अरज ‘लॉयन एक्सप्रेस’ लगौलग आप नैं खबरां सूं जोड़्यां राख्यौ है। इण सागै ई अब साहित रा सुधी पाठकां वास्ते भी कीं करण री मन मांय आई है। ‘कथारंग’ नांव सूं हफ्ते में दोय अंक साहित रे नांव भी सरू करिया है। एक बार राजस्थानी अर फेर हिंदी। इण तरयां हफ्ते में दो बार साहित री भांत-भांत री विधावां में हुवण आळै रचाव ने पाठकां तांई पूंगावण रो काम तेवडिय़ो है। आप सूं अरज है क आप री मौलिक रचनावां म्हांनै मेल करो। रचनावां यूनिकोड फोंट में हुवै तो सांतरी बात। सागै आप रौ परिचै अर चितराम भी भेजण री अरज है। आप चाहो तो रचनावां री प्रस्तुति करता थकां बणायोड़ा वीडियो भी भेज सको। तो अब जेज कांय री? भेजो सा, राजस्थानी रचनावां…

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स्व. गिरधारी लाल मालव

हाड़ौती अंचल रा लूंठा कहाणीकार गिरधारीलाल मालव रो राजस्थानी साहित में महताऊ योगदान है। आप गीत-गजल भी लिखता। 24 अक्टूबर 1937 में जलम्यां मालवजी 4 सितंबर 2016 में परलोक सिधारिया। 

कहाणी  : पाछली सैनाणी

मंजू की बरात बदा होतां ईं म्हा दोनी चम्पापरा सूं पगां ईं गेलै लाग ग्या। सडक़ ज्या सूं म्हानै बस पकड़णी छी। यांऽऽ सूं तीन किलोमीटर छी अर चाळीसेक घरां को अेक छोटो सो गांव बीचा मं आवै छो। बीचा का गांव मं अेक ई गर्याळो छो। जे सडक़ की आडी आर-पार छो। डांडो भर्यो दन चढ्यायो छो। ऊंदाळा मं यो समे घणो सोवणो रै छै। ईं ठण्डाई मं लोग अळसाया रै छै। पण लुगायां झाडूं-ब्वारा पाणी-पणघट अर हो जावै तो चूल्हा-चोका का कामां नै फुरती सूं नमटाबा का फेर मं रै छै। रेवड़्यां पै कूढ़ा कचरा फांकबो अर छनवाड़्यां मं छाणा थेपबो गांव मं घणो महताउ काम छै।  गांव की सारी हलचल न्यारता म्हां गांव सूं बारै कढ़्याया। कूढ़ो फांकर आती चाळीसेक साल की अेक बायर म्हां नै गांव का पळस्या पै बावड़ती मली। म्हांनै सडक़ पै जाबा को गेल्यो बूझ्यो – याई पगडण्डी जावैगी नै बाई सडक़ पै? कतनै क दूरै होगी? आपणा ध्यान मं चालती बायर बछक र सामै झांकी फेर आंख्यां चोड़ी कर र न्यारती बोली – हां, याऽऽरी आर भर्या पै। क्हर चालबा पै त्यार होती रूक र पाछी फरी अर सामै झांकर संकां को समाधान हेरती नै बूझी- थां यां आस-पास का तो कोई न्ह दीखो? क्हां सूं आया?  कजोड़ बोलबा मं उतावळो छो झट देणी बोल्यो – भगवानपरा का। अंठी पाछला गांव मं आया छा।  भगवानपरा को नांव सुण र वा सुन्न सी पड़ती बोली – कस्या पाड़ा मं?  अजीतपरा मं। पण थू जाणै छै कीं भगवानपरा नै? भगवानपरा नै भी जाणूं छूं अर थांका अजीतपरा नै बी।  कस्यां?  भंवर्यो थांका अजीतपरा मं ईं रै छै नै? कै मरग्यो?  हां अबार सेक ई मर्यो छै। कांई कर्यो ऊंनै जे? ऊंनै ई तो छुड़ायो छो म्हंसूं भगवानपरो।  म्हां दोनी बायर की बात सुण र बछक्या। म्हनै बूझी भगवानपरो कस्यां छुड़ायो भंवर्या नै? अर तू भगवानपरा मं कांई करै छी?  म्हारो पहली को सासरो छो भगवानपरो। यांऽ तो म्हूं नातै आई छूं। क्हर बायर नै अपूठी फर र लूगड़ा सूं आंख्यां पूछी, नाक सणकी अर गळो खुलासा कर र क्हबा लागी – म्हारो पहली को सासरो छै भगवानपरो। ज्यां म्हनै म्हारी ऊमर को सब सूं आछ्यो टैम काढ़्यो छो।  कुंवांरी मोट्यार छोरी बाप का घर नै रै र सासरा अर आपणा होबा हाळा जोड़ीदार का जे सपना संजोवै छै। वै सारा का सारा सपना भगवानपरा मं साकार होया छा म्हारा। कांई तो दन छा अर कस्या मनख छा वै। जद म्हूं लाडी बण र भगवानपरै आई अर बीस मनख्यां का भर्या-पूरा परवार की लारां लाड-कोड सूं मोड़ जुवारा उतारबा सीतळा माता कै गी, तो पचास बायरा नै वां कै कामड़ी की देबा लेखै म्हूं घणी उकसाई छी। म्हारी छोटी नणद नै तो कामड़ी बी पकड़ा दी छी म्हारा हाथ मं। पण म्हूं बायरा का बीचा मं ऊभी म्हारी सासू कै आण लपटी छी। म्हारी सासू नै म्हारा गळा की बाथ भर र सारी लुगायां की हांसी टेहळी छानी कराई छी। घरनै आर पीतळ का बडा दुकड़्या मं भर्या पाणी मं हळदी दोब ज्यार का दाणा अर अेक मूदड़ी पटक र नायां का भाभी जी नै जद म्हां दोनी जणा जुवां खेलबा बठाण्या तो दो भाभी जी वां की आडी बैठ्या पण छोटी नणदां अर दोनी छोटा भाभी जी म्हारी जोळ जप्या तो म्हारै बी हीमत आगी छी। म्हनै हाथ मं आई मंदड़ी पाणी मं पाछी छोड दी छी। वै मूंदड़ी जीत ग्या छा। रात जद म्हां अेक घर मं स्वाण्या तो वै या मंूदड़ी म्हीं देता बोल्या छा – या थारी मूंदड़ी संभाळ। म्हनै वां की आडी बना आंख्यां उठायां क्हीं कै या मंूदड़ी तो थां जीत्या छो तो बोल्या – म्हीं सब याद छै कै मंूदड़ी कुण जीत्यो छै? कस्यां? म्हनै थोड़ी सी ऊंची नाड़ कर र बूझी।  तो बोल्या – म्हूं सब जाणर्यो छो कै मूूंदड़ी थारा हाथां मं आया पाछै बी थं नै म्हीं जिताबा कै लेखै जाण कर र पाणी मं पाछी पटक दी छी। तो कायदा सूं या मूंदड़ी तू ई तो जीती नै! पण सब तो याई जाणै छै नै कै थां जीत्या छो। मूंदड़ी म्हारी आंगळी मं दीखैगी तो सब कांईं क्हैगा? वै बोल्या – कोई क्यूं क्हगो? मूंदड़ी आपणी छै। भलांईं सबकी नजर मं या म्हनै जीती होवै तो बी या आपण दोनी जणा की चीज न्ह होईं कीं? अब आपण दोनी मं सूं कोई बी प्हरो? या कोई मरदां को खास गहणो थोड़ो ई छै? जे बायरां न्ह प्हर सकै। कोई कांई बी न्ह तो सोचै अर न्ह क्ह। इनै तू म्हारी आडी सूं आपणै परथम मलण की सलाणी मान लै। ला थारी आंगळी अठी कर म्हूं म्हारा हाथ सूं ईं प्हरा द्यूं..। क्हर बायर नै बायां हाथ की चट्टी आंगळी मं प्हरी चांदी की घसी-घसाई मूंदड़ी हाळो हाथ जे आगै कर्यो तो आंसूं की दो बूंदां मूंदड़ी पै आण पड़ी।  अतनी मठास भरी बातां मं म्हां दोनी या भूलग्या छा कै आपण नै आपणै गांव  चालणो छै। वा बी पाछला जीवण का भाव लोक सूं बावड़ी तो बछक र बोली – बाळो जीऽऽ आगो म्हारा ईं सभाव नै बी। रेवड़ी पै कूढ़ो फांकबा आई छी। कै ठंडाई-ठंडाई मं गोबर बी थेप द्यंूगी। पण कस्यो खोड़लो सभाव छै म्हारो भूलबा को। ओर उल्टा थां गेलै जाता ईं बी बठाण र बावळायां मारबा लागगी। अब होई जे तो होई पण म्हूं थानै भूखा तो न्ह जाबा द्यूं देखो। ऊंदाळा मं तडक़ै बेगी रोटी खाले तो खाले फेर दन छडय़ां पाछै गरमी की मारी रोटी थोड़ी ई भावै छै। चालो उठो। क्हर वा ऊभी होगी अर म्हांका उणग्यारा न्यारबा लाग गी। म्हां दोनी आमां-सामां झांकता अेक नतीजा पै न्ह आर्या छा। अेक मिनट की बाट न्हाळ र वा फेर अपणायत सूं बोली – आमां-सामां कांई झांकोछो? चालो। म्हूं क्ह री छूं। चालणो छै। वा बी पाछला जीवण का भाव लोक सूं बावड़ी तो बछक र बोली – बाळो जीऽऽ आगो म्हारा ईं सभाव नै बी। रेवड़ी पै कूढ़ो फांकबा आई छी। कै ठंडाई-ठंडाई मं गोबर बी थेप द्यंूगी। पण कस्यो खोड़लो सभाव छै म्हारो भूलबा को। ओर उल्टा थां गेलै जाता ईं बी बठाण र बावळायां मारबा लागगी। अब होई जे तो होई पण म्हूं थानै भूखा तो न्ह जाबा द्यूं देखो। ऊंदाळा मं तडक़ै बेगी रोटी खाले तो खाले फेर दन छडय़ां पाछै गरमी की मारी रोटी थोड़ी ई भावै छै। चालो उठो। क्हर वा ऊभी होगी अर म्हांका उणग्यारा न्यारबा लाग गी। म्हां दोनी आमां-सामां झांकता अेक नतीजा पै न्ह आर्या छा। अेक मिनट की बाट न्हाळ र वा फेर अपणायत सूं बोली – आमां-सामां कांई झांकोछो? चालो। म्हूं क्ह री छूं।  ऊंकी ठेट आतमां सूं जुड़्या अधिकार हाळा ब्वार सूं म्हां जादूगर का चेलां की नांईं हुकम मानबा लेखै मजबूर छा। म्हांका होट जस्यां ऊंनै सी घाल्या छा। म्हाकै उठतांईं वा आगै होगी।  गांव मं उळर सरड़-सरड़ चालती वा आगै का छपर्या मं ऊंचा बारणा का दपड़्या क्वांड खोल र ज्याग मं उळगी। छपर्या मं अेक आडी का चूंतरा पै साधारण सा लागता तीन-च्यार जणा कै बीचै स्यार की कद काठी अर तेजवान उणग्यारा को पैंताळीसेक साल को अेक अधेड़ बठ्यो तम्बाकू पी र्यो छो। म्हांनै जार सकतां-सकतां राम-राम कर्यो। राम-राम करतां ईं ओर बैठ्या छा जे उठ-उठर गेलै लाग ग्या। पण ऊं अधेड़ नै अणजाण सी पण आदर भरी नजर सूं झांक र सलीका सूं राम-राम कर्यो। हाथ जोड़्या बूझी – पछाण मं न्ह आया पावणा कसै गांव बराजै छै। उतावळो कजोड़ ई बोल्यो – पछाण मं कस्यां आवां? म्हां तो गेलै चलतान छां। गोडै का गांव मं सूं सादी सूं नमट र आर्या छां। आपकै घर हाळी मलग्या गांव बारै कढ़तां-कढ़तां। म्हानै सडक़ की बात बूझी तो वांनै म्हांको गांव बूझ ल्यो। म्हानै म्हांका गांव को नांव भगवानपरो बता तांई वांकी पराणी यादां ताजा होगी। बातां ईं बातां मं दन चढ्यायो। तो ये जोरी सूं म्हां ईं घरनै ल्याया। क्ही रोटी खाया पाछै जाबा द्यूंगी। अर यां आप मलग्या।  कजोड़ की लड़ी बन्द बातां अर क्हबा का तरीका पै मोइत होतो अधेड़ गंगा जमनी मूंछ्यां मं मळक्यो अर आदर भाव दरसातो बोल्यो – घणी भली करी मारा आपनै। जे गरीब की झूंपड़ी पै पधार्या। आओ बराजो। क्हर ऊंनै छपरा की भींत कै सायरै खड़ो नुवार को र्पंग बछाद्यो। आओ बराजो। म्हूं जळ लाऊं छूं। कजोड़ राजी होर बोल्यो – कांईं मीं तकलीफ कर र्या छो। म्हां तो सगत्यांईं का पावणा छां। पण कांई करां आपकी घर हाळी नै अस्या ढंग सूं क्ही कै म्हानै आणो ई पड़्यो। बना काम ईं आप लोगां ईं फोड़ा पाड़ घाल्या।  अरै न्ह जी! कोई बी कोई कै बारणै बना कारण न्ह आ सकै। यो सब ऊंकी मरजी सूं होवै छै ऊपर हाळा की। ऊई संजोग मलावै छै। आपनै आज ईं गरीब की झूंपड़ी पै पधारणो छो। न्ह तो देखां आप ई आधी घड़ी प्हली कढ़ जाता।  अर कै म्हारी घरहाळी ई आपकै आबा सूं आधी घड़ी पाछै चली जाती। पण ये सब मलाण ऊई मलाव छै मारा। खैर बराजो आप तो। अतनी ऊंडाई सूं मत सोचो। म्हूं जळ लार्यो छूं। ऊ ज्याग मं उळग्यो। म्हां दोनी पालक्या पै बैठग्या। बैठ तांई म्हनै क्ही – कजोड़! आदमी तो ज्ञानी लागै छै।  कजोड़ बोल्यो – भलो बी। भगवान पै पूरी सरधा रखाणबा हाळो।  ऊंनै आतां ईं क्ही – जळ कांईं रोटी बणगी। भोजन करबा ई पधारो आप तो।  अतनी सी देर मं! हाल तो वै म्हांकी लारां ई आया छा।  याई तो करामांत छै मारा ईं की। या कांई मली म्हारो तो जमारो ई सुधर ग्यो। म्हां ऊंकी लारां भीतर ग्या तो सांच्यांई गरम दाळ रोटी थाळ्या मं छी। अर थाळ्यां कै सामै आसण लाग र्या छा। लोट्या-गलास पाणी सूं भर्या छा।  चोड़ी चार खूंटी ज्याग मं लीमड़ी की घहर-घुमेर छाया मं दो पालक्या बछार अधेड़ बोल्यो – छपर्या सूं यां छोका रै गां। आओ बराजो। आपणै तो हाल बातां ई न्ह होई। क्हर हांसबा लाग ग्यो। लाम्बा कानां की नोळा मं पहर्या सूंना का चोकड़ां सूं नोळा लाम्बी होर लटकबा लागगी छी। जे बात करती बगत अकसमचै लाग्या झाटका सूं हाल र हांसी को रूपाळपणो ओर बधा दे छी। गंगा जमनी मूंछ्या कै पाछै धोळा दातां की स्यार की बत्तीसी नरी बार चमक बखेर ज्या छी।  म्हारों नांव रामधनो छै मारा। म्हांका बाप-दादा नै थाप्यां दे-देर अस्या घड़ा, हांड्या, पोवण्यां बणाई कै हाट-हटवाड़ा मं म्हांको माल बक्यां पाछै ई दूसरा कम्हारा का घड़ा-बासण बकै छा। आज म्हारै पगां तळै जे साठ बीघा जमीन छै। वा सब वां की करत कमाई ई तो छै। म्हारै पहली हाळी घरहाळी बी छोकी ई छी। अेक बाळक छोड मरी। पण जद सूं या आई छै। ऊं बगत को कार-बार दूणो-चोगुणो होग्यो। म्हनै या कदीं सूती न्ह देखी। सभाव देखो तो पूरो गांव बडायां भरतो थाकै छै। सदां हांसती रै छै अर कोई का बी सुख-दुख मं सेवा कै लेखै त्यार रै छै। म्हूं असी बायर पाऽर धन्न होग्यो मारा। यो बी पाछला जनमां मं म्हनै कोई अस्यो पुण्य कर्यो होगो जींसूं या मली। रोटी पाणी सूं नमट र कूण्डा की झकोळण बारै फांकर आती नै रामधना सूं क्ही – सोबा द्यो नै यांनै घड़ी-आध घड़ी! ब्याव की नींद भर री होगी। थां बी देखां फूल्या जी मलज्या तो आगला साल की थै-पाई कर्याता। कोई बीचा मं आण डांकैगो तो अस्यो कमाऊ स्याणो हाळी मोसर हो ज्यागो।  हां! या थनै चोखी याद अणाई। म्हारा ध्यान मं सूं तो कढ़ ई गी छी। तू अस्यां कर पावणा गोडै बैठ थोड़ी सेक देर म्हूं फूल्या सूं बात कर र अबाणू आऊं छूं। बणता तो आखोती ई द्याऊंगो। रामधना जी कढ़ग्या। वांकी घरहाळी कूंडो अेक आडी धर र बातां करबा बैठगी। बैठ तांई कजोड़ नै छेड़ दी – बरो मत मानज्यो, थानै थांको नांव तो बतायो ई न्ह। घरनै कोई बूझ लेगो तो कांई नांव लेर बतावैगां। कै म्हांनै गेला मं वांकै यां दफैर्यो काट्यो छो।रामधना जी कढ़ग्या। वांकी घरहाळी कूंडो अेक आडी धर र बातां करबा बैठगी। बैठ तांई कजोड़ नै छेड़ दी – बरो मत मानज्यो, थानै थांको नांव तो बतायो ई न्ह। घरनै कोई बूझ लेगो तो कांई नांव लेर बतावैगां। कै म्हांनै गेला मं वांकै यां दफैर्यो काट्यो छो। सुण र बायर मळकी। नरी देर तांईं पगां की आंगळ्यांई न्यारती री। फेर नजर उठा र झांकी। मळकती ई बोली जस्यां सामै हाळा की अक्कल की हांसी उडारी होवै बायर को कांई नांव? मरद का नांव सूं काम चाल जावै छै। भगवानपरै छी तो मोहला मं परकास की बू छी। घरकां की नजर मं परकास की लाडी अर कै छोटी कोराणी छी। यां आई तो रामधन जी की बू बागूं छूं। अतना नांवां का बीचा मं म्हूं म्हारो पराणो नांव ई भूलगी। ये म्हं सूं बना कोई नांव ल्या ‘‘अरै सुण छै नै ’’ अर दोनी छोरा मम्मी-मम्मी क्ह छै। मोहला की बायरां राम-लछमणा की मम्मी बोलै छै। यो आखरी नांव घणी ममता जगावै छै। कतना नांव छै म्हारा। कस्यो बताऊं? क्हर वा जोर सूं हांसी। बतळाक कजोड़ का उणग्यारा की चमक मद्धम पडग़ी। ऊ आकळ-बाकळ होतो बोल्यो – म्हारो मतलब तो आपको असली नांव आपका माई-बाप नै रखाण्यो होगो जीं संू छो। पीहर मं गांव का जीं नांव सूं हांको पाड़ै छा जे।  हांऽऽ ऊ? ऊ तो मोत्यां छै। पण कानां नै कतनाक दन सुण्यो। घणो-घणो मानो तो पांच साल फेर तो म्हूं परकास की लाडी होगी छी।  जे कांई बाळपणा मं ई परणाद्या छां कीं? बाळपणो कांई बारा-तेरा साल की परणा दी छी। परण्या पाछै तीन साल गूणा कै लेखै रोकी। फेर खनादी। कजोड़ नै बात मं रस आबा लागग्यो छो। बोल्यो -पांच की ठाम पै आठ साल क्यूं नै गणो? अर ईं कै पहली बी तो नांव कानां मं पड़्यो होगो? पड़ैगो कानै? पण सात-आठ साल की ऊमर तांईं तो बाळपणो ई मानो। आपणा नांव को अरथ ई न्ह जाणै। बस कोई हांको पाड़ै अर बोल ज्या। पाछला तीन साल तांई नुवा नांव की झणकार नै खास नांव याद ई न्ह आबा द्यो। जस्यां ऊं नांव नै म्हारी कुंवारी सैनाण्यां मटार र नुवा चतराम रचाद्या होवै। चमकदार रंगां का चतराम।जस्यां म्हूं खुद नै ई भूलगी छी।  तो राम-लछमणा की मम्मी जी आपकै दो बाळक छै। हां, अेक जायो अर अेक पायो।  जायो-पायो कांईं? ईं घर मं जद म्हूं उळी तो तीन साल का मनभावण बाळक राम नै म्हारी लावण लूम र जे मम्मी क्ही तो म्हूं चोक-चाक भूलगी। म्हूं जस्यां म्हारी जिन्दगाणी मं पूरणता पागी छी। बना छंूक्या आंचळां मं दूध की धार फूटू-फूटू करबा लागगी छी। म्हनै मां होबा का सुख को परथम बार भाण होयो छो। यो पायो पूत छो अर लछमण जायो पूत छै। पण राम म्हारै जाया सूं बी आगै छै आज। मां को दरजो तो सबसूं पहली ईंनै ईं द्यो।  कठी ग्या अबार दोनी! न्ह दीखर्या। नाना कै। बाळक तो दोनी आप दोनी जणां की नांईं सरब गुणवान होगा ई सणी। मलता तो ओर सुख मलतो। पण आपनै अबार जे नांव गणाया वै सब थांकां नांव न्ह होर संबंधां का नांव छै। असली नांव तो मोत्याबाई छै। देखो म्हूं आपको नांव …..। कजोड़ बीचा मं बात काट र बोल्यो – कजोड़। हां देखो कजोड़ीलाल जी म्हूं आप जतनी पढ़ी गुणी तो कोई न्ह। अर अक्कल बी घाट-बाध ई छै। पण म्हनै पाछला जीवण मं जे हादसा झेल्या वां सूं सीखबा मं जरूर ओरां सूं जादा ई मल्यो। म्हारी साधारण समझ मं या बात आछी तरै आगी। कै नांव होवै कै संबंध पाछला ई भूल्या बना आगला मं रम न्ह सकै। अर बना रम्यां सुखी न्ह हो सकै। ईं लेखै म्हूं पाछला ई भूल र आगलो समाळती री। अर सुखी होती री। पाछलो पकड़्या रैती तो अब तांई कै तो मरगी होती अर कै बावळखाना मं होती। पाछलो आंसूं की बहताळ्यां सूं जादा कांई देतो? ओर गैठ को आगलो खो देती।  मानग्यो मोत्यांबाई आपकी सुळझी सोच अर जीबा को सुख भोगबा का तरीका ईं। अेक बात ओर बताओ जे म्हारै तडक़ा सूं ईं खटक री छै।  कसी बात? भगवानपरो छुड़ाबा मं भंवर्या को पूरो हाथ छो।  मोत्यां का उणग्यारा की चमक मोळी पडग़ी। वा सोच मं डूबगी। फेर कळेस करती बोली – अबार हाल क्हर नमटी छूं कै पाछला संबंधां की याद बी काळज्या पै कटार्यां अड़ा दे छै। ईं लेखै याद न्ह करबा मं ईं तन्त छै।  होणी छी जे होगी।  न्ह मोत्यांबाई ऊं बात नै सुण र म्हां कांई तोल अपराध भाव सूं मुकती पा जावां। अेक मनख सारा गांव बस्ती की बदनामी को कारण बणज्या छै। आज म्हां म्हांकै तांई थांका अपराधी मान र्या छां।  आप लोग खुद ई अपराधी क्यूं मानो छो? म्हूं सारा भगवानपरा ईं अपराधी मानती तो आप लोगां ईं म्हारा घरनै जोरी सूं क्यूं लेर आती? ये तो सब भगवान की करपा मानूं छूं। आपण भगवान की करणी न्ह समझां। जदीं तो दुखी रै छां। ऊ कदीं कोई को बरो न्ह करै। हां, तपावै जरूर छैं। पण आपण धार पै र्या तो अन्त मं न्र्या बी कर दे छै। देखो नै म्हूं जे ऊं घटना नै पकड़ र बैठी रैती अर कै आपणा दुख सूं हार मान लेती तो आज का सुख नै कस्यां पाती? पण ऊ कस्यो दुख छो मोत्यांबाई? बताबा जोग न्ह होवै तो जाबा द्यो। म्हारा बूझबा को कारण आपका मन ईं दुखी करबो मत समझ ज्यो।  दुख तो म्हनै अतनो झेल्यो छै कजोड़ीलाल जी कै सुणबा हाळो बी कांप ज्या। पण म्हूं जीवती छूं। कारण ऊई छै कै म्हनै खुद ईं भगवान की मरजी पै छोड़ र आप खुद ई टूटबा न्ह द्यो। अर दुख सूं पार पाबा की कोसिस मं कसर न्ह रखाणी। दुख तो म्हनै अतनो झेल्यो छै कजोड़ीलाल जी कै सुणबा हाळो बी कांप ज्या। पण म्हूं जीवती छूं। कारण ऊई छै कै म्हनै खुद ईं भगवान की मरजी पै छोड़ र आप खुद ई टूटबा न्ह द्यो। अर दुख सूं पार पाबा की कोसिस मं कसर न्ह रखाणी।  जद म्हूं लाडी बणर भगवानपरै गी तो म्हारी बरात मं ऊ भंवर्यो बी छो। लाडा को खास भाइलो। मीठो गटक बोलै छो। रूपाळ पणो अेक खास गुण मान्यो ग्यो छै लुगायां को। पण यो गुण ई म्हारी जीवण जेवड़ी मं दुखां की कराड़्यां ढसार म्हारी छाती पै पटकै गो। म्हू या न्ह जाणै छी। कजोड़ जी! ऊं दन पाछै भंवर्यो अेक-दो दन मं म्हारा सासरा का घर की फेरी लगाबा लाग ग्यो छो। कदीं कांई बायना सूं तो कदीं कांई बायना सूं म्हारी सूरत देख्या बना ऊंई जक न्ह पड़ै छी। घरहाळा उस्यां नचीता छा। कै ऊ परकास जी को खास भायलो छो। दन कढ़ता ग्या अर भंवर्यो परवार हाळा ईं परवार को मनख जस्यों लागबा लाग ग्यो छो।  गूणो होर म्हूं जद सासरै आई ऊं साल मं साल पूरो होतां-होतां गार का खाना मं दबर म्हारा माई-बाप मरग्या। म्हां दोनी जणा नै वांका किरिया करम कर्या। अर झूपड़ो अेक पड़ोसी ई संभळार पाछा आग्या। पीहर मं अब कोई बी कोई न्ह छो। यां सूं ईं म्हारा दुखां की सरूआत होई। सासरा मं सब म्हारै ऊपर करूणा बरसाता। फेर बी म्हूं रात मं जद परकास जीं ईं नींद आ जाती अर कै म्हूं अकेली रैती तो धापर रोती। माई-बाप तो माई-बाप ई होवै छै। सब सगपणां सूं ऊपर। कदीं परकास जीं ईं म्हारा रोबा को आंठ आतो तो वै म्हीं बसवासता। क्हता बावळी माई-बाप कदीं कोई की लारां पूरी ऊमर ज्या छै। जे वै रैता। या तो भगवान की मरजी छी। अर ऊंकी मरजी कै आगै कोई को बस न्ह चालै। तो म्हूं वांकी बाथ भर र डीडाबा लाग जाती। धीरां-धीरां घरहाळां को परेम अर परकास जी का बसवास बंधाता आचरण सूं म्हारो दुख कम होतो चलीग्यो। यां दनां मं भंवर्यो दुख जणाबा का घणा ढावला करतो। पण वां ढावला नै म्हूं सांचा मन को सुद्ध भाव समझबा की गलती करबा लागगी छी।  सारा घर का मनख्यां को काम बंटर्यो छो। तीन जठ्याण्या गार गळाबा लेखै बेवड़ा भर-भर कुवा सूं पाणी लाती। सब छोटी जठ्याणी अर म्हूं चूल्हो संभाळती। बड़ा जेठ जी लाद कूटबा छाणबा को काम करता। अेक बचलो जेठ लाद मलार गार त्यार करतो चाक पै काचा बरतनां का पींडा उतारतो, दो जेठ पींडा सूं घड़ा-बासण घड़ता, वै अर वां सूं बड़ा गद्धा लारां लेर गार का खाना सूं गार खोदर लाता। अेक कारखानो सो चालतो रै तो सब राजी-राजी आपणी मरजी को काम जुम्मेदारी सूं करता रै ता। दो बीघा च्यार खंूटी ठाम मं बण्यां झूंपड़ा का बगड़ मं आठवै दन आऽवो पाकतो। दो दन पाछै खुल र हाट मं जा गल्लो होतो। डोकरा-डोकरी घड़ा बजा-बजार बेचता। सबसूं जादा घड़ा म्हांका बकता।  च्यारू जेठां का छोटा-मोटा कोई दस-बारा छोरा-छोरी कोई रोता कोई खलकट्यां करता, कोई लड़ता-झगड़ता, कोई रोट्यां मांगता, हलबलो मचायां रै ता। ईं सारा काटा-कूटा, काम धन्धा मं म्हूं सारो दुख भूल गी छी। पण अेक दन जद वै छोटा जेठ की लेरां तीन-च्यार गद्धा लेर खाना मं गार खोदबा ग्या तो जेठ का कांधा पै ल्हास बणर बावड़्या। वै गार खोदती बगत ढसती कर्याड़ की चपेट मं आग्या बताया। म्हनै तो याई सुणी। पाछै कांई होयो म्हीं याद कोई न्ह। दूसरै दन तडक़ै घर कां नै कस्यां जगाई पण आंख्या खोलर झांकी तो पच्चीस मनख्यां को पूरो परवार सूनी आंख्यां अर मुरझाया उणग्यारा सूं म्हीं न्यार र्यो छो। जीं बड़ी भारी ज्याग मं हलबला सूं कानपड़्यां न्ह सुणै छा स्यां सट्ट बापर री छी। क्हाल रात सूं लेर ऊं दफैर तांईं चूल्हा मं आग न्ह सळगी छी अर कोई बाळक नै रोटी न्ह मांगी छी। म्हारी आंख्यां मं फेर अंधेरो छाबा लाग ग्यो छो। तेरवै दन घर की बायरां नै म्हीं जगार बैठी करी अर पकड़ र नुवादी छी। सरीर मं उठ र बैठी होबा की दम न्ह छी। बार-बार आंख्यां मं अंधेरो छा जावै छो।  सबका मनावणा अर समझाबा सूं मूंडा मं ठूंस्या दो गास गळा मं नीठ उतर्या छा। अब कांई बी बायना सूं भंवर्या को ऊं घर मं ठहराव बधग्यो छो। ऊ सब मनख्या की सेवा सायता मं लाग्यो रै तो। पण अेक आंख म्हं पै गडी रै ती। म्हूं कांई समझूं? म्हारै लेखै छ्याछ बी धोळी अर दूध बी धोळो। साल पूरो होता-होतां पड़ोस की अेक बायर म्हारै गोडै आर बैठी। वांका मरबा का दुख का बखाण सूं सरू होर वा आगै जमारो कस्यां कटैगो की चरचा मं जाती-जाती सल्ला देगी – देख बणा म्हां तो थारी सीक ई क्हैगां। ये घरहाळा आज जे परेम जणार्या छै नै थोड़ा दन को ई छै। अेक दन ये ई पांतरज्या गा। ईं दनियां मं कोई, कोई को सगो न्ह होवै। अेक दन माथै आ ज्यागी। फेर कांई करैगी? सारा के दन भेळै रै, गा। सदां कुण भेळै र्यो छै? डोकरा-डोकरी छै जतनै ई छै। काणा कुण की लाज दह री  छै? कोई दन कीण-कीण का होया अर आमां-सामां दसमन हो ज्यागा। फेर कांई करैगी?  म्हनै धीरां सेक क्ही – कांई करूं काकी जी म्हारो तो माथो भर्ण-भर्ण करै छै। म्हीं तो कांई बी न्ह सूझै। भगवान की जे मुरजी होगी वा हो ज्यागी।  वा बोली – इमै भगवान कांई करैगो? तू करैगी जे होवैगो।  क्ही नै म्हनै कांई बी न्ह सूझै। म्हूं बताऊं। बताओ। म्हारी मानै तो दूसरो घर बसालै। तू क्ह तो म्हूं बात चलाऊं क्हान-कहां।  कांई क्हर्या छो काकी जी? हाल तो वांकी रत्थी की झाल ई सेळी न्ह पड़ी।  म्हारा काळज्या मं भर्ळ-भर्ळ बळ री छै।म्हारा काळज्या मं भर्ळ-भर्ळ बळ री छै। देख लै बणा! म्हनै तो थारी सीक ई क्ही छै। थारी सासू बी अेक दन क्हती सुणी छी। कै अब मोत्यां को बी कांई न्ह कांई गति गेलो करणी पड़ैगो। म्हांकै जीवतां सतां हो जावै तो चोखो रै।  म्हूं सुण र छानी होगी। ऊंनै फेर कुरेदी। अस्यां छानी-मूनी बैठी र्या सूं कांई होवैगो? साल भर्या सूं बैठी छै। कुण ख्वावैगो अर कद तांई ख्वावैगो? म्हारी नजर मं अेक लडक़ो छै। खातो कमातो। तू क्ह तो बात सरू करूं! म्हारा मूंडा मं सूं अणजाण मं ई खडगी। कुण? भंवर्यो! भंवर्यो र्यो नै! आछ्यो खातो कमातो छोरो छै। रूप दरस मं बी बरो कोई न्ह। आज तो सारा भगवानपरा मं इज्जत छै ऊंकी। इज्जत कांई दबै छै सारो गांव-कसबो। सामै बोलबा की हीमत कोई न्ह करै। राणी की नांई रखाणैगो।  म्हारै रोस आग्यो। ऊं गुण्डा की क्हर्या छो कीं भंवर्या की! जीनै केई घरां मं डांक-डांकर काणा कुण-कुण की आबरू लूटी छै।  बावळी छै तू तो। सूनो ढांडो तो उजाड़ ई करैगो। खूंटै बंध्या पाछै आपणा आप गेला पै आज्या छै।  म्हूं स्याफ-स्याफ नटगी। ऊंकी घरहाळी बागबा सूं तो सारै जमारै रांड-बैर रै बो मंजूर छै।  देख लै। म्हंनै तो थारी सीक ई क्ही छै। म्हूं कांई बी न्ह बोली तो वा उठती बोली – चालूं री भाई वै माळ मं सूं आग्या होगा तो कोई की चूंतरी पै बाट न्हाळता सोच र्या होगा। कै काणा कठी बळगी घर कै ताळो लगार।  वा भंवर्या की फड़ू छी। तुरत जा चपोई होगी। थोड़ी देर पाछै ई भंवर्यो म्हारा छोटा जेठ सूं आण लड़्यो। ऊंका तेवर देख र सारो परवार घबरा ग्यो। गांव को नामी गुण्डो छै। काणां कांई करैगो? आपण नै तो कांई कसूर न्ह कर्यो। रोजीना आवै छो। हांस-हांसर मीठी-मीठी बातां करै छो। आज काणां कांई होयो! अब म्हूं म्हारी जठ्याण्यां की लारां आमल्यां का बाग मं जमीं पै खर्या सूखा पान पानड़ा अर ठींटका सोरबा जाबा लागगी। पच्चीस मनख्यां सूं भरी ज्याग मं तो रात मं डांकबा की ऊं की हीमत न्ह होई। पण जद बी म्हूं आमल्यां का पानड़ा सोरबा बाग मं कोई की लारां जाती तो ऊ आस-पास मंडराबू करतो। वां जठ्याण्यां मं सूं कोई ऊंकी आडी झांकर दूसरी सूं कान मं क्हती। ऊ बळ्यायो भंवर्यो। काणां कांई करबा आयो?   दूसरी ऊंई सुर मं ज्वाब देती। रोतो फरै छै काम धन्धो तो कांई छै न्ह।  लुगायां कै ओळ्यूं-दोळ्यूं फरबू करै छै। कोई बार म्हूं वांकी काना बाती का आंठ सूं तरछी झांकती तो नरी बगत वै आंख्यां सूं असारा करती पकड़ मं आ जाती। वै म्हारी आडी झांकर मळक बखेरती म्हूं सूं बना सींग पूछ की बात कर र आपणा कसूर नै दाबबा की करती। म्हूं सब समझबा लागगी छी। अेक दन म्हारी लारां जाबा हाळी दोनी जठ्याण्यां कांई जाणू सांच-मांच मं तसायां मर री छी कै कांईजणा म्हारो पतियारो लेबा लेखै तस को बायनो कर र आर भर्या दूरै कींवरी पै बाल्टी नेज सूं पाणी खींचबा जा पूगी। छेटी मलतांई भंवर्यो म्हीं तो दो हाथ दूरै ई ऊभो दीख्यो। म्हूं ऊंची झांकी तो बोल्यो – आमल्यां का सूखा पानड़ा सोर-सोर र हथेळ्यां मं क्यूं छाला पड़ा री छै भाभी? अब धर्यो बी कांई छै ऊ घर मं? म्हारा घर नै बसा। ज्याग बारै पग बी न्ह धरबा द्यूंगो। राणी की नांई राज करजे भगवानपरा पै।  म्हनै करड़ी नजर सूं झांकर क्ही – अब तांई ज्यां की आबरू बगाड़ी वै कस्या-कस्या महल मं हंदळोटा हींद री छै? म्हीं राणी बणार रखाणैगो उठाइगिरो। कांई कमाई करै छै?  म्हारी बात को रोस न्ह अणार ही-ही दांत काढ़तो बोल्यो –  राजो कमाबा ग्यो छै कीं कदीं? दनियां कमावै छै अर राजो बैठ्यो-बैठ्यो खावै छै। खावै कांई भोगै छै। सारो भगवानपरो ई न्ह आस-पास का गांवड़ा तगात कमावै छै भंवरलाल कै लेखै। आज पाछै म्हारै नजीक बी दीख्यो तो सारी सेखी काढ द्यूंगी राजा की। थारो काळ ई समझ लीजे म्हारा उटंग कर्या तो। जाणै पैदा ई न्ह होयो छो।  ऊंनै फेर म्हारी बात को रोस अणायां बना क्ही – क्यूं दसमन बण री छै ईं फूल जसी काया की? बूढ़ारा मं भूखां मरैगी। समझ म्हारी बात नै।  थनै तो सूझ्याई नै सारी आगली-पाछली! थारी क्यूं न्ह सूझरी? थारा करम थीं क्हां ले जार पटकैगा? हाथ पगां की जूम के दन रैऽऽगी! दारू के दन बचबा देगो? आया छै राजा जी। काल्ह जूता पड़ैगा नै जद राजा जी नै कोई छूड़ाबा बी न्ह आवैगो।  पाणी पीर बावड़ती दोनी जठ्याण्यां ई देखर भंवर्यो चाल खड्यो। पण जातो-जातो जोर सूं क्ह ग्यो – सोच लीजे। म्हनै बी बना ईं बात पै बच्यार कर्या कै आगै म्हारी बात को घरकां पै कांई असर पड़ैगो? रोस मं ऊंई सुर मं ज्वाब दे द्यो – सोच ली। जा बळ अबार तो। क्हर पाछै झांकी तो दोनी जठ्याण्यां दो हाथ दूरै ऊभी दीखी। म्हूं नीची झांकर काम तो लागगी पण म्हारा मन मं अेक बात आतांई डील खळ्र्ळार पसीना मं न्हा ग्यो। कै म्हारी बात को ये कांणा कांई अरथ काढग़ी? हे भगवान थारो ई आसरो छै। तू मनख ईं कस्या-कस्या  खेल तमासा बतावै छै? तू ई जाणै। खेल तमासा बतावै छै? तू ई जाणै।  वै दोनी जण्यां बी काम लागगी पण वांका मन मं म्हारै लेखै कांई भाव छै! अर कै वै आमी-सामी असारा सूं कस्यां बातां कर री होगी! म्हीं कांई बी तोल कोई न्ह। म्हां तीनू जण्यां का बीचा मं स्या-सट्ट छी। जस्यां आंधी आबा सूं पहली पेड़ को पान बी न्ह हालै। म्हारो मन आबा हाळी कोई मुसीबत को आंठ लेतो बार-बार कांपणी छुड़ा देतो। म्हूं नीची सूं ऊंची बी न्ह झांक री छी।  स्याम की घर नै तीनू जण्यां पूगी तो घर का बी सारा मनख चड़ीचप्प छा। म्हूं समझगी यां बी जरूर कोई बात होई छै दन मं। वा तो खायां-पोयां पाछै पूरो परवार चोड़ा आंगणां मं भेळो होयो जद वांकी बातां सूं समझी, कै भंवर्यो म्हं सूं मलर सूधो घर नै आयो छो। अर म्हारा दूदकारां को रोस यां डोकरा-डोकरी पै उतार र ग्यो छो।  डोकरो क्ह र्यो छो – हे भगवान म्हं सूं अस्यो कांई कसूर होग्यो जे बूढ़ारा मं आर यो दन देखणी पड़्यो। या क्हर डोकरो गोडां मं माथो देर रोबा लाग ग्यो। लारां की लारां डोकरी बी दोनी हाथां सूं छाती मं धमोड़ा देर डीडाबा लागगी।  दोनी बड़ा बेटां नै बाप अर दोनी बडी जठ्याण्यां नै डोकरी बसवास र छाना कराया। बेटां नै बाप सूं बूझी- असी कांई क्हदी भंवर्या नै जे अतनो कळेस अणार्या छो। क्हो तो सणी। म्हां सूं तो क्हो। बसवासबा सूं डोकरो छानो होग्यो। बोल्यो – म्हां दोनी जणा ईं बैठ्या छा पोळ का बारणां मं। भंवर्यो लाल सुरख आंख्यां कर्यां धगधगातो आयो अर मोटा ल_ नै म्हारै आगै जमीं पै फटकार र बोल्यो – डोकरा! थारा बेटां सूं क्ह दी जे, कै वै परकास की बू नै म्हारी घरहाळी बणबा सूं न्ह रोकै। म्हनै सुणी छै कै वा तो म्हारो घर बसाबो छावै छै। पण थारा बेटा आडै फरता बताया। म्हूं म्हारा घर मं छी। सुण र म्हीं सी लाग्या यो।  डोकरो क्हर्यो छो – म्हूं अेक साथ घबरा र पाछो सरक र बोल्यो – आज थारै कांई होर्यो छै भंवर्या? हमेसा तो तू सगा बाप सूं जादा आदर दे छो। कांई जादा पी ली बाळ ली! जे अस्यां अकळ-बकळ बोलर्यो छै। जोरी सूं हांसबा की कोसिस बी करी।  ऊ तो भाया ओर जादा बीफर ग्यो। दांत पीसर बोल्यो – कस्यो बाप! तू कांई सूं बाप छै म्हारो? म्हारो खुद को सगो बाप ई म्हारै क्हां बी न्ह लागै। तू कुण छै? कान खोलर सुणलै थारो कोई बी, कस्यो बी बेटा आडै फर्यो तो ऊंकी ल्हास गरैगी। म्हूं क्हाल तडक़ै परकास की रांड नै हाथ पकड़ र ईं घर सूं ले जाऊंगो। अर उस्यां बी वा थांकै कांई काम की री! समझ की बात तो यो छै कै वा कोई की लारां उधळै अर थारी साठ हाथ तळै खोवै जींसूं तो चोखी छै नै म्हूं ऊंनै इज्जत सूं धोळा दुपैरां ले जाऊं। थांकी इज्जत बी बची रैगी। अर म्हारो घर बी बसग्यो। सारा ई मलर म्हारी बात पै बच्यार कर लीज्यो। अबार तो चेताबा आयो छूं। क्हाल लेबा आऊंगो।  सुण र सारा मनख्यां की जबान कै ताळा लाग ग्या। सब ई सोच र्या होगा! सांच-मांच मं ऊंनै क्ही छै तो कर र बी बता सकै छै। आपण कांई पूरा भगवानपरा मं ऊंकै आडै न्ह तो कोई फर्यो अर न्ह आज फर सकै। ऊंनै जद-जद जे करबो छाई ऊंनै कर बताई। आपण नै आडै फर र कांई छोरा-छोरी बबावरा करणा छै? ऊल की माई छूल मं पड़ो।  बड़ा ई बड़ा जेठ नै मून खोली – देखो भाईजी भंवर्या की नरी बातां मं सार दीखै छै। या ज्वान रांड-बैर बायर आपणै उस्यां बी कांई काम की छै? आपण के दन रूखाळी करैगां? अर रूखाळी बी क्यूं करां?  इनै ईं की मन मुरजी की जिन्दगी जीबा द्यां। जे याई भंवर्या कै नातै बैठबा मं राजी होवै तो आपणै कांई को दुख? उस्यां बी ई नै घर तो बसाणो ई पडैग़ो। फेर या भंवर्या को घर बसावै कै कोई ओर को? ऊ क्हाल आज्या अर ले जाबा की क्ह तो ले जाबा द्यो। म्हूं बड़ा जेठ की बात सुण र अेडी तांई पसीनां मं नतरगी। म्हीं असी लागी कै जाणै म्हारा दोनी पग खारफूटी जमीं का गारा मं पड़ग्या होवै अर म्हूं जस्यां-जस्यां पाछी कढ़बा की कोसिस करूं छूं तो ओर ऊंडी धसती जाऊं छूं। म्हीं हाथ पकड़ र खींचबा हाळो न्ह दीखर्यो। घर – बारणो – भींत्या – क्वांड़ खड़क्यां सब म्हीं भूर्यां खाता दीख्या।  म्हूं म्हारी बड़ी जठ्याणी नै आर जगाई तो बछक र बैठी होती बोली – अडज़े मत भंवर्या! म्हारा डील कै हाथ मत लगाजे।  जठ्यांणी नै म्हारा माथा पै हाथ फेर्यो। बोली – डरपै मत म्हूं छूं पांची, थारी बड़ी जठ्यांणी। वै मर्यां पाछै परथम बार यो परेम को असपरस छो। म्हनै असी लागी जस्यां नन्दी का उफाण की मझधारा मं डाबक-डूबा होती बहती को कोई नै म्हारो हाथ पलार कराड़ै खींच ली होऊं। म्हूं जठ्यांणी का गळा कै लूमर डीडागी। देखो नै भाभी जी थांकै सामै म्हूं कदीं नींची सूं ऊंची बी न्ह झांकी। थां देख र्या छो नै! जद तांई म्हूं रोती री वा म्हारा मोरा पै हाथ फेरती री। जद म्हूं छानी होई तो वा बोली – चाल। बारै चाल। सब थारी बाट न्हाळर्या छै। थंसूं सल्ला करणी छै। माथा पै आया ईं संकट सूं कस्यां पार होणो छै। साच्यांई चोड़ी बगड़ मं पूरो परवार अेकठो बैठ्यो छो छानमून। सब म्हारी बाट न्हाळर्या छा। म्हूं बैठ तांई बड़ा जेठजी बोल्या – मोत्यां आगी नै?  वांका मूंडा सूं सदां कै तो छोटी लाडी अर कै छोटी कोराणी जस्या अपणास भर्या बचना का अभ्यासी कान मोत्यां सबद सुणर सावचेत होग्या। अण होणी को बहम सो आयो। महड़लो मन बोल्यो – मोत्यां यो घर छूट्यो ई मान। म्हनै मन मं राम जी संवर्या तू ई जाणै म्हारा राम! अब तो थारी ई सरण मं छूं।  हां भाई मोत्यां! म्हानै घणो सोच-बच्यार कर र अेक फेसलो कर्यो छै। ऊ क्यूं कर्यो पहली या बात सुण- आज दन की वारदात को थनै तोल ई छै। क्हाल तडक़ा तांई जे ढीला र्या तो कांई बी अनरथ हो सकै छै। जींसूं जे करणो छै ऊ आज की रात ई करणो छै। तू भंवर्या ई जाणै छै। ऊंकै लेखै जे बी क्ही जावै कम छै। अब आपण भंवर्या की बात माना छां तो ईं भर्या-पूरा परवार की नाक तो कटी ई कटी, ज्यात मं म्हांकां छोरा-छोरी कुुंवारा ई डोलगा। सारो गांव ऊपर सूं म्हांका मूंडा पै थूंकैगो। कोई कै तांई बी मूंडो बताबा कै भाग न्ह रैगां। जे भंवर्या की बात न्ह माना छां तो काणा कुण की! अर कै काणा के ल्हासां गरैगी! दोनी आडी आपणो ई मरण छै। म्हूं जाणूं छूं कै तू भंवर्या को घर बसाबा मं कस्यां बी त्यार न्ह हो सकै। अर म्हां बाळ-बच्चा ई बबावरा न्ह कर सकां। तो समाधान कै तो तू बता? अर न्ह तो म्हानै सोच्यो जे कर। पूछ लै र गुणीस्यां की माई। देखां या कांई क्ह छै!हां भाई मोत्यां! म्हानै घणो सोच-बच्यार कर र अेक फेसलो कर्यो छै। ऊ क्यूं कर्यो पहली या बात सुण- आज दन की वारदात को थनै तोल ई छै। क्हाल तडक़ा तांई जे ढीला र्या तो कांई बी अनरथ हो सकै छै। जींसूं जे करणो छै ऊ आज की रात ई करणो छै। तू भंवर्या ई जाणै छै। ऊंकै लेखै जे बी क्ही जावै कम छै। अब आपण भंवर्या की बात माना छां तो ईं भर्या-पूरा परवार की नाक तो कटी ई कटी, ज्यात मं म्हांकां छोरा-छोरी कुुंवारा ई डोलगा। सारो गांव ऊपर सूं म्हांका मूंडा पै थूंकैगो। कोई कै तांई बी मूंडो बताबा कै भाग न्ह रैगां। जे भंवर्या की बात न्ह माना छां तो काणा कुण की! अर कै काणा के ल्हासां गरैगी! दोनी आडी आपणो ई मरण छै। म्हूं जाणूं छूं कै तू भंवर्या को घर बसाबा मं कस्यां बी त्यार न्ह हो सकै। अर म्हां बाळ-बच्चा ई बबावरा न्ह कर सकां। तो समाधान कै तो तू बता? अर न्ह तो म्हानै सोच्यो जे कर। पूछ लै र गुणीस्यां की माई। देखां या कांई क्ह छै! म्हारी बड़ी जठ्यांणी पांची नै म्हारी सुण र बता दी कै म्हूं ईं परवार अर म्हारी आबरू बचाबा खातर मोको आयो तो पराण बी दे सकूं छूं।  तो फेर म्हांको फेसलो बी सुण – तू अबार की घड़ी म्हां सबनै छोड़ र जठीं थारो भाग ले जावै कै रामजी ले जावै ऊंठी कढ़ जा। पराण देबा सूं तो यो सुझाव घणो करड़ो होतां सतां बी चोखो छै। कांई तोल थारा छोका दन ई बाट न्हाळ र्या होवै। म्हांको मोह त्याग दै। भगवान को भरोसो कर। रामजी आछी करैगा।  अब कै न्ह तो म्हूं रोई अर न्ह घबराई। रामजी को नांव लेर ऊभी होगी। पराण क्यूं द्या? जीवती रह्बा की कोसिस करां। अर म्हीं असी लागी कै जस्यां खुद रामजी बारै गर्याळा मं ऊभा म्हारी बाट न्हाळता हांको पाडऱ्या होवै – आवै नै मोत्यां ओर कतनीक बाट न्हळवावैगी। म्हनै सारा परवार कै अेक साथ ढोक द्यो अर पोळ का बारणां की आडी पग उठाद्या। परवार की सारी बायरां कोई धीरां अर कोई जोर सूं रो उठी। सबसूं पहली तो म्हनै गांव बारै कढ़बा की सोची। गांव का आखरी झूंपड़ां सूं आगै स्यासट्ट भर्यो घोर अंधेरो छो। पण ऊ म्हारै भीतरी अंधेरा जतनो डरावणो न्ह छो। जीवण जेवड़ी अर आबरू बचाबा को अस्यो ओसर ओर कद मलैगो! ऊभी बड़ा-बूढ़ा का आसीरवाद की लारां। म्हूं उमग री छी। म्हीं अस्यो लाग्यो कै कोई म्हारी लारां छै। बह्म सूं रूवाळी ठेक बी होई पण मन नै क्ही – बावळी रामजी छै रामजी। आज रामजी खुद थारी लारां छै। डर कीं को?  पण पीहर नाहर मं तो कोई बी कोई न्ह। क्हां जाऊं! अेक साथ मन मं उजाळो सोक होयो – थारी बाळपणा की खास भाईली दाखां री नै। आज दाखां नै ई परताळ। च्यार कोस पै दाखां को सासरो छै। तडक़ाव तांई तो पूग ई जावैगी। अर सांच्यांईं तडक़ाव होतां-होतां म्हूं दाखां का सासरा का गांव मं पूग गी। दाखां कै सासरा का सैनाण दीख्या जद जार म्हूं समझी कै आपण तो दाखां का सासरा कै बारणै ऊभा छां। संजोग अस्यो मल्यो कै म्हूं संभळूं जीं कै पहली दाखां पोळ का क्वांड खोल र पाणी को लोट्यो हाथ मं ल्यां सामै आगी। वा बछक र पाछी सरकती बोली – कुण छै तू? यां अंधेरा मं म्हारै बारणै कांई कर री छै? अण चूक्यां म्हारा मंूडा सूं कढगी- मोत्यां। म्हूं मोत्यां छूं।  वा फेर बैंडगी – कसी मोत्यां! थारी बाळपणा की खास भाईली। अर म्हूं हांसी। बीडरती दांखां की जीभ तुतलागी – मं मं मरी कै जीवती! जीवती री जीवती ऽऽऽ । तू कांई म्हनै चुड़ैल समझ री छै कीं? जस्यां दाखां को जीव मं जीव बावड़्यो, जोर को सांस खींचर साता मं आती दाखां बोली – बाळ री आगो। म्हूं तो मरी ई होती बणा। पण तू तो जीवती ई छै नै!  अरी गहली जीवती न्ह होती तो …..।  दूसरा घर को क्वांड खूट्यो दाखां की पड़ोसण बी हाथ मं पाणी को लोट्यो ल्यां छी। बोली – कुण छै री! कुण सूं बातां कर री छै?  मोत्यां छै। म्हारा पीहर मं म्हांका घर अड़वा ई छा। बाळपणा मं लारां-लारां ई खेलै छा।  चाल चोखी। म्हारै तो बणा ताण र …..। या क्हर पड़ोसण छटक ली।  म्हारै बी …..। तू बैठ मोत्यां अबार आई। क्हर दाखां पड़ोसण कै पाछै होगी।  म्हूं चूंतरी पै बैठगी। थोड़ी देर मं दाखां बावड़ी। हाथ मूंडो धोर ऊंनै क्ही – लै माईनै चाला, चायां-वायां बणावैगां। वै बी जाग्याया! दीखै दूध काढऱ्या छै। चूल्हा कै यां चाय पीती बगत दाखां नै बात छेड़ी – अतना तडक़ाव की कठीं सूं आई? अकेली आईं की! डर न्ह लाग्यो कीं? कांई होग्यो अस्यो? म्हनै क्हाल हाळो सारो माजरो सुणायो। दाखां को घरहाळो बी सुण र सुन्न होग्यो। थोड़ी देर पाछै कोई बात याद करतो सो बोल्यो – अरै ठहर-ठहर। म्हनै याद आ री छै। पेमपरा मं अेक ठकाणो खाली होयो छै अबार। छ: म्हीना बी न्ह होया। म्हाकै थोड़ी सीक रामा-स्यामी बी छै। मनख तो भलो ई लागै छै। अेक-दो बार ई मल्या छां। थांकै समझ मं बैठ्ज्या तो बात चलाऊं! दाखां बोली – आज ई जाओ। साटक बैठज्या तो। घर का काम मं देर क्यूं करां? रोटी खार होयाऊं छूं। अर आप देखो कजोड़ीलाल जी म्हूं यां थांकै आगै राजी खुसी छूं। अब म्हारै सब  सुख छै। साठ बीघा जमीं का कार-बार की धर्याणी। राम-लछमण जस्या दो बेटां की माई। अर सबसूं बड़ो सुख तो म्हारै वै छै। जे कदीं आंख तरेर र बी न्ह बोल्या। सारो गांव इज्जत करै छै। या सब रामजी की करपा छ।ै न्ह तो ओर कांई छै! म्हूं तो न्याल होगी।सुख छै। साठ बीघा जमीं का कार-बार की धर्याणी। राम-लछमण जस्या दो बेटां की माई। अर सबसूं बड़ो सुख तो म्हारै वै छै। जे कदीं आंख तरेर र बी न्ह बोल्या। सारो गांव इज्जत करै छै। या सब रामजी की करपा छ।ै न्ह तो ओर कांई छै! म्हूं तो न्याल होगी। मोत्यां की बात पूरी होता न्ह होता रामधन जी ज्याग मं आण उळ्या। हांसर बोल्या – हाल बातां ई हो री छै कीं? आराम कर लेबा देती थोड़ी देर।  मोत्यां पल्ला सूं आंख्यां का भूरा ढांकती मुळकती बोली – ओऽऽऽ ये तो जाबा की ई क्हर्या छा। क्ह छै लाम्बो गींतरो छै। मोटरां को कांई ठकाणो? पण म्हनै क्ही दन तो ढळकबा द्यो। अर पराणी बातां मं उळझ ग्या।  कजोड़ बीचा मं बोल्यो – हां जी आगलो गांव ग्यां, पाछलो गांव याद आवै छै। आछ्यो होवो कै बरो। याई तो जिन्दगी छै। सुख बी छै अर दुख बी छै। दुख न्ह होवै तो सुख समझ मं ई न्ह आवै। सब ऊं की माया छै। रामधन जी नै बात संभाळी। म्हां ऊभा होग्या छा – तो म्हां चाला छां! मजा मं री ज्यो आप सबीं फोड़ा पाड़ घाल्या। कजोड़ हाथ जोड़तो बोल्यो। अजी न्ह मारा आपका पधारबा सूं घणो आणन्द होयो। फेर पधारज्यो कदीं! मोको मलै तो!  देखो उस्यां अठीं कोई सगपण सांदरो कोई न्ह। जे आबो मसकल लागै छै। राम का ब्याव को नूतो मल्यो तो जरूर आवैगो। म्हनै बीचा मं जोड़ दी। दोनी जणा राजी होता बोल्या – ऊ तो खनावैगा ई सणी पण आप ब्याव मं जरूर पधारज्यो। आछ्यां राम-राम। चालां न्ह तो मोड़ा पूगैंगा।

रोशन बाफना  (मोबाइल नम्बर 8387987499)

गद्य-पद्य में बरोबर लिखता रेवै, मुम्बई फिल्म ऐशोसिएशन रा सदस्य है, कई पत्र-पत्रिकावां में रचना लगोलग छपै है,

कविता 1 : चावना

नीं ही कोई पिछांण
भीड़ में बियां भी उणियारो
कुण याद राखै
पण म्हनैं याद हो थारौ उणियारो
वे जयकारा
वो जोस
अर फेर थारौ गुम जावणौ
पण
म्हनैं याद है जित्ती बार भी म्हैं
देखियो हो थनै उचक-उचक’र
हाथ हिलाया हा म्हारै कांनी
हूं गळत हुय सकूं
पण अेक बात तो बताव
किणी न किणी कांनी तो हिलाया हा नीं हाथ
जे म्हैं मानूं क वे म्हारै कांनी हा
तो थां नैं कोई हरज?
जीवण वास्ते इतरी थ्यावस घणी है
क कदै थे देख्यो हो म्हनैं
अणचेतै में ई सही
अेक हाथ हिलायो तो हो म्हारै कांनी
अेक बार बोल दो
फेर नीं आऊं कदै
वो म्हैं ही हो नीं…

कविता 2 : जुद्ध

जुद्ध जीवण है
पण जुद्ध जारी नीं रैवै
हारै कोई
जीते कोई
अर खतम हुय जावै
अेक जुद्ध
पण फगत हार-जीत नीं है जुद्ध
जुद्ध हार-जीत रे बाद रा बैण है
मैणा है
टोंट है
अर साच कैवूं तो
जुद्ध भलांई खतम हुय जावौ
पण नीं हुवै कदै जुद्ध खतम
मन में
मन में बैठ जावै
जुद्ध रा अैनाण
किसा धोयां धुपै?

हरीश बी.शर्मा,  मो. 9672912603

नाटक कविता, कहाणी, गीत अर इण रे सागे पत्रकारिता करे। राजस्थानी में नाटक भी लिखै है, इण री रचनावां में थम पंछीड़ा अर फिर मैं फिर से फिरकर आता, गोपीचन्द की नाव अर देवता, अैसो चतुर सुजान, सतोळियो अर साक्षात्कार संकलन हुनर हौंसले की कहानियां जिसी घणी किताबां है।

कहाणी  :  पिछतावौ

कदै-कदै सोचूं हूं क रेल री जातरा अर जीवण दोनूं अेक जैड़ा ई तो हुवै। सगळां नै जीवण नै अेक जिसी जिंदगांणी मिळै पण जीवण रा सलीका सै रा आप-आपरा…। कांई साच में जीवण रा तरीका आप-आप रा हुवै? जियां चावां उण भांत जीवण नै जी सकां? परोट सकां जिंदगांणी?
अेक जिंदगी लेयनै जद देह जातरा पर निकळै तद आ तो तय हुवै के जीवणौ है पण कियां जीवणौ है, आ तय हुवै ई नीं। फेर आप-आपरा तरीका री बात तो साव कूड़! आ ई वजै है क जद कोई खुद रै तरीकै सूं जीवण री बात करै तद हूं मुळक परो रैय जाऊं। अेन उणी भांत जियां रेल री जातरा।
रेल में मुसाफरी करणियां घणखरा इयां जातरा करै जियां सारी रेल वांरै बाप री है, अर चावै जद चढ सकै, चावै जठै उतर सकै। पण केई तो रेल में चढै ई अेक जूंण पूरी करबा नै है। जियां-तियां ठौड़-ठिकाणै पूगणौ। आपरै स्टेशन पूगणौ। जीवण री हद पावण री लालसा ज्यूं। इस्या लोगां खातर रेल में चढणौ अर अेक जीवण जी लेवणौ सरीसौ हुवै।
सोच रै इण घांण-मथांण में अचाणचक भिजोग पड्य़ौ। बीकानेर रेलवे स्टेशन रै माइक माथै ‘नमस्कार !’ सागै अेक सुरीला कंठां री माळकण बतायौ केकाळका थोड़ी ताळ में दोय नंबर प्लेटफार्म माथै ढूकण वाळी है। बोलण वाळी री आवाज इसी ही क डील-डोळ री चितार करीज सकै ही। अर इसी वेळा म्हैं इयां कर ई लेवतौ। पण लोगां नै इत्तौ टैम कठै। गाडी म्हनंै ई चढणौ हो, सावचेत म्हैं ई हो। पण अेक बार आवाज सूं चितरांम रा अैनांण-सैनांण मांडिया अर मुळकतौ कुरसी सूं ऊभौ हुयौ। बियां ई सावचेत हुवण खातर म्हारै कन्नै हो ई कांई? म्हैं अर म्हारौ हूणियौ। पण लोगां री खथावळ देखणजोग ही। रेल आवण सूं पैली री रेळमपेळ। अर देखतां ही देखतां रेल आय ढूकी।
इण भांत रा दरसाव स्टेशनां माथै रोजीना री बातां है। स्टेशनां माथै रोजीना इस्या सैलाब आवै अर गाडियां में समा जावै। आज ई वा ई बात ही। कीं लोग रिजर्वेशनसुदा हा, जकां रै उणियारै थोड़ौ गुमेज ई हो। उचटती निजरां सूं लोकल- कोच रै मुसाफिरां नै देखता अर आगै बध जावता। इस्यौ ई अेक मुसाफिर म्हैं ई हो। लोकल कोच! हां, जनरल कोच नै म्है लोकल ई कैवां। जियां रोडवेज में लोकल अर एक्सप्रेस। उणी भांत रेलगाडी। तो म्हैं ई अेक लोकल-कोच में चढग्यौ। अेक जणौ सीट माथै कांबळ न्हांख राखी ही। म्हैं जावता ई थोड़ोक डपटतौ बूझ्यौ, ‘कोई आसी कांई?’ अर जवाब मिलणै सूं पैली हाथ सूं कांबळ परनै सिरकावतै बारी कन्नै सीट माथै कब्जौ कर लीन्हौ। नीं कोई चूं करी नीं चपड़ करी अर नीं बरज्यौ बैठण सूं। पण बारै अबार ई भाजा-दौडी़ जारी ही। ठाह नीं कांई कारण है क जे किणी मांय बैठ्यै मुसाफिर सूं बारी में मूंडौ लगायनै कोई मुसाफिर आ बूझ लेवै क जिग्यां है कांई? तो धरछूट अेक ई पड़ूत्तर मिलै, कोनीं… आगै देखौ…!’ इयां कैवै क लागै रेल उणां रै बाप री है अर बारै वाळा इयां मूंडौ लटकाय लैवै क दुनिया री जातरा में वै बापड़ा है।
सोच री बारखड़ी रै बिचाळै ई प्लेटफार्म माथै दूर सूं अेक कैदी आवतौ दीस्यौ। ठाह नीं, किसी इंदरी चेतन हुयी क म्हनै लाग्यौ क सिपाई इण कैदी नै इणी कोच में लायसी। खूंखार-सो कैदी। दोनूं हाथां में हथकड़ी। दोय सिपाई डावै-जीवणै। देखतां ई लागतौ क संगीन जुल्म में हाथ रंगीजियोड़ा है। अर अेक वळा देखण सूं इयां लागै क सिपाई नीं हुवै, इण रा खिदमतगार हुवै।
सोची जकी ई हुई। तीनूं म्हारै कोच में ई आय चढ्या अर म्हारै कंपार्टमेंट रै आगै आयनै ई खड़ा हुयग्या। उणां नै कीं नीं कैवणौ पड़्यो। सीटां पर पसरियोड़ी कांबळ अर चादरा ई नीं, मिनख ई भेळा हुयग्या। तीनूं बैठग्या।
उणां रै बैठतां ई म्हारै तांई अेक हवा पूगी। नीं उण हवा में पसेव हो अर नीं बीड़ी रौ धुंवौ पण कीं हो, जकौ इयां लागै हो जांणै म्हारौ कंठ मोसै हो। म्हैं झट देणी-सी निजरां फेर लीन्ही। पाछौ प्लेटफार्म माथै देखण लाग्यौ। गाडी पैली सीटी मार दीन्ही ही।
चाय-भुजिया री ट्रालियां चरमर करती चालण लागी। सीख दिरावण आया लोग टाटा-बाय-बाय करण लाग्या। इण बीच कांई देखूं क अेक लुगाई अर मोट्यार भाजता थकां पुळियै सूं उतर्या। पुळियै सूं नीचै उतरतां ई म्हारौ कोच हो। चढग्या। पैली लुगाई नै चढाई अर पछै मोट्यार। अर दूजी सीटी रै सागै रेल भी हकगी। कीं सैकंडां रौ फेर हो। जे थोड़ोक मोड़ौ हुय जावतौ तो गाडी चूक जावती अर जेे गाडी पकड़ण में कईं-किसी हुय जावै तो…। सोचतां-सोचतां झुरझुरी-सी आयगी। अर निजर फेरी तो देख्यौ कै लुगाई अर मोट्यार अेन म्हारै कंपार्टमेंट रै आगै ऊभा हा। मजाल

है क कोई जिग्यां देय देवै। पण वै ई सीट नीं मांगी अर लुगाई तो फर्स माथै ई लढ हुयगी। मिनख थोड़ौ सायरो दियौ अर खुद ई कन्नै बैठग्यौ। गाडी री रफ्तार तेज हुवण लागगी ही।
छाती तांणी घूंघटौ काढ्यौड़ी लुगाई रौ उणियारौ कुण ई नीं देख्यौ पण मोट्यार रै उणियारै सै-कीं। लागै हो उण नै खथावळ घणी ही। पण उणां सूं किणी नै कीं मतलब नीं हो। गाडी लालगढ सूं आगै निकळगी ही। अेक-दूजै नै देखता, आगै-लारै सिरकता- मुळकता मुसाफिर सैंधा हुवण लाग्या हा। बातां-चीतां ई हुवण लागी। देस-समाज री बातां हुवण लागी। राजनीति रा पैंतरा अर घटतौ मिनखाचारौ सगळां री चिंत्या रौ विसै हो पण आंगणै माथै बैठी वा अेकली लुगाई किणी री निजरां में नीं आयी। जे इयां हुवतौ तो मिनखाचारै सूं आपरी सीट देवणी पड़ती।
पण अेक तो हो ई जकै में मिनखाचारौ हो अर वो हो उण रौ धणी। पण वौ करतौ कांई, उण कन्नै ई बैठण नै जिग्यां नीं ही। मोट्यार झोळै सूं बोतल काढी अर ढकणौ खोलनै आगै कर दीन्ही जोड़ायत रै। जोड़ायत हाथ सूं पाछी कर दीन्ही बोतल तो धणी बोल्यौ, ‘पांणी तो पीय लै…!’ जोड़ायत सूं नटीज्यौ नीं अर वीं बोतल लीन्ही। ओढणौ थोड़ोक हटायनै पांणी पीवण लागी पण अेक गुटकै सूं घणौ पांणी पीय नीं सकी। बोतल पाछी आगै कर दीन्ही। म्हारै जिस्या कीं मरद इण ताक में हा क उणरौ उणियारौ दिख जावै पण नीं दिख्यौ अर पछै वा ई जातरा। वै ई मुसाफिर। सिपाई अर कैदी आपसरी में हंसा-फीफी करता बगत काढै हा। बीकानेर री कचेड़ी में मिळण वाळी खस्ता कचौड़ी अर पंधारी री सरावणा रो एपिसोड चालै हो। सिपाई बोल्यौ, ‘हूं तो जितरी वळा बीकानेर कचेड़ी में आऊं, कचौड़ी अर पंधारी सूं ई पेट भरूं। बीकानेर आयनै रोटियां सूं बांथेड़ौ कुण करै?’ कैदी बोल्यौ, ‘ठाह है दरोगाजी, इणी खातर पाकेट बणवा दिया है, भाभीजी ई तो चाखै स्वाद बीकाणै रो।’
कैदी री बात सुणतां ई दोनूं सिपाई हंसण लाग्या। मजाल ही कै कोई कैदी री कचौड़ी अर सिपाई री हंसी माथै कीं कैय ई देवै। इणी बीच अेक ठेठ बीकानेरी बातां रै बीचै ढूक्यौ अर गिणावण लाग्यौ मीठै अर नमकीन री दुकानां। छोटू-मोटू रो कलेवो, जूनिया महाराज री कचौड़ी, मनका महाराज री रबड़ी, चुन्नीलाल रौ सरबत, जेसराज री गूंदपाक, व्यासजी रा पिचका, मूळसा-फूलसा रौ पांन… गिणता-गिणता थाकेलौ आय जावै। पण दुकानां रा नांव पूरा नीं हुया। म्हारै मन में सवाल उमटियौ क ‘भुजिया-रसगुल्लां रै इण स्हैर में कांई साचाणी लोग खावण सूं ई नीं धापै? बीकानेरी बातां रौ रस पूरे कंपार्टमेंट में घोळै हो। अब ब्याव-सावां री बारी ही। सरू हुयग्यौ जीमण अर जोन री बात बतावण नै। बोल्यौ, ‘सीधी बात है, जकै रो जी मण भर रो हुवै वौ करावै जीमण अर जिकै में हुवै ज्यांन वौ ई बुला सकै जोन।’ अेक जणै बूझ्यौ, ‘इयां कियां?’ तौ वीं बतायौ कै ‘वौ इयां के बीकानेर में ब्याव-सावै रा मुहरत हुवै। अेक दिन में तीन-तीन सौ चंवरियां मंडै। इयां सगळी जिग्यां तो ढुकाव हुय नीं सकै। तो केई जिग्यां जीमण हुय जावै अर केई जिग्यां ब्याव री तिथ टाळनै और किणी दिन जोन नेतरै। इणमें नूंता भी चूला-ऊपाड़ अर घर-सिगरी लागै। मतळब संगी-साथ्यां समेत। जंवाई तौ सौ-पचास भायलां सागै आवै तो ई चलै।
बीकानेरी री बातां सुण परा सगळा हंसण लाग्या। बीकानेरी आछी भांत रंग में हो। वीं आप री बात में कैदी नै ई रळाय लियौ अर बात-बात में बूझ बैठ्यौ ‘अेक बात तो बतावौ कैदीजी, थां माथै इलजांम कांई है?’
मन ई मन म्हैं उण नै दाद दीन्ही अर कैदी नै देखण लाग्यौ। कैदी माथै कीं फरक नीं हौ। वीं मुळकतै थके सिपायां कांनी देख्यौ अर बूझ्यौ ककांई करणौ है? सिपाई आंख्यां सूं हामळ दीन्ही क बताय देय। कैदी में चांणचकै जांणै हीरोइज्म आयग्यौ। वीं सगळां नै देखतां थकां खुद रा हथकड़ी-बंद हाथ ऊंचा कर्या अर बोल्यौ, ‘अै हाथ…च्यार लोगां रै खंून सूं रंगीजेड़ा है। कैदी री बात में बात जोड़तौ सिपाई बोल्यौ, ‘अर च्यारूं सागी भाई। अेक बडौ, तीन छोटा…!’ दूजौ सिपाई लोगां रै उणियारां रा फीका पड़ा रंग देखतौ बोल्यौ, ‘‘कीं भळै पूछणौ है…? अठै तारीख-पेसी माथै आया हा। बीकानेर रौ लांठौ वकील कर्यौ है क सजा में कीं कमी हुय जावै।’’
कंपार्टमेंट में रेल री आवाज हावी हुवण लागी ही। कोई केवै तो कांई? च्यार कतल करणियौ इत्ता लोगां साम्हीं मांनै क वीं ई कतल करिया है तो फेर बाद-बाकी कीं रैवै? सवाल अेक ई हो क जद खुद कैदी कबूल कर लीन्ही तो फेर सजा में देर कांई? पण औ सवाल कुण बूझै? जे सवाल थोड़ौ आंकौ-बांकौ हुवै तो कीं देर लागै अेक कतल भळै हुवण में। सगळां नै स्यात औ ई डर हो। सगळां नै हुवै नीं हुवै, म्हनै तो हो। च्यार खून री सजा भी पांच खून जित्ती ई हुवैली। ठाह नीं, और ई कांई सोचै हा मुसाफिर। सरणांटौ हो कंपार्टमेंट में, साच इतरौ ई हो।
इण साच में उळझियोड़ा मुसाफिर नींद रा झोंटा लेवण ढूक्या। रेल री रफ्तार धीरै पड़ी अर रेल में ब्रेक लागण सूं पैली ‘पकौड़ी-चाय गरमागरम!!!’ री टेर रेल में पसरण लागी। अधनींद में मुसाफिरां रै मूंडै सूं अेकै सागै निकळ्यो, ‘‘महाजन आयग्यौ कै…?’’ प्लेटफार्म पर ट्रॉली-गाडियां री चरमर रै बिचाळै इण भांत री टेर रो मतलब महाजन आवणौ हो। महाजन, मांनै बीकानेर अर सूरतगढ रै बिचाळै मीठी-मीठी भूख मिटावण रो अेक ठावौ ठिकाणौ। जे अठै चूकग्या तौ फेर सूरतगढ तांई कीं नीं मिळै।

महाजन आवतां ई कैदी सिपाई नै सैन करी तो सिपाई झट देणी कैदी कन्नै आयनै ऊपरली जेब में हाथ घाल्यौ अर पचास रौ नोट काढनै बाकी रिपिया पाछा धर दिया। पचास रिपिया लेयनै सिपाई हेठै गयौ। दूजा ई गया अर ठूंगां में पकौड़ी अर कचकड़ै में चाय ले आया। फर्स पर बैठी लुगाई रै आगै मिनख पकौड़ी रो ठूंगौ करियौ, ‘‘ले खाय ले अब…’’ जोड़ायत कीं नीं बोली अर ठूंगौ पाछौ कर दियौ।
सिपाई जकौ इत्ती देर सूं सौ-कीं देखै हो, बूझ ई लियौ, ‘‘कोई निराजगी है कांई?’’
मोट्यार अेकर तो सिपाई रै सवाल माथै अचकचायौ पण फेर उण नै लाग्यौ के जवाब नीं दियां लेणी री देणी नीं पड़ जावै। बोल्यौ, ‘‘ना हुकम, कोई निराजगी कोनीं…’’
‘‘तो…?’’ सिपाई रै सवाल में रौब हो। ‘‘हो कुण सै गांव सूं?’’ दूजौ सिपाई बूझ्यौ।
‘‘हुकम अक्कासर…!’’ मिनख रो उथळौ हो।
‘‘जोड़ायत है थारी…?’’ सिपाई रो फेर सवाल हो।
‘‘हां हुकम!’’ मिनख रै उथळौ देवण रै पछै कंपार्टमेंट में कीं ताळ सरणाटौ रैयौ। फेर उणीज बोलणौ सरू कर्यौ। आपरी जोड़ायत कांनी सैन करतौ बोल्यौ, ‘‘काल रात रा गाय नै बांटौ दियां पछै ठाह नीं आ गाय नै खूंटै सूं खोलणौ कियां भूलगी अर बीजा कामां में लागगी। थाकेलौ हो के गाय रा कुभाग, कुण जांणै पण इणनै नींद आयगी अर गाय खूंटै बंधी रैयगी। दिनूगै उठपरी गाय कन्नै गयी तो गाय कैवै म्हनै हाथ ई मत लगाव। गाय माटी हुयगी ही साब! तद सूं ई आ रोवण ढूकी है, जकी अबार तांणी बसका उपाड़ै। जद तांणी हरिद्वार नीं जावै अर गंगाजी में न्हांवण नीं करै, कीं नीं खावैली। …इण सूं टाळवां कोई बीजी बात नीं है हुकुम।’’ धणी री बात पूरी हुवण सूं पैली ई लुगाई रा बुसका फेरूं सरू हुयग्या हा।
सिपाई नै कीं समझ आयौ अर कीं नीं। पण बीकानेरी खुद री जिग्यां सूं खड़ौ ई हुयग्यौ अर बोल्यौ, ‘‘राम-राम-राम!! आओ माताराम! थे म्हारी सीट पर बैठौ। म्हनैं कांई ठाह क थांनै हरिद्वार जावणौ है, म्हारै तो सूरतगढ आयग्यौ। आगलौ टेसन।’’
दूजौ सिपाई हाथ री सैन सूं बूझ्यौ क असल बात कांई है तो वौ बात नै तफसील सूं समझाई। गाय नै रात रै बगत खूंटै बांधणै रै पाप सूं मुगती खातर गंगा न्हांवण री बात बतायी। गाय नै रात रै बगत खूंटै सूं बांध’र नीं राखीजै। काल रात री वेळा गाय नै खूंटै सूं खोलणौ आ भूलगी अर गाय तड़पती मरगी। बस, उणी बात रै पिछतावै सारू गंगा-न्हांण खातर जावै। जद तांणी न्हांण नीं हुय जावै, अन्न रो दांणौ नीं खावैली।
सिपाई बात नै समझी अर कांधा उचकायनै रैयग्यौ। कैदी बचियोड़ी पकौड़ी नै मूंडै में घाली अर चाय रो छेहलौ गुटकौ लेयनै कचकड़ौ बारी सूं बारै बगाय दियौ।
म्हारै हीयै में अेक ताकड़ी त्यार ही। अेकै कांनी च्यार मिनखां रौ हत्यारौ हो जकौ जाणता थकां क हत्या करी है चावतो हो क किणी भांत उण री सजा कमती हुय जावै तो दूजी कांनी लुगाई ही जकी रात रा गाय नै खूंटै सूं खोलणौ भूलगी अर गाय री मौत हुयगी। अब इण हत्या रै पाप खातर किणी सूं ई सजा री उडीक नीं राख’र खुद पिछतावै खातर हरिद्वार जावै। अर जद तांणी गंगा में न्हांवण नीं कर लेवै, अन्न नीं खावैली।
म्हारी इण हीयै ताकड़ी सूं दूर ना तो कैदी माथै कीं असर हो अर नीं लुगाई नै परवाह। रेल भाजती जावै ही। किणी नै ठाह नीं ही क पैली कैदी रो टेसन आवणौ हो क लुगाई रो। पण म्हारौ टेसन आंतरै खिसकग्यौ हो जांणै। जांणै ओजूं तांणी कितरी ई रेलां बदळणी ही।