियाजी रहीं। लता जी पहली गायिका हैं जिनके जीते जी उनके नाम के प्रतिष्ठित पुरस्कार उनके समकक्ष गायकों को प्रदान किए गये। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा लता मंगेशकर पुरस्कार मन्ना डे साहब को दिया जाना इसका प्रमाण है।

सन् 2001 में आपको भारत रत्न के सर्वोच्च सम्मान से नवाजा गया । आज जब वे इस फानी दुनिया को अलविदा कह गयीं हैं तो यह ख्वाहिश है कि एक नक्षत्र का नाम लता मंगेशकर के नाम पर रखा जाए । क्योंकि लता महज गायिकी का ही एक नाम नहीं अपितु स्वयंस्द्धिा होने का एक समर्थ उदाहरण भी है। अपने पिता के नाम को जिस खूबसूरती से लता ने आगे बढ़ाया कदाचित ये उदाहरण अन्यत्र ना मिले। आज जब हम नारी विमर्श के लिजलिजे भाषण अथवा आलेख पढ़ते सुनते हैं तब लता मंगेशकर को स्मरण करना अपने आप में सैकड़ों प्रत्युत्तर प्रस्तुत कर देता है। अपने पिता के नाम पर पूणे में 2001 में हॉस्पिटल बनवाना अपने पितृऋण से उऋण होने का प्रेरक उदाहरण है। और एक पुत्री के लिए और भी खूबसूरत एहसास माना जा सकता है।

लता मंगेशकर के संपूर्ण व्यक्तित्व को लिखने के लिए निश्चित रूप से एक श्रंखलाबद्ध आलेख की गरज रहती है । आज का काल कलुषित दिन हम सभी के लिए बेहद दुखद है । बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती के उद्भव का उनके अवतरण का दिवस माना जाता है क्या ऐसा माना जाए कि मां इस बार अपनी सर्वाधिक प्रिय पुत्री को अपनी गोद में बिठाकर ले गयीं। लता जैसी विभूति को ईश्वर मोक्ष प्रदान करे और हम उनके व्यक्तित्व और कृतित्व से अनवरत सीखते चलें और इस सृष्टि को श्रेष्ठ तम देते चलें।

इस आलेख की लेखिका कवयित्री-गीतकार-रंगकर्मी होने के साथ ही संगीत में भी खास रूचि रखती हैं