करोड़ों के कर्ज की वसूली अटकने से बैंक अधिकारी परेशान
लॉयन न्यूज,बीकानेर। बैंकों से कर्ज लेकर करोड़ों रुपए नहीं चुकाने वाले लोगों से वसूली मेंं अगर संबंंधित बैंक नाकाम रहे तो अंतत: बैंक अदालत में गुहार लगाकर डिफाल्टर्स को सिविल जेल करवा सकते हैं लेकिन जितने दिन भी डिफाल्टर जेल में रहेगा, उस दौरान उसे खाना भी बैंक के खर्च पर खिलाया जाएगा। सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) में यह प्रावधान है।

 

जिले के विभिन्न बैंकों के अधिकारी अपने करोड़ों के कर्ज की वसूली अटकी होने से तो परेशान हैं ही, वे इस बात से भी फिक्रमंद हैं कि अगर डिफाल्टर्स को जेल भिजवाया गया तो उन्हें में दाल-रोटी का खर्चा भी बैंक को ही वहन करना होगा।सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत दायर प्रकरणों में सिविल जेल भेजे गए डिफाल्टर्स को जेल अवधि के दौरान सरकार की तरफ से खाना नहीं खिलाया जाता। उन्हें जेल में जो खाना खिलाया जाता है, उसका पैसा उस व्यक्ति अथवा संस्थान को भरना पड़ता है, जिसके प्रार्थना पत्र पर अदालत संबंधित डिफाल्टर्स को जेल भिजवाती है।

 

प्रोपर्टी में आए मंदे के बाद बैंकों के अनेक ऐसे डिफाल्टर्स सामने आए हैं, जिनकी ओर करोड़ों रुपए का लोन और ब्याज बकाया है। बार-बार नोटिस दिए जाने के बावजूद डिफाल्टर्स ने लोन चुकता नहीं किया तो बैंकों ने उनके खिलाफ सरफेसी एक्ट के तहत वसूली की कार्यवाही शुरू की है। डिफाल्टर्स की गिरवी रखी प्रोपर्टी के दाम अत्यंत गिर जाने और उनके पास अन्य जायदाद नहीं होने से बैंक अधिकारियों को शत-शत प्रतिशत वसूली की उम्मीद नहीं है।

 

सरफेसी एक्ट के तहत बैंकों को वसूली के व्यापक अधिकार मिले हैं लेकिन लंबी कवायद और डिक्री के बावजूद जब बैंक वसूली में विफल रहता है तो अदालत से डिफाल्टर्स को सिविल जेल का आग्रह कर सकता है। यह सिविल जेल अधिकतम दो महीने की हो सकती है।सिविल जेल का ऐलान तभी होता है, जब बैंक संबंधित व्यक्ति के जेल में रहने के दौरान उसे खाना खिलाने का खर्च जेल में अग्रिम अदा कर उसकी रसीद प्रस्तुत कर दे।