हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा
कांग्रेस और भाजपा ने अपने-अपने स्टार प्रचारकों की सूची जारी कर दी है। इस तरह की सूचियां हर बार जारी होती है, लेकिन लोकसभा चुनाव हो चाहे फिर विधानसभा के चुनाव इन स्टार-प्रचारकों का कोई बहुत बड़ा रोल वोटर्स को लुभाने में नहीं रहता। हालांकि, मीडिया-कवरेज ऐसे नेताओं के आने-जाने से ठीक-ठाक कवरेज मिल जाती है, लेकिन इस तरह के स्टार-प्रचारकों के आने से न सिर्फ प्रत्याशी का समय खराब होता है बल्कि आर्थिक रूप से भी फिजूल का दबाव पड़ता है।

खासतौर से लोकसभा चुनाव में तो स्टार-प्रचारक प्रत्याशियों के लिए गले की हड्डी बन जाते हैं। उनके आने-जाने, रहने-खाने की व्यवस्था के अलावा जो सबसे बड़ा काम होता है वह सभाओं में भीड़ की व्यवस्था करना होता है। लोकसभा क्षेत्र से मतदाताओं को बुलाने के लिए प्रबंध करना होता है। भीड़ जुटाने के लिए नेताओं के कार्यकर्ताओं को कई समझौते भी करने होते हैं ताकि स्टार-प्रचारकों को भीड़ मिल जाए।
सिर्फ बीकानेर के संदर्भ में देखा जाए तो भाजपा और कांग्रेस के दोनों प्रत्याशियों की नामांकन रैली एक ही दिन थी। दोनों ही रैलियों के लिए बड़ी संख्या में भीड़ जुटाने के लिए कार्यकर्ताओं को पहले ही लगा दिया गया। भाजपा के प्रत्याशी अर्जुनराम मेघवाल की नामांकन रैली में पहले मुख्यमंत्री भजनलाल के आने की बात हुई, लेकिन बनते-बिगड़ते यह कार्यक्रम आखिकार उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी और प्रदेशाध्यक्ष सी.पी.जोशी पर फाइनल हुआ। रवींद्र रंगमंच के पास सड़क पर ही सभास्थल बनाया गया, लेकिन इस कार्यक्रम के लिए भीड़ जुटाने के लिए संगठन को काफी मशक्कत करनी पड़ी।

इसी दिन कांग्रेस की भी नामांकन रैली थी। कांग्रेस के प्रत्याशी गोविंदराम मेघवाल के लिए जनसभा का आयोजन सादुल क्लब में रखा गया, जहां बड़ी संख्या में लोग इसलिए जुटे कि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आएंगे। हालांकि, आने की जानकारी राजस्थान प्रभारी सुखजिंदरसिंह रंधावा और प्रदेशाध्यक्ष गोविंद डोटासरा की भी थी, लेकिन इन दोनों नेताओं से अधिक के्रज अशोक गहलोत का रहना स्वाभाविक था। गहलोत चूरू से बीकानेर हैलीकॉप्टर में आने वाले थे, लेकिन चूरू में मौसम खराब होने की वजह से हैलीकॉप्टर उड़ नहीं पाया और सड़क मार्ग से जब तक अशोक गहलोत बीकानेर पहुंचे, सभा की भीड़ आधी भी नहीं रही।

सभा के लिए भीड़ जुटाने वाले कार्यकर्ता पूरी तरह से लाचार थे, क्योंकि लोगों को घर भी वापस भेजने का वादा था। लेकिन, इसे पूरे प्रकरण में न सिर्फ समय और पैसे की बर्बादी हुई बल्कि जो लोग आए वे भी निराश रहे कि उन्हें अपनी पसंद के नेता के दर्शन भी नहीं हुए। हालांकि, बदलते इस दौर में जब सोशल मीडिया से भी नेता लोग अपने कार्यकर्ताओं के संपर्क में रहते हैं, इस तरह की जनसभाओं का क्या औचित्य है, यह तो सर्वे करने से पता चलता है, लेकिन यह भी देखा गया है कि कई बार खूब भीड़ जुटाने वाले भी भीड़ को वोट में बदलने में नाकामयाब रहे हैं। जबकि घर-घर संपर्क की रणनीति अधिक कारगर रही है। ऐसे में स्टार-प्रचारकों की रैलियों और जनसभाओं का क्या महत्व है, इस पर अलग से सर्वे होना चाहिए।

‘लॉयन एक्सप्रेस’ के संपादक हरीश बी.शर्मा के नियमित कॉलम ‘हस्तक्षेप’ के संबंध में आपके सुझाव आमंत्रित हैं। आप 9672912603 नंबर पर वाट्स अप कर सकते हैं।