हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा
लोकसभा चुनाव के मद्देनजर राजस्थान में भले ही कांग्रेस की कमान संभाले हुए सुखविंदरसिंह रंधावा या गोविंद डोटासरा नजर आ रहे हों, लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव में सचिन पायलट जितने अधिक सक्रिय और निर्णायक नजर आए हैं, पहले कभी नजर नहीं आए। इसे इस तरह भी देखा जा सकता है कि इस बार सचिन पायलट अशोक गहलोत की तुलना में कहीं ज्यादा शक्तिशाली साबित हुए हैं। न सिर्फ टिकटों के बंटवारे में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई है बल्कि उन्होंने यह भी साबित किया है कि एक धीर-गंभीर राजनेता के रूप में वे पहचाने जाने लगे हैं। खासतौर से जालौर की सीट पर वैभव गहलोत के चुनाव लडऩे के प्रश्न पर उन्होंने जिस तरह से सकारात्मक प्रतिक्रिया दी, उससे उन्होंने यह साबित किया कि अशोक गहलोत से उन्होंने न सिर्फ यह सीखा है कि क्या करना है बल्कि यह भी समझा है कि क्या नहीं करना है।

राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलेात के लिए यह कहा जाता है कि अगर कांग्रेस में उनकी मर्जी के बगैर अगर किसी को टिकट मिल जाता है तो वे उस प्रत्याशी को हराने के लिए निर्दलीय प्रत्याशी भी खड़ा कर सकते हैं। इस तरह के कई उदाहरण राजस्थान की राजनीति में बताए जाते हैं, लेकिन सचिन पायलट ने उस वैभव गहलोत के लिए भी चुनाव प्रचार करने की बात कही है, जिनके पिता अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को न जाने क्या-क्या कहा था और इसे लेकर पूरे देश में बड़ा विवाद खड़ा हुआ था, लेकिन सचिन पायलट ने तब भी धैर्य और संयम नहीं छोड़ा और आज भी वे इसी वजह से कांग्रेस मेंं अलग पहचान बनाने में कामयाब हुए हैं।

जिस तरह से पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस हारी, उसकी ‘भूंड का ठीकराÓ अशोक गहलोत पर ही फूटा। बहुत सारे कारणों में एक बड़ा कारण यह भी था कि जनता बार-बार ‘सरकार गिरने वाली हैÓ जैसे जुमलों में और होटलों से चलती सरकार से उकता चुकी थी। दूसरी तरफ बहुत सारे हथकंडों के बावजूद सचिन पायलट का दोष साबित करने में अशोक गहलोत असफल रहे। भले ही इस तरह का माहौल बनाया जाता रहा कि सचिन पायलट अशोक गहलोत को अपदस्थ करना चाहते हैं, लेकिन अंत तक यह साबित नहीं हो पाया। सचिन पायलट पर जितने भी आरोप लगे, उन्होंने न तो कोई प्रतिक्रिया दी और न अपने आपको पीछे रखा। पार्टी के मंच पर उन्होंने अपनी बात जमकर कही, लेकिन जनता के बीच कभी भी ऐसा बयान नहीं दिया, जिससे उनकी साख गिरे। इस वजह से उनकी साख बढ़ी और सामने है कि लोकसभा चुनाव में उनके पास भले ही कोई बड़ा प्रभार नहीं हो, उनकी बातों से न सिर्फ गौर से सुना जा रहा है बल्कि अमल भी लाया जा रहा है।

इस बीच अशोक गहलोत के रिश्तेदार को जमीन आवंटन के कथित घोटाले के बाद भी अशोक गहलोत बैक-फुट पर है। उनके सामने अपने बेटे वैभव गहलोत को चुनाव जीताने से बड़ी चुनौती चुनाव के दौरान चर्चा में बनाए रखने की है। ऐसे में उन्हें बहुत अधिक जरूरत सचिन पायलट की है। सुखजिंदरसिंह रंधावा हो चाहे गोविंद डोटासरा। दोनों ही अशोक गहलोत के सामने वह वजूद नहीं रखते जो सचिन पायलट का है। यह वजूद सचिन पायलट ने स्वयं बनाया है। यह दीगर है कि संघर्ष के समय में उनके पास पार्टी की कमान है, लेकिन यह पहली बार नहीं हुआ है। पहले भी सचिन पायलट के पास संकट के समय ही पार्टी की कमान रही थी और उन्होंने कांग्रेस को सत्ता दिलवाई थी।

‘लॉयन एक्सप्रेस’ के संपादक हरीश बी.शर्मा के नियमित कॉलम ‘हस्तक्षेप’ के संबंध में आपके सुझाव आमंत्रित हैं। आप 9672912603 नंबर पर वाट्स अप कर सकते हैं।