इसलिये है मकर सक्रांति पुण्यदायी, जातकों पर होगा यह प्रभाव, पढ़ें पंडित मनोज व्यास का विश्लेषण
लॉयन न्यूज बीकानेर । ज्योतिषी मनोज व्यास के अनुसार मकर संक्रांति क्या है : मकर संक्रांति में ‘मकर’ शब्द मकर राशि को इंगित करता है जबकि ‘संक्रांति’ का अर्थ संक्रमण अर्थात प्रवेश करना है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। एक राशि को छोड़कर दूसरे में प्रवेश करने की इस विस्थापन क्रिया को संक्रांति कहते हैं। चूंकि सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है इसलिए इस समय को ‘मकर संक्रांति’ कहा जाता है।
संक्रांति का वाहन-
वर्ष 2021 में संक्रांति का वाहन सिंह (व्याघ) एवं उपवाहन गज (हाथी) रहेगा। इस वर्ष संक्रांति का आगमन श्वेत वस्त्र व पाटली कंचुकी धारण किए बालावस्था में कस्तूरी लेपन कर गदा आयुध (शस्त्र) लिए स्वर्णपात्र में अन्न भक्षण करते हुए आग्नेय दिशा को दृष्टिगत किए पूर्व दिशा की ओर गमन करते हो रहा है।
ऐतिहासिक तथ्य : हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति से देवताओं का दिन आरंभ होता है, जो आषाढ़ मास तक रहता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था इसलिए मकर संक्रांति पर गंगासागर में मेला लगता है।
शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। जैसा कि निम्न श्लोक से स्पष्ठ होता है-
माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥
मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है। इसी कारण यहाँ पर रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अतएव इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अन्धकार कम होगा। अत: मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी। ऐसा जानकर सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है। सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियाँ चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। इसी कारण यह पर्व प्रतिवर्ष १४ जनवरी को ही पड़ता है।
पुराणों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य अपने पुत्र शनि के घर एक महीने के लिए जाते हैं, क्योंकि मकर राशि का स्वामी शनि है।
हालांकि ज्योतिषीय दृष्टि से सूर्य और शनि का तालमेल संभव नहीं, लेकिन इस दिन सूर्य खुद अपने पुत्र के घर जाते हैं। इसलिए पुराणों में यह दिन पिता-पुत्र के संबंधों में निकटता की शुरुआत के रूप में देखा जाता है।
– इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत करके युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। उन्होंने सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। इसलिए यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।
एक अन्य पुराण के अनुसार गंगा को धरती पर लाने वाले महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था। उनका तर्पण स्वीकार करने के बाद इस दिन गंगा समुद्र में जाकर मिल गई थी।
राजा भगीरथ सूर्यवंशी थे, जिन्होंने भगीरथ तप साधना के परिणामस्वरूप पापनाशिनी गंगा को पृथ्वी पर लाकर अपने पूर्वजों को मोक्ष प्रदान करवाया था। राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों का गंगाजल, अक्षत, तिल से श्राद्ध तर्पण किया था। तब से माघ मकर संक्रांति स्नान और मकर संक्रांति श्राद्ध तर्पण की प्रथा आज तक प्रचलित है। इसलिए मकर संक्रांति पर गंगा सागर में मेला लगता है।
सूर्य संस्कृति में मकर संक्रांति का पर्व ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश, आद्यशक्ति और सूर्य की आराधना एवं उपासना का पावन व्रत है, जो तन-मन-आत्मा को शक्ति प्रदान करता है।
संत-महर्षियों के अनुसार इसके प्रभाव से प्राणी की आत्मा शुद्ध होती है। संकल्प शक्ति बढ़ती है। ज्ञान तंतु विकसित होते हैं। मकर संक्रांति इसी चेतना को विकसित करने वाला पर्व है। यह संपूर्ण भारत वर्ष में किसी न किसी रूप में आयोजित होता है।
विष्णु धर्मसूत्र में कहा गया है कि पितरों की आत्मा की शांति के लिए एवं स्व स्वास्थ्यवर्द्धन तथा सर्वकल्याण के लिए तिल के छः प्रयोग पुण्यदायक एवं फलदायक होते हैं- तिल जल से स्नान करना, तिल दान करना, तिल से बना भोजन, जल में तिल अर्पण, तिल से आहुति, तिल का उबटन लगाना।
सूर्य के उत्तरायण होने के बाद से देवों की ब्रह्म मुहूर्त उपासना का पुण्यकाल प्रारंभ हो जाता है। इस काल को ही परा-अपरा विद्या की प्राप्ति का काल कहा जाता है। इसे साधना का सिद्धिकाल भी कहा गया है। इस काल में देव प्रतिष्ठा, गृह निर्माण, यज्ञ कर्म आदि पुनीत कर्म किए जाते हैं। मकर संक्रांति के एक दिन पूर्व से ही व्रत उपवास में रहकर योग्य पात्रों को दान देना चाहिए।
रामायण काल से भारतीय संस्कृति में दैनिक सूर्य पूजा का प्रचलन चला आ रहा है। राम कथा में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा नित्य सूर्य पूजा का उल्लेख मिलता है।
कपिल मुनि के आश्रम पर जिस दिन मातु गंगे का पदार्पण हुआ था, वह मकर संक्रांति का दिन था। पावन गंगा जल के स्पर्श मात्र से राजा भगीरथ के पूर्वजों को स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी। कपिल मुनि ने वरदान देते हुए कहा था, ‘मातु गंगे त्रिकाल तक जन-जन का पापहरण करेंगी और भक्तजनों की सात पीढ़ियों को मुक्ति एवं मोक्ष प्रदान करेंगी। गंगा जल का स्पर्श, पान, स्नान और दर्शन सभी पुण्यदायक फल प्रदान करेगा।’
महाभारत में पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही स्वेच्छा से शरीर का परित्याग किया था। उनका श्राद्ध संस्कार भी सूर्य की उत्तरायण गति में हुआ था। फलतः आज तक पितरों की प्रसन्नता के लिए तिल अर्घ्य एवं जल तर्पण की प्रथा मकर संक्रांति के अवसर पर प्रचलित है।
सूर्य की सातवीं किरण भारत वर्ष में आध्यात्मिक उन्नति की प्रेरणा देने वाली है। सातवीं किरण का प्रभाव भारत वर्ष में गंगा-जमुना के मध्य अधिक समय तक रहता है। इस भौगोलिक स्थिति के कारण ही हरिद्वार और प्रयाग में माघ मेला अर्थात मकर संक्रांति या पूर्ण कुंभ तथा अर्द्धकुंभ के विशेष उत्सव का आयोजन होता है।
मकर संक्रांति को लेकर कई कथाएं हैं। सबसे पहली कथा श्रीमद्भागवत एवं देवी पुराण में बताई गई है। इनके अनुसार, शनि महाराज को अपने पिता सूर्यदेव से वैर भाव था क्योंकि सूर्यदेव ने उनकी माता छाया को अपनी दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से भेदभाव करते हुए देख लिया था। इस बात से सूर्य देव ने संज्ञा और उनके पुत्र शनि को अपने से अलग कर दिया था। इससे शनिदेव और उनकी छाया ने सूर्यदेव को कुष्ठ रोग का शाप दे दिया था।
सूर्यदेव के कुष्ठ रोग से पीड़ित देखकर यमराज काफी दुखी हुए और उन्होंने इस रोग से मुक्ति के लिए तपस्या भी की थी। सूर्यदेव ने क्रोध में आकर शनि महाराज के घर कुंभ, जिसे शनि की राशि कहा जाता है, उसको अपने तेज से जला दिया था। इससे शनि देव और उनकी माता छाया को कष्ट भोगने पड़े। यमराज ने अपनी सौतेली माता और अपने भाई शनि को कष्टों में देखकर उनके कल्याण के लिए सूर्यदेव को काफी समझाया।
यमराज के समझाने पर सूर्य देव उनके घर कुंभ में पहुंचे थे। वहां सबकुछ जला हुआ था। उस समय शनिदेव के पास काले तिल के अलावा कुछ नहीं था इसलिए उन्होंने काले तिल से ही उनकी पूजा की। शनि की पूजा से प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने शनि महाराज को आशीर्वाद दिया कि शनि का दूसरा घर मकर राशि में मेरे आने पर वह धन-धान्य से भर जाएगा। तिल के कारण ही शनि महाराज को उनका वैभव फिर से प्राप्त हुआ था, इसलिए शनि महाराज को तिल काफी प्रिय हैं। इसी वजह से मकर संक्रांति के दिन तिल से सूर्य देव और शनि महाराज की पूजा का नियम शुरू हुआ और इसे तिल संक्रांति के नाम भी जाना जाने लगा।
मेष- चादर एवं तिल का दान करें तो शीघ्र ही हर मनोकामना पूरी हो सकती है।
वृषभ- वस्त्र एवं तिल का दान करें तो शुभ रहेगा।
मिथुन- चादर एवं छाते का दान करें तो बहुत लाभदायक सिद्ध होगा।
कर्क- साबूदाना एवं वस्त्र का दान करना शुभ फल प्रदान करने वाला रहेगा।
सिंह – कंबल एवं चादर का दान अपनी क्षमतानुसार करें।
कन्या- तेल तथा उड़द दाल का दान करें।
तुला- रुई, वस्त्र, राई, सूती वस्त्रों के साथ ही चादर आदि का दान करें।
वृश्चिक- खिचड़ी का दान करें साथ ही अपनी क्षमता के अनुसार कंबल का दान भी शुभ फलदायी सिद्ध होगा।
धनु- चने की दाल का दान करें तो विशेष लाभ होने की संभावना बनती है।
मकर- कंबल और पुस्तक का दान करें तो हर मनोकामना पूरी हो सकती है।
कुंभ- साबुन, वस्त्र, कंघी व अन्न का दान करें।
मीन- साबूदाना,कंबल सूती वस्त्र तथा चादर का दान करें।
मकर संक्रांति को शास्त्रों में तिल संक्रांति भी कहा गया है और इस दिन तिल के दान का खास महत्व माना गया है। मकर संक्रांति पर तिल के दान के साथ ही भगवान विष्णु, सूर्य और शनिदेव की तिल से पूजा की जाती है। इसके साथ ही ब्राह्माणों को तिल से बनी चीजों का दान करना बहुत ही शुभ माना जाता है। दरअसल शनि देवता ने अपने क्रोधित पिता सूर्य देवता की पूजा करने के लिए काले तिल का ही प्रयोग किया था। इससे प्रसन्न होकर सूर्य देव ने वरदान दिया था कि जब भी वह मकर राशि में आएंगे तो तिल से उनकी पूजा करने और तिल का दान करने से वह प्रसन्न होंगे। इस दिन तिल का दान करने से शनि दोष भी दूर होता है।
मकर संक्रांति के अवसर पर कंबल का दान करना भी बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन किसी गरीब जरूरतमंद या फिर किसी आश्रम में कंबल का दान जरूर करना चाहिए। ऐसा करने से आप राहु के अशुभ प्रभाव से भी दूर रहते हैं।
ज्योतिष में गुड़ को गुरु की प्रिय वस्तु माना गया है। इस साल मकर संक्रांति गुरुवार के दिन पड़ रही है, तो इस वजह से गुड़ का दान करने का महत्व और भी बढ़ जाता है। गुड़ का दान करने के साथ ही इस दिन कुछ मात्रा में गुड़ हम सभी को खाना भी चाहिए। ऐसा करने से शनि, गुरु और सूर्य तीनों के दोष दूर होते हैं। मकर संक्रांति पर तिल और गुड़ के लड्डू या फिर गुड़ और मुरमुरे के लड्डू दान कर सकते हैं।
मकर संक्रांति को प्रमुख तौर पर खिचड़ी का पर्व माना जाता है और इस दिन खिचड़ी का दान करने का विशेष महत्व भी माना गया है। इस दिन चावल और उड़द की काली दाल का दान खिचड़ी के रूप में किया जाता है। उड़द का संबंध शनि देव से माना जाता है और इसका दान करने से शनि दोष दूर होते हैं। वहीं चावल को अक्षय अनाज माना जाता है। चावल को दान करने से आपको अक्षय फल की प्राप्ति होती है।
मकर संक्रांति पर वस्त्रों का दान भी महादान माना गया है। इस दिन किसी गरीब और जरूरतमंद के एक जोड़ी वस्त्र का दान अवश्य करें। एक बात का ध्यान रखें कि ये वस्त्र पुराने या फिर इस्तेमाल किए हुए और फटे हुए नहीं होने चाहिए। सदैव नए वस्त्रों का दान करना ही शास्त्रों में उचित माना गया है।
ज्योतिष में घी को भी सूर्य और गुरु से जोड़कर देखा जाता है। इस बार मकर संक्रांति भी गुरुवार को होने से घी के दान का महत्व और भी बढ़ जाता है। मकर संक्रांति पर शुद्ध घी का दान करने से आपको करियर में लाभ के साथ सभी प्रकार की भौतिक सुविधाएं प्राप्त होती हैं और साथ मोक्ष प्राप्ति का मार्ग भी प्रशस्त होता है।
भगवान सूर्य 14 जनवरी दिन गुरुवार की सुबह 8 बजकर 30 मिनट पर धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करेंगे. इसी के साथ मकर संक्रांति की शुरुआत हो जाएगी. वहीं, दिन भर में पुण्य काल करीब शाम 5 बजकर 50 मिनट तक रहेगा. महापुण्य काल सुबह में ही रहेगा. माना जाता है कि पुण्य काल में स्नान-दान करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है.