हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा
लंबे समय से चला आ रहा चुनाव का शोर थम चुका है। कल चुनाव हैं। देश के आमचुनावों का यह पहला चरण है, जिसमें राजस्थान की 12 सीटों को शामिल किया गया है। यहां चुनाव 19 अप्रैल को होने के बाद 26 को राजस्थान की बची हुई सीटों पर भी चुनाव होगा और इस तरह के सात चरणों में देशभर में चुनाव हो जाएंगे, सात जून को चुनाव परिणाम भी आ जाएंगे, लेकिन सवाल यह है कि आखिर वह क्या वजह है कि हम इस लोकतंत्र पर गर्व करने के बाद भी अपने प्रयासों से मतदान केंद्र पर जाकर मतदान करने की परंपरा को विकसित नहीं कर पा रहे हैं।

आज भी अनेक ऐसे मतदाता हैं, जिन्हें मतदान केंद्रों तक जाने के लिए राजनीतिक पार्टियों द्वारा मुहैया करवाए जाने वाले साधनों की जरूरत पड़ती है। जब हम किसी के घर किसी काम से जाते हैं। शादी या ऐसे ही उत्सवों में जाते हैं या कि अस्पताल में जाते हैं तब तो हम इस तरह के साधनों की अपेक्षा नहीं करते, लेकिन चुनाव में वोट डालने के लिए हम राजनीतिक दलों के साधनों का इस्तेमाल क्यों करते हैं।
इस से भी दुखद यह है कि हम इस कृतज्ञता में दोहरे हुए वोट भी उसी दल के प्रत्याशी को दे आते हैं। क्या इस पर चिंतन करने की जरूरत नहीं है कि आखिर क्या वजह है कि जिस लोकतंत्र को पाने के लिए हमने सतत संघर्ष किया। स्वतंत्रता संग्राम लड़ा गया। लाखों लोगों ने शहादत की, उसी लोकतंत्र के सबसे बड़े उत्सव के दिन हम इतने उदासीन हो जाते हैं कि अपने मताधिकार का उपयोग तक नहीं करते।

इस विषय पर सोचना बहुत जरूरी है। सोचते हुए अपनी-अपनी नैतिकता का बखान करने की भी जरूरत नहीं है कि हम तो वोट देने जाते हैं। लाइन में खड़े होते हैं। नंबर आने पर वोट देते हैं। चिंता यह होनी चाहिए कि जो ऐसा नहीं करते, वे आखिर कब करेंगे और लोकतंत्र के प्रति इस चेतना को जगाने के लिए सिर्फ चुनाव ही माकूल मौका है। हम जब अपने अधिकारों के प्रति सजग हैं तो कत्र्तव्यों के प्रति क्यों नहीं। कत्र्तव्य है हमारा कि हम हमारा जनप्रतिनिधि चुनें, जो हमारी खुशहाली के लिए आधिकारिक रूप से कार्य करे, लेकिन अनुभव कहता है कि हमने हर बार अपना प्रतिनिधि चुनने में मात की खाई है, इसके कारणों पर भी जाना बहुत जरूरी है।

यह सब जानते हुए कि लोकतंत्र है, लेकिन चुनाव लडऩा किसी आम नागरिक के वश की बात नहीं है तो हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि हमारे चाहने से ही व्यवस्था में परिवर्तन हुआ है। चुनाव प्रणाली अधिक पारदर्शी हुई है तो इसकी वजह हमारे अंदर से निकले हुए प्रतिनिधि ही हैं, जिन्होंने तय किया कि आपराधिक छवि वाले लोगों का मतदाता को पता चलना चाहिए। मताधिकार का कोई दूसरा उपयोग नहीं कर सके। बूथ-कैप्चरिंग जैसी घटनाएं नहीं हों, आदि।

यह सभी लोकतंत्र में भरोसे का परिणाम है। उन लोगों के भरोसे का परिणाम है, जिन्होंने चाहा कि उन्हें अच्छे नेता, अच्छी सरकार चुननी है, जो देश और समाज में अच्छी व्यवस्था दे सके। हालांकि, अभी भी सबकुछ अच्छा नहीं है। अच्छा होने में समय लगेगा, लेकिन इसके लिए हमें समय देना होगा। हमें इस लोकतंत्र के महायज्ञ में मन, वचन और कर्म के साथ समर्पित होकर कार्य करना होगा और कार्य इतना-सा है कि अपना वोट जरूर देकर आएं। कोई दिक्कत नहीं, नोटा दबाएं, लेकिन वोट जरूर देकर आएं।

‘लॉयन एक्सप्रेस’ के संपादक हरीश बी.शर्मा के नियमित कॉलम ‘हस्तक्षेप’ के संबंध में आपके सुझाव आमंत्रित हैं। आप 9672912603 नंबर पर वाट्स अप कर सकते हैं।