हस्तक्षेप

– हरीश बी.शर्मा

कांग्रेस की चुनाव समिति बन गई है। अशोक गहलोत और सचिन पायलट ‘हम साथ-साथ हैंÓ की जुगलबंदी में हाथ से हाथ मिलाए खड़े हैं। पिछले दिनों अपने बयानों की वजह से चर्चा में रहे प्रतापसिंह खाचरियावास शामिल हैं। मुख्यमंत्री को ‘धृतराष्ट्रÓ तक कह चुके रामेश्वर डूडी भी पूरी शानोशौकत के साथ शामिल हुए हैं। हालांकि, इस बीच उनके प्रदेशाध्यक्ष बनने के मंसूबों पर भी पानी फिरने की खबरें हैं, लेकिन चुनाव समिति में होने की वजह से उन्हें इस बार अपने टिकट के लिए पहले जितनी मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी। यह साफ हो चुका है कि नोखा से रामेश्वर डूडी ही लडेंगे। गोविंद मेघवाल को सीधी बयानबाजी का लाभ मिला है, बीकानेर से उन्हें भी समिति में शामिल किया है। बेशक, सोशल इंजीनियरिंग का भी उन्हें फायदा मिला होगा, लेकिन इस समिति में जो हैरतअंगेज है, वह शांति धारीवाल और डॉ.बी.डी.कल्ला को शामिल नहीं किया जाना है। मतलब साफ है कि ये दोनों ही नेता टिकट के लिए चुनाव समिति की कृपा पर निर्भर रहेंगे।

ये वही शांति धारीवाल हैं, जिनके घर गहलोत गुट के विधायक जमा हुए थे जबकि अजय माकन उनका होटल में इंतजार कर रहे थे। बी.डी.कल्ला के बारे में सभी जानते हैं। गहलोत के सबसे करीबी नेता माने जाते हैं, ऐसा कोई विभाग नहीं है, जिसमें इन्हें काम करने का मौका नहीं मिला है। यहां तक कि नेता प्रतिपक्ष, वित्त आयोग अध्यक्ष और कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष तक के पदों पर आसीन रहे हैं। 1980 से कांग्रेस की सेवा की है, लेकिन इस बार उनका नाम समिति में नहीं होना अखरने वाला है। ऐसा ही हाला शांति धारीवाल का है। कोटा में इनकी जोड़ का दूसरा नेता नहीं माना जाता, पिछले दिनों उन्हें यह कहते हुए सुना गया था अगर आलाकमान उन्हें टिकट नहीं देता है तो बेटे को टिकट देने का निवेदन करेंगे।

कुल मिलाकर इस चुनाव समिति में जो नाम आए हैं, वे इस बात पर मुहर तो लगाते हैं, कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट में सुलह हो चुकी है। साथ ही यह भी समझाते हैं, इस समिति में उन्हीं लोगों को शामिल किया गया है, जो बोलने से नहीं चूके। प्रतापसिंह खाचरियावास का उदाहरण सबसे बड़ा है। इस सूची के बाद यह भी साफ हो गया है कि सचिन पायलट ने भले ही अपनी मांगों को लेकर समझौता किया हो, लेकिन आखिरकार अशोक गहलोत के उस हठ को तोडऩे में कामयाब रहे हैं, जिसके चलते वे सचिन पायलट को पार्टी में देखना भी नहीं चाहते थे। अब वे साथ-साथ न सिर्फ बैठेंगे बल्कि नीतियां भी तय करेंगे।
लेकिन दूसरे नेताओं को जिस तरह से बाहर रखा गया है, इतना तो साफ हो रहा है कि कांग्रेस इस बार टिकट वितरण के मामले में अपने नियम और सिद्धांतों को लेकर काफी सख्त होने वाली है। अगर वास्तव में बुजुर्ग नेताओं को प्रत्याशी नहीं बनाने का संकल्प पूरा होता है तो जाहिर है कि डॉ.बी.डी.कल्ला और शांति धारीवाला का नाम सबसे पहले सूची में आएगा, क्योंकि ये दोनों ही नेता उम्रदराज हैं। लेकिन दोनों ही नेताओं के क्षेत्र में ऐसा व्यक्ति भी तो कांग्रेस को खोजना पड़ेगा, जो इन दोनों का विकल्प बन सके। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने बीकानेर में प्रयोग करने का हालांकि प्रयास किया था और शहर कांग्रेस अध्यक्ष यशपाल गहलोत को डॉ.बी.डी.कल्ला का टिकट काटकर दे भी दिया, लेकिन ऐन मौके पर ऐसा उलट-फेर हुआ कि टिकट कल्ला को ही मिला और सीट भी कांग्रेस को मिली। इस बार फिर अगर वही रणनीति बनाई जा रही है तो कल्ला के साथ धारीवाल के लिए भी संकट के बादल मंडराते नजर आ रहे हैं।

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