नेशनल हुक
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देश की राजधानी दिल्ली भी पिछले दो चुनावों में अपनी पूरी सीटें भाजपा को देती आ रही है। भले ही विधानसभा चुनाव में भाजपा दो डिजिट तक की भी सीटें नहीं जीत पाई है, मगर लोकसभा की सातों सीटें वो ही जीतती आ रही है। दिल्ली का मतदाता विधानसभा में एकतरफा आम आदमी पार्टी की तरफ जाता है तो लोकसभा में वो भाजपा के साथ रहता है।

लोकसभा चुनाव 2024 में एक बार फिर भाजपा के सामने अपना पिछला प्रदर्शन दोहराने की चुनोती है। यमुना के पनघट तक पहुंचने की भाजपा की डगर इस बार कठिन है। विपक्षी मतों का विभाजन हर बार उसे जिताता रहा है मगर इस बार वो विभाजन हो नहीं रहा। इस बार आप और कांग्रेस के बीच सीटों को लेकर समझौता हो गया है। भले ही दोनों पार्टियों के मध्य पंजाब में समझौता नहीं हुआ, मगर दिल्ली सहित हरियाणा, असम, गोवा व गुजरात मे समझौता हो गया। इसका असर दिल्ली के चुनाव में पड़ेगा, ऐसा राजनीतिक पंडित मानते हैं।

दिल्ली में इस बार अरविंद केजरीवाल की आप 4 व कांग्रेस 3 सीटों पर मिलकर चुनाव लड़ रही है। उससे चुनावी टक्कर अच्छी हो रही है और वो रोचक भी है। भाजपा ने मीनाक्षी लेखी, रमेश विधूड़ी, प्रवेश तक का टिकट काटा है और नयों को मैदान में उतारा है। बात ऐसी भी नहीं है कि यहां भाजपा कमजोर है, उसका अपना कैडर है और वो मजबूत है। लेकिन दिल्ली की 4 सीटें ऐसी है जिन पर समझौते के कारण भाजपा का पेच फंसा है। आप और कांग्रेस भी अपने को 4 सीटों पर बेहतर स्थिति में मान रही है और उसी के अनुरूप मेहनत भी कर रही है। उत्तर पूर्वी दिल्ली, पूर्वी दिल्ली, चांदनी चौक व नई दिल्ली सीटों पर आप व कांग्रेस ज्यादा फोकस कर रहे हैं। मगर क्या कांग्रेस अपना वोट आप को और आप अपना वोट कांग्रेस को शिफ्ट करा पायेगी, ये बड़ा सवाल है।

दिल्ली सरकार के आबकारी घोटाले मामले में अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी की टाइमिंग ने भी चुनावी गणित को प्रभावित किया है। आप को इस बात का पहले से अंदाजा था और गठबंधन ने उसका लाभ भी उठाया। 31 मार्च को रामलीला मैदान में बड़ी रैली करके सहानुभूति को आधार बना लोगों को भावुक किया। इस रैली में अरविंद केजरीवाल की पत्नी व झारखंड के पूर्व सीएम हेमंत सोरेन की पत्नी के भी भाषण हुवै। आप नेता संजय सिंह की पत्नी भी मंच पर थी। अब तो सुप्रीम कोर्ट ने संजय सिंह को जमानत भी दे दी है। इन घटनाओं का चुनाव पर असर पड़ेगा। कुल मिलाकर दिल्ली की सातों सीटों पर इस बार कड़ा व रोचक मुकाबला है, इसी वजह से भविष्यवाणी करने से राजनीतिक विश्लेषक बच रहे हैं। यदि विपक्षी के मत एक साथ रह गये तो भाजपा के सामने परेशानी खड़ी होगी।
— मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘