हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा
राजस्थान में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा ने सभी 25 सीटों को जीतने का जो संकल्प लिया है, उसे पूरा करवाने के लिए भले ही कांग्रेस उसे सहयोग कर दे, लेकिन जैसलमेर-बाड़मेर-बालोतरा को मिलाकर बनाई लोकसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी रवींद्रसिंह भाटी बड़ी मुसीबत साबित हो सकते हैं। जिस तरह से भाजपा में रवींद्रसिंह को लेकर खलबली है, सीधा अनुमान लगाया जा सकता है कि भाजपा को यहां से अपने प्रत्याशी कैलाश चौधरी के लिए कितने प्रयास करने पड़ेंगे। लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में  26 अप्रैल को यहां चुनाव होने हैं, लेकिन अभी से इस लोकसभा के लिए भाजपा ने रणनीति बनानी शुरू कर दी है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जनसभाएं करवाने और खली का रोड-शो कराने तक की युक्तियां शामिल हैं। आरएलपी से कांग्रेस में आकर इस लोकसभा से टिकट लेने वाले उम्मेदाराम का जोर भी देखने में आ रहा है, लेकिन रवींद्र भाटी के लिए जिस तरह का माहौल बन रहा है, भाजपा चिंता में है। जबकि रवींद्र भाटी इन दिनों अपने लोकसभा क्षेत्र में ही नहीं हैं। वे सघन दौरा करने के लिए प्रवासियों के पास पहुंच रहे हैं ताकि समर्थन हासिल कर सके। सूरत के उनके लिए उमड़े जनसैलाब के वीडियो जारी हो रहे हैं। इसके अलावा मुंबई, अहमदाबाद, बैंगलोर आदि शहरों में भी रवींद्र पहुंच चुके हैं।

रवींद्र भाटी पहले जयनारायण व्यास विवि छात्रसंघ के अध्यक्ष बने, इसके बाद शिव विधानसभा से विधायक चुने गए। दोनों ही बार उन्होंने भाजपा के नेताओं से बात की। छात्रसंघ चुनाव में उनके लिए टिकट का विरोध एबीवीपी ने किया और भाजपा नेता भी उन्हें टिकट देने के पक्ष में नहीं थे। दोनों ही बार निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीता। तीसरी बार फिर से लोकसभा चुनाव लडऩे की योजना बनी तब भी वे भाजपा के नेताओं के संपर्क में थे। मुख्यमंत्री भजनलाल के साथ भी उनकी बैठक हुई, लेकिन बात नहीं बनी। इस बीच उनकी विधानसभा में हैडपंप लगाने का मुद्दा बन गया। विधायक के रूप में जब रवींद्रसिंह ने हैडपंप मांगे तो दो स्वीकृत हुए, लेकिन भाजपा विधायक की अनुशंसा पर उन्हें 25 हैडपंप दे दिए गए। इससे रवींद्रसिंह भाटी नाराज हुए और फिर निर्दलीय ही लोकसभा का चुनाव लडऩे का मन बनाया और अब वे मैदान में भी है।

क्षेत्र के लोगों द्वारा उन्हें पसंद करने का कारण भी है। पहला तो वे अपने वोटर्स के साथ जनभाषा यानी राजस्थानी में बात करते हैँ। दूसरे वे क्षेत्र को विकास में पिछड़ा होने का मुद्दा उठाते हुए वादा करते हैं कि मूलभूत सुविधाओं के लिए क्षेत्र को पिछडऩे नहीं दूंगाा तीसरा उनके पास पीरबाबा के नाम से प्रसिद्ध बाबा गरीबनाथ में आस्था भी बड़ा कारण है, जिससे मुसलमानों के वोट उन्हें मिलेंगे। इस तरह के समीकरणों के बीच यह भी कहा जा रहा है कि इस लोकसभा के कुल 23 लाख वोटों में से तीन लाख के करीब वोट तो अकेले शिव विधानसभा से हैं, जहां से वे विधायक बने हैं।

हालांकि, रवींद्रसिंह भाजपा के पक्ष के विधायक माने जाते हैं, लेकिन उनके सिपहसालारों को लगता है कि जिस तरह का माहौल उनके पक्ष में है तो उन्हें चुनाव लडऩा ही चाहिए। चुनाव भी केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी के सामने हैं। जिनकी अपनी प्रतिष्ठा भी कम नहीं है, लेकिन चुनाव में किसी को एक को जीतना होता है। भाजपा ने इस बार जिस तरह से प्र्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर चुनाव लड़ रही है। जाहिर है अपनी सारी ताकत लगाएगी और जब यह साफ नजर आ रहा है कि भाजपा ने पूरी ताकत झौंक दी है तो रवींद्रसिंह के प्रति माहौल बनना इस बात का संकेत है कि भाजपा को शत-प्रतिशत परिणाम के लिए इस सीट पर अतिरिक्त मेहनत करनी होगी।

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