हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा
आम चुनाव के दौर से गुजर रहे देश के सामने एक बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है कि क्या गांधी परिवार अपनी परंपरागत सीटों को छोडऩे का मन बना चुका है या इन सीटों पर आखिरकार राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ही चुनाव लड़ेंगे? बुधवार को दिनभर चले घटनाक्रम में इस विषय पर ऊहापोह रही, यहां तक कि सोनिया गांधी का दखल भी इस प्रकरण में सामने आया। इस बीच भाजपा के कैंप से चार दिन पहले ही एक सुरसुरी छोड़ी जा चुकी है कि  वरुण गांधी को राहुल या प्रियंका के मुकाबले उतारा जा सकता है। हालाकि, इस विषय पर अभी तक प्रियंका गांधी या वरुण गांधी का पक्ष अभी तक सामने नहीं आया है, लेकिन एक कौतुहल तो बन ही गया है कि राहुल या प्रियंका के चुनाव लडऩे की स्थिति में क्या वरुण गांधी को आजमाया जाएगा।

हालांकि, देश की राजनीति में ऐसा कम ही देखा गया है कि दिग्गजों के सामने दिग्गजों को उतारा जाए, लेकिन जिस तरह से पिछली बार अमेठी से स्मृति इरानी को उतार कर राहुल गांधी को हराने की रणनीति भाजपा ने बनाए, कोई बड़ी बात नहीं है कि इस बार वरुण गांधी को आजमा लिया जाए।
इस एक तीर से दो निशाने साध लिए जाएंगे। पहला, यह कि वरुण गांधी को टिकट देने में भाजपा किसी भी तरह की पूर्वाग्रह की शिकार नहीं है। दूसरा राहुल गांधी या प्रियंका गांधी को क्लीन-स्वीप देने के मूड में भी नहीं है। देश में इससे एक बड़ा संदेश जाएगा। लेकिन यह तब होगा, जब राहुल गांधी या प्रियंका गांधी चुनाव लडऩे के लिए राजी होंगे। पिछले दिनों प्रियंका गांधी के पति राबर्ट वाड्रा ने तो अलबत्ता चुनाव लडऩे में रुचि दिखाई थी, लेकिन स्पष्ट रूप से कुछ सामने नहीं आया। ऐसे में प्रियंका गांधी चुनाव की राजनीति में उतरेगी, साफ नहीं कहा जा सकता।

इधर, राहुल गांधी का तो सारा मामला ही उलझा हुआ है। वे अगले पल क्या फैसला लेंगे, यह भी नहीं कहा जा सकता। यह भी अभी तक किसी को पता नहीं चला है कि आखिर वे हैं किसके कहे में। फिर यह भी साफ है कि कांग्रेस पूरे मन से चुनाव लडऩे के लिए मैदान में है भी नहीं। वरना, राजस्थान से अशोक गहलोत, सचिन पायलट जैसे नेता यकीनी तौर पर चुनाव मैदान में होते, ऐसे में कोई गारंटी नहीं कि राहुल गांधी भी चुनाव लड़े।
अगर यह सही है कि यही संदेश जाता है कि कांग्रेस ने यह चुनाव सिर्फ औपचारिकता के लिए लड़ रही है ताकि अपनी छवि को बचाए रख सके, बाकी हार काफी पहले मान चुकी है। देखना यह होगा कि आम चुनाव के परिणामों के बाद कांग्रस की क्या रणनीति रहती है। हालांकि, तब तक बहुत देर हो चुकी होगी और यह देर इतनी ज्यादा हो चुकी होगी कि पांच साल इंतजार के अलावा कुछ भी नहीं होगा।

तो क्या राहुल गांधी पूरी तरह से एक नई कांग्रेस के लिए इन दिनों काम कर रहे हैं, जिसके लिए चुनाव से अधिक जरूरी विचार हो। लग तो ऐसा ही रहा है। जिस तरह से वे विचार की राजनीति करते हुए दिखाई दे रहे हैं, एक ऐसे हठयोगी के रूप में सामने आए हैं, जो इस देश को विचार पर लेकर आना चाहते हैं। अब तक के सारे अनुभवों से परे राहुल गांधी अगर यह साबित करना चाहते हैं कि राजनीति में विचार प्रमुख होना चाहिए तो इसके लिए उन्हें और उनकी टीम को कितना प्रयास करना होगा, यह तो वक्त बताएगा, क्योंकि उनका मुकाबला भाजपा के रूप में एक विचारवान लोगों की टीम के साथ ही होना है। लेकिन देश की जनता, जो कांग्रेस को चाहती है, उसे यह नहीं सुहायेगा कि राहुल या प्रियंका गांधी परिवार की परंपरागत सीटों पर चुनाव नहीं लड़कर निराश करते हुए भाजपा को वन-वे निकलने दे।

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