हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा
राहुल गांधी के भविष्य को लेकर एक बार फिर से देशभर में बहस छिड़ चुकी है। कहा जा रहा है कि राहुल गांधी को ब्रेक लेना चाहिए। कहीं से यह भी बात आ सकती है कि राहुल गांधी को राजनीति से ही दूर चले जाना चाहिए। खासतौर से इस विषय पर ऐसे समय में बात शुरू हुई है, जब देश में चुनाव है। गैर-भाजपाई नेताओं में अकेला राहुल गांधी ही है, जो लगातार नरेंद्र मोदी से लोहा ले रहा है।

भारत जोड़ो यात्रा के बाद भारत न्याय यात्रा पर इन दिनों निकले हुए राहुल गांधी को जैसे कांग्रेस में चल रही दिग्भ्रम की स्थिति से लेना-देना ही नहीं है।  कहने को वे काफी पहले ही कांग्रेस से किनारा कर चुके हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के बाद पद छोड़ दिया और अब बिना पद की राजनीति कर रहे हैं बल्कि इसे यूं भी कहा जा सकता है कि वे जो राजनीति कर रहे हैं, उससे कांग्रेस की परेशानियां बढ़ेगी।

पिछले दिनों जिस तरह की भगदड़ कांग्रेस ने मची, उसे देखकर यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस का कार्यकर्ता अपनी अवहेलना से नाराज हुआ है। कोई राजनीतिक दल ही क्यों न हो, सभी के लिए सभी दिन समान नहीं होते। कांग्रेस ने देश पर लंबे समय तक शासन भी किया है, और यही भाजपा है जो कभी दो सीटों के साथ ही लोकसभा में प्रवेश करती थी। वही भाजपा इस बार चार सौ पार का नारा लगाती है तो बगैर विस्मय के यह मानना पड़ेगा कि सब समय का फेर है।

कांग्रेस को चाहिए कि वह इस समय के फेर को समझे और दूसरी बात यह है कि कांग्रेस को आज एक ऐसा नेता चाहिए जो उसके इधर-उधर भटके हुए कार्यकर्ताओं को एक साथ कर सके। यह काम राहुल गांधी कर सकते थे, लेकिन उन्हें न जाने क्या सूझी कि वे कांग्रेस के ग्रास-रूट के कार्यकर्ता-नेताओं के साथ मिलना-बैठना ही पसंद नहीं करते।

जबकि वे ऐसे लोगों के साथ बैठे रहने में ज्यादा खुश हैं जिनका कांग्रेस पार्टी से कोई लेना-देना नहीं। न सिर्फ लेना-देना बल्कि राहुल गांधी ऐसे लोगों की संगत में हैं, जो यह चाहते ही नहीं कि राहुल गांधी मूल-कांग्रेस के साथ जुड़े रहे। इसके प्रमाण चाहे भारत जोड़ो यात्रा के दौरान तलाश लें चाहे भारत न्याय यात्रा में। इन दोनों ही कार्यक्रमों से कार्यकर्ताओं को लगातार दूर रखा गया। किसी भी राजनीतिक संगठन की ताकत उसके कार्यकर्ता ही तो होती है, जिससे अगर राहुल गांधी दूरी बनाए रखेंगे तो फिर संगठन को कौन संभालेगा। ऐसे हालात में अगर अब तक बड़ी संख्या में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली तो काहे का सवाल।

कायदे से सवाल तो राहुल गांधी पर भी नहीं होने चाहिए, लेकिन लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष बेहद जरूरी है। लेकिन यह काम अगर राहुल गांधी से नहीं हो तो फिर देश में दूसरा कोई दिखाई नहीं देता। इस वजह से बार-बार नजर राहुल गांधी पर जाती है। बशर्ते राहुल गांधी अपने मूल-कार्यकर्ता की तरफ लौटे। मूल कार्यकर्ताओं का स्नेह और सहयोग ही कांग्रेस के लिए संबल का काम करेगा। इसके लिए सिर्फ इतना ही जरूरी है कि राहुल गांधी अब संगठन से जुड़े कार्यकर्ताओं के दुख-सुख सुनेंगे।

‘लॉयन एक्सप्रेस’ के संपादक हरीश बी.शर्मा के नियमित कॉलम ‘हस्तक्षेप’ के संबंध में आपके सुझाव आमंत्रित हैं। आप 9672912603 नंबर पर वाट्स अप कर सकते हैं।