– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘

तालिबान धीरे धीरे अफगानिस्तान तो कब्जा कर ही रहा है, साथ ही दुनिया के दूसरे देशों से समर्थन भी जुटाने की कूटनीति में लगा है। अब तक चीन सहित कुछ देश तालिबानी हुकूमत को परोक्ष या अपरोक्ष रूप से समर्थन भी दे चुके है। बाहर से शांत दिख रही दुनिया की राजनीति के भीतर जबरदस्त उबाल है।
तालिबान के मसले पर दुनिया दो भागों में बंटती साफ दिखने लगी है। कोरोना के बाद किसी दूसरी बात पर दुनिया के बड़ें देशों की राजनीति चरमराई है तो तालिबान के कारण। कुछ देश तो इस समस्या का जनक भी बड़ें देशों को बता रहे हैं। मगर चीन के बाद अब निगाहें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी की तरफ है। उनके खुलकर कुछ कहने की प्रतीक्षा छोटे देश कर रहे हैं।
एशिया में तालिबान के सत्ता पर काबिज होने का सर्वाधिक असर हुआ है। प्रतिक्रिया तो दबे स्वरों में आ रही है मगर संकेत भी साफ साफ दिख रहे हैं। अफगान के एक हिस्से में दिखी पाकिस्तानी सेना के वीडियो सोशल मीडिया पर है, उसका असर भी एशिया की राजनीति पर पड़ा है।
मौटे तौर पर पहले भी दुनिया दो भागों में बंटी रही है मगर इस बार बात अलग है। देशों की दूरियां घटने के बाद सभी पहले अपने हितों को देखने में लगे हैं। भारत की पुरानी कहावत है, हर कोई पहले आग से अपनी रजाई को बचाने की कोशिश करता है। उसी प्रयास में एशिया के देश लगे हुए हैं। उहापोह उनमें साफ दिख रहा है। किधर जायें, तय नहीं कर पा रहे। इस स्थिति का लाभ तालिबानियों को ही मिल रहा है।
भारत भी अभी तक खुलकर कुछ कह नहीं सका है। गुटनिरपेक्षता भारत की राजनीति का ध्येय है, उसकी भी रक्षा जरूरी है। इसी कारण कोई स्पष्ट रुख भारत का अभी तक सामने नहीं आ पाया है। उसके लिए भारत के भीतर की राजनीति बड़ा कारण है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मसले पर सर्वदलीय बैठक भी बुला चुके हैं। बात बनी नहीं शायद, तभी तो कुछ भी साफ नहीं। देश के राजनीतिक दल वोट की राजनीति को ज्यादा तरजीह देते हैं, शायद यही हमारे बड़े लोकतंत्र की कमी है। नहीं तो, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने तो हर लड़ाई को मानवता का विरोधी कहा हुआ है। वसुधैव कुटुंब की बात भी हमारी परंपरा में शामिल है। देश के नागरिक इस मसले पर अपना सोच रखते हैं। देश की राजनीति में भीतर ही भीतर तालिबान एक हलचल लाये हुए है। शायद, कुछ समय लगेगा सबका रुख सामने आने में। हाल फिलहाल अफगान और तालिबान, विदेश नीति के जानकारों को जरूर उलझाए हुए है। समय इसका हल निकलेगा।

               इस आलेख के लेखक वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार हैं।