मुंबई।   फिल्म ‘ब्लू’ से बी-टाउन में निर्देशन की दुनिया में कदम रख चुके निर्देशक टोनी डीसूजा अब अपने चाहने वालों के लिए इमरान हाशमी स्टारर फिल्म ‘अजहर’ लेकर आए हैं। उन्होंने इस फिल्म से क्रिकेट की दुनिया में व्याप्त कुरीतियों को दर्शाने का भरसक प्रयास किया है। साथ ही उन्हें ‘अजहर’ से काफी उम्मीदें हैं और उन्होंने इस फिल्म में ऑडियंस को रिझाने के लिए हर तरह का मसाला भी दिया है।

कहानी :

90 के दशक के भारतीय टीम के उम्दा बल्लेबाज और कैप्टन रहे मोहम्मद अजहरुद्दीन (इमरान हाशमी) जैसे इंसान की पूरी कहानी 131:30 मिनट की बड़े पर्दे पर बड़े ही मनोरंजक तरीके से पेश की गई है। कहानी शुरू होती है एक पर्दाफाश करने वाले से। पता चलता है कि एम शर्मा (राजेश शर्मा) नाम के एक बुकी के कहने पर अजहर पर मैच फिक्सिंग का आरोप तय हुआ है। इस पर क्रिकेट एसोसिएशन समेत कई अन्य लोग भी अजहर के खिलाफ हो जाते हैं और आखिर तक सामने आने और उसका साथ देने के लिए कतराते रहते हैं।फिर अजहर अपने केस को लडऩे के लिए अपने वकील दोस्त रेड्डी (कुणाल रॉय कपूर) से निवेदन करता है कि वह उसका केस लड़े। फिर कहानी फ्लैशबैक में जाती है और पता चलता है कि हैदराबाद का होनहार लड़का अपने नाना के दिल को रखने के लिए मुंबई में क्रिकेट टीम में शामिल होने के लिए आता है। मुंबई आते ही उसके नाना का स्वर्गवास हो जाता है, जिसकी वजह से वह अपनी परफॉर्मेंस में कमजोर होता सा दिखता है।इसके बाद उसे अपने नाना की बात याद आती है और वह इंडियन क्रिकेट टीम में शामिल हो जाता है। यहां पर उसका सबसे करीबी दोस्त रवि शास्त्री (गौतम गुलाटी) होता है। वहीं, दूसरी ओर अजहर के अपोजिट केस लडऩे वाली नामचीन वकील मीरा (लारा दत्ता) होती है, जो केस को जीतने के लिए कुछ भी करने को हमेशा तैयार रहती है। साथ ही मीरा चाहती है कि इस केस में अजहर की दोनों बीवियां नौरीन (प्राची देसाई) और संगीता (नरगिस फाखरी) उसके सपोर्ट में सामने आएं, लेकिन अजहर ऐसा नहीं चाहता है।धीरे-धीरे कहानी आगे बढ़ती है और अजहर का वकील केस हारने की कगार पर आ जाता है। इसी के साथ फिल्म में दिलचस्प मोड़ आता है और तरह-तरह ट्विस्ट के साथ कहानी आगे बढ़ती है।

अभिनय :

इमरान हाशमी ने एक बार फिर साबित कर दिखाया है कि वाकई में उनके चाहने वाले ऐसे ही नहीं उन्हें पसंद करते। प्राची देसाई ने अभिनय में गजब भूमिका निभाई। गौतम गुलाटी और नरगिस फाखरी भी अपने-अपने रोल में सटीक रहे। लारा दत्ता व करणवीर शर्मा ने भी अपने किरदारों में शत-प्रतिशत देने की पूरी कोशिश की है। साथ ही मनजोत सिंह सिद्धू की भूमिका में कुछ अलग कर दिखाने में सफल रहे। इसके अलावा कुणाल रॉय कपूर और राजेश शर्मा भी अपनी-अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में काफी हद तक सफल से नजर आए।

निर्देशन :

टोनी डीसूजा ने इस बायोपिक फिल्म के निर्देशन की कमाल संभालने में वाकई में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी है। वे इस फिल्म से ऑडियंस को खेल में पैर पसार चुकीं कुरीतियों को बड़े पर्दे पर जुदा अंदाज में दिखाने में सफल भी रहे। हालांकि उन्होंने इसमें मसाला परोसने का जबरदस्त प्रयास तो जरूर लगाया, लकिन कहीं न कहीं वे कुछ और बेहतर कर सकते थे। उन्होंने बायोग्राफिकल फिल्म को बड़े ही मनोरंजक ढंग से पेश किया है, इसीलिए वे ऑडियंस की वाहवाही लूटने में सफल रहे।बहरहाल, ‘दूसरों की बुरी नजर की वजह से अपनी आंखे गीली न करो… और ‘तुम बोलोगे तो कुछ ही लोग सुनेंगे, बल्ला बोलेगा तो सारी दुनिया सुनेगी…जैसे कई डायलॉग्स तारीफ  लायक रहे, लेकिन अगर टेक्नोलॉजी और कॉमर्शिल अंदाज को छोड़ दिया जाए तो इस फिल्म की सिनेमेटोग्राफी कुछ खास करने में थोड़ी असफल रही।