हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा
लोकसभा चुनाव का प्रथम चरण जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, प्रत्याशियों की चिंता बढ़ती जा रही है। लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 12 सीटों पर चुनाव होना है, जिसमें बीकानेर सहित चूरू और नागौर की सीट पर चुनाव होने हैं। चूरू और नागौर को हॉट-सीट भी माना जा रहा है, क्योंकि इन दोनों सीटों पर पिछली बार भाजपा के साथ रहे नेताओं ने कांग्रेस से हाथ मिला लिया है।

सांसद राहुल कस्वां ने तो बाकायदा कांग्रेस के लिए चुनाव लड़ रहे हैं, जो पिछली बार भाजपा की टिकट पर सांसद बने थे। पैरा ओलंपियन देवेंद्र झाझडिय़ा को टिकट देने से नाखुश राहुल कस्वां जहां कांग्रेसी हो गए हैं तो पिछली बार एनडीए ने जिस हनुमान बेनीवाल के लिए सीट छोड़ी थी, उसी हनुमान बेनीवाल के लिए इस बार इंडिया गठबंधन ने नागौर सीट छोड़ दी है। दोनों ही प्रत्याशी भाजपा के लक्ष्य को बिगाडऩे में लगे हैं। श्रीगंगानगर में भी उलटफेर की संभावना जताई जा रही है। पहले चरण में झुंझुनू, सीकर, जयपुर ग्रामीण और जयपुर, अलवर, भरतपुर, करौली-धौलपुर, दौसा की सीट पर चुनाव होंगे।

बीकानेर लोकसभा के लिए भी पहले चरण में चुनाव होंगे, जिसके लिए केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल के सामने कांग्रेस के प्रत्याशी गोविंद राम मेघवाल हैं। प्रकारांतर से देखा जाए तो गोविंदराम भी पहले भाजपाई थे, लेकिन फिर कांग्रेस में आ गए। पिछला विधानसभा चुनाव वे हार गए, लेकिन कांग्रेस में लोकसभा चुनाव लडऩे के लिए गोविंदराम मेघवाल से बड़ा कोई नेता ही नहीं मिला। बहरहाल, वे चुनाव मैदान में हैं। हालांकि, उनका चुनाव प्रबंधन सुस्त नजर आ रहा है, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि वे अल्पसंख्यक,  जाट और एससी के वोट ले सकते हैं, अगर चुनाव प्रबंधन सुधार लेें, लेकिन इसके लिए बड़े स्तर पर प्रयास करने होंगे, जिसके लिए कांग्रेस में कोई खास रुचि नजर नहीं आ रही है। जबकि कांग्रेस के प्रत्याशियों को यह समझना चाहिए कि एक बार अगर उनका वोटर छूटा तो फिर वापस उसे पकडऩा बहुत मुश्किल होगा, ऐसे में जितने हैं, जो हैं उन वोटर्स को तो न सिर्फ सहेजकर रखना होगा बल्कि उन्हें मतदान करने के लिए प्रेरित भी करना होगा।

लेकिन कांग्रेस में शिथिलता का ऐसा आलम कुछ ही सीटों पर नहीं बल्कि समूचे राजस्थान में इस तरह के हालात है, जिससे चुनाव आयोग खासा चिंतित है, क्योंकि सवाल मतदान का भी है। इसके लिए हालांकि मतदान करने के लिए शपथ के लिए कार्यक्रम हो रहे हैं। जगह-जगह जागरुकता के लिए आयोजन करवाए जा रहे हैं, लेकिन ऐन मतदान के दिन मतदाता को मतदान केंद्र तक लाने में राजनीतिक पार्टियों की भी बड़ी भूमिका होती है। भले ही यह भूमिका चुनाव-आयोग के संज्ञान में हो या नहीं, लेकिन राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता मतदाताओं को मतदान केंद्र तक पहुंचाने में जी-जान लगाए रहते हैं।
इस बार कांग्रेस की सुस्ती के चलते यह बड़ी चिंता है कि मतदाताओं को घर से बाहर कैसे निकाला जाएगा। लोकसभा के चुनाव में एक बड़ी समस्या यह भी होती है कि गहुत सारे मतदाता तो मतदान के प्रति उदासीन ही रहते हैं। फिर गर्मी के तेवर तीखे होने की संभावना है। शादियों का सीजन भी है, 18 तारीख को बड़ा सावा है। इन सभी को देखते हुए चुनाव आयोग को सबसे पहले यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पिछला मतदान प्रतिशत भी मेंटेन रहे, इसके लिए मतदाताओं को न सिर्फ प्रेरित करना होगा बल्कि मतदान का महत्व भी समझाना होगा।

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