अरज ‘लॉयन एक्सप्रेस’ लगौलग आप नैं खबरां सूं जोड़्यां राख्यौ है। इण सागै ई अब साहित रा सुधी पाठकां वास्ते भी कीं करण री मन मांय आई है। कथारंग नांव सूं हफ्ते में दोय अंक साहित रे नांव भी सरू करिया है। एक बार राजस्थानी अर फेर हिंदी। इण तरयां हफ्ते में दो बार साहित री भांत-भांत री विधावां में हुवण आळै रचाव ने पाठकां तांई पूंगावण रो काम तेवडिय़ो है। आप सूं अरज है क आप री मौलिक रचनावां म्हांनै मेल करो। रचनावां यूनिकोड फोंट में हुवै तो सांतरी बात। सागै आप रौ परिचै अर चितराम भी भेजण री अरज है। आप चाहो तो रचनावां री प्रस्तुति करता थकां बणायोड़ा वीडियो भी भेज सको। तो अब जेज कांय री? भेजो सा, राजस्थानी रचनावां…
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स्व. गिरधारी लाल मालव

हाड़ौती अंचल रा लूंठा कहाणीकार गिरधारीलाल मालव रो राजस्थानी साहित में महताऊ योगदान है। आप गीत-गजल भी लिखता। 24 अक्टूबर 1937 में जलम्यां मालवजी 4 सितंबर 2016 में परलोक सिधारिया। 

कहाणी : मोत्या बा

मोत्या बा लै चालां मोत्या अणतै होयावां। क्हतां ई मोत्यो बापू बणजारा की आडी झांकर पूंछड़ी हलाबा लाग ग्यो। लांबी सुरख जीभ मूंडा बारै काढऱ हांपतो लाळ का टपका पटकबा लागग्यो। बापू बणज्यारो बडग़ांव रै छो। अणता का सेठ गोविन्द लाल जी सूं लेण-देण करै छो। दुवाळी कढ़तांई रप्या उधारै ले जातो। छै म्हीना ऊ देसां बदेसां बोपार करतो फरतो अर बडग़ांव की बैसाखी सोरती पै पाछो बावडऱ रप्या जमा कर दे तो।  बापू बणज्यारो गांव सूं अणतै जाबा हाळा गेला पै मुड़ग्यो। मोत्यो लारां को लारा धणी कै आगै होग्यो। गेला मं ऊ दस-बीस हाथ की दूरी तांई दड़ा-बामला ई सूंघतो ऊंची टांग कर’र वा पै मूत तो फेर पाछो गेला मं आतो कोई बार धणी कै आगै कोई बार पाछै होतो जार्यो छो। वां दनां बडग़ांव सूं अणतै आबा को गेलो धतूर्या अर खाळां का बमूळ्या ई आंथैणी आड़ी छोड़ तो साबाद काचक मं होर तरछो-तरछो अणतै आवै छो। साबाद को चक बूंळ-खैंजड़ा अर अनैन भैंत्या रूंखड़ा सूं अर बोर्या झाड़ का परस्यां ऊंचा दड़ा सूं भरपूर डांग छो। अेकला मनख की हीमत कोई न्ह छी कै ऊ दन मं बी साबाद चक मं होर कढ़ज्या। पण बापू बणज्यारा की बात ओर छी। अेक तो ऊ कद कांठी मं लाम्बो पूरो भर्या-भर्या डील को सगतीवान मोट्यार छो फेर मोटो मजबूत ल_ हाथ मं अर कमर पै तरवार लटकती रै छी।  नाहर कै बी सामै फरज्या अस्यो ढूंडी की बर्याबर ऊंचो मोत्यो। कुण की माई नै आंचळ छुकाया छै जे बापू कै सामै फरज्या। गेलो आगै जार काचरी की गढ़ार मं मलर अणतै आजावै छो। बापू नै सेठ गोविन्दलाल जी सूं राम-राम आण कर्यो। गोविन्दलाल जी ऊं जमाना मं सबसूं बड़ा बोहरा छा अणता मं। दस-पांच जणा बैठक कै बारै चूंतरी पै बैठ्या ई रै ता। बैठक मं दो-च्यार मनीम रोकड़्या काम मं लाग्या रैता अर सेठ जी गदेला का मोटा बछावणा पै गाव तकिया कै सायरै अध पसर्या पड़्या रैता।  कस्या आयो रै बापू ? सेठ जी नै बणज्यारा सूं बूझी। अैंधा ई कांई चावै छै ? दो आंख्या। क्हर बणज्यारो हांस्यो।  ईं साल सूं भाया म्हानै तो लेण-देण को कायदो बदल द्यो। देख। बना आड अब कोई कै तांई पीसा कोडी न्ह द्या। बसवास ई बसवास मं घणा खार बैठग्या। कुण-कुण सूं बरबट्यां पड़ां? कांन्कांई लायो होवै तो लेजा रप्या।बना आड अब कोई कै तांई पीसा कोडी न्ह द्या। बसवास ई बसवास मं घणा खार बैठग्या।

कुण-कुण सूं बरबट्यां पड़ां? कांन्कांई लायो होवै तो लेजा रप्या। बणज्यारो अंठी-ऊंठी झांकर बोल्यो- अब अस्या याद होती तो कांन्कांई जेवर-जाठो लेर आतो। अबार तो म्हारै गोडै यो कुत्तो ई छै।  अरै कोई! कुत्तो रखाणैंगां कीं? ईं की कांई पैड़? भाग ज्यागो तो क्हां हेरता फरैगा?  सेठ जी यो साधारण कुत्तो कोई न्ह, म्हारो जीव छै। बेटो नटज्या पण यो न्ह नटै। जे म्हारो कुत्तो यां सूं भाग जावै तो दूणा चुकाउंगो। म्हंू बी बोपारी छूं। छोटो ई मानो पण जुबान की पैड़ समझूं छूं। अतना बरसां सूं लेण-देण करूं छूं। हाल बी म्हूं आपनै न्ह पछाण्यों कीं ? तो फेर म्हैल जा कुत्ता नै। सेठ जी मानग्या। मोत्या ! जद तांई म्हूं सेठ जी का रप्या चुकाबा न्ह आऊं अतनै तू यांई रीजे। बापू बणज्यारा नै मोत्या को लाड लडार ऊं सूं क्ही। कुत्ता नै पूंछड़ी हलाई। जाणै ऊंनै आपणा धणी की बात सुण’र समझली होवै। सेठ जी नै रप्या गणवा द्या। फेर कुत्ता की आडी झांकर बोल्या- दगो मत दीजे मोत्या। मोत्या नै सेठ जी की आडी बी पूंछ हलाई।  बापू बोल्यो- कुत्ता नै भूखां मत मार घालज्यो। फेर कुत्ता सूं बोल्यो- जाऊं छूं मोत्या यांई रीजे। आज सूं थारा धणी सेठ जी ई छै। बापू बणज्यारो कुत्ता नै लडार या समझार कै मोत्या जद तंाई सेठ जी की सेवा मं यांई रीजे। चोखी सेवा करजे बेटा। ओळमो न्ह आणो छावै। दुकान का सामै का सूधा लाम्बा गर्याळा मं ज्यां तांई बापू बणज्यारा की पूठ दीखती री मोत्यो नजर गडार झांकतो र्यो। फेर ऊं ठाम सूं उठर अणमणो सो अंठी-ऊंठी फरतो आस-पास की ठाम ईं सूघ-सूंघ’र पछाण करतो र्यो। फेर दुकान कै आगै का खरंजा की ठाम मं सोग्यो। गुरगळां कागला ऊंका उटंग करबा लाग ग्या। पूंछड़ी की बगल अर पूंछडी कै नीचै चैंठ्या सूरया, गोगड़ा खाबा लागग्या। कागला गुरगलां की चांचा सूं ऊंकी कुचर मट तांई ओर पसर ग्यो। पण जद कागला गुरगलां कै डर मटग्यो तो वै कानां की कोरां पै जम्यां सूंर्या अर कान का जोडां पै जमा गोगड़ां ई खाबा लागग्या। पण वै काना मं जमीं मळी मं चांचां गडाबा लाग्या तो ऊंनै बछक’र बैठ्या होता नै कान फडफ़ड़ा द्या। पण अब तांई कागलां, गुरगलां सूं मोत्या को भाइली चारो सरू होग्यो छो। मोत्या को अणमणो पण कम होग्यो छो अर ऊ वां पखेरूवां सूं खेलबा लाग ग्यो छो। दो डांडा दन सूं सेठ जी दुकान सू ंउठ’र अेक छोटा सा बगीचा मं कीवरी पै हाथ-मंूडा धोबा चाल्या। कारन्दा ई हांको पाड़ो- पन्न्या म्हारी धोवती कुड़तो अर बाल्टी नेज ल्या। यो सेठ जी को रोज को नीम छो। सारै दन बैठ्या रैबा सूं कूंकड़ा होया हाथ पग उळ्ळा होज्या छा अर कस्बा का भला मनख्यां सूं कदीं परेम ब्वार की तो कदीं धन्धा पाणी की बात बी हो जाती। मोत्यो सेठ जी की लारां होग्यो। सेठ जी की च्यारूं आडी पाका सराड़ा की दो मंजली हेली छी। नीचै का भंडारा मं नाज पाणी भरै छो अर ऊपर का कमरा रैबा का छा। गहणा को पराणो डूब्यो जेवर-जांठो अर सेठाणी कै पहरबा को गहणो नीचै का नाज का भंडारां मं दब्यो रै छो पण नत उठ आबा जाबा हाळो माल दुकान की मोटी मजबूत तज्योर्या मं ई रै छो। दुकान का बरामदा मं पन्नयो अर नीचै गर्याळा मं मोत्यो सोता। दो भायला नींद न्ह आवै जदतांई दुख-सुख की बातां करता। पन्न्यो मूंडा सूं बोलतो पण मोत्यो पूंछड़ी हला समझा देतो कै म्हूं थारी बात समझ र्यो छूं। पन्न्यो दुकान पै ई रोटी खातो पण मोत्यो जे पहली-परत सेठ जी की लारां अेक बार हेली मं उळ्यो तो रोजीना दोनी टैम वां सूं रोटी खार बावड़तो। सेठाणी जसी रोटी सेठ जी का थाळ मं परूसती उसी की उसी मोत्या ईं कातळा पै धर देती। मोत्या अर सेठाणी को आमो-सामो घणो हेत होग्यो। सेठाणी मोत्या ईं ईमानदार रूखाळो मानै छी अर ऊ छोबी सणी। अेक बार तो सेठाणी नै सेठजी सूं बी क्हदी छी कै आपण तो बापू बणज्यारा सूं मोत्यो मोल लेल्यां। भलांई बणज्यारो कतना ई रप्या ल्यो। सेठ जी बोल्या – अस्यां थोड़ो ई चालै छै। अर फेर मान लै म्हूं बापू सूं क्ह बी द्यूं अर ऊ नटग्यो तो आपणी ईजत तो गी नै ? सुणर सेठाणी छानी होगी। पण सेठ का दो साल का छोरा अर मोत्यां कै घणो परेम छो। दोन्यां को बना स्वारथ को नरमळ परेम। सूता मोत्या का डील पै सेठ को छोरो रै’ळ जातो। मोत्या ईं छोरा पै लाड आतो तो कदी ऊंका नैना हाथां की कोमळ आंगळ्यां ई चाटतो कदी हाथां ई चाटतो तो कदी पगां ई चाटबा लाग जातो। कोई-कोई बार ऊंका माथा नै तो कोई बार गोळ-गोळ लाल टमाटर जस्यां गालां ई चाटतो। बाळक ऊंकी गलगली जीभ सूं छूंटती गलगली की मारी दोनी हाथ ऊंका मूंडा कै आगै लगातो चावै दोनी कान पकडर खींचतो दोन्यां ई दोन्यां सूं भरपूर सुख मलतो। अेक बार सेठ जी नै आपणा बगीचा मं बरामण सूं भोजन बणवायो। अेकली बैण छी अर दोनी जणा मलबा आया छा। मोत्यो अर पन्न्यो बी ग्या छा।

मोत्यो सुवा, डैंकड़ा सूं घणो खेल्यो। आज ऊ जादा ई राजी छो। छै म्हीना की म्याद धीरां-धीरां सरकती नजीक आरी छी। सारा गांव मं हा-हाकार मांचग्यो। सेठाणी को सूना को सारो जेवर-जांठो चोरी चली ग्यो छो। सेठाणी छाती-माथो कूट री छी। पुलस का ज्वान आग्या छा। वै वांको काम कर र्या छा। सारा गांव मं हा-हाकार मांचग्यो। सेठाणी को सूना को सारो जेवर-जांठो चोरी चली ग्यो छो। सेठाणी छाती-माथो कूट री छी। पुलस का ज्वान आग्या छा। वै वांको काम कर र्या छा।  कुत्ता पै कोई को ध्यान कोईन्ह छो। ऊ खाडी की आडी सूं आर्यो छो। वांसूं आया पाछै ऊ सेठजी की धोवती की लांग दांतां सूं पकड़’र खींचबा लाग्यो। सेठ जी को ध्यान गांव का लोगां ईं या बताबा मं लागर्यो छो। कै म्हांकी कोई की बी नींद न्ह खुली। सारा पै ई मड़ाई फरगी जाणै। कुत्तो बार-बार लांग खींचतो अर बातां करता सेठजी बार-बार धोवती की लांग नै कुत्ता का मूंडा सूं छुड़ा लेता। अेक मनख ईं तमासा ईं नरी देर सूं देखर्यो छो। ऊ सेठ जी सूं बोल्यो- अजी पण ईं कुत्ता को तो ध्यान करो। यो नरी देर सूं थांकी धोवती की लांग खींचर्यो छै। कांई तोल यो कांन्कांई बात क्हबो चाहतो होवै। सेठजी कुत्ता की आडी झांकर बोल्या- कांई क्हर्यो छै मोत्या ? अब कुत्तो सेठजी कै आगै होग्यो। सेठजी समेत दो-च्यार जणा कुत्ता कै पाछै चालबा लागग्या। कुत्तो वां सब्यां ईं खाडी की कराड़ पै लेग्यो अर खाडी मं उतर’र पाणी कै कनारै पंजा सूं कुराळबा लागग्यो। सेठजी समेत सारा लोग पाणी की कोर पै कुराळबा लागग्या। ताजा पोली जमीं होबा सूं हाथां सूं ईं कुरळगी0। अर पोटळी पागी। खोल’र देखी सब सामान पाग्यो छो। सेठजी कै खुसी न्ह मारी छी। घरनै आर सेठजी मोत्या सूं बोल्या- मोत्या थंनै थारा धणी को करजो उतार द्यो। फेर अेक कागद पै भरपाई की तहरीर मांड’र मोत्या का गळा कै बांध दी। जीं मं मंडरी छी कै बापू थारो करजो थारा मोत्या नै उतार द्यो। थंसूं कांई बी न्ह लेणो। संजोग अस्यो बठ्यो कै अठी सूं मोत्यो अर उठी सूं बापू सेठजी का रप्या देबा आर्यो छो। दोनी साबाद की डांग मं आण मल्या। मोत्यो आतो दीखतांई बापू बणज्यारा की आंख्यां मं खून उतर्यायो। मोत्यो धणी नै आतो देख’र खुसी दरसातो धणी की आडी भाग्यो अर सायरै आर ऊभा होतो पूंछड़ी हलाबा लागग्यो। बापू बणज्यारा नै म्यान मं सूं तरवार काढऱ मोत्या को माथो धड़ सूं नाळो कर द्यो। मोत्या का रगत सूं खुद बापू भीजग्यो अर रगत फैल’र जमीं रंगबा लागगी। बापू को करोध ठंडो पड़्यो तो कुत्ता का दोनी टूकड़ा पै नगै दौड़ाई। मोत्या की नाड़ कै लच्छा सूं कागद की अेक भूंगरळी बंधी देख’र खोली। बापू सेठजी का हाथ की तहरीर पढ’र माथो पकड़’र बैठग्यो। फेर छाती मं धमोड़ो देर अरै म्हारा मोत्या म्हूं हत्यारा नै थारी ज्यान लेली रै। क्ह’र डकराबा लागग्यो। घणी देर पाछै ऊ उठ्यो अर अणता कै गेलै लागग्यो। सेठजी कै तांई तहरीर हाथ मं थमा’र झरती आंख्यां सूं बोल्यो- सेठ साब कुत्ता ईं छोड़बा की असी कांई धाका-धीकी छी। खुसी बी छी तो दो-च्यार दन म्हारी बाट न्ह न्हाळ सकै छा कीं ? सेठजी बोल्या- जे कांई होयो ? ये थारा लत्ता खून मं कस्यो भंडर्या छै ? कोई कै तांई मार’र आयो छै की ? हां सेठजी! म्हूं आपका रप्या चुकाबा आर्यो छो। पण गेला मं मोत्यो पाछो आतो देख’र म्हनै समझी कै कुत्तो छानै सेक भाग’र आयो छै। ईं कुत्ता नै म्हारा बरसां का बसवास ईं धोको देर सेठजी की नगै मं म्हारी पैड़ बगाड़ दी। वांको ओळमो झेल’र कस्यां जीवतो रूंगो। या उधार तो मेट्याऊंगो। सेठजी बी कांई न्ह क्हैगा पण आगला साल मं उधार कस्या मूंडा सूं मांगूगो। यो बच्यार आतां ई सारी धीरप सारी अक्कल ई उफणतो करोध चाटग्यो अर ऊर करी न्ह पूर मोत्या का या क्हर कै मोत्या आपणा अनजळ यां तांई का छा। तरवार सूं मोत्या का दो टूकड़ा कर घाल्या।  बापू बणज्यारो नै दर्द का सीसाड़ा पाड़तो सेठजी कै आगै रप्यां की कोथळी पटक’र गेलै लागग्यो। सेठजी नै क्ही- ठहर-ठहर बापू।

थारा रप्या तो ऊं दन ई खाता मं जमा बांध द्या छा। अर अब कोई दन रप्यां की चाहन्या होवैगी ऊं दन अमानत धरबा की थंसूं न्ह क्हूंगो। ये थारा रप्या पाछो ई लेतो जा। जोर-जोर सूं डीडाड़ा पाड़तो बापू रप्या की थेली उठा’र गर्याळै लागग्यो। वां रप्यां सूं ईं बापू नै मोत्यो मर्यो जी ठाम पै अेक कुवो खुदवायो। जद तांई साबाद को चक र्यो अर बडग़ांव सूं अणतै आबा को ऊ गेलो र्यो आता-जाता मनख्यां नै ऊं कुवा पैई पाणी प्यो। ऊं कुवा को नांव मोत्या बा का नांव सूं पड़्यो। यो मोत्या को सनमान छो। अणतो अर बडग़ांव समेत आस-पास का गांवां सूं झाड़ झटींगर काढबा हाळा बी पाणी ऊं कुंवा पै ई प्ये छा। आज साबाद चक की जमीं सरकार नै बेच’र खेत बणा द्या। अर आज का लोभी जमाना का खेत हाळां मनख्यां नै जमीं समतळ कर’र कुवा मं गार मट्टी भर दी। लोग मोत्या बा को नांव भूल ग्या होवै पण ऊं ठाम पै अेक सदीं तांई दो-दो कोस तांई पाणी को ओर साधन न्ह होबा सूं कुवो खुदाबा हाळा नै तसाया मनख्यां का कंठ गीला करबा को जे पुन्न कमायो ऊं मं मोत्या कुत्ता को बी सीर छो। ईं लेखै ई लोगां नै कुत्ता का नांव कै पाछै ‘‘बा’’ सबद जोड़’र मोत्या ई मन सूं सनमान द्यो। अर सदी भर्या तांई कुवा को नांव ई ‘‘मोत्या बा’’ होग्यो।

रोशन बाफना  (मोबाइल नम्बर 8387987499)

गद्य-पद्य में बरोबर लिखता रेवै, मुम्बई फिल्म ऐशोसिएशन रा सदस्य है, कई पत्र-पत्रिकावां में रचना लगोलग छपै है, साथै-साथै पत्रकार भी है।

कविता 1 : रिस्ता

पैली
रिस्तां रा नांव हुया करता
फेर
रिस्तां में राम मिळ्यौ
अब
रैयग्या रिस्ता फगत नांव रा
अब तो नांव भी राख दे कोई राम तो
मिळै नीं राम
राम रा रिस्ता
रगत रा रिस्ता
नांव रा रिस्ता

काम रा रिस्ता
बतायां कदै ठाह पड़ै तो
रिस्ता है भी क नीं…

कविता 1 : हवेली

दिसावर गया जद सेठ
भोळाई ई हवेली
बरसां बाद आया तो
नीं जाण सक्या
अेनाण-सेनाण
डोकरो
भाज-भाज’र बताया
दादी री रसोई
दादा रो थांन
‘तो बतावो,
कांई लेवोला खाली करण रा…’
डोकरो चमक्यौ…
मोतियासुदा आंख्यां सूं देखतो बोल्यौ
‘कदै इस्या सवाल बाबू तो नीं पूछिया…’
‘वो समै रैयो न बाबू…
आप तो बताओ,
लेवौ रोकड़ा अर व्हीर हुवौ’
‘हू रैयो हूं…काल हुय जासी खाली’

 

 

हरीश बी.शर्मा,  मो. 9672912603

नाटक कविता, कहाणी, गीत अर इण रे सागे पत्रकारिता करे। राजस्थानी में नाटक भी लिखै है, इण री रचनावां में थम पंछीड़ा अर फिर मैं फिर से फिरकर आता, गोपीचन्द की नाव अर देवता, अैसो चतुर सुजान, सतोळियो अर साक्षात्कार संकलन हुनर हौंसले की कहानियां जिसी घणी किताबां है।

कहाणी  : क्रश

तो अबार तांई आप भणियौ क दोयां नैं इण बात रौ ठाह हुवण रै बाद भी क वै बेमेळ है, सागौ निभावण री तेवड़ ली। सागौ करता भी क्यूं नीं? बेमेळ हा तो उमर सूं, विचारां सूं, जात सूं, समाज सूं। हुवौ भलांई, मिनखाजूण में तो हा। जमारौ तो इतरौ बदळग्यौ क लोग-बाग जिनावरां सागै जोड़ा बणाय लै। उणां नांव सूं तो ठीक। दोयां री सैमती पण ही।
प्रोफेसर सियाराम अर रिया रै रिस्तां री इतरी इज कहाणी। रिया सागै प्रोफेसर खुद नैं जवान-जोध समझता अर प्रोफेसर सागै रिया नैं लागतौ जियां अब कीं बाकी नीं है। सै-कीं मिळग्यौ जाणै। जोड़ बाकी री इण दुनिया में साखी हो प्रोफेसर रो घर। छात अर भींत्यां रिया रै आवतां ही हरख उठती। सियाराम री गळबाथ में वा घोसले में चिडक़ली ज्यां रैंवती। साव निचीती। नेहचो हो। हुवै भी क्यूं नीं। उमर में आधी ही। कॉलेज री तीसरी सींव लांघी ही। फस्र्ट इयर में ही प्रोफेसर ने साध लियौ हो। प्रोफेसर सियाराम कॉलेज में सगळा ताळां री अेक चाबी। लांठा रसूखात। प्रिंसीपल रे खास च्यार-पांच लोगां मांय सूं अेक। प्रमोसन लिस्ट री उडीक में प्रिंसीपल रे ओहदे रा सैं सूं सबळ दावेदार हा। सबळ तो हा ई, जणां ई तो रिया लारै मुड़’र देख्यौ ही नीं।
प्रोफेसर रै घरां रिया आई तो अेक’र फेरूं भींत्यां कोडीजी। छातां बादळ बरगी हुयगी। प्रोफेसर हरख्या। आवण में जेज लागण रा मैणां दिया। मैणां मैणां में ही नैणां नीर बैवण लाग्या। मैणां बैयग्या। हेत रैयग्यौ। रिया नै देख्यां पछै प्रोफेसर फेर कांई नीं देखता। देखता भी क्यूं, घर हो। घर जकौ सौ-कीं जाणै हो, रिया अर सियाराम रा रिस्तां तकात।

पण, आज भलांई वै ही प्रोफेसर, वा ई रिया, वो इज घर। अर सदा ज्यूं कसमसावै ही प्रोफेसर सियाराम शरण रै डीळ में। कीं अखरै हो। कीं हो, जकौ आज सूं पैली हो, आज नीं हो। इण सूं पैली प्रोफेसर रै डीळ में रिया ने एक नेहचो, एक सुख, एक निरभै हो। रिया वास्ते सैं कीं, जकै री उण नै दरकार ही। तो आज कांई हुयग्यौ?
रिया एक’र फेरूं गळबाथ घाली। वा बोली, ‘आय फील कम्फर्ट इन योर आम्र्स एसआर…होल्ड मी टाइट।’ प्रोफसर उणनै हेतपगी निजरां सूं देख्यौ, मुळक्यौ अर गळबाथ ने जरू करी। रिया कसमसाई अर बोली, ‘…मोर…’। रिया रै इण दो सबदां सूं लखायौ क दूजी बार पण कीं फरक नीं लखायौ। रिया देख्यौ, हा तो सियाराम ही। गरमास कीं कम ही। इण सूं पैली, इयां कदै नीं हुयौ। प्रोफेसर पूरे जोस में पण हा। जियां हर बार रिया री मनवार करता, वा सब जारी ही। रिया नैं पण कीं कम लखायौ।
प्रो.सियाराम शरण रिया रै पापा री उमर रा हुवैला। थोड़ा’क छोटा क’ कीं बडा। पण पापा तो नीं हा! फेर हर किणीं नैं बाप समान मानणै रो भी तो कोई तुक नीं है। रिया उण छोरियां में सूं नीं ही जकी सावचेती सारू अंकल, भैया अर भाई जैड़ा सम्बोधन लगायनै मरदां सूं बात करती। अठै भी वा ईज बात ही। सन्मान खातर सर हा अर हेत खातर एसआर, सियाराम। सर जियां ई एसआर में बदळीज्या, अरथाव ई बदळग्या। बातां-बातां में ई दोयां रै बिचाळै रा फरक मिटग्या। उमर रैयी ना, आदर्श। आदर्श रैवता कठै? बात ही जद मरजादा तोड़ण सूं सरू हुवै तो फेर नेम-कायदां ने सै सूं पैली पळीतौ लागै। सियाराम शरण रे माथै वर्जिनिटी भोगण रौ भूत असवार हो अर रिया सांमी कॉलेज रे सै सूं लांठै, रसूखात आळै अर विद्वान प्रोफेसर रो सागौ करण री चावना। दोनूं री इच्छा पूरण हुई। आप-आप री कामना पूरी हुवण रो ऊछब दोनूं नित मनावता। ना तो रिया वर्जिन ही अर ना प्रोफेसर साब घणां विद्वान। पण, दोयां बीच कीं न कीं तो बात ही। कीं खिंचाव तो हो ई, जकौ दोयां नै नेड़ा करण रो कारण बण्यौ।
पैली दफै रिया बोली ही, ‘आप म्हारा क्रश हो सर। …यू नो, द फस्र्ट क्रश ऑफ माय लाइफ…’
प्रोफेसर साब रिया नै देखता रैया। मन रो मोरियो नाचण ढुक्यौ तो फेर थम्यौ नीं। फेर नींद उडगी। तीजै दिन एक मैसेज हो, ‘आय लाइक यू…एस आर…’
प्रोफेसर साब बगना हुयग्या हा। इयां हुय सकै है कांई? कोई छोरी आप सूं दुगणी उमर आळै नै इयां दड़ाछंट मैसेज भेज सकै? भेजियौ है नीं! साम्हीं है सबूत। नंबर रिया रा ईज हा। प्रोफेसर रो लोभ बधियो। सोच्यौ, कदास, लव यू आंवतौ। पण आयौ लाइक यू। बाद में लिख्यौड़े एसआर सूं तो रूं-रूं खड़ा हुयग्या। ठेठतांणी एक गुलगुली-सी माचगी। लाइक माने चावना। चावना कदै खतम भी हुय सकै, अर ठेठ तांणी चाल भी सकै। अंगरेजी रा सबद लव प्रेम सूं अरथाइजै। जुगां ताईं रैवै। कांई हुय जांवतो जे लव लिख मेलती?
प्रोफेसर सातवें असमान पर हा। वे एक मैसेज भेज्यौ, ‘लाइक सूं भी आगै कीं हुवै…’
‘अबार इतरौ ई, इत्ते में इत्तो ईज हुवै…आगै री आगै देखस्यां…’। रिया रे पड़ुत्तर सूं प्रोफेसर नैं यूं लाग्यौ जाणै अबार पतियारै में कीं कमी है। फेर भी जकौ हो, वो बेसी ई हो। सबदां नैं पाती राखां तो जकौ हुयौ वो किणी भी तरै सूं कम नीं हो। फेर कांई तो फरक पड़ै है इण नै लाइक कैवौ, लव कैवौं, चायै कीं और। बात मिळनै री ही। जकौ मिळियौ वो किणीं भी तरै सूं कम नीं हो।
प्रोफेसर नैं याद ही बा बात जद माथुर मेम री फुटरापै पर साथी प्रोफेसरां में बहस छिडग़ी तो गुप्ते कैयो हो, ‘इण उमर में जे वर्जिन मिळ जावै तो समझौ जवानी पाछी आवै, ऐ तो पतझड़ रा पीळा पात है, हरियल पात री बात ई अलायदी।’
उणी दिन प्रोफेसर तेवड़ ली ही। पाणौ है कोई हरियल पात। अर देखतां ही देखतां मिळग्यौ। पण लाइक क्यूं, लव क्यूं नीं? अेक’र फेर फांस रडक़ी।
जे वर्जिन रौ प्रेम मिळ जावै तो बात ई कांई? खैर, आज लाइक है, काल लव भी आयसी। इण आस में प्रोफेसर साब मुळक्या, पण आपरौ उमाव दरसायौ नीं। आंख्यां काढ’र देखतौ एक इमोजी रिया नै सेंड कर दियौ।
रिया तो जाणै पड़ुत्तर लियां ई बैठी ही। वा झट देणी सूं एक चुम्मे आळौ इमोजी भेज दियौ। इमोजी, जकै में चुम्मो देंवतौ चेहरौ लाल पान फेंकतो दिसै। प्रोफेसर साब माथै तो जियां कामदेव तूस्टमान हुयग्या हा। हाथै रैया न बातै। जमीं सूं ऊपर। झाल्या नीं झलै।
फेर नितरा जियां ओजका ही ओजका हा। स्हैर में करफ्यू रै कारणै दो दिन इंटरनेट बंद हुयौ तो जियां दोयां री सांसां थमगी। बात तो करता कियां। इंटरनेट हो तो सौ कीं हुय जांवतौ। माड़ी-मोटी वीडियो-कालिंग रो समै भी निकळ जांवतौ। नेटबंदी रा दोय दिन विरह-वेदना रो चरम हो। रिया नै पैली बार ठाह पड़ी क इण देस में कोई वैवस्था पण है। प्रोफेसर साहब केयौ क इयां नेटबंदी अभिव्यक्ति री आजादी रै खिलाफ है। तो संकती-सी रिया पूछियौ हो, ‘आजादी कांई हुवै?’

दी आपां आप री मन मरजी री करां जकै नैं केवै।’
‘तो मन री करां…?’
चमक्या हा प्रोफेसर साब। मनोमन बोल्या, इणरौ मतलब आ जाणै है सौ-कीं। कियां पूछता क तू वर्जिन है क नीं। लागती तो ही। अेकर सोच्यौ पूछ लै, पण जै पडु़त्तर नीं हुवण रो आयौ तोï? सोच परा प्रोफेसर साब मूंन घर ली। कीं ताळ नीं बोल्या। उण रै सांमी देख्यो तो समझण में देर नीं लागी क आंख्यां में नूंत ही। हौसलो आयौ।
‘हूं तो म्हारै मन री ईज करूं…अठै अेकलो हूं, पूछूं किण नै’ प्रोफेसर दांव खेल्यौ।
‘हूं चावूं पर करी नीं कदै…’
‘कांई…?’
‘मन री…भाभियां केवै, मन री ई करणी चाइजै…’
‘आ ईज तो आजादी है…’
‘हां, मां कैवे— भाभियां तो आजाद है…’
‘मां बरजै कोनी…?’
‘एक हुवै तो बरजै…वै तीन, मां बापड़ी अेकली…’
‘थनै चाइजै आजादी?’
रिया कीं नीं केय पाई। आजादी रा झंडा उण रै मन में लहरावण लाग्या। मन हिलोरा लेवण लाग्यौ। दोनूं अकास में उडण लाग्या। समंदर में तिरण लाग्या। हवा रो सागौ करियौ अर चांद-तारां री सैर करी। प्रोफेसर साब खुश हा। चैहरो चिमकण लाग्यौ। मूंडै पर ललासी रैवण लागी। चाल में भी तेजी आयगी। कपड़ा भी कीं ठीक हुया। रिया नैं जाणै कारून रो खजाणौ मिळग्यौ।
पैली रिया नै छोरां सूं घणौं डर लागतौ। को-एज्यूकेशन में आय तो गी पण आफत ई ही। घणखरा छोरां रै बीचै सात-आठेक छोरियां। कालेज में बड़तां ई इयां लागतौ जाणै छोरा उण नै ई उडीकै। नीची नाड़ करियां क्लास में जांवती अर जे कोई प्रोफेसर नीं आया हुवै तो फेर नूंवीं रमाण। सरूआती दिन घणां दोरा निकळ्या। फेर एक भायली बतायौ, किणी एक छोरे सूं फ्रेंडशिप कर ले, आफतां टळ जासी। असलम ठीक लाग्यौ। असलम सागै रैवतां कीं दिन ई हुया हा क वो भी आप रौ पाणी देवण लागग्यौ। उफत गी रिया। इण रै बाद वा किणी भायली सूं सल्ला नीं करी अर आ तेवड़ ली। सियाराम तो जाणै तप भंगावण खातर त्यार ई बैठा हा। प्रोफेसर रो सागौ मिळयां पछै रिया किण नै धारती! डर जातौ रेयौ। छोरां रै टोळ मांय सूं भी दड़ाट निसरती। मजाल है क कोई कीं केय दे।
अठीनै, रिया रै चकरां असलम फैल हुयग्यौ। रिया दूजी ड्योढ़ी चढग़ी। असलम फस्र्ट इयर में ही रैयग्यो। रिया सूं उण नै भाव नीं मिळिया तो वो एक दिन रोकण खातर आडो फिर्यौ, तो रिया बोली, ‘दिन गया मियां जी, अब कोई आप रै नाप री देखौ…हूं सीनियर हूं…’
बापड़ौ असलम अचकचायौ-सो रिया नै देखतौ रैयौ। रिया फटकारौ देयनै जाती री। इण तरै असलम निवड़ग्यौ। पछै कदै नीं दिस्यौ, रिया नै भी किसी पड़ी ही।
थर्ड इयर करियौ जद तांणी रिया अर सियाराम जाणै कित्ता ई बरस जी लिया हा। सियाराम खातर अनुभव रौ अेक नूंवौ दौर हो। गुप्तै री बातां साच लागी। फरक लखावण लाग्यौ हो। रिया नै भी प्रोफेसर रो बिलम हुयौ। रात-दिन माळा जपण लागी। यार-भायलां में सुण-सुण’र वर्जिनिटी भोगण रा सपना लेवण्या सियाराम रै तो घर बैठे गंगा आयगी, सोची नीं ही। आयगी तो फेर भगीरथ आळै ज्यां होचपोच हुवणां हा। पण, हुसियार हा। भगीरथ जियां शिवजी नै बुलाय नै गंगा सूंप दी, प्रोफेसर बियां नीं करी। वो गुप्ते समेत किणीं नैं भी कानों-कान खबर नीं हुवण दी। पण दूजी आफळ सगळी करी। फगत वात्स्यान री शरण में ही नीं गया, शिलाजित अर जापानी तेल आळी कंपनियां नै भी खूब पइसा बटाया। नीं तो तनखा कम ही अर विधुर पण हा। कुण रोके, कुण टोके।
रिया रै घर में भी घणी पूछाताछी नीं ही। मरदां नै पइसो कमावण रौ कोड। भाभियां में मेकप री होड। भाभियां आखै दिन सजी-धजी रैंवती क जाणै कुण कद घरै आय जावै। टीवी सीरियल री तारिकावां सूं कोई कम नीं ही। रिया नै कुण रोके-टोके। मां नैं चिंत्या ही ब्यांव री। उणां री निजरां छोरां पर रैंवती। ब्यांव-सगाई में जियां ई कोई दिखतौ, रिया रै पापा नै बात करण आगै कर देंवती। पण ब्यांव-सगाई तो जोग-संजोग री बात। आदमी रै कांई हाथ। आदमी रै जिकौ हाथ में, वो रिया कर लियौ हो। आपोआप एक आदमी सोध लीन्हौ।

रिया नैं कीं फरक लखावै हो, पण मन रौ भरम भी तो हुय सकै, इण भरम नैं मेटण सारू रिया प्रोफेसर री गळबाथ में फेरू कसमसाई। प्रोफसर भी गळबाथ जरू करी। पण बात नीं बणीं। हां, रिया री आंख्यां में दोय आंसू हा।
कहाणी अठै सूं ईज सरू हुवै अर बाकी सारी बातां फ्लैसबैक में ही। तो आपां कठै हा रै सवाल रौ जवाब है रिया अर सियाराम रे सीन में। सीन जिकै में प्रोफेसर री छाती चिप्योड़ी रिया री आंख्यां में आंसू देख’र प्रोफेसर कारण पूछै। आंसू रो कारण सांमी आयौ ‘सगाई हुयगी है…’
अब आगै…
रिया री सगाई री बात सुणतां ई प्रोफेसर नंै अेक धक्को लाग्यौ। आळणै सूं चिड़ी उडती लखाई। आळणो फेर खाली। प्रोफेसर नैं लाग्यौ क उछब रा दिन बीत्या। रातां जाणै फेर अंधारी हुवण ढूकगी। प्रोफेसर नैं आप रै हुवण रो गुमेज हो। बोल्यौ, ‘मना कर दे..’
‘नो…नॉट पोसीबल, छोरो पापा रै बाळगोटियै रौ बेटो है…अबै कीं नीं हुय सकै…’ रिया बतायौ।
प्रोफेसर गतागम में हो। समै कियां निकळ्यौ, ठाह ही नीं पड़ी। फेर मनोमन सोच्यौ, ठीक ही हुयौ। कोई नूंवी मिळसी। अेकर फेरूं माथुर मेम री छिब सांमी ही। प्रोफेसर नकार दी। मन ई मन तेवड़ ली, एक’र फेर कोई वर्जिन। पण फेरूं इती आफळ? इण सूं तो आ ई ज ठीक ही। पण कांई कर सकां हां। प्रोफेसर एक तीर भळै चलायौ…
‘वा तो ठीक है, पण तू जाणै है कांई…सूझ्योड़े नांव सूं बूझियोड़ौ…’
रिया बात नैं बीच में ई काटी अर प्रोफेसर रे होठां पर आंगळी धरती आंख्यां सूं हामळ भरी। कटार चाली जियां प्रोफेसर माथै। सारा तीर निसाणा चूकग्या। तय हो क रिया रा ब्यांव तो हुयसी। आखरी बात बची। प्रोफेसर रिया रै केसां में आंगळी फेरी अर अणमाप हेत लुटावंतौ बोल्यौ, ‘रिया, म्हनैं तो नीं भूलै ली…कदै-कदास…तो आवैली…’
‘केसव विदेस रेवै। अमरीका…वठै ईज…उणां रै सागै रैवणो…’ रिया रो पडुत्तर फेर भारी पडिय़ौ।

‘तो तू अमरीका जासी? आछी बात…फेर तो कदै न कदास…। अेक बात बताऊं, अमरीका में तो अठै सूं बेसी आजादी है…मन री करण री घणी छूट…’
रिया केशां नै झटकती बोली, ‘हां, ठाह है। बतावै है केसव…चावै ज्यूं करौ…कोई रोक-टोक नीं है…’
चमक्यौ प्रोफेसर, ‘ए सगळी बातां भी हुवै है कांई?’
‘यार एसआर, मंगेतर है म्हारौ। फेर, थे ई जाणौ…रैय सकै कोई…’ रिया री बात करणै रो अंदाज इस्यौ हो जाणै वा कैय रैयी हुवै क प्रोफेसर साब थां सूं कांई छानौ है।
‘नीं, म्हैं तो यूं ही…। जावणियां नै कुण रोक सकै।’ प्रोफेसर कांधा उचकावणा चायौ, पण नीं हुया।
रिया बोली, ‘तारौ उतर्यां बाद फुलडिय़ा दूज रौ सावौ है…अबूझ सावौ है…मां केवै, अब घणां दिन नीं राखीजै, बेटी परायौ धन हुवै…’
रिया री पीठ पर हाथ फेरते प्रोफेसर री आंख्यां में चिलक आई। उण नैं नूंवै सत्र में कॉलेज आवण आळी छोरियां रा उमड़ता सैलाब दिखण लाग्या। च्यारूंमेर वर्जिन ई वर्जिन। आजादी री चावणा में हदां तोड़ण खातर त्यार। प्रोफेसर सियाराम नै लखायौ जाणै उण नैं चिर-यौवन रो टोटको मिळग्यौ है। पण एक’र फेर वे बारै निसरतै उमाव नै दाब्यौ। कीं संचळा हुया अर बोल्या, ‘अेक दिन तो सासरै जावणौ ईज हो, पण अमरीका…खैर, म्हैं म्हांरी खेंचसा-ओढ़सां…’
रिया कीं नीं बोली। प्रोफेसर मून। दोनूं चिप्या रैया। अेकमेक। प्रोफेसर री छाती पर रिया आंगळी घुमावण लागी। घणी ताळ इयां ईज। अेक-दूजै माथै लाड-लडावता रैया दोनूं। इयां, जाणै आखरी बात है। आखरी बार है। सांसां उळझगी दोयां री। लूवां बाजण लागी। सांय-सांय हुवण लागी। पसेव रा रेळा-रेळ। प्रोफेसर री सांसां भरीजगी। देखतां ही देखतां सांस री लड़ी टूटगी। हांफिज्यौड़ौ प्रोफेसर बोल्यौ, ‘थैंक्स…थैंक्स रिया…’
रिया रै माथै री सलवटां बधी। वा प्रोफेसर नै बळती निजरां सूं नाप्यौ अर खीजती-सी बोली, ‘बट, नो बाय फ्राम माय साइड…आय वांट मोर…वन्स मोर…’
प्रोफेसर साब चेताचूक! जियां सांमो-सांम कोई इम्त्यान में फेल कर दियौ है। पैली तो कदै इयां नीं हुयौ। प्रोफेसर रा कान गरम हुयग्या। जाणै भरियै बजार में इज्जत उतरगी। फेर भी खेल्या-खाया हा। इयां दांव थोड़ा ई देंवता। रिया नै इचरज सूं देखतां, नकली हंसी ूमंूडै चेपता बोल्या, ‘भूतणी बडग़ी के…?’
‘आ ई समझ लो, निकाळौ हो कांई…फेर कीं कर सकौ हो कांई…?’
प्रोफेसर रे मन में आई क कैय दे, नीं रे…अब किसी ताकत है…निचोय तो  लियौ सारौ…’ पण कैय नीं पायौ। वण उठण री चेस्टा करी। कदास कोई शक्तिपात हुय जावै। खड़ौ तो हुयौ पण रिया सूं निजरां नीं मिलाय सक्यौ। हाथ हिलांवतौ बोल्यौ, ‘कीं ताळ सबर राख…पाछौ आऊं…’
‘वाट्ट…! इयां कियां जाय सकौ…रुको…पाछौ आवण जित्ती….’
प्रोफेसर उण री अणसुणी करी अर बांडै कांनी जावण नै ऊभौ हुयौ। रिया रीस में ही। घोरका करण लागी। आंख्यां में चढ़ी भूख छानी नीं मावै ही। वा प्रोफेसर ने रुकण खातर कैय रैयी ही। प्रोफेसर नैं बरजण रै बावजूद बारै जांवतै देख्यो तो अपमांण लाग्यौ। खुद माथै काबू नीं रैयो। खंज खायनै प्रोफेसर लारै एक अंग्रेजी-गाळ सागै तकियौ बगायौ। पलंग सूं नीचे उतरी तद तांणी प्रोफेसर कनलै बाथरूम में हो। रिया पग पटकिया। पण कुण सुणै? रीस में रिया नैं कीं नीं लाध्यौ तो सेंटर टेबल माथै पड़ी गिलास फेंक’र फोड़ दी। रीस बधती जाय री ही। अबकी उण रै हाथ में मोबाइल हो। रिया मोबाइल नीं फेंक्यौ। उणरै चेहरै माथै अेक जंगळी हंसी तिरी। वा कमरै री चिटकणी चढ़ा दी। दूजै ई छिण कमरे में अंधारौ हो। रिया मोबाइल माथै कोई नंबर लगायौ। वीडियो-कॉल ही। स्क्रीन माथै एक चेहरो हो।
आवाज आई, ‘हलो स्वीटहार्ट…!

 

किरण राजपुरोहित नितिला

रेखाचित्र प्रकाशित हिंदी राजस्थानी मैग्जीन में । फोटोग्राफी शौक , दूरदर्शन आकाशवाणी साक्षात्कार, कविता कहानी राजस्थानी साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर सूं सांवर दईया पैली पोथी पुरस्कार वीर दुर्गादास सम्मान।

कहाणी  : चांदा उपर कणी

किणी सभ्यता रै हर कालखंड मांय घर,मानखै री सुरक्छा सारु अरथावीजियो। दुनिया बणया पछै मानखो जद बिणजारां रो जीवनजीतो -जीतो थाक ग्यो तद अेक घर री कलपना करी। अैड़ै  ईज किणी समै कोई सभ्यता रै किणी दौर मेंवो भटकतो-भटकतो काठो थाक ग्यो। कांई ठा उमर रा कितरा दौर पार होयगा। उणनैं बेरो ही कोनी हो। लागो ‘क जुग बीत गिया है चालतां नैं। पण चालतो रैवणोउणरी टेव ही। फगत कीं ताळ बिंसाई लेतो अर पाछो धर कूंचा धर मंजला चाल पड़तो।इयां सफर करतो अर लोगां री जूण री पारख करतो। केई बर लोगां री  हंसी अर सोराई  देखनैं जीव ललचायौ। वो ई दुनिया दांईसोरो रैवणी चावतो। इणी री तलास मांय आ टेव ओरुं बधगी। धरती रै किणी खूंणैतो उणरी सोराई लाधसी। ओ भरोसो हो। खूंणा रौ पक्कौ ठिकाणो नीं हौपण है तो सही, इणरो पूरो बेरो हो। ऐड़ी आस बांधी ही। आस अमर है।खूणैं नै सोधतो चालतो रैयो। दुनिया रा केई दरसाव केई बार देख लिया पणखूंणो नीं लाधो। अेक बार बिसांई सारु बैठयौ तो थाकेलो चढ़ियो। उणसूंविचारां मांय पजयो।  अर पजतां ही लालसापांगरती गई।

जे वो थाकतो नीं तो उणनै ठा हीनीं पड़तो अर ओरुं धकै चालतो ईज जातो। धरती तो गोळ है रोटी जैड़ी, चांद जैड़ी ,सिक्का जैड़ी, टीकी जैड़ी,कचकोळयां जैड़ी, बींटी जैड़ी, कान री बाळी जैड़ी, थाळी जैड़ी। उणरी घूम, घूमरजैड़ी ठींमर है, फेरां जैड़ी मधरी है। कंकू जैड़ी फुटरी अर माखण जैड़ी कंवळीहै। औ कैवल्य ग्यान उणनैं होयो तद वो विचारां मांय पजियो। उणनैं लागो ‘कवो खाली हो अर खाली ही चालतौ जावै हो। असल मांय भरयौ मन ले‘र चालनोचाहिजै। बटाउ हळकौ रैवे अर पथ सोरौ कटै।  तद लोगां री खुसियां रौ मरम उणरैं समझआयो। घर उणांरै सुख रौ मूळ हौ। इण कारण गोळ दुनिया रो अेक चोखो थाळोदेखनैं घर मांडणौ चायौ। ज्यूं बीजै लोगां रा घर हा। हर घर अेक सांवठीदुनिया ही। उण मांय कीं साळ-कमरा, बारी-गोखा अर आडा-बारणा हा।घर आपरै मांय एक घर हौ पण उणरै मांय उणरा केई रुप बसता हा। दुनिया जदपिउणनैं फगत अेक घर री संग्या रै रुप मांय देखती अर आता-जाता लोग कैया करताहा ‘क औ अेक घर है। पण औ आंक कोई पूरी लंाबै आंक रौ छेकड़लौ हुयाकरतौ। उणसूं पैला रा आंक लोग नीं कैता। क्यूंकि हरेक घर रौ छेकड़लै आंक सूंपैला केई आंक री भांत -भांत री संख्या व्हैती। औ ईज भांत-भंतीलोपण उण घर मांय होया करतौ।लोगां रा मन अर घरां मांय ई केई भांत होवती । आंक नै देखण रो उणां रोआपरो निजरीयौ हूतो  जकौ देखण आळैअर उण घर रै बिच्चै तंाता सूं बदळतो। इणी नाता-तांता रै कारण घर रो वोखास आंक बदळतौ रैतो अर घर रौ सरुप देखण आळा री निजर जैड़ो होय जातो।ज्यूं कै चोखो- भूंडो, रातो-पीळो, काळो-धवळा, नैनो-मो‘टोअर केई रुप-सुरुप निजर आता।

 घर सूं आपसी हेत-परेम रै हिसाब सूं भी घर केई रुपां मांय उणां रैमन मांय बसतौ। जदपि वै लोग साव साचै रुप सूं औ जाहिर नीं करता पण उणांरैहाव-भाव सूं सांमै आळै नै औ ईज लागतो। उण घर सूं जको कोई आपरो रिसतोबतावतो तद वो घर उणी रुप जैड़ो होय जातो। रीसाणो, सांयत, चिढ़ोकलो, माईत-बढेरां ज्यूं ,टाबर दांई, मां ज्यूं, भुआ ज्यूं,मामा ज्यूं , बैन-भाईआद -आद। ज्यूं कै सूरज री किरणां लेयनै समुंदर दिन -रात रंग-रुप बदळैअर आर्टिस्ट-फोटोग्राफर व प्रेमी-प्रेमियां नै मोहित करतो हैरान करै व्यूंई घर ई देखण आळा नैं हैरान करतो। लोग उणरा बदळता रुप देखनं अचरज सूं भरजावतां। कोई उणनैं किरकांटयो कैवता, कोई छलियो, कोई मायावी तौ केाईबेबात ई मूंडौ बिचकायनै रैय जातो। पण घर उणांनै कदी कीं ओळमो नीं दियो।ज्यूं धरती माता कोई नं कीं नीं कैवे, सो क्यूं स्हैन करै ज्यूं। लोग सांमै सूंनीसरता अर धकै जायनै आंगळी सूं सानो करनै कैता ‘क ओ घर घणौ जूनो है। घरसाची रुप मांय बरसूं पुराणा तौ व्है ईज। वै पुसप दांई कीं दिनां मांय  नीं विकसै। घणा सालां री खेचल पछै नींवा-भींताघर रै रुप मांय निजर आवण लागै।  ….इयां सोचनैं उणरैं मन मांय घर री चावना घणी आवती। केई दिन दूजांसागै घर नैं मन मांय जगावण सारु भटकियो। घर री आस तौ जागगी पण क्यूंकै अेकघर नंै सैंध रुप मांय उभो हूवण में बरस लागै अर उणसूं पैला घर रा सपना बणनमें बरस लागै। आ बात पछै उणनै चितार आई। घर, गरभ रै सिसु उनमान व्है। पैलागरभ रुप मांय मिनख रै अंतस में सपना मांय अंकुरित व्है, पछै  योजना में विकसै अर पछै जथार्थ रुप में धरतीरै कोई खूंणै सांप्रत आयनैं अेकर पाछौ अंकुरित व्है अर विकसै।

लोग जणैं ईजउणनैं देख सकै स्यात इण कारण ऐड़ौ कैता हूयसी कै औ घर नवो है। आ घर साथैबेजां बात है। जकौ जैड़ौ है उणनै उण रुप मांय नीं आंकनै कमती-बेसी रुप मांयआंकणो ठीक नीं व्है।   हरेक घर दांई उण आदमी रौ घर ई बेवड़ो जमारौ जीवण लागयौ। अेक अंतसमें  अर दूजै सांप्रत। दोनूं ही मानखै सारुहरख री बात व्है। घर अर सपना रो जूनैं जुगां रो  जोड़ो है पण जिण दिन सूं घर धरती माथैविकसणो सरु व्है लोग कैवे ‘क औ घर अधवीटो है। अजै चिणीजै है। पर साचबूझौ तौ वो अधवीटो-आधौ नीं व्है। सांप्रत मंाय वो सवायो होवणलागै। घर उणरै सुपना मांय बरसूं पैला जनम लेयनै चुणीज  चुकयो है। उणरंै प्राण -पण सूं उणरौकण-कण सींचिजियौ  है। ठा नीं कितरीरातां री नींद रो भोग लगायो है। फगत नींद ईज नीं अंवेर ,बेकली,थाकैलो,चिंत्याअर बिछावणै मांय पड़या अै नैनां-मो‘टा सळ ई जका है उण घर सारु ईज है। फगतअै ईज नीं बल्कै सपनौ देख नंै जागती वेळा न्हाखीजती सोच-फिकर सूं भरी उंसांसई उण घर नैं अरपित व्है। आ  सगळी खटकरमउण घर री नींव हूवै। उण री सांसा मांय आस-निरास रै बिचाळै घर हिंडतौरैवे। दिनूंगै उठनै बारै जावणनै व्हीर हूवै तौ घर ई उण सागै कीं धकला पावंडाभरै। असल मांय यूं घर रो चालणौ उणरो थापित हूवणौ हूवै फेर ई लोग कैवे‘क घर रो कमठौ चालै है। घर खुद नैं विकसावै अर लोग उणनैं चालणो कैवे। असलमें तौ अजै सूणी घर सपना मांय  चालरैयो हौ। ज्यू सिवलिंग माथै दूध रौ अभिसेक करण री अरपण री भावना होवै वा ईज भावना घर थापित होवतां नैं सपनाचढावणै री व्है। नींव थापित करतां री होवै।

अंतस रो सपनो आपरै पवित्तर घर रुपमांय अरपित होयो अर वौ तप सूं तपयोड़ौ कुंदन तपसी। उणरो चालतो सपनो अब साक्छातउभो निजर आवै। वो निहाल व्हियौ। बलिहारी ली, निजर उतारी अर  उछब-आयोजन मांडया। पण जद रात नै जायनैे बिछावणैमांय  सूतो तद सपना सदा दांई सपना रैखोळै जाणै री हूंस भरी। पण उणरी आंख्या सपनाहीण ही , रीती ही। उणनैं घरअर घर सूं जुड़ी हर बात रा सपना देखण री इत्ती टेव लागगी ही‘क सपनाहीण रातउणनै पैलां सूं बत्ती बेकल करण लागी। अजै तांई वो सपना सूं भरयो-पूरयोहो। रात -दिन ,बरस दर बरस….उमर रा केई साल लीला छम पांगरता अर विगसता सपनादेखतो रैयो हो। पण अबै  खाली व्हेगियो। आ बात उणनैं दुख देवण लागी। ज्यूं कै टाबर जिणीयां पछै लुगाई सूं मांबणता ही उण रौ पेट एकदम खाली व्है जावै व्यूं वो खाली व्हे गियो। नव महीनां रैभार रै पछै औ खालीपण मां नै  हळको तोकरै पण  अेक बीजै नुंवै दरद सूं भरन्हाखै। जच्चा रै पेडू मांय दरद रो गोळो अैड़ौ ईज व्है जैड़ौ सुपना सूं खालीइंसान।  जुगां सूं उण रै मानस मांय ‘घर‘ वास कर रैयौ हो। उणसूं उणरैं अंतसमांय अनूखो रिसतो ,परेम, सुख, चावना, आस, उडीक री जातरा ही जिणनैं मंजल रीतलास ही। अेक प्यास ही जकी उणरैं जीवण नैं थाम राखयो हौ। अबै मंजल है…. पणडगर  कोनीं, चावना भी कोनीं…..पूरणता है पण तलास कोनीं….. । साक्छात गाडां भरयो सुख है फेर भी वो मिनखआखी रात आंखयां फाड़यां-फाड़यां छात नै जोवतौ रैयो। रातूं-रात जोवतोरैयो। पुसपां रै भार दांई सपना रो  भारीपणअसींव हो पण सुखदायी हौ।  अबै  सुखी है पण मांय उंडै तांई रीतोपण है।उणरो सपना बिहूणो जीव इयां लागै ज्यांणैं फसल बिहूणो खेत। उणरै मूंडै उणसपना  सारु मोकळी चिंता ही, पीड़ ही  पण अनूखी तिरस ही अर आवण आळी पूरणता रीखोज ही उणसूं ईज उणरौ रुप तेजोमय हौ। तिरस रै परवाणै आदमी चाल रैयो हो।पण अब उणनैं जच्चा दांई गीगा रो मिजाज तौ मोकळो है पण साच बूझो तो खाली-रीतो है।   उमाव सूं भरयो उछब मांडयो पण उछब बीतयां  वो फीको होयगो हो।लोग उछब मांय आया अरउण घर रै फुटरापै रा हजार बखाण करया, उणरी आपरी चोखी सरावणा करता बाथघालनैं राजी-राजी बधाईयां देतां रैया पण उण सपना नैं रत्ती भर ई जस नीं दीयो जको उणरी आंखयां मांय,जीवणमांय केई बरसां सूं पळतौ रैयो हौ। जिण सूं उणरी आंखा मांय चमक ही पण अबैवै आंखया सपना री प्यास सूं खाली व्हेगी अर उंडी ई व्हेगी भींता री भराड़ांदांई। तिरतो थकौ सपनो अबै तीर आय थमगो। जातरा खतम होयगी, पड़ाव बेजांहोयगा। जूण रौ गाड बीत गियौ। वो अब रातूं रीतौ रैवे।

दिनूंगै उठतां ईखाली, दिन खाली, सोच खाली,खेचल खाली, हाथ खाली,बात खाली, जूण खाली …..फगतखाली….खाली….. अर सो क्यूं खाली ….।    जुगां सूं सोरप री सोधप मांय चालतो रैयौ, पछै घर सारु चालयो पण अबसोधण नैं कीं कोनी। तिरपत है। मंजल है। आ तिरपत पाछी तिरस चावै। आ मंजल रस्तौचावै। संपूरणता  पाछौ  कोई सपनौ देखणी चावै। हरयो-भरयौरैवणी चावै। इत्तौ बेगो ईज लौकी दांई पाक नै खाली नीं होवणौ चावै, खतमनीं हूणे चावै।  जीव मांय अणकैयी पीड़ है। सपना रै फुटरै मनचावै घर मांय रैवतां थकाउणनंै चैन नीं है। बेकारण बारै भटकतौ, अठीनै-उठीनै, बात -बेबता, काम-बगर काम। घर मांय बिंसायत नीं लेय सकतौ। घर उणरैं बाथ घालनी चावतौ अरउणनैं लागतौ ‘क खावणनैं आवै है। सिंझया पड़यां कोई उणनैं  कैय उठतौ ‘ अरे ! थै अजै घरै नीं गिया ?…..अठै कीकर ?‘ वौ बाकौ फाड़या उण सांमी जोवतौअबूझ दांई। दोय घड़ी यूं देखनैं पूछण आळौ घूरतौ थकांे जातौ परौ।    उणनैं लागतौ कै घर उणनै खाली करनै उणसूं निकळनै कठैई बारै गयोहोवैला। सोधण चाल पड़तो जितरैं मारग बैंवतौ कोई फेरुं टोक दैतो उणनै …..‘थै अठै बैठा हौ अर घर थांनै उठैअडीकै है! पण लोगां नै ठा कोनी या स्यात ठा होय ई सकै‘क उणरौ घर उणरै आंखायां सूं निसरनैं लोगां रै हियै चढ़ गियो है। उणरोघर सगळां नै दीसै पण उण नैं नीं। इण कारण वौ उणनंै सोधणनै भटक रैयो हैदिसाहीण दांई। लोगां रौ  जीव यूं कलपतौ‘क …..वौ घर नैं उठै थापित करनै अेकलो छोड दियो। उण सारु घर री अडीकलोगां सूं देखीजती कोनी । कैवत है‘क घर भटक चुकयां रो स्यारौ होवै, मंजलहोवै। इणी कारण घर री छियां हेठै लोग उमर पूरी कर दै बल्कै अेक ईज घर री छात हेठै दो-तीन पीढ़ियां सोरै सास बीतती गुजार देवै। पण उणनैंठा नीं क्यूं यूं  लागै ‘क जद घर उणरै मनमांय हौ अंतस सीस म्हैल उनमान गूंजतौ अर अबै वौ थोथो रैय गियो है।…….घणकरां इणी विचारां मांयपड़यां  भटकतो। लोग थ्यावस देता अर वौउणांनैं घूरतो। केई बर रीस सूं घोरका करतो। हवळै-हवळै लोग बतलावणोछोड दियो।  वै ओ मानता कै घर रै करजै सूंदब गियो है अर इण कारण बावळोपण आयगो दीसै। पढया-लिखया उणनैडिप्रशन रो कैता। पण वै बतलाणो छोड दीयो तद  सूं उणनंै न्हैछो होयो। जुगां-जुगां सूं उछाळा मारतौ समंदर उणरोस्यारौ बणतौ क्यूं कै वौ खुद जूनै जुगां रौ मिनख हो। सदियां रो मिनख।मिनखां री पैली पीढी सूं अजै तांई रो साक्छी हो। अेकलापा में भरयो समंद रैतीर बैठयौ उणरै बदळतां रंगा सूं आपरी जूण रौ मेळ करतौ केई पौ‘र बीतायदेतौ। छेकट उणनै चिंत्या री ल्हैर चढ़ती अर चेतै आतौ ‘क घर नवी बींदणीदांई उणरी बाट जावै है तद झटकै सूं उठतौ अर किणी दिस चाल पड़तौ। पग आपूंआप  उठता रैवता। उणनैं पावंडा भरणा नीं पड़ता।अणथक चालतौ ई रैतो जठै तांई घूम फिरनै घर री थळी अर बारोत सूं भिड़ नींज्यातौ। …… इयां ही अेक दिन ल्हैरां पगांनै विरोळ रैयी ही….अजेस ही उणरौ जीव घर रै बीतया सपना मांय हौ। अब घर नीं,घर रो सपनो नीं पण अब उण सपना री याद ही। उछब री चितार आई। कीं याद आयौअर कीं भौळ आयी…….उछब आळै दिन कोई कैयो हौ ‘क घरघणौई फुटरौ-ओपतौ है पण अजै इणरौ अधवीटोपण खतम क्यूं नीं होयो?? अेकाअेक ई वौ विचार मांय पड़ गियो। कैवण आळा रै उणियारै  नै टगमग देखतो पडूत्तर में केई सवाल छिणमांय ईज बूझ लिया ।

उणरा मधरा-मीठा बैण घर नै अधूरो बतायौ पण उण कैवणआळी रो खुद रो सुर तलास सूं पूरंपूर भरयो हो। कांई सोधती उणरी निजरां ?वो उणनै जोवतौ रैयो अेकैलाग …..पण इतरी भीड़ मांय सूं कोई उण आवाजकानली सांमी नीं देखयौ अर ना कीं सुणयो अर ना ई कीं परगट करयो जांणै वासाक्छात होवै ईज नीं । फगत वो ईज उण सुर नै देखतो-सोचतो ,गमतो रैयो‘क कांई कमती रैय ग्यो है घर मांय ? ….अर वा उणरै अंतस काकरो बगायनै कींसोधती जोवती रैयी घर रो फर्नीचर-परदा,सोफा….। उछब में आया सगळा घर री धपाउसोभा करै हा अर वा भी तौ अै सगळी बातां सुण ई रैयी है । तौ पछै इणसराव-सोभा मांय आयनै म्हारै अंतस में ओ काकरो क्यूं बगायो ? अचंभा सूं भर गियो। …कदी खुद नै, कदी घरनैे अर कदी नै सपना नै जोवै। अेक अमूंझ सी आवण लागी । उण बात रो मायनोपूछण सारु उण सांमी अरज करती, बूझती गैरी मींट न्हाखी जदकि वा हवळै-हवळै भींता माथै परेम सूं परस करती धकैजावती जावै ही। तद उणनंै लागौ ‘क भींता री जांग्यां पुसप ई पुसप खिल रैया है।ज्यूं -ज्यूं वा चालती रैयी घर सूं लोग दिखणा बंद होय गिया अर उण जगैपुसपां रा भारा बिखर गिया हा। कीं ताळ पछै वो आपरै भायलै कांनी जोयो। वोअेक अजकी निजरां सूं उण सांमी गै‘री निजर जोयो अर खंूणी मारतौ दूजै अरथमांय  मुळकतौ रैयो जिण अरथ नै वो कींसमझयो अर कीं नीं ।   …मगज केई दिनां सूं औ दरसाव दोहरावै है। केई बर अै रीलां चाली है।  आज ई वा ईज रील चालै है निजरां सांमी …अंतससांमी । आवती -जावती ल्हैरां उणरा पग पखारती ….बूझती …छितिज रोसनेसो देवै है। उणरै जोतां-जोतां समंदर केई भांत रा रंग-रुप सूंउणरौ मन वैळावै । चुतर धिराणी दांई ल्हैरां सागर रै पेट सूं चीजांबुहार-झाड़नै बारै लाय पटकती जावै। कीं ल्हैरां यूं ईज नाकारा सी फेरौलगायनै पाछी बावड़ जावै। अेक ल्हैर आई ….पगां कांनी कीं रड़कयो …. निजरजमायनैं गै‘री निजर देखयो ….अेक नवौ गुलाबी रंग  सपनो हो …गुलाबी रंग री कचकोळी हाथ मांय आई…….

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लॉयन एक्सप्रेस के कार्यक्रम ‘मुकम्मल इरशाद’ में वरिष्ठ शायर जाकिर अदीब से बातचीत