– हरीश बी.शर्मा
अफगानिस्तान में तालिबान के काबिज़ होने के बाद भारतीय प्रतिनिधि के साथ तालिबान प्रतिनिधि की दोहा में हुई बातचीत इस रूप में सार्थक कही जा सकती है कि भारत ने साफ कर दिया है कि अगर तालिबान ने अफगानिस्तान को आतंक का अड्डा बनाना चाहा तो सहन नहीं होगा।
यह तेवर इस रूप में प्रासंगिक है, क्योंकि दो दिन पहले ही अफगानिस्तान को अमेरिका द्वारा अत्याधुनिक हथियार खरीदे जाने की बात सामने आई है। कुछ हो उससे पहले ही चेता देने की यह कूटनीति भारत की छवि को न सिर्फ साहसी बनाती है बल्कि नीतिगत मामलों में भी होशियार साबित करती है।
यहां एक तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि दोहा में भारतीय राजदूत दीपक मित्तल की जिस तालिबानी प्रतिनिधि शेर मोहम्मद अब्बास स्टेनिकज़ई से हुई है, वह भारतीय सैन्य अकादमी के छात्र रहा है। इस बात की प्रबल संभावना है कि तालिबान ने उसे इस कार्य के लिए इसीलिये लगाया हो ताकि बातचीत में जीवंतता बनी रहे।
यहां यह भी महत्वपूर्ण तथ्य है कि अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता हस्तांतरण करने के बाद भारत की पाकिस्तान संबंधी मुश्किलें कम हो सकती है, बल्कि यह भी हो सकता है कि कुछ मुद्दों पर पाकिस्तान का ध्यान ही भटक जाए। ऐसे में अगर भारत संभलकर आगे बढ़े तो वह कूटनीतिक सफलता हासिल कर सकता है।
लेकिन बातचीत का यह पहला दौर जबकि अभी तक अफगानिस्तान में तालिबान सरकार का कोई औपचारिक गठन नहीं हुआ है, भारत का निर्णायक रुख न सिर्फ स्वागत योग्य है बल्कि चेतावनी भरा भी।
निश्चित रूप से यह संदेश दुनिया भर में जाएगा और आतंक के खिलाफ लड़ाई में भारत की भूमिका सराहनीय मानी जायेगी।