हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा
दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश हमारा भारत। इस भारत का आम चुनाव यानी लोकसभा चुनाव। एक ऐसा चुनाव जहां के लिए चुने जाने वाले देश में कानून बनाते हैं। देश के लिए क्या सही और क्या गलत रहेगा, इस बात पर विचार करते हैं। एक आम आदमी के मताधिकार से मिलने वाले आम आदमी की शक्ति का परिचायक है चुनाव जिसे लोकतंत्र की परिभाषा ‘जनता का जनता के लिए जनता के द्वारा’ से भी समझा जा सकता है। उस जनता का दिन आज है, उत्सव का दिन आज है कि हिंदुस्तान की जनता तय करेगी उसके क्षेत्र से उसकी बात कहने वाला कौन होगा।

भले ही इसे भीड़तंत्र के रूप कहते हुए आलोचना कही जाए, लेकिन दुनिया ने माना है कि इस प्रणाली से अधिक पारदर्शी, निरापद और स्वच्छ कोई भी दूसरा तरीका नहीं है, जिसमें नागरिकों को समानरूप से अपना वोट देते हुए एक ऐसे व्यक्ति को चुनने का मौका मिला, जो उसकी नजर में सर्वश्रेष्ठ हो, लेकिन यह किसी एक की मर्जी नहीं, बहुत सारे लोगों की मर्जी का परिणाम होता है। बहुत सारे लोगों में से भी बहुत सारे उन लोगों की मर्जी जिनके मत किसी एक व्यक्ति के लिए सर्वाधिक पड़े हों, उसे लोकसभा के सदस्य के रूप में चुना जाता है। उसे सांसद कहा जाता है। सिर्फ इतना ही नहीं, इनमें से भी देश का प्रधान बनने का अधिकार उसी को मिलता है, जिसके पास सर्वाधिक वोट हो।

अर्थात, लोकतंत्र की यह सुंदरता सिर्फ इतनी भर नहीं कि नागरिक अपना वोट दे और फ्री हो जाए। यह वोट रूपी अधिकार का प्रयोग हर स्तर पर होता रहता है। इस देश में सिर्फ यही एक चुनाव नहीं होते। पालिका-पंचायत से शुरू होकर विधानसभा और लोकसभा तक होने वाले ऐसे कईं चुनाव हैं, जिसमें देशवासियों को अपने मताधिकार का उपयोग करने का मौका मिलता है, लेकिन यह मताधिकार इस रूप में प्रयोग भी है, कि अगर हमने एक स्तर पर गलत का चुनाव कर लिया तो हमें अगली बार उसे बदलने का हक भी मिलता है। सिर्फ यही नहीं, हमारा लोकतंत्र इस थ्योरी पर भी आधारित है कि एक व्यक्ति का फैसला गलत हो सकता है, लेकिन हजारों लोगों का फैसला गलत नहीं हो सकता। अगर ऐसा भी हो सकता है कि सबसे ज्यादा लोग जिधर खड़े हैं, वे गलत नहीं हो सकते। इसलिए सबसे अधिक का फार्मूला ही  चुनाव में लागू होता है और यह सबसे अधिक भी तब तक कि जब तक एक प्रक्रिया पूरी हो जाए। दूसरी प्रक्रिया में फिर से वही प्रक्रिया।

जैसे, अगर इस लोकसभा चुनाव का कोई प्रत्याशी सर्वाधिक मतों से जीतता है तो इस वजह से उसे देश का प्रधानमंत्री नहीं बना दिया जाएगा, क्योंकि वह उस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहा है, देश का नहीं। देश का प्रतिनिधि चुनने के लिए एक प्रक्रिया या एक विचार से निकले हुए लोग करेंगे, फिर से चुनाव होगा। चुने हुए व्यक्ति को अपने पक्ष में सर्वाधिक वोट साबित करने होंगे। यहां फिर देखें, संभव है कि प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी कहीं ओर से भी आ जाए। उसे दोहरी परीक्षाओं का सामना करना पड़ेगा।
बहरहाल, लोकतंत्र की इस सुंदरता को बनाए रखने, बचाए रखने का यह समय है। आज से लोकतंत्र का महोत्सव शुरू हो रहा है। आज मतदान होना है, इसके बाद 26 को फिर मतदान होगा। इस तरह पूरा मई देशभर के नागरिकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण समय रहेगा। जून में जो सरकार बनेगी, उसमें हम सभी के मताधिकार की आहूति लगे, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए। वोट देने का अधिकार किसी भी सूरत में नहीं गंवाना चाहिए।

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