अरज  ‘लॉयन एक्सप्रेस’ लगौलग आप नैं खबरां सूं जोड़्यां राख्यौ है। इण सागै ई अब साहित रा सुधी पाठकां वास्ते भी कीं करण री मन मांय आई है। ‘कथारंग’ नांव सूं हफ्ते में दोय अंक साहित रे नांव भी सरू करिया है। एक बार राजस्थानी अर फेर हिंदी। इण तरयां हफ्ते में दो बार साहित री भांत-भांत री विधावां में हुवण आळै रचाव ने पाठकां तांई पूंगावण रो काम तेवडिय़ो है। आप सूं अरज है क आप री मौलिक रचनावां म्हांनै मेल करो। रचनावां यूनिकोड फोंट में हुवै तो सांतरी बात। सागै आप रौ परिचै अर चितराम भी भेजण री अरज है। आप चाहो तो रचनावां री प्रस्तुति करता थकां बणायोड़ा वीडियो भी भेज सको। तो अब जेज कांय री? भेजो सा, राजस्थानी रचनावां…

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सत्यदीप कानाबाती :-6967096051

राजस्थानी अर हिन्दी में लगोलग साहित्य रो सरजण करे है अबार तक ७ किताबां में लिख चुक्या है राजस्थानी साहित्य भाषा अकादमी सूं भी जुडिय़ोड़ा है

 

कहाणी : खेबी

आ एक ठाडी खैबी ही ही। स्हैर री जाणी पिछाणी जाग्यां पुराणै बास री। जठै च्यार गळ्यां रै चोवटै में चौफेर चोक मिलाण हेल्यां। बसीवान सिगळा दिसावरी कमाई रा पूत। पिस्यो अर कमाई हेल्यां स्यूं ही मुंहडै बोलतो साफ दिसै। जाळी झरोखा, टोडा झुकायां ऊंचा माळिया अर ठाडी पिरोळ खरै सीसम री जिणरै मां झीणी कोरणी काढ्योङी बेल बूंट्यां। बां बिचाळै डेढ पट्टो जमी म्हारी। पुराणै बगत पङदादै इण जमी नै तीन पट्टा नारैळ सट्टै ली ही। पांती हुई जद बांरै छोटियो भाई पांच रिपीया में सळटा दूजी जाग्या सेठां री हेली में जाय रेवण लागग्या हा। म्हारला बूढीया जिद्दी जलम रा । खुद री जमी कोई छोडीजै धार परा बठै ही जाचो जचायो राख बसीवान रेया।
आभै स्यूं होड करती हेल्यां बिचै म्हारी डेढपट्टो जमी। बारै अबढ फोगां रो धुर कोट दियोङी बाङ, मांय दो कच्ची साळ, दो छान जिणमें खींपङां रा फूस आधा बारै लटकै। एक तिबारी आगै धुंई उपर तिरपाल री छिंया। धुरकोट कनै ऊंट री झोक अर आगै गायां भैस्यां री ठाण। ठाडी बाखळ । रेवणिया म्है एकला बामण बीं पूरी बाणिया बस्ती में। बाकी चाकी तो बाणियां रै ही कोनी पण बापङा करै के जमी बां री बगसायोङी हुवै तो आधी रात नै तगङ काढै।सदा आ ही सोचै महाराजियो आ जमङी बेचै तो आपां एक हेली ओर चिणावां। सेठाणियां नित बोलवां करै म्हारै भूख सारू, पण भूख स्यूं तो म्हारै भायल चारा हा फेर डर तो के हो।
म्हारै बिणज खेती अर धीणो। धार बेच धाको धिकाणो। खेती में हुये दाणा स्यूं पेट भराई।पण दादो एक दम ठीमर ,ठरको ठाकरां सो। म्हारा बापू अर बांरै दो भाई सूधा गाय रा उपरला दांत,काम स्यूं काम। बां रै जाम्यो म्है,दादी सदा ही केवै भोगना किस्त खाया जद म्है आया। जाम्या पछै ढाई दिन बाळसाज ही को दियो नीं। सगळै घर में तळतळियो हो लियो। दादी देयी देवता, भैरूं भोमिया सगळा सींवर परा धापगी पण आपां तो टग टग आंख्यां फाङा। मसां सात साल पछै कूख मंडी, जापो ओ जाम्यो। भुवा आई अर बोली कोई पीर जी री फेंट है। भूल में की गिट लियो है भौजाई आपरै पीरै में। बठै बो पीर जी रो मोहल्लो आंरो मोहल्लो सारै ही है। दादी बोली बळियारै जावूं खिम्या बगसावो कोई है तो पीर बीर म्है पांच आना री शक्कर चढा देस्यूं बापजी ओ बाळ साज तो देवै । भुवा बतावै बळज्याणो के तोतक हुयो म्हारा राम इस्या गरळाया बाको फाङ क बास नै ठा पङग्यो अवतारी बापरग्यो दिसै। खैर बाळसाज दिंया पछै सगळा रो जी जम्यो। अबै पंडत जी नै पूछण री सुध आई घर का नै।पंडत जी पतङो खोल बठै गयी भुवा नै बतायो तो भुवा माथै रै हाथ मार लियो। मूळा नखतर सताइस दिनां रो नांव अर सात धान, सात कुवां रो पाणी, सात चीज लो री काळै कपङै में लपेट जोतकी नै सताइसवैं दिन भखावटै देवणी है।पछै म्हारो छोरो आय नांव कढा देसी। नांव तो कढाणै सारू ही आपां जाम्या हा।बामण दादो के नांव काढसी। खैर बीं कमसाली में भी म्हारो नांव काढीज्यो, खरच घणो ही दोरो लाग्यो पण पेल पोत मोभी बेटो, रळी तो काढै ही जिंया तिंया। लापसी दाळ कङूंमै नै जिमायो।बामण दादो नांव कढायो मूळचंद ।ओर नांव भी हा च्यार पण किनै चेतै ओ एक नांव ही चेता चूक कर परो मेल दिया। तो भाई सताइसवें दिन मोभी बेटै जामणै री खुसी में रीत मुजब थाळी बजाईजणी ही, दादी कोडायती थाळी लेयनै निसरणी पर पग राख ढाळियै चढै ही क निसरणी रो छैकङलो गातो करङ कट करतो टूट्यो अर दादीसा दट दैणी धरत्यां ,बापङी घर री एक ही कांसी री थाळी दो टुकङा हुयनै आपरी कांस मेटली। दादी केई दिन करङा नखतरां नै दोष मंढती मांचो सेयो। आमा हळदी अर मेदा लकङी री फाकी ली। मन में म्हारै जामणै नै गाळ ठोकती सिगताव कराती रेयी। म्है दिनां नै तोङ फोङ गडाळियां, पगलियां अर भुंवाळी खांवता बडीजग्या। छठी साल पढणै तांई पोशाळ री त्यारी हुई तो दादी केयो किसो बेलिस्टर बणासी। टींगर नै रोही भेज कनी बीनणी। मां रै मन में ही क म्है दो आंक सीख मिनख बणूं। बाद एक दिन म्हनै पकङ पोशाळ लेगी। रस्ते रो ओ जुध भी देखणै जोगो। मां रै ले ज्याणै रे जिद अर म्हारै नीं जाणै रो ढीट पणो तणतो रेयो खासी देर, मां की देर तो मनावणा लाड स्यूं कर केयो, पछै धाप्योङी लाड नै छोड एक टांगङी नै खींच गळी में कयी दूर ठरङ्यो। पूठ अर अकूण्यां छुली जद आपां सीधा सीधा गैले सर पोशाळ गया। मां रो भै काळजै इसो बेठ्यो आज तांई को निसर पायो नी। पोशाळ में पढणै साथै अवूतायां तो बिंया ही । बास रा सिगळा पिस्या आळा, म्है बम सपाट। बां री आंख्या स्यूं ही लखावंतो म्है माछर हां जिका जोरामरदी बां री छाती छोलां। म्है भी तो सिंचलो कोनी हो, घर रो कचरो कूंडै में घाल खांधै चक सामली सेठाणी री चोकी चढ अकूरङी फेंकण नै जांवतो। अकूरङी पर कचरो जातो सो जातो घणकरो सेठाणी री चोकी पर ही सळट जांतो। सेठाणी बापङी घणा दिन छाती राखी, जाण्यो कुण छेरै में भाटो न्हाकै। पण एक दिन सबर टूटग्यो। सेठाणी बारै निकळ बोली’ठहर मरीलिया म्हारी चौकी नास करदी, कचरो रोज अठै खिंडा परो के बडेरां रो नांव काढै’ ‘खेबीगारा।’ माठो बळद जाणै बुचकारी नै अडीकै। म्हनै तो राङ उधारी मिलगी। म्है बोल्यो ‘के बडेरां तांई पूगगी, थारा बडेरा रै के लांपो लागग्यो’। म्है लङोकङ लुगाई तरियां सेठाणी रै बांथां पङ लियो। इसी कोङीधज है तो थारी चोकी उपाङ थारै ओरै में रखलै। गळी तो जिती थारी बिती म्हारी। सेठाणी बङ बङ करती मांय बङगी।म्है खाक पिदावंतो घर में बङग्यो। पैली जीत ही भूख री धायोङै धींगङां स्यूं।
आगलै दिन सेठाणी भानो काढ म्हारी मां कनै आयी, काम तो के हो, म्हारी करतूत रो ओळमो देवणो हो। पैली म्हारी दादी स्यूं रामा स्यामा कर पछै मां रै सांकङै आयी। देखो बिनणी बिंया बात तो केवणै जिसी को है नीं पण थारै टींगर रा लखण थोङा ठीक को है नीं। काल म्हारै साथै भखावटै ही माथो मार म्हनै उळटा सीधा थोक सुणा म्हारो माजनो मार दियो। पूरै बास में म्हारी मरजाद, जै म्है सेठां नै बतावूं तो थारो करै जिंया ही करै, पण थे बामण जात जद गयी कर ज्यावूं। अब तो पाणी नाक स्यूं ही ऊंचे तांई चढणो पोळा लियो है। पछै म्हनै ओळमों ना देयी। जै काई किसी हुवै तो। ईण हेली री साख आखै चोखलै गूंजै, काल रो टींगर इण माथै धूङ फेर दी। बेटा बीनणी टींगर नै कीं तो हीर हटक में राख। मां नै घणी सरम आयी। हाथा जोङी कर माफी मांगी, म्हनै सावळ समझाणै रो भरोसो दियो। मां री आंख्यां में ओळमै स्यूं पाणी आग्यो हो। म्है छानङी में एक खूणै में खङ्यो सुणै हो, मां के करैला म्है जाणै हो, पण आ चुगलखोर सेठाणी सूंयी जावै आ किंया हो सकै। पछै म्हारो के बंंटसी। भारणी तो उतरणी है ही, तोतक तो आपां ही रचां। खूंटै कनै जाय मोडकी बैङकी री जेवङी खूंटै स्यूं अलायदी करी, मोडकी घर में म्हारै सिर खाणी,कीं स्यूं ही ताबै को खावै नीं दादै टाळ। ज्यूं ही सेठाणी दैळी बारै पग धर्यो बीं री साङी री सङफङाट सुण मोडकी चिमकी अर हुई चौफाळियै, आगै सेठाणी लारै मोडकी पूरी बाखळ में दे चकरी, म्है तो बठै खङ्यो के कांदा छोलै हो दिया तेतीसा गळी में। बाखळ में खेलो देखणै जिस्यो हो, दादी दादै नै हैलो पाङ केयो मोडकी टोगङी खूंटै स्यूं खुलगी दिसै, बाळो बांधो नीं तो सामला भाभीसा रै दैय लेसी। दादो दकाल मार बिनै बांधी, पछे सेठाणी रो जी जमा सागै जाय घरां छोडी। सेठाणी पसेवै स्यूं हबाडोळ थर थर धूजती घर में बङगी।आपरै घरां बङती सेठाणी एक ही बात करै ही मरज्याणा ढांढा अर टींगर एक ही डोळ रा है। म्हारो राम डेढ एक घङी रो आंतरो देयनै घर में पग दियो तो मां भारणी उतारणै सारू त्यार, मां नै ओळमै री चीज लूंठी चुभती ही,आपणी लिगतर पूजा जचा परी हुई। छैकङ दादी छुटायां ही पिंड छूट्यो।
म्हारै मां रै कूटणै री इती पीङ को ही नी जिती सेठाणी री घरां आ चुगली कर कुटवाणै री ही। मूळीयो मोफत में कुटीजग्यो, पङूतर ना देवै आ तो देवता ही सोच को सकै नीं। कीं करियां ही जलम सुधरै मूळीया। धार बिचार करणै सारू भायलां नै टंटोळ्या। भायला तीन, नानीयो माळी अगणै बास रो, भूरियो नाई जोङै कनै रो अर ईं बास रो ही भीको बाणियो। बो ही म्हारै डोळ रो पिस्या आळा बिनै भी आछा को लागता हा नीं।
सिंझ्या ही रायबहादर रै कुवै आळै टाडै में भेळा हुय परा कोई जुगत भिङाणी ही। पण अबकै सावचेत हा। ओळमो नीं आवै। अबकै तो बिना लाठी सांप मारणो है। के करणो है। भूरियो नाई बोलियो, “किंवाङ तोङ देवा” म्है कह्यो ना। तेज तो बाणियै रो बेटो ही हुवै, बो राय दी क देखो रात नै अबार गरमी में सगळा डागळै सोवै है, आज रे घर रै उतरादै चिपते पींपळ पर मो मांख्यां रो ठाडो छतो है, मूळै कनै गोफण है अर निसाणो भी साचो है, आपां अंधारै में सिंझ्या पछै दो सरकां देस्यां दगङ, देख अम्मा थारी क म्हारी। थारी पीङ रो बदळो ईंया निकळसी भाईङा, म्हारै हाडो हाड ढूकगी ही, साळ स्यूं गोफण काढ छान में राखी, सिंझ्या पङतां
ही च्यारूं चतर भेळा हुया, ओलो जठै हो बो म्हारो लङाई रो ठिकाणो बणाईज्यो। थोङो मुंधारो होतां ही सेठां रै परवार रा डागळै चढ सुस्ताणो सरू कर्यो ही हो क सरऽरऽण करता गोफण स्यूं भाटा निसर परा मो मांख्यां रै छातै पर। भरण भरण करती छिङियोङी मो माख्यां डागळै खङ्या, बेठ्या स
सगळा रै चेंठगी। जै रोळो माच्यो, म्हारो जी सोरो हुग्यो।म्हारी पीङ सा बिलमगी।
एकर उतरादी सेठाणी के बिचार आपरी जाग्या में जाण बूझ खुलो पखानो करायो। मां घणो समझायो क बडिया जी गरमी में थांरो बेटो म्है अठै सौवां। थै बिनै राखो तो ठीक रेयसी आखी रात बास मारै। पण सेठाणी रै तो पिस्यै री गिरमी। कुण सुणै। पखाना घर को उठायो नीं । मां री इ परेशानी म्है समझ एक खेबी फेरूं रोपी ।च्यारू चतर भेळा हुया कुवै री सारण स्यूं ठाडा ठाडा दगङ ल्याय परा फुट सात एक ऊंची भींत दांयी बाखळ में जठै सेठ रो छोरो सोवै बीं कमरै री सीध में दगङां री भींत जमा म्हारै घरां भी पखाना घर थरप दियो। सिगळा नै समझा दिया, नीबटण अब अठै ही जाणों है। म्हारा बापू पैल पोत म्हारै तांई बोल्या दादै नै “क बापू मोभी बेटा अर जेठा बाजरी भाग आळै रै हुवै” पण जेठा बाजरी में भी तो जोगी सिट्टा हुवै कोनी के। मूळीयो बो जोगी सिट्टै बरगो मोभी पूत है। करां तो के करां। सेठाणी रो पखाना घर बीं रो छोरो तीजै दिन जाग्यां फोर दूजी जाग्यां लेग्यो। बापू मां री अजक मिटी। म्हानै किसा पखाना चाहीजै हा। बारै जाणियां नै ,ओ तो ऊत रो घर जूत हुवै आ दिखाणी ही म्हनै तो।
एकर खेत पाङोसी री खेबी मेटी ही। हुयो के एक दिन बापू सिझ्या रा घरां आय दादै नै केवै हा, “बापू मालो काका रात नै बाङती नै तोप रोज गळतो घाल डांगर बार देवै डांसर तो उजास ही करै। म्है तो समझा दिया पण झट ही झाल राखी है। किया समझावां। म्है बापू नै केयो एक रात म्है च्यारू भायला रूखाळी राखा, कदास कोई बात बणज्या। बापू म्हारा लखण जाणै हा, बे केयो बळनै दै। तूं कोई नयो कोतक रचसी। परोटणो दोरो हुज्यासी। पण दादो केयो जाणै दे भाया। ए कीं नौ री तेरहा करै तो कर लेंण द्यो। तो सा म्है च्यारू चतर खेत जाय रात नै खेत मां रेग्या। मालै दादै नै हेलो कर के दियो दादा डांगरा आवै तो टुकारियो कर दिया। दोदो केयो हूंऽह। म्हानै ठा हो दादो किसा टुकारिया करै। आधी एक ढळी माळै दादै रै तो रावण री बा ही भावण, चोसंगी स्यूं बाङ में गळतो घाल्यो दो गावङी अर एक गोधलियो म्हारै खेत में बाङ नचीत हो सोग्या डेरै जा परा। म्हारा राम च्यारूं जणा पेल्या ही मोरचो साम्या त्यार हा चरता डांगरां नै कूणै मे लिया च्यारू जणा रळ परा बां डागरां रै काना में मोटा टींटण घाल कान बंध्या पछै गैले रो टाटियो खोल दादै रै खेत में धीरै सी टोर दिया। ज्यों कान में टीटण जुळबुळाट करै तीनू डांगर दादै रै खेत में चोफाळिया भाज भाज सगळो खेत कचो न्हाक्यो।। दादै एकलै रै बे डांगर क्यारां ताबै आवै हा। आखी रात दादो बाद डांगरां लारै झींकतो फिर फिर आखतो हुग्यो पण तोतक समझ को आयो नीं। महै च्यारू दादै रख हाल देख झूंपङै में खिल खिल दांत काढै हा। दिनूगै बापू आया जद दादो आपरो दुख बापू आगै गायो। बापू बानै थ्यावस दी। केयो अब स्यूं आपां रळ मिल डांगरा काडस्यां। गळता है बाने में ध्यान राखणो है। बापू अगलै दिन घरां आ विगत बताई दादो केई देर हंसिया।
म्है खाली राङो हो इसी बात को ही नी पढाई में भी हुस्यार हो। सगळा गुरूजी मेरै स्यूं राजी हा। छोरां रै काम में अगीवाण हो। खेल में भी पोशाळ नै आछो नाम दिरायो हो। बापू चावै हा म्है कठै ई नोकरङी लाग दो पिस्या कमावूं। पण म्हारै गुलामी करणो तो खून ही केयो को करै हो नीं। बठै गांव में इग्यारवीं तांई री पढाई। पछै म्है खेती कानी रूख कर लियो। बडेरां री डेढ सो बीघा जमी ही, बिरानी करता हा काको बापू। एक साल जमानो, एक साल ल्यायो टायो अर दो साल काळ भूख भुवाजी नै दे धक्को रोही टोरां पण म्हारै घरां बावङ्यां पैली कंवळै उभी त्यार लाधै।म्हारी खोपङी में एक बातङी ढूकी, क्यूं नीं खेत में कुवो करावां।बैंक स्यूं स्यूं लोन लेय कूवो पोळायो, राम री किरपा स्यूं भावा जोग मीठो पाणी अर ऊंचो पाणी ताबै आयो। कुवै रो स्सारो अर गायां रै दूध रै पिस्या रै मैळ स्यूं सांवरो दिन घेर दिया। बापू काको अर म्हा दोन्यू भायां री मैनत रंग लगा दिया। बीं बास में अब हेल्यां रा मालक टाबरां नै लेय आसाम बंगाल बसग्या हा। हेल्यां में तो बस भाङैती हा, का कबूङा। म्है भी परवार रो जाचो खेत में ही जचायो आछा आसरिया कराया पण बीं जाग्यां नै हेल्यां बिचाळै ईंया ही राख छोडी ही। दो बार सेठ आया मूं मांग्या रिपीया भी धाम्या पण हेली सामी बाङ आळी जाग्यां म्हारो मान बढावै ही। लोग ही केवै मूळो स्याणो जाम्यो, आपरै बडेरां नांव स्हैर में कायम राख्यो है। दूजो हुंवतो तो अबनै बेचा तुङको कर खा पूरा करतो।

 

पवन राजपुरोहित

बिणजारौ, राजस्थली, रूड़ो राजस्थान, मरू नवकिरण आद पोथ्यां मांय कवितावां रो छापण।

 

कविता : अडीक पांखड़ा

थारो जावणो

अर अडीक रै पांखड़ा रौ

पांगरणौ

बै फरऽररर करता आवै

बारणै

निजरां टिकाय ढूक जावै

गेलै

सरऽररर बायरियो धकेलै बांनै

थळगट मांय

पण फेरू उड उड आवै

चौवटे

चढ़ै मेड़ी नै घुमर घालै

गोखङै

भींजै मेह सूं तावड़ो तपावै

कुमळीजै

घणै हेत सूं करै सैन मार

परकति री

नूंवें रंग अर नूंवीं आस रा पांखड़ा

जोवै बाट पीव री

 

कविता : ओलखाण

खुदौखुद सूं कराणी पिछाण पण

निज निजरां कियां होय सकूं

कांवळ हमैस ही रैवूं ला साव सांवळ

कदै ना दीसै ला दोस राखूं ली खुद

नै नत निरदोस आछौ इणसूं

म्हारै सूं बैसी कोई दुजो करसी

म्हारी सांतरी ओलखाण……… ।।

 

 

व्यास योगेश ‘राजस्थानी’  कानाबाती :- 8302242401

राजस्थानी अर हिंदी माय लगो लग लिखता रेवै। आपरी रचणावां देश अर विदेश री पत्र पत्रिकावां में भी छपती रेवै।  आप रै सम्पादन माय हिंदी अर राजस्थानी माय नुवे लिखारा रो साझा काव्य संकलन भी देखण में आयो है ।  

आज बेला महाराज दिनुगे सूं ही घणा राजी हो रह्या हा । नहा धो’र दुकान पूग्या अर दुकान रै सामी पड्यो अखबार उठार बाचण लाग्यां ,फटा -फट पन्ना पलटियां अर अखबार फेंक दियो ।
अखबार रै साथै ही महाराज रो मुंडो भी उतरग्यो। बै घने दुखी मन सूं दुकान तो खोली पण नी झाड़ा झड़कावां नी कोई धूप अगरबत्ती, बस दुकान खोल’र चेला नै उडिकण लाग्यां।
साथै साथै अखबार कानी देखे अर बांणै नै चाण्डाळी चढ़े । थोड़ी ही देर मांय धीरे धीरे चेला भेळा हुवण लाग्या। सगळा चेला एक बीजे नै पूछे कि,’ महाराज आज उदास कियां है? आज सूं पैली तो महाराज ने कदेइ उदास नी देख्यो?”
पण आपस में खुस-फुस करे महाराज सूं पुछण रो कैरोई काळजो नी पड़े । चेला आपस मांय खपत कर ही रह्या हा इत्त में हरमेस ज्यूं रोळिया महाराज रुळता रुळता दुकान आ धमकियां।

रोळिया महाराज आज बेला महाराज नै शांत देख’र चेला ने पूछ्यो , “आज महाराज इता शांत कीकर है ?” चेला नसड़ी हिलावतां बोल्यां,”ठा नी महाराज, आज तो आया जणे सूं ही महाराज दुखी लागै। ”
रोळिया महाराज सूं पूछे बिना नी रहिजयी । रोळिया महाराज किं पूछता इत्ती ताल में एक वकील साब दुकान में आया, अर बेला महाराज री कुर्सी कनै बैठ गया। वकील साब ने देखतां ही चेला डर गया । वकील साब बेला महाराज नै पूछयो की, ‘काईं बात हुगी आज म्हारी जरूरत कियां पड़गी? ”
चेला भी सोचियो अबै तो आपांनै ठा पड़ जासी की ,महाराज किन कारण उदास है ।
बेला महाराज आपरै दुख री गाथा सुणावण लाग्यां। महाराज बतायो की म्हैं परसो एक जळसे में घणो तैयार होर गयौ , लम्बो चोड़ो भाषण भी दिय,पण अगले दिन रै अखबार में कोई न्यूज़ नी ही । जद म्है संस्था रे पदाधिकारियों ने फोन मिलायो अर प्रेस विज्ञप्ति रो पूछ्यो तो ठा पड़ी कि काल मोड़ो होवणे रै कारण न्यूज़ नी लागी, काल रै अखबार में लगासी ।

म्है भी सोचियो आ तो स्वभाविक बात है पण आज म्है दिनुगे अखबार देख्यो तो न्यूज़ तो ही पण म्हारौ नांव कोनी हो मैं फेरू संस्था फोन कर पूछ्यो तो बै बतायो कि संस्था री विज्ञप्ति में तो सगळा रा नाम दिया है।

आ बात बोल’र बां पल्लो छाड़ लियो। म्हारौ नाम आज सूं पैली भी अखबार वाळा पांच सात बार काट चुक्या है, मन्नै अखबारवालां माथै मान-हानि रो दावों करणों है।”
आ बात सुणतां ही वकील साब माथै तईडो लियो अर हंसता – हंसता दुकान सूं निकळ रवाना हो गया।
चेला महाराज ने याद दिरायो कि दुकान मंगळ करने रो टेम हुग्यो। बेला महाराज भारी मन सू उठया बांरै लारै-लारै सगळा उठ’र आप आप रै घरां टूरग्या ।
-व्यास योगेश ‘राजस्थानी’

 

– हरीश बी.शर्मा   कानाबाती :- 9672912603 

राजस्थानी-हिन्दी में नाटक, कहाणी अर कविता रो लेखण, साहित्य अकादमी नई दिल्ली रे बाल साहित्य (राजस्थानी), राजस्थान साहित्य अकादमी रे देवीलाल सामर पुरस्कार अर पीथळ पुरस्कार आदि सूं सम्मानित

आलेख  : आधुनिक राजस्थानी रंगमंच : दशा अर दिशा 

आधुनिक एक इस्यौ सबद है, जको छळ करतौ निजर आवै। आज जिण नै म्हें आधुनिक मानूं, वो काल अतीत बण जासी तो कांई काल आवणियौ आधुनिक हुय जासी? इण सवाल री खेचळ में कठै सूं भी आधुनिकता रा अैनाण निजर नीं आवै। आधुनिक वो कहावै, जकौ काल सूं नुवों है, अर इण सरत सागै नुवौ है कि उण में आवण आळै समै री छिब देखण खातर एक दीठ पण मिळी है। हूं तो कईं बार कहूं क बदळाव भी एक छळ है। जे कदै आप किणी री आखरी जातरा में गया हो तो जियां सुरग-बिसाई री वेळा आगला लारै हुय जावै, लारला आगै, उणी तरयां बदळाव भी है, क जको हुवै उण नै रोक दो अर जिको नीं हुय रियौ है, उण ने कर दो।
पण, कैवत री इतरी-सी बात घणी उंडी है। आधुनिक हुवण वास्ते भी उंडौ उतरणौ पड़ै। बात साव इतरी नीं है कि जको हुवै, उण नै रोक दो अर नीं हुवै जकै ने कर दो। इण वास्तै जाणनौ पड़ै कि हुय कांई रियौ है, इण खातर सोधणो पड़ै क अबार थकां कीं-कीं नीं हुयौ है। अर जे नीं जाणां तो फेर हुई ई है। अब जे राजस्थानी नाटकां री बात करां तो ख्यात तांई री जातरा करणी पड़ै। ख्यात भी नैणसी री। वठै ठाह पड़ै क राजस्थानी रंगमंच रा अैनाण तो पांच सौ साल पैली भी हा। उण वेळा रा दो किरदार है नरबद-सुप्यारदे। उणां रो प्रेम आख्यान है। अर इण प्रेम आख्यान री अेक घटना उण वेळा खेलीजती ‘रावळां री रम्मत’ में हुवै। ठाह पड़े राजस्थानी रंगमंच रो पैलो रूप, जके ने लोक रंगमंच कह्यौ जावै। रम्मत सूं पिछाणियो जावै, वा परंपरा पांच सौ साल जूनी है। पांच सौ साल जूनी इण खातर क ओ वो समय है, जद जोधपुर री थरपणा नीं हुई ही। राव जोधा भी नीं हुया हा। इण ढाळै कह सकां क राजस्थानी रंगमंच री परंपरा चौदहवीं सदी सूं है। अर जे इण रे आधुनिक हुवण रा तागा जोवां तो लगै-टगै एक सौ अठारै साल पैली सूं फेर अेक दूजी जातरा करणी पड़ी।
एक सौ अठारै सालां रे राजस्थानी रंगमंच रे इतियास में अजै तांणी डेढ़ सौ खण नाटक लिखिजिया है, अर इण नाटकां में सूं बीसेक नाटक ही इस्या हुयसी जिकै रा दस सूं बेसी शो हुया हुवै। तथ्य ओ भी कै 17 नाटक तो फगत डा. अर्जुनदेव चारण रा है। गिणत री बात करां तो निर्मोही व्यास, सूरजसिंह पंवार, लक्ष्मीनारायण रंगा, नागराज शर्मा आद रा भी दस-दस, बीस-बीस नाटक इणमें सामल है। इण पांच लेखकां नैं कम सूं कम भी जोड़ लगाय’र पचास नाटक सागै पागती बैठाय दां तो बचै सौ नाटक अर राजस्थानी रंगमंच रे एक सौ अठारै साल रे इतियास में बरस-दीठ पांति आवै कोनी पूरौ अेक नाटक। आ है राजस्थानी नाटकां री स्थिति। म्हारी दीठ आ ईज है राजस्थानी नाटकां री सैं सूं बडी चुणौती। पण कांई, इण नांमां नैं पागती बैठाय परा राजस्थानी नाटकां री ओळखाण कर सकां? नीं कर सकां, पण बात तो दिसा री है। कह सकां क दसा तो माड़ी-मोटी ठीक ही है, पण जे बात तुलना री आवै तद?
तद रो सवाल घणौ अबखो, पण म्हें कह सकूं क राजस्थानी रंगमंच री दसा में सुधार सारू आप-आपरी खिमता सारू काम हुया जरूर है। हां, खिमता सूं बेसी करण री खेचळ कम दिखी है। म्हनैं याद आवै क हरीश भादाणी जद डॉ.राजानंद भटनागर रो ‘काचर रौ बीज’ करै तो गांव-गांव शो हुवै। हरीश भादाणी फगत राजानंद रे नाटक रो उल्थौ ई नीं करै, आप रै कांनी सूं एक मंगलाचरण पण लिखै। प्रयोग री आ बानगी देखो, क नाटक सूं पैली जनकवि हरीश भादाणी मंच पर आवै अर बोलै
पैला सिमरां धरती माता/ मानां मोटो करम विधाता/घणै चाव सूं हेलो पाडिय़ौ/ थांनै तेड़ौ भेज बुलायौ/घर-घर में बीती रामायण/कही राजियै मांड्या पाना/ दानां सामै भणी हरखियै/म्हें आया थांरै गांव/टाबरां सुणौ, लुगायां सुणौ, चौधरियां सुणौ, पंडितां सुणौ…
‘काचर रौ बीच’ नाटक रो ओ प्रयोग फड़ शैली में हो, जको लोगों ने घणौ दाय आवै। इणी तरयां लोकगीत ‘म्हांनै अबकै बचा ले म्हारी मां ए…’ रो प्रयोग डॉ.अर्जुनदेव चारण आपरै नाटक ‘जमलीला’ री सरूआत मेंं करै अर दरसकां ने बांध लै। दसा री बात करां चायै दिसा री, नाटक प्रदर्सन री सैली है तो इण बात नै कियां भूल सकां क दरसकां रे बिना किसी दसा अर दिसा?
अर जे बात करां दरसकां री तो दरसक जुटै नुवेपण सूं, निरंतरता सूं। अब जै लगोलग सेठ-सेठाणी रा नाटक ई हुंवतौ रैयसी तो दरसक क्यों सहन करसी? बात आ भी नीं है कि इण दीठ सोचियौ नीं गयौ। डॉ.अर्जुनदेव चारण रो नाटक ‘अजै सैं बाकी है’ राजस्थानी रो पैलो अबसर्ड नाटक इणी दीठ री उपज है। लक्ष्मीनारायण रंगा रो नाटक ‘बै-रुपिया’ राजस्थानी रो पैलो बोल्ड नाटक मानीजै। फगत अे ही नहीं, निर्मोही व्यास रा लिखियोड़ा नाटक ‘भीखो ढोली’अर ‘सांवतो’ अर यादवेंद्र शर्मा ‘चंद्र’ रा लिखियोड़ा नाटक ‘महाराजा शेखचिल्ली’ अर ‘तास रो घर’ भी आप रै कथानक री वजै सूं चर्चा में रैया। कृष्णचंद्र शर्मा रो ‘उदबुद राजा’ हुवौ चायै बुलाकी शर्मा रा नाटक ‘राजा राज करै’,’सराप’ अर ‘म्हारी गुडिय़ा’, अे नाटक राजस्थानी रंगमंच री दसा सुधारण सारू करिजण आळै बदळाव रा अेनाण है। पण इण नाटकां री जातरा में लिखिणो तो फगत खेत में बुवाई है। फसल हुवणी तो निर्देशकां री इंच्छा माथै है। नाटक रो मंचन ई नीं हुवै तो फैर भलां ई नाटकां रा ढिग लगा दो।
म्हारौ तो अठै ओ भी मानणौ है कि नाटकां री फेर भी इत्ती कमी नीं है,पण नाटकां ने खेलण री हूंस में निजर नीं आवै। कारण घणां ई हुय सकै। संसाधन, दरसक, दीठ जिसी बातां भी लागू हुय सकै, पण जे बात राजस्थानी रंगमंच री हुवै तो अठै अे सवाल रेवै ही क्यों, बात तो मायड़ भासा री है। इण री सिमरधि खातर जै ओळाव लेवां तो फेर राजस्थानी रो धणीधोरी कुण?
सवाल उभै के तो कांई करां?
तो पडुत्तर नीं ढूके। पण बात तो आगे बधै ई है। तो हियै कांगसी फेरो क कांई आज रै आखै राजस्थानी रंगमंच ने म्हां लोक सूं मुगत कर पाया हां? कांई आपां कोई इस्यौ दाखलौ राख सकां, जिण में राजस्थानी रंगमंच नुवा विषयां ने नुवी सज-धज रे सागै, नुवीं युक्तियां सागै अर नुवै प्रयोगां सागै राखै साम्हीं आयौ है? जे पडुत्तर हां में हुवै तो आधुनिक राजस्थानी रंगमंच री दसा चोखी, नीं जणै बगत है विचार करां क कांई दिसा हुवणी चाइजै।
साव साच तो बात आ ई है कि अबार तांई राजस्थानी रंगमंच, राजस्थानी लोक रंगमंच अर आधुनिक राजस्थानी रंगमंच में कोई घणौ बडो भेद भी नीं फळायो जाय सक्यौ है। इण सूं भी आगे री बात आ है कि अबार तांई राजस्थानी रंगमंच लोक सूं बारै निकळ ई नीं पायौ है। या तो कथानक ही लोक रो है, नीं जणै ट्रीटमेंट में लोक है।
इणी वजै सूं आधुनिक राजस्थानी नाटकां रा हरावळ डॉ.अर्जुनदेव चारण ने कह्यौ जावै, क्योंकि वे आप रे नाटकां में नुवां प्रयोग करै। उणां री बात भलां ई इतिहासू हुवै, संदर्भ भलां ही लोक रा लागै, पण केवणगत नुवी हुवै। उणां रो सत्याग्रह नाटक इण बात री साख भरै क सत्याग्रह कोई उगणीसवीं सदी री बात नीं है, इण सूं पैली भी लांठा सत्याग्रही हुया है। ‘धरमजुद्ध’, ‘बोल म्हारी मछली कितरो पाणी’ अर फेर ‘जम लीला’ री बात करां तो वे रंगमंच पर आधुनिक संदर्भां सागै इण तरयां सूं आप री बात जोड़े क देखती वेळा यूं लागै ई नीं क आप किणी बगत रो कोई नाटक देख रिया हो। उणंा रा नाटक आज सूं जोड़े।
पण, राजस्थानी नाटक में अर्जुनदेवजी जिस्या, फगत अर्जुनदेवजी ही है। इणां रे बाद में काळी-पीळी भींत। अर ओ ईज कारण है कि बदळाव रा सुर घणां मांदा है। कोसिसां पण जारी है। भीलवाड़ा रा गोपाल आचार्य इण तरयां री खेचळ करण में आगीवाण है। वे आप रै परिवेस सूं विषै अर किरदार उठावै अर ‘भोपा-भैंरुनाथ’ लिखे अर मंचन भी करै। तपन भट्ट आप री विरासत ने आगे बघावंता थकां तमासा शैली में ‘राजपूताना’ सागै राजस्थानी रे काम ने आगे बधावै तो अनिल मारवाड़ी ‘जयपुर री ज्योनार’ लावै।  शब्बीर हुसैन हबीब तनवीर ने नाटक चरणदास चोर रो राजस्थानी में मंचन करै तो ताराप्रकाश जोशी रे ‘दूधां’ नै साबिर हुसैन सांम्हीं लावै। विपिन पुरोहित ‘अैसो चतुर सुजान’ करै तो सुधेश व्यास ‘भोज बावळौ मीरां बोलै’ नाटक करता राजस्थानी नाटकां में कीं बदळाव री गुंजाइस जोंवता निजर आवै।
बदळाव री गुंजाइस में ई लक्ष्मीनारायण सोनी मणि मधुकर रो नाटक ‘दुलारीबाई’ रो राजस्थानी में मंचन करै। सुधेश व्यास भी देश में जगां-जगां ‘दुलारीबाई’ नाटक कर राजस्थानी भासा रौ जस फैलावै। हमीदुल्ला ‘ख्याल भारमली’ करै तो राजानंद भटनागर आप रै हिंदी नाटक ‘धार री काट’ को उल्थौ प्रेम सक्सैना सूं करावै अर निर्देसन खुद करै। जनकवि हरीश भादाणी राजस्थानी नाटकां में बदळाव रा सुर अंवेरण खातर राजानंद रे नाटक ‘काचर रौ बीच’ रो उल्थौ करै, 1994 में नाटक रो मंचन हुवै अर निर्देशन करै इकबाल हुसैन। फैर, इकबाल हुसैन राजानंद रे उपन्यास ‘ये होश वाले लोग’ रौ राजस्थानी में उल्थौ करै-अे होस आळा लोग नांव सूं। इकबाल हुसैन अर अमरचंद पुरोहित री जुगलबंदी में डॉ.राजानंद भटनागर रै नाटक ‘गणगौर’  रो रूपांतरण अर मंचन भोपाल में हुवै।
इण सूं पैली नागपुर में देसपांडे स्मृति भवन में ‘तीडौराव’  रो मंचन बदळाव रौ माइल-स्टोन मानीजै। बिजयदान देथा री कहाणी पर हरीश भादाणी रे लिख्यै इण नाटक रो निर्देशन अफसर हुसैन करै। इणी दौर में मधु आचार्य ‘आसावादी’ कहाणी रंगमंच पर खेचळ करता निजर आवै। जनकवि मोहम्मद सदीक रे गीतां पर आधारित नाटक ‘अंतस उजास’ लिखे अर मंचन भी करै।
बदळाव री ललक में आनंद वि. आचार्य मधु आचार्य ‘आसावादी’ रे उपन्यास ‘गवाड़’ रो मंचन करै। राजस्थानी रो पैलो उत्तर आधुनिक उपन्यास ‘गवाड़’ जद नाटक री फार्म में आवै तो समझ आवै क इण रो कथानक कित्तो फैलियोड़ौ है। सुुरगवासी आनंद वि. आचार्य रो ‘सूरज रो पूत’ महाभारत रे अमर पात्र कर्ण पर अेक नुवी दीठ राखै तो डॉ.कुमार गणेश ‘उगियोड़ा अंधारा कूड़ नी बोले’ जिस्यौ अेकपात्रीय नाटक लिखर जमीन तोडऩ रो काम करै। उणां रो नाटक ‘युद्धम सरणम गच्छामि’ अर ‘लाल लोई रा छांटा’ भी नुवी दीठ रा नाटक है।
लक्ष्मीनारायण रंगा रो नाटक ‘पूर्ण मिदम’  अर ‘सुमंगली माधवी’ हुवौ चायै कमल रंगा रो ‘अंबा’, रामसहाय हर्ष रो ‘जाग मिनख तू नींद सूं अर भलां ई हरीश बी. शर्मा रा नाटक ‘सुपनां में नीं सीर’ अर ‘भूरिया लटूरिया’। अे नाटक भलां ई रंगमंच पर नीं उतरिया है, पण रंगमंच रे अनुकूल है। पण बात वठै ई आय नै उभै क कांई इण दसा पर संतोष करिज सकै।

नाटकां री बात करां अर घणौ अळघौ नीं जाय परा आप रे देस री लोक नाट्य परंपरा में सामल बंगाली, मराठी, गुजराती रंगमंच री ई बात करां तो लागै क आपां कठै नीं खड़ां हां। दसा री बात करां तो नाटक लिखजै तो है, पण मंचन रा मौका घणां ई कम है। इण कारणै नाटक लिखणियां भी नाटक लिखतां थकां संको करण लाग्या। जे नाटक हुवणा सरू हुवै तो फेरूं नाटक में प्रयोग, युक्ति अर नुवेपण री भी बात करी जाय सकै, क्योंकि रंगमंच ने आधुनिक बणावण रो काम तो रंगकर्मियां रो है, अर कहणौ पड़सी कि इण दीठ बत्तो काम नीं हुयौ है।
रंग-राजस्थानी जिस्यौ अेक समारोह अर फेर राजस्थान संगीत नाटक अकादमी री राजस्थानी नाट्य समारोह योजना, इण रे बाद राजस्थानी नाटकां नै बोल’र नीं तो आयोजन है अर ना ही कोई हूंस। नाटक रीपीट हुय रिया है। नुवा नाटकां रो मंचन ई नीं हुय रैयो है तो आधुनिकता रो आग्रह करां तो करां किण सूं। अर इणी वजै सूं जरूरत इण बात री है कि दसा पर बात करां।
ओळभा तो घणंा ई दिया जाय सकै, सवाल विचार करण रो है। जे राजस्थानी रंगमंच री दसा सुधारणी है तो दिसा तय करणी पड़सी। फगत राजस्थानी नाटक करणा ई नीं, उणां में नुवां-नुवां प्रयोग भी करणां पड़सी। देखणो पड़सी क बांग्ला रंगमंच नुवौ कांई करै है क मराठी रंगमंच आप रै मांय कांई सुधार करिया है। देखणो जरूरी है कि गुजराती रंगमंच किण वजां सूं मानीतो हुंवतौ जा रियौ है। सोधणो पड़सी क पूर्वोत्तर में रेवण आळा रतन थियाम रो डंको कियां दिल्ली में बाजै। इण खातर चाइजै समर्पण, ना कि प्रोजेक्ट। अर्जुनदेवजी कह्या करै क नाटकां में काम करण खातर किणी पीळा चावळ नीं दिया। आ तो मन री हूंस है। जे नीं है तो फेर खुद ने नाटक करणियौ केवणो भी अपराध है।
गंगा में पाणी घणौ बह ग्यौ। अब तो समै है कीं नुवो रचण रो। लीक पीटता-पीटता पांच सौ साल बीतग्या। समै जागणै रो है। उण वेळा भी रावळां री रम्मत हुंवती अर अबार भी राजस्थानी रंगमंच लोक रे रंग में ही नहायोड़ौ है। इण में जे आधुनिकता रा रंग खिलावणा है तो सैं सूं पैली लिखणियां नै पहल करणी पड़सी। आप रा विषय अर किरदार बदळना पड़सी अर फेर नाटक करणियां ने आ सोच’र प्रोडक्शन करणौ पड़सी क दिल्ली रे मंडी हाउस में बणियै किणी हॉल में नाटक करणौ है क पूर्वोत्तर में जाय नै नाटक करणौ है जठै भासा नीं जाणन आळा भी समझ सकै क नाटक में कांई हो। रतन थियाम इयां इज तो करै। उणां रा रंग बोलै। उणा रा साज बोलै। उणां रे नाटकां में काम करण आळा किरदारां रो पूरो सरीर बोलै, अब इणी खातर वे चावा हुवै। बात अठै रतन थियाम जियां नाटक करण री भी नीं है। घण खरां नै स्यात ओ दाय नीं आय सकै क म्हें नजीर रूप में किणी और री बात राखूं।
म्हें तो खुद इयां ई चावूं क आपां आप रै तांण राजस्थानी रंगमंच रो विगसाव करां। आपां रे बीचां घणां ई निर्देसक है, जका युवा है, गुणी है, ऊर्जावान है।  वे सगळा अेक सागै आवै अर भलां ई घणां नीं, बरस दीठ फगत अेक प्रोडक्शन करै जको देस ही नहीं दुनिया रे किणी भी खूणै में दिखायौ जाय सकै। म्हारी निजरां में आ ही राजस्थानी रंगमंच ने आधुनिक बणावण री दिसा में पहल हुयसी। जे हर साल अेक भी इस्यौ नाटक हुयग्यौ तो राजस्थानी रंगमंच री दसा रे सुधार सारू जेज नीं लागेली। नीं जणां नाटक तो हुय ही रिया है। अग्रज पीढ़ी आप रै सारू नुवोपण भी दे रही है, पण नुवी पीढ़ी ने भी आप रौ फरज समझणौ पड़सी। इण बात नै मानणौ पड़सी क राजस्थानी रंगमंच जित्तो मजबूत हुयसी, राजस्थानी भाषा ने राज री मानता लेवण रो दावो उतरौ ई मजबूत हुयसी।
जय राजस्थान।
जय राजस्थानी।