हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा
बीकानेर में चल रहे थिएटर फेस्टिवल में आयोजित ‘पुस्तक-दीर्घा’ का विचार यहां आने वाले देशभर के रंगकर्मियों के बीच चर्चा में है। पारायण फाउंडेशन की ओर से हंशा गेस्ट हाउस में चल रही इस पुस्तक-दीर्घा की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां कोई भी पुस्तक बेचने के लिए नहीं है। पुस्तकों की प्रदर्शनी लगाई गई है, जिसे आप देखें, पढ़ें और पसंद आने वाले चेप्टर का फोटो खींचकर ले जा सकते हैं। चाहेंगे तो आपको पूरी किताब की फोटो-कॉपी दे दी जाएगी और अगर संभव हुआ तो पुस्तक भी उपलब्ध करवा दी जाएगी, लेकिन प्रदर्शित पुस्तक नहीं। नई किताब। इसके लिए लेखक या प्रकाशक से संपर्क करना होगा।

आज के समय में यह मुश्किल भी नहीं है। अगर पुस्तक का टाइटल मिल जाए या लेखक का नाम मिल जाए तो दुनिया बहुत छोटी है। पसंद की पुस्तक मिल सकती है। बस, इसी सोच के साथ पुस्तक-दीर्घा बनाई गई है, जिसमें व्यावसायिकता से परे जाकर पहले पुस्तकों के प्रति रुचि जगाने की योजना है। अगर पुस्तकों के प्रति पे्रम जाग गया तो इसके व्यावसायिक लाभ से भी इंकार नहीं किया जा सकता, लेकिन फिलहाल व्यावसायिक-लाभ को दरकिनार करते हुए सिर्फ पुस्तकों के प्रति आकर्षण की योजना बनाई गई है।

आज भी देश में जगह-जगह लगने वाले पुस्तक-मेलों से लेकर किताबों की दुकान तक एक ही बात सामने आती है कि पुस्तकें बिकती नहीं है, लेकिन इसके साथ ही एक बड़ा सच यह भी है कि देश में साहित्यिक-कृतियों का निंरतर प्रकाशन हो रहा है। लगातार बिक भी रहीं हैं, लेकिन सारी किताबें नहीं। एक साथ दो तरह के आंकड़े सामने आते हैं, जहां लाखों प्रतियों की बिक्री के रिकार्ड टूटते हैं तो दूसरी ओर कईं किताबें ऐसी होती हैं, जिनकी तीन सौ प्रतियां छपना भी बड़ी बात होती है।

इस विषय पर जाएंगे तो कईं बातें निकल आएंगी, लेकिन एक मोटा कारण यह भी समझ आता है कि पुस्तक खरीदने से पहले एक पाठक का यह कौतुहल जरूर होता है कि पहले देखें तो सही इसमें है क्या। सुंदर कवर, अच्छा पेपर या प्रसिद्ध नाम देखकर ही लोग किताब नहीं खरीदते बल्कि किताब खरीदने का एक बड़ा आधार होता है कंटेंट, जिसे देखने की छूट नहंी मिलती। फिर एक प्रकाशक की दुकान पर दूसरे प्रकाशकों की किताब भी नहीं मिलती। ऐसे में पाठक के सामने बहुत सारी समस्याएं हैं। इस समस्या से प्रकाशक भी परेशान हैं, क्योंकि अधिकांश प्रकाशकों का तो स्टॉल लेने का खर्चा भी नहीं निकलता। इस तरह की समस्याओं को समझते हुए गायत्री प्रकाशन ने निर्णय किया कि सभी प्रकाशकों से उनके चर्चित टाइटल्स मंगवाए जाएं। लेखकों से किताबें मंगवाई जाए और एक दीर्घा बना दी जाए। पारायण फाउंडेशन ने इस कार्य को विधिवत रूप से हाथ में लिया। शीघ्र ही ऐसी योजना बनाई जा रही है कि लेखकों या प्रकाशकों को पुस्तक की राशि भी भेजी जाए, लेकिन फिलहाल ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। किताबें निशुल्क ही मंगवाई जा रही है। अच्छी बात यह है कि किताबें मिल रही हैं, जिसे बीकानेर में होने वाले बड़े कार्यक्रमों के दौरान प्रदर्शित की जा रही है। निश्चित रूप से इस तरह की दीर्घा हर शहर में होनी चाहिए ताकि पाठक आकर्षित हो और उसे यह अधिकार मिले कि पसंद आने पर ही किताब खरीदने का मन बनाए। नहीं खरीदना चाहे तो उस पर किसी तरह का दबाव भी नहीं हो। इस दिशा में बीकानेर से शुरू हुआ यह नवाचार देशभर में एक मिसाल बन सकता है।

‘लॉयन एक्सप्रेस’ के संपादक हरीश बी.शर्मा के नियमित कॉलम ‘हस्तक्षेप’ के संबंध में आपके सुझाव आमंत्रित हैं। आप 9672912603 नंबर पर वाट्स अप कर सकते हैं।