हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा
भारतीय जनता पार्टी की नई टीम को न जाने ऐसी क्या खुन्नस वसुंधराराजे से है कि उन्हें ठेस लगाने का कोई भी मौका नहीं चूकना चाहती। अपनी शर्तों पर राजनीति करने वाली वसुंधराराजे के लिए उनके अपनों ने ही एक बार फिर ठेस लगाई है और मानवेंद्रसिंह की घर वापसी हो गई है। जसवंतसिंह जसोल के बेटे मानवेंद्रसिंह ने वसुंधराराजे से पटरी नहीं बैठ पाने के कारण भाजपा छोड़ दी थी, लेकिन एक बार फिर से वे भाजपा में शामिल हो गए हैं।

सीधे तौर पर इस घर-वापसी को बाड़मेर-जैसमेर लोकसभा क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी रवींद्रसिंह भाटी का तोड़ माना जा रहा है, जिन्हें हराने के लिए भाजपा ने अपनी सारी ताकत, यहां तक कि धीरेंद्र शास्त्री तक को चुनाव प्रचार के लिए उतार दिया है। ऐसा माना जा रहा है कि राजपूत समाज के मन मेंं जसवंतसिंह जसोल के प्रति श्रद्धा है और मानवेंद्रसिंह की छवि भी काफी सौम्य राजनेता की है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने मानवेंद्रसिंह को सिवाना से टिकट दिया, लेकिन इस सीट पर कांग्रेस का बागी प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रहे और मानवेंद्रसिंह तीसरे स्थान पर। चुनाव परिणामों के बाद से ही मानवेंद्रसिंह का मन खिन्न हो चुका था और इस बीच भाजपा से संकेत मिला, घर वापसी हो गई।

यह तो भविष्य की बात है कि मानवेंद्रसिंह की घर-वापसी से कैलाश चौधरी की स्थिति सुधर जाएगी, लेकिन इस बात से किसी को इंकार नहीं होगा कि यह घर-वापसी वसुंधराराजे को दाय नहीं आएगी, लेकिन इससे भाजपा को कोई फर्क पड़ेगा भी, सवाल यह भी है।

सिर्फ लोकसभा चुनाव की बात करें तो भाजपा ने वसुंधराराजे के समर्थक माने जाने वाले किसी भी सांसद को टिकट रीपीट नहीं किया है। राहुल कस्वां और प्रहलाद गुंजल तो इस उपेक्षा से खिन्न होकर कांग्रेस में चले गए तो निहालचंद को मौका ही नहीं मिला कि वे प्रतिकार कर सके। भाजपा ने इतना जरूर निभाया कि राजे के बेटे दुष्यंतसिंह को टिकट दे दिया, जिनके प्रचार के लिए राजे लगी हुई है। तथ्य यह भी है कि स्टार-प्रचारकों की सूची में शामिल होने के बाद भी वसुंधराराजे की मांग भी कहीं से अभी तक नहीं आई लगती है। एक तरफ राजे के लोगों को किनारे करना और दूसरी तरफ राजे के साथ जिनकी असहमतियां ही पार्टी छोडऩे का कारण बनी, उन्हें वापस पार्टी में शामिल करना ऐसी घटनाएं हैं, जो यह समझाने के लिए पर्याप्त है कि न सिर्फ भाजपा वसुंधराराजे की राजस्थान में भूमिका को नगण्य बना छोडऩा चाहती है बल्कि उनकी नई पद-प्रतिष्ठा के लिए भी कोई फार्मूला तैयार नहीं है।

मानवेंद्रसिंह के भाजपा में शामिल होने के बाद अब वसुंधराराजे की प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा, लेकिन विधानसभा चुनाव के बाद जिस तरह से राजे ने मौन साधा है, नहीं लगता कि मानवेंद्रसिंह की घर-वापसी के मुद्दे पर वे कुछ ऐसा बयान देने वाली हैं, जो अखबारों में सुर्खियां बने। निसंदेह, वसुंधराराजे के लिए इन दिनों पहला लक्ष्य दुष्यंतसिंह को लोकसभा चुनाव जीताकर संसद में भेजना है। राजनीति संभावनाओं का खेल है और राजे के पास संभावनाओं की राह तकने के लिए अलावा अभी कुछ भी नहीं है।

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