हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा
जिस तरह के हालात भाजपा के सामने लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में पेश आ रहे हैं, उसका भान अगर राजस्थान कांग्रेस को जरा भी होता तो उसे मुकाबले को रोचक बनाने में देर नहीं लगती, लेकिन इस बात का पूर्वानुमान नहीं लगा पाने की गफलत के चलते कांग्रेस वाले अब पछता रहे हैं। क्योंकि मतदान के दिन जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं जनता का मिजाज बदला हुआ नजर आ रहा है।

राजस्थान में पहले चरण के चुनाव के बाद बदले हुए हालात राजनीतिक-गलियारों में भी चर्चा का विषय बने हुए हैं। जिन 13 सीटों पर चुनाव होने हैं, उनमें से आधी सीटों पर कांग्रेस और निर्दलीय प्रत्याशियों ने मिलकर भाजपा के दांत खट्टे कर रखे हैं। कोई बड़ी बात नहीं है कि अगर यह जोर बढ़ता रहा तो भाजपा सिमटकर बीस सीटों पर रह जाए। आज, यानी 26 अप्रैल को होने वाला मतदान सारी तस्वीर साफ कर देगा, क्योंकि राजस्थान में चुनाव का यह अंतिम चरण है। इसके साथ ही सभी 25 सीटों पर चुनाव संपन्न हो जाएंगे, लेकिन देश के अन्य हिस्सों में चुनाव जारी रहेंगे। यह सिलसिला पूरे मई में चलेगा और चार जून को परिणाम आने तक असमंजस का माहौल रहेगा।

चुनाव के पहले चरण के बाद दूसरे चरण में जिन लोकसभा सीटों पर चुनाव होने हैं, उनमें कोटा लोकसभा सीट पर प्रत्याशी ओम बिरला भी कड़े मुकाबले में हैं। चुनौती भी उन्हें अपनी ही पार्टी के प्रहलाद गुंजल दे रहे हैं, जो पहले भाजपा से थे। सवाई माधोपुर से भाजपा के प्रत्याशी सुखबीरसिंह जौनपुरिया के सामने हरीश मीणा ने दावा ठोका है, जिनके पीछे सचिन पायलट का हाथ माना जा रहा है। भाजपा के लिए इन दोनों ही सीटों पर जीतना प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ है। इससे भी बड़ा सवाल जोधपुर सीट को लेकर है, जहां भाजपा के गजेंद्रसिंह शेखावत को कांग्रेस के करणसिंह ने ललकारा है। अशोक गहलोत ने अपने पुत्र वैभव गहलोत को जालौर संसदीय सीट से लोकसभा में भेजने के लिए एडी-चोटी का जोर लगा रखा है। वैभव गहलोत के सामने भाजपा ने लुंबाराम चौधरी को उतार रखा है तो बाड़मेर से भाजपा के लिए उनसे ही टिकट मांगने वाला रवींद्रसिंह भाटी बड़ी चुनौती बना हुआ है। यहां तक अनुमान है कि कहीं कैलाश चौधरी और रवींद्रसिंह भाटी की लड़ाई में कांग्रेस के उम्मेदाराम बाजी नहीं मार ले जाए।

बांसवाड़ा-डूंगरपुर की सीट पर भले ही कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी खड़ा करके फिर समर्थन भारत आदिवासी पार्टी के राजकुमार रोत को दे दिया हो, लेकिन इस संशय का भाजपा को बड़ा फायदा मिलेगान, नहीं कहा जा सकता।
उदयपुर, झालावाड़, पाली, चित्तौड़, भीलवाड़ा, राजसमंद, अजमेर में हालांकि भाजपा की स्थिति ठीक है, लेकिन बाकी सीटों पर चुनाव आते-आते जो हालात बने हैं, उसका अगर जरा भी पूर्वानुमान कांग्रेस को होता तो तय है कि उनका चुनाव प्रबंधन बहुत ही आक्रामक होता। अलबत्ता, पहले ही चुनाव में भाजपा ने मतदान का प्रतिशत गिरा हुआ देखते हुी अपनी शैली में परिवर्तन किया और संगठन के कामकाज की भी समीक्षा की। अगर इस समीक्षा के बाद की रणनीति में अगर भाजपा कुछ कर पाती है तो यह कांग्रेस को सीखना होगा, क्योंकि अभी चुनाव के लगभग पांच चरण बाकी हैं, और जिस तरह के हालात हैं, ऐसा कहा जाने लगा है कि चार सौ पार का आंकड़ा भाजपा ने जो दिया है, उसे प्राप्त करना कठिन हो सकता है बशर्ते कांग्रेस अपने कार्यकर्ताओं में आत्मविश्वास भरने में सफल हो जाए।

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