नेशनल हुक
पिछले दो लोकसभा चुनावों से उत्तर प्रदेश भाजपा के लिए बड़ी सफलता वाला राज्य रहा है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी राज्य की बनारस सीट से चुनाव जीत रहे हैं। भाजपा ने जो मिशन 400 पार तय किया है उसका दारोमदार यूपी पर अधिक है। क्योंकि इसी राज्य में लोकसभा की सर्वाधिक सीटें है। पिछले आम चुनाव में भाजपा ने किसान आंदोलन की छांव के बाद भी अपनी सफलता को दोहरा लिया था, मगर इस बार राजनीतिक समीकरण बदले हुए हैं और कड़ी टक्कर का सामना भाजपा को करना पड़ रहा है।
पिछले चुनाव और इस बार के चुनाव में बड़ा अंतर है। समीकरण नये बने हैं। पिछली बार भाजपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों के विरोध को झेलना पड़ा था। जिसे तीनों कृषि कानून वापस लेकर पीएम मोदी ने हल्का कर दिया था। दूसरे इस इलाके में बसपा ने मजबूत उम्मीदवार उतारे जिनमें अल्पसंख्यक अधिक थे। उससे विपक्ष का वोट बंटा और सपा का वाईएम फेक्टर कमजोर हो गया। साथ ही कांग्रेस भी अलग से चुनाव लड़ रही थी।
इस लोकसभा चुनाव में काफी कुछ परिदृश्य बदला हुआ है। भाजपा ने हालांकि जाट मतदाताओं को साधने के लिए आरएलडी को एनडीए में शामिल किया है। मगर जयंत चौधरी जाट वोट भाजपा को कितना शिफ्ट करा पायेंगे, ये देखने की बात है। क्योंकि जाट आरएलडी को तो वोट दे देंगे मगर सहयोगियों को देंगे, ये यक्ष प्रश्न है। जयंत के निर्णय से जाट समाज खुश नहीं, ये सर्वे में सामने आया है।
इसके अलावा मायावती की बसपा में इस चुनाव को लेकर बड़ी टूट हुई है। खासकर बसपा के मुस्लिम नेताओं ने पार्टी छोड़ी है, जिनमें सांसद तक शामिल है। बसपा से निकले मुस्लिम नेताओं ने सपा व कांग्रेस का दामन थामा है। जिससे ये लगता है कि मुस्लिम वर्ग मतों का बंटवारा नहीं चाहता। राजनीतिक शब्दों में कहा जाये तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम मतदाताओं का ध्रुवीकरण होता साफ दिख रहा है।
कांग्रेस की तरफ से भी इस चुनाव में बड़ा बदलाव हुआ है। पिछली बार अकेले चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस ने इस चुनाव में सपा से सीटों को लेकर समझौता किया है। कांग्रेस ने यूपी में केवल 19 सीटों पर संतोष इस नजरिये से किया है कि विपक्ष का वोट न बंटे। इसी कारण पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम व जाट मतदाताओं के ध्रुवीकरण की स्थिति बनी है और हर सीट पर कड़ी टक्कर है। भाजपा इन इलाके में कमजोर नहीं, उसका अपना बड़ा वोट बैंक है। मगर ध्रुवीकरण के कारण इस बार उसे इस इलाके की सीटों पर कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ रहा है। अब समय तय करेगा कि ध्रुवीकरण प्रभावी होगा या परंपरा का निर्वाह होगा।
— मधु आचार्य ‘ आशावादी