हस्तक्षेप

 – हरीश बी. शर्मा
राजस्थान में लक्ष्य से पिछड़ती भाजपा ने जहां समीक्षा बैठकें शुरू कर दी है, वहीं राजस्थान होने वाले नुकसान को पश्चिमी बंगाल, तमिलनाडू और महाराष्ट्र में बढ़त लेकर पूरा करने की कोशिश में जुटी भाजपा के लिए महाराष्ट्र साधना भी मुश्किल नजर आ रहा है। लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि पश्चिमी बंगाल और तमिलनाडू में इस बार भाजपा पिछली बार से बेहतर प्रदर्शन करते हुए राज्यों की सत्ता-विरोधी लहर से होने वाले नुकसान की न सिर्फ भरपाई कर लेगी बल्कि आगे भी निकल जाएगी।

हालांकि, अभी तक यह भी यक्ष प्रश्न ही है कि भाजपा ने जाने कौनसी फूंक के चार सौ पार का दावा किया था। भले ही कुछ लोग इसे संभव मान रहे हों, लेकिन जिस तरह से मतदान के बाद के रुझान सामने नजर आ रहे हैं, यह साफ होने लगा है कि देश में भाजपा के लिए जिस तरह का एकतरफा माहौल नजर आ रहा था, वैसा है नहीं। इस स्थिति का आकलन करने के बाद भी चार सौ पार का नारा दिया गया ताकि कार्यकर्ताओं में अति-आत्मविश्वास जाग जाए।

इस अति-आत्मविश्वास को देखते हुए कांग्रेस के कुछ पत्ते भी खिर गए और भाजपा में शामिल हो गए, लेकिन जमीन हकीकत कुछ और है। नरेंद्र मोदी का नाम या भाजपा का काम एक बात है, प्रत्याशियों की अपने-अपने क्षेत्रों में सक्रियता का भी बड़ा सवाल है, जिसने जनता को सोचने के लिए मजबूर किया है।
राजनीतिक गलियारों में यह भी चर्चा है कि ऐसे हालात की आशंका भाजपा को पहले से ही थी, इसलिए माहौल को अपने पक्ष में करने के लिए इस तरह के नारे दिए गए। यह रणनीति चल गई और चुनाव से पहले गैर-भाजपाई दल बैक-फुट पर नजर आने लगे। इस परिदृश्य में अरविंद केजरीवाली पर कार्रवाई भी एक बड़ी घटना थी। फिर चलते चुनाव में सूरत में भाजपा के पक्ष में निर्विवाद चुनाव होने और एक अन्य नाटकीय घटनाक्रम इंदौर में सामने आया है, जिसमें कांग्रेस के प्रत्याशी अक्षय कांति बन मैदान से ही हट गए हैं। यह सुनने में भले ही अविश्वसनीय लग रहा हो, लेकिन चुनाव के ऐसे फार्मूले हैं, जिन पर भाजपा ने गंभीरता से काम किया ताकि भाजपा के पक्ष में माहौल बने कि भाजपा साम, दाम, दंड, भेद सब जानती है।

राजनीति में शुचिता या नैतिकता का बात भले ही भाजपा करती रही हो, लेकिन इस तरह के घटनाक्रमों से भाजपा का कार्यकर्ता खुश होता ही है, जो लोग खुश नहीं होते, उन्हें कांग्रेस के समय में हुए ऐसे घटनाक्रम याद दिलाकर चुप करवा दिया जाता है। इस बात से इंकार नहीं है कि इससे माहौल तो बनता ही है। खासतौर से ऐसे नेता, जो कहीं न कहीं भ्रष्टाचार आदि में संलिप्त रहे, बचने के लिए पनाह की तलाश करते हैं। भाजपा इस तरह के नेताओं को अपने में शामिल करने की योजना में सफल रही, यह सामान्य बात नहीं है।
ऐसा नहीं है कि गैर-भाजपा दलों या इंडिया गठबंधन ने ऐसा नहीं सोचा होगा, लेकिन वे सफल नहीं रहे। भाजपा ने प्लान ए और बी ही नहीं बल्कि सी और डी प्लान भी तैयार रखा, जिस वजह से अपने लक्ष्य से पिछड़ती भाजपा संभावनाओं को खोजती भी नजर आ रही है।

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