डेम आशा खेमका

प्रिंसिपल, वेस्ट नॉटिंघमशायर कॉलेज, ब्रिटेन, उम्र : 65 वर्ष

खास : शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए इन्हें ‘डेम कमांडर ऑफ ब्रिटिश एंपायर की उपाधि से नवाजा गया है। ब्रिटेन में राष्ट्रीय स्तर का यह सम्मान पाने वाली वे दूसरी भारतीय महिला हैं। 

बिहार की रहने वाली आशा का विवाह महज 15 वर्ष की उम्र में हो गया था। लिहाजा उनकी पढ़ाई बीच में ही छूट गई। शादी के बाद घरेलू जिम्मेदारियों में व्यस्तता के कारण उन्होंने किसी तरह ग्रेजुएशन तो कर लिया लेकिन उससे आगे नहीं पढ़ सकीं। शादी के दौरान मात्र उनके पति 19 साल के थे और मेडिकल की पढ़ाई कर रहे थे। 1975 में पटना मेडिकल कॉलेज से पढ़ाई पूरी करने के कुछ समय बाद उनके पति को ब्रिटेन में नेशनल हेल्थ सर्विस जॉइन करने का मौका मिला। इस तरह वे अपने पति व बच्चों के साथ ब्रिटेन आ गईं। पहली बार विदेश आईं आशा वहां की संस्कृति से अनजान थीं। साथ ही भाषाई दिक्कत क्योंकि उन्हें अंग्रेजी बोलनी नहीं आती थी। ऐसे में आशा के लिए कुछ भी सीखना किसी चुनौती से कम नहीं था।

टीवी देख सीखी अंग्रेजी, 36 वर्ष की उम्र में शुरू की पढ़ाई

अंग्रेजी सीखने के लिए आशा ने टीवी का सहारा लिया। जब भी बच्चे स्कूल जाते वे टीवी पर अंग्रेजी के प्रोग्राम देखतीं व अभ्यास करतीं। धीरे-धीरे उनमें आत्मविश्वास बढऩे लगा। उन्होंने 36 वर्ष की उम्र में आगे की पढऩे का फैसला लिया। कार्डिफ यूनिवर्सिटी (ब्रिटेन) से बिजनेस की डिग्री लेने के बाद उन्होंने कई नौकरियां की और 2006 में वेस्ट नॉटिंघमशायर कॉलेज बतौर प्रिंसिपल जॉइन किया। यहां वे पिछड़े-वंचित युवाओं को शिक्षित करने व रोजगार लायक बनाने की दिशा में काम कर रही हैं। उनके नेतृत्व में इस कॉलेज में करीब 30 हजार छात्र पढ़ाई व ट्रेनिंग ले रहे हैं। उन्होंने भारत में भी ‘स्किल इंडिया’ नाम से ऑनलाइन ट्रेनिंग की शुरुआत की है जहां उनकी टीम अंग्रेजी सुधारने व गणित की ट्रेनिंग देती है।