• मनोज रतन व्यास

कल्पनालोक से रचा हर आर्ट फॉर्म क्रिएटिविटी की श्रेणी में ही आता है, लेकिन रचनात्मक काज का ये सफर कितना यादगार बनता है ये उस काम को करने वाले के टैलेंट और कंटेंट पर निर्भर करता है। इन दो गुणों से भी इतर एक तीसरी स्किल भी बहुत मायने रखती है और वो है किसी कलात्मक प्रोडक्ट को अंतिम रूप दिए जाने तक का निवेशित वक्त।

सिनेमाई संसार मे अलग अलग माइंडसेट के लोग अपने हिसाब से किसी मूवी को बनाते हैं और वांछित सफलता भी प्राप्त करते हैं। सफलता के साथ साथ कालजयी सिनेमा हर कोई नहीं रच सकता है। चाह हर फिल्मकार-एक्टर की होती है कि वह भी मुगल-ए-आजम, गाइड जैसी लैंडमार्क फिल्में बना पाए लेकिन हरेक में न तो ऐसी सलाहियत ऊपर वाला देता है और न ही उनका ऐसा कोई ध्येय होता है। फ़िल्म निर्माण एक हार्ड कोर बिजनेस मॉडल है, 99 फीसदी फिल्में बस इसलिए ही बनाते हैं कि उन्हें कर्मिशियल हिट मिल जाए और दो पैसे जोड़कर नेक्सट प्रोजेक्ट पर फोकस करना शुरू कर दें। मिलन लुथरिया की विद्या बालन अभिनीत फिल्म का डायलॉग तो याद ही होगा कि सिनेमा सिर्फ तीन चीजो से चलता है एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट और एंटरटेनमेंट। मनोरंजन के साथ मन को भा जाने वाली फिल्में सिर्फ असीमित निवेशित समय और प्रतिभा पर ही निर्भर करती है।

निवेशित वक्त की जटिलता को कुछ यूं समझिए,संजय लीला भंसाली एक फ़िल्म को शूट करने में 250 से 300 दिन अपने लीड एक्टर्स से बल्क में लेकर फिल्में बनाते है। कथित रूप से रणवीर सिंह ने फ़िल्म “पद्मावत” के लिए 280 दिनों तक शूटिंग की थी। अक्षय कुमार इतनी ही अवधि में 7 फिल्में कम्पलीट कर जाते है। अक्षय और संजय के माइंडसेट मुख्तलिफ है। अक्षय फिल्में खुद अकूत धन कमाने और अपने सहायक निर्माताओं को प्रॉफिट कमवाने के हिसाब से करते हैं। संजय अपनी हर फिल्म के छोटे से छोटे फ्रेम को भी कालजयी बनाने के उद्देश्य से ही डिजाइन करते हैं। संजय का निवेशित वक्त, सिनेमा के आर्काइव को और भी रीच करने के काम आता है और अक्षय अपने समय का इन्वेस्टमेंट बॉलीवुड में सतत कैश फ्लो जारी रखने और निज धन जोड़ने की सोच से करते हैं।

इसी निवेशित वक्त की अलग अलग धाराओं के कारण ही आमिर और सलमान की फिल्मों की क्वालिटी और कंटेंट में मोटा फर्क कोई भी आम सिनेमाप्रेमी समझ सकता हैं। निवेशित वक्त का एक्सटेंशन दो प्रोजेक्ट के बीच का गेप भी हो सकता है या कलाकार द्वारा कुछ अंतराल के लिए मूवी बिजनेस से दूर रहकर मनमाफिक सब्जेक्ट ढूंढना भी हो सकता है। आमिर खान की लास्ट रिलीज फ़िल्म 2018 में आई यशराज की अमिताभ बच्चन के साथ “ठग्स ऑफ हिंदुस्तान” थी और उनकी अगली रिलीज 2022 में लाल सिंह चड्ढा होगी। एक फ़िल्म के लिए चार साल! आमिर चाहते तो इन चार सालों में बिना कोई ज्यादा प्रयास के 2000 करोड़ रुपए कमा सकते थे, लेकिन आमिर भी संजय भंसाली की तरह काम ऐतिहासिक ही करना चाहते हैं, इसलिए ही आमिर के खाते में लगान, तारे जमीन पर, रंग दे बसंती, 3 इडियट्स जैसी कल्ट क्लासिक फिल्में है जो उनके समकालीन के पास बिल्कुल भी नही है।

क्रिएटिवटी की आमद यूं भी कोई इंस्टेंट कॉफी सी नही होती है कि झट से सोचा और विचार आया और काम फाइनल हो गया।

सिनेमाई इतिहास के पन्नों को जब हम टटोलते है तो सक्सेसफुल तो अनेक निर्देशक-अभिनेता-अभिनेत्री मिल जाएंगे लेकिन ऐसा काम करने वाले कम मिलेंगे जिनकी कला को पाठ्यक्रम में जगह मिले, जिनके सिनेमा को देख समझकर नव पीढ़ी फिल्मों की बारीकियां सीखे।
डेविड धवन ने 40 से ऊपर फिल्में बनाई हैं,95 फीसदी सुपरहिट ही बनाई है। राजकुमार हिरानी ने सिर्फ 5 ही फिल्में पिछले 2 दशक में ही निर्देशित की है। डेविड की 40 फिल्मों पर राजू हिरानी की हर फिल्म कमर्शियल रूप से, कंटेंट वाइज बहुत भारी है। जाहिर सी बात है आप और हमारे इस जग में न रहने के बाद भी सिनेमा को समझने और चाहने लोग लगे रहो मुन्नाभाई और 3 इडियट्स की ही बात करेंगे डेविड की पार्टनर और कुली नम्बर नम्बर वन की नहीं। दर्शक दोनो ही टेस्ट की फिल्मों के मौजूद हैं, निकट भविष्य में भी डेविड धवन और अक्षय कुमार की सोच के कारण बॉलीवुड फूलेगा-फलेगा, लेकिन इतिहास और वर्ल्ड सिनेमा तो संजय भंसाली, राजू हिरानी और आमिर के ही सिनेमाई संसार से मूवी बिजनेस को याद करेगा।