हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा
रविवार को राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल का बीकानेर दौरा रहा। पांचू में सभा को संबोधित किया तो देशनोक में करणीमाता के दर्शन भी किए। सफेद काबा के भी दर्शन भी उन्हें हुए। यह तो साफ है कि भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री का जो पद मिला है, उसमें किस्मत का भी बहुत बड़ा हाथ है, ऐसे में काबा के दर्शन भी अगर हुए हैं तो यह माना जा सकता है कि उनकी किस्मत अच्छी है, लेकिन जिस पद पर वे बैठे हैं, उनकी चुनौतियां अलग तरह की है। सिर्फ आदेशों से काम नहीं चलेगा। क्रियान्वयन भी करना पड़ेगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा जनता के सीएम नहीं बन पाएंगे। अगर ऐसा नहीं हुआ तो तय है कि वे कभी भी अपने पूर्ववर्ती दो सेलिब्रिटी-मुख्यमंत्रियों के बराबर भी नहीं पहुंच पाएंगे। उन दोनों का लांघना तो बहुत दूर की कौड़ी है।

पिछले 25 साल की बात करें तो राजस्थान में बतौर मुख्यमंत्री जिन दो नेताओं को शासन करने का मौका मिला, दोनों ही अपनी-अपनी स्टाइल के कारण चर्चा में रहे। अशोक गहलोत का कोई भी कार्यकाल उनकी सादगी को उनसे नहीं छीन पाया। भले ही किसी भी नेता के साथ उनकी अदावत चली हो, लेकिन जनता ने उन्हें सीधा और सच्चा मुख्यमंत्री माना। यहां तक की जननायक भी कहा। उनका टपरी में बैठकर चाय पीना या दोपहर की छोटी-सी झपकी के लिए एक सामान्य कूलर वाले कमरे में भी रेस्ट करने से गुरेज नहीं करना, उन्हें एक बड़ा नेता बनाते थे। एक ऐसा मुख्यमंत्री जो जनता के बीच का लगता था। अधिकारी उनसे थर्राते थे और संगठन में उनकी धाक थी कि भले ही कांग्रेस का प्रदेशाध्यक्ष हो या प्रभारी। भले ही राष्ट्रीय स्तर का कोई भी नेता, अशोक गहलोत के आगे अधिकांश बौने ही नजर आए।

अशोक गहलोत के ठीक विपरीत वसुंधराराजे थीं। सामंती परिवेश से आई वसुंधराराजे को भले ही ‘महारानी’ सुनना नहीं सुहाता हो, लेकिन उन्हें अपने रहन-सहन में किसी भी तरह का समझौता बर्दाश्त नहीं था। उनका जनता के बीच जाने का अंदाज पूरी तरह से राजसी था। जैसे किसी दौर में राजे-महाराजे जाया करते थे। वसुंधराराजे भी पहुंचती और घोषणाएं करते हुए सभी को जीत लेती। ब्यूरोक्रेसी उनकी मुट्ठी में थी। इसका बड़ा कारण उनका अंग्रेजीदां होना भी रहा हो, लेकिन राजस्थान में राजे के बगैर पत्ता भी नहीं हिलता था।

इस वजह से अगर दोनों ही पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों को सेलिब्रिटी मुख्यमंत्री कहा जाता है तो अतिशयोक्ति नहीं लगती। लेकिन सवाल मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल शुरू कर चुके भजनलाल शर्मा का है कि क्या वे इन दोनों मुख्यमंत्रियों से अलग अपनी इमेज गढ़ पाएंगे। सरकार की सौ दिन की कार्ययोजना के बाद भी ब्यूरोक्रेसी में कोई फर्क नहीं आया है। उन्होंने अपने आपको सामान्य साबित करने के लिए भले ही यातायात नियमों के पालन की बात कही, लेकिन आज भी जहां उनका काफिला जाता है, पुलिस वाले पहले ही ही तैनात कर दिए जाते हैं। रविवार को गंगाशहर रोड पर काफी देर तक यातायात सिर्फ इसलिए जाम रहा कि काफिला आने वाला है।

इससे लोगों में सीएम की बनी हुई छवि पर असर पड़ेगा। कथनी और करनी में अंतर से आम जनता का भरोसा उठता है। पूर्ववर्ती दोनों मुख्यमंत्रियों ने इस दिशा में भले ही अपने-अपने तरीके से चले, लेकिन जनता का भरोसा नहीं उठने दिया। मुख्यमंत्री भजनलाल को चाहिए कि वे इस दिशा में काम करे और अपने कहे को लागू करने के लिए न सिर्फ ब्यूरोक्रेसी को कसे बल्कि संगठन में भी इस तरह का माहौल बनाए कि दूसरे लोग भी सरकारी मशीनरी का उपयोग अपने हित में नहीं ले सके। आम जन को यह लगना चाहिए कि मुख्यमंत्री हमारा है, इसके लिए आम जन के सरोकार समझने होंगे।

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