अरज ‘लॉयन एक्सप्रेस’ लगौलग आप नैं खबरां सूं जोड़्यां राख्यौ है। इण सागै ई अब साहित रा सुधी पाठकां वास्ते भी कीं करण री मन मांय आई है। कथारंग नांव सूं हफ्ते में दोय अंक साहित रे नांव भी सरू करिया है। एक बार राजस्थानी अर फेर हिंदी। इण तरयां हफ्ते में दो बार साहित री भांत-भांत री विधावां में हुवण आळै रचाव ने पाठकां तांई पूंगावण रो काम तेवडिय़ो है। आप सूं अरज है क आप री मौलिक रचनावां म्हांनै मेल करो। रचनावां यूनिकोड फोंट में हुवै तो सांतरी बात। सागै आप रौ परिचै अर चितराम भी भेजण री अरज है। आप चाहो तो रचनावां री प्रस्तुति करता थकां बणायोड़ा वीडियो भी भेज सको। तो अब जेज कांय री? भेजो सा, राजस्थानी रचनावां…
घणी जाणकारी वास्ते कथारंग रा समन्वय-संपादक संजय शर्मा सूं कानाबाती कर सकौ। नंबर है… 9414958700
लॉयन एक्सप्रेस री खबरां सूं जुडऩ वास्ते म्हारै वाट्सअप ग्रुप सूं जुड़ सकौ

हमारा मेल आइडी है – : [email protected]

Telegram         : https://t.me/lionexpressbkn

Facebook Link   : https://www.facebook.com/LionExpress/

Twitter Link       : https://twitter.com/lionexpressnews?s=09

Whatsapp Link    : https://chat.whatsapp.com/JaKMxUp9MDPHuR3imDZ2j1

YoutubeLink: https://www.youtube.com/channel/UCWbBQs2IhE9lmUhezHe58PQ

 

हरीश बी.शर्मा,  मो. 9672912603

नाटक कविता, कहाणी, गीत अर इण रे सागे पत्रकारिता करे। राजस्थानी में नाटक भी लिखै है, इण री रचनावां में थम पंछीड़ा अर फिर मैं फिर से फिरकर आता, गोपीचन्द की नाव अर देवता, अैसो चतुर सुजान, सतोळियो अर साक्षात्कार संकलन हुनर हौंसले की कहानियां जिसी घणी किताबां है।

कहाणी  : ओवर एज

लिछमण अेकर फेर निजरां उठाय’र देख्यौ। आभै में कोई फरक नीं हो। असमानी-सो रंग अर जांवतौ सूरज। जमीन भी वाई ही। बाखळ में लिछमण रै बैठण री आ ई जिग्यां ही। बरसाबंदी अेक जिग्यां। लिछमण कीं नूंवी सोध में हो अर आ उण री जुगांबंदी सोध ही। अबै तो उणनै याद ई नीं ही क उण री सोध ही कांई!
सरकारी मास्टरी करता हा बापू। बडौ भाई राम, राम जैड़ौ ही हो उण खातर। घणौ ई ध्यांन राखतौ पण घर री रमांण सूं आंती आयौ। भाभी ब्याव रै दूजै बरस ई धणी नै लेयपरी न्यारी हुयी। पाछी आई तो लिछमण रै ब्याव में, अर जात रा लोकाचार करवायनै व्हीर हुयी। स्हैर जावणै सूं पैली रामचंदर अेक दिन डागळै बैठायनै समझायौ हो क एम.ए. कर लीन्ही है, किणी सरकारी नौकरी रो जतन कर ले। जमारौ सुधर जासी। बात ई साची ही। पण रामचंदर रै जांवता ई लिछमण खातर जम्मू-कश्मीर रा टिगट आयग्या। बापू दोयां धणी-बऊ खातर ए.सी. में टिगट बणवाय दीन्हौ अर सागै दस हजार रिपिया देंवता केयौ, ‘कीं गाभा-लत्ता अर बीजौ सामांन अठै सूं ई लेय लिया भलौ!’
लिछमण री जोड़ायत बणनै आई सरस्वती तो न्याल हुयगी। अैड़ौ सुसरौ हुवै ई है कांई? भायलियां सूं सासरै री बातां सुण-सुणनै दूबळी हुवती जावै ही। जद सूं सगपण हुयौ अेक ई बात सुणै ई, ‘सासू-सुसरा घणा सखत लागै, जणा ई तो बडोड़ी बऊ न्यारी हुयगी।’ इण भांत री बातां सुण-सुणनै उणरै मन में बैठ्यौ डर ब्याव रै तीजै दिन ही निसरग्यौ।
पूठ फुराई पर लिछमण गयौ तद सासू बूझ्यौ ई कै जंवाई-सा री तिणखा कित्ती है, इणरौ पड़ूत्तर लिछमण कन्नै नीं हो। पण सासू ही क जावण सूं पैली अेकर फेरूं छोटकी साळी नै आगै कर दीवी, ‘जीजोजी, मां बूझै आप कांम के करौ हो…’

‘हूं…ट्यूसनां पढाऊं…’ आ कैवतां बात नै फोरण री कोसिस करी पण नीं कर सक्यौ। वा बोली, ‘महीनै रा कित्ता रिपिया मिलै…?’
सवाल सासू रो सिखायोड़ौ हो, साळी रौ तो मूंडौ-मूंडौ हो। रसोई रै अेक पल्लै नै भिड़ाय उण रै पार कांन लगायोड़ी सासू सुणबा नै त्यार ही।
‘अे ई कोई अठारै सौ रिपिया… महीनै रा…’
लिछमण पूरी तरियां खींच-ताणनै बोल्यौ। उण नै ठाह हो क साथ वाळौ सुरेंद्र ट्यूसनां सूं तेरह सौ रिपिया करै। पांच सौ बधायनै ई बताया है। पण उणनै ठाह हो क असल में तो वौ तेरह सौ ई नीं कमावै हो। तो कै कमावै हो?
औ ई तो सवाल लारलै 12 सालां सूं उण रै साम्हीं हो। आज भी औ ई सवाल उण रै साम्हीं है। सासरै जावण सूं डरतौ इणी खातर हो क कदास फेरूं सासू वौ सवाल नीं कर लेवै। अबै तो सरस्वती नै भी सौ-कीं ठाह पडग़ी ही क कोई कांम-धंधौ नीं हो। बापू कमावै हा अर घर उणां री तिणखा सूं ई चालै हो।
जित्ती बार वौ बापू साम्हीं कांम-धंधै री बात करी, धरछूट बोल्या, ‘थनै कांय री जरूत है। अबार तो तिणखा आवै। फेर पेंसन ई थांनै कम नीं पड़ेली। खेत घणौ ई मोटो है। थं कांई सोचै, रामचंदर रै नांव करसूं? खेत उणी नै ई मिलसी जकौ म्हारै सागै रैयसी।’
बापू री बात सुणनै लिछमण चुप हुय जावतौ। अेकर तो इंटरव्यू रो कागद आयग्यौ तो बापू री रीस सातवें असमांन चढगी। कागद ई फाड़ न्हाख्यौ। लिछमण बगनै ज्यूं देखै हौ पण पैली बार सरस्वती रै आंख्यां साम्हीं बात आयगी। वा उण नै देखतां बोली, ‘पण…कागद क्यूं फाडिय़ौ…?’
उण री आंख्यां साम्हीं सगळा चितरांम तिरण लाग्या। लिछमण नै लाग्यौ क वौ दिन आखरी हो, जद बापू इंटरव्यू रौ कागद ई फाड़ दियौ। साफ केयौ हो, ‘थन्नै… थारी लुगाई नै अर थारै टाबरां नै कमी कांय री है…म्हारै मर्या पछै ई चूर-मसळनै खावौ तो ई खूटै कोनीं… इत्तौ है म्हारै कन्नै।’
सरस्वती रै बात कीं समझ आयी, कीं नीं आयी। पण वा चांवती तो ही ई क उण रौ धणी स्हैर में नौकरी करै। स्हैर में घर बणै। जद लिछमण री ई सुणाई नीं हुयी तो सरस्वती री कुण सुणतौ? केई दफै मां लिछमण नै लाड-लडावती कैवती, ‘गांव में ई कोई कांम-धंधौ कर ले रे… थारै बापू नै कैय परी कोई दुकानड़ी खुलवाय देवूं…।’
‘हूं एम.ए. पास… दुकांन खोलूं? …जे दुकांन ई खुलावणी ही तो फेर पढायौ किण खातर…’

लिछमण री बात सुण्यां पछै मां मून धार लीन्हौ। कैवती ई कांई। खोळै में लिछमण री बेटी ही। लिछमण री बात सुणपरी वा रोवण ढूकी तो उणनै बोली राखण मिस गायां रे ठांण कन्नै लेयगी।
वो दिन हो अर आज रो दिन। लिक्ष्मण री दोनूं बेटियां स्कूल में पढण लागी अर सरस्वती ई खुद नै घर रै कामधंधै में उळझाय लिवी। पण लक्ष्मण कांई करतौ? सगळा कांम-धंधैसिर लागग्या हा। अड़वै ज्यूं अेकलो आखै कस्बै में वौ ई हो।
पैली तो टाबरिया भणन खातर आवता। इंग्लिस मीडियम स्कूलां खुल्यां पछै तो उण कन्नै आवण वाळा टाबर ई कमती हुयग्या हा।
आज भी अेक इसी ई दोफारी ही। बापू ई रिटायरमेंट रै पछै मांचौ झाल लीन्हौ हो। दिन भर लिछमण-लिछमण री टेर लगावता रैवता। अर बाखळ में बैठ्यौ लिछमण सुणनै भी अणसुणी करतौ, बीड़ी सिलगावण लागतौ।
उणनै आज ई आपरै हुवण री वजै नीं ठाह ही। जवांनजोध लिछमण इणी माचलियै पर पसवाड़ा फोरतौ ऊमर रै आधेंटै में हो। उणनै ठाह हो क नीं तो ई उण खातर आभै में कीं कोरिजेड़ौ है नीं, जमीन उण री है। रामचंदर री बात उणनै रैय-रैयनै चीत आवती। पण कांई करै? डैण री जिद आगै वौ कांई करतौ?
उणनै लाग्यौ क कोई हेला मारै हो। कांन लगाया अर मूंडौ फोरतौ अणसुणी कर दीन्ही। आवाज बापू री ई ही। कांई तो बार-बार जावणौ। फेर मां, सरस्वती अर टाबरिया मांय ई है। इसी कांई अड़ी आयगी? बापू बोलता रैया, वौ अणसुणी करतौ रैयौ।
थोड़ी ताळ में ई ज्यूं उणनै लाय-पळीतौ लाग्यौ हुचै। आपरी जिग्यां सूं उठ्यौ अर रीसां बळतौ बापू रै कमरै में दाखल हुयौ। आज कीं साचा-साचा बैण कैवण री तेवड़ राखी ही। पण कमरै रा तो हाल ही अलायदा हा। बापू माचै सूं नीचै हा अर कमरै में कोई दूजौ नीं। सगळा आप-आपरै कामां में लाग्योड़ा।
पिछतावै भर्यौ लिछमण बापू नै हाथ देयनै उठावण लाग्यौ तो बापू जांणै चौफाळियौ हुयग्यौ, ‘रैवण देय… म्हारै टुकड़ां माथै पळौ अर अणसुणी करौ…’ कैवतौ बापू लिछमण रै हाथ नै अळघो झटक दीन्हौ। ‘जावौ सगळा, थे ई जावौ। रामचंदर अर उण री जोड़ायत गयी नीं, थे ई जावौ परा।’ कैवता बापू री सांसां उखड़ण लागी। छाती रो बलगम आवाज में बोलण लाग्यौ। इत्ती देर में आखौ घर कमरै में हो। टाबरिया पैली वेळा दादोसा नै इण तरियां देखै हा। मां तो आपरै धणी नै मांचै सूं हेठै देखनै बावळी हुयगी।

कियां ई करनै बापू नै माचै माथै बैठाया। पाणी पायौ अर देर तांई पगचापण रै पछै लिछमण जावण लाग्यौ तो बापू हाथ झाल लियो- ‘सुण बेटा! कुण बाप चावै क उणरौ बेटौ कांम-धंधौ नीं करै। पण रामचंदर रै न्यारौ हुवता ई म्हारै मन में डर बैठग्यौ। …इण खातर चायौ क थूं म्हारै कन्नै रैवै…।’
‘हां, बाऊजी, हूं आपरै ई कन्नै हूं…देखौ।’ लिछमण धीजौ बंधायौ। बापू उखड़ती सांसां रै बिचाळै कीं आखड़ता-सा सबद सूंप्या, ‘जाइजै नीं कठै… म्हैं अर थारी मां… थारै ई आसरै हां…।’ आ कैवता बापू हाथां नै काठा झाल लिया।
लिछमण फेरूं हंकारौ भर्य। बापू रै उणियारै स्यांती ही। पण लिछमण रै उणियारै घांणमथांण ही। उण कन्नै अेक ई सवाल हो कै बडै भाई रै कर्योड़ै री सजा उणनै क्यूं मिली? कांई आ फगत अेक सजा ही? सोचतां-सोचतां लिछमण बापू नै सुवांण-परौ बाखळ में आयग्यौ। रात गैरी हुयरी ही। मांचै पर बैठतां हमेस री तरै वौ आभै पासी देख्यौ। अेक लकीर दूर तांणी जावती दीसती ही। लकीर रै उण पार चांद अर तारा हा। इण पार खाली तारा। तारां छाई रात पैली जिसी ही, पण आज उणनै पड़ुत्तर मिलग्यौ हो। पण पड़ुत्तर मिलतां-मिलतां वौ ओवर एज हुयग्यो हो।

बाबुलाल छंगाणी, मो. 9983583057

हिन्दी अर राजस्थानी रे मांय लिखण में विशेष मन और हास्य भी रूचिकर विषय है शहर रे मांय राजस्थानी री कवितावां री अलख जगायोड़ा कवियां में आपरो नाम भी शालिळ रैवे।

कविता : नूंवो-नूंवो फ्रीज

नूंवे नूंवे फ्रीज रो करेज
म्हारी बूढ़ी माँ रो माथो तेज
बाजार सूं कोई भी चीज लावे
माँ उठा’र झट सूं फ्रीज में ठूंसावै
एक बार लाडेसर खुल्ली थैली में भुजिया ले आयो
माँ तो आदत रे अनुसार झट सूं फ्रीज में ठूंसायो
जीमण आळी बेळा म्हें बोल्यो
माँ भुजिया तो घालो
माँ बोली ला मोटोड़ो प्यालो
म्हैं बोल्यो माँ भुजिया तो थाळी में
प्याले रो कांई करसो
माँ बोली भुजिया तो गयो कोई खाय
अठै तो कोई कढ़ी धरग्यो।

कविता : टीवी री छतरी

छतरी वाळी टीवी म्हारै
घर रो कर दियो नास
ज्ञान पायसी टाबर सुधरसी
छोड़ दी म्हैं आ आस
मानवता गिडक़ै चढग़ी
ध्यान, मान, सम्मान, सभ्यता
ऊपर तो पटकी पडग़ी
पटकी पडग़ी जोर सूं
रस्तो भटकग्या सगळा
सौ-सौ चैनल देखपरा
नर-नारी हुग्या पगला
नाटक तो बणया जबरा नाटक
कर दियो बेड़ो गरक
संत महापुरुषां री धरती नैं
बणा’र छोड़सी नरक।

डॉ.गौरीशंकर प्रजापत   मो.9414582385

राजस्थानी में ‘साहित्य-शास्त्र री ओळखाण’ निबन्ध संग्रै छप्योड़ौ।  सीनियर सैकंडरी राजस्थानी साहित्य रा विद्यार्थियां सारू पासबुक रौ लेखन-संपादन। सामान्य हिन्दी गद्य-पद्य संग्रह रौ संपादन। पत्र-पत्रिकावां में कवितावां अर सोध आलेख प्रकासित।

पोथी परख  : सामंतवादी परम्परावां रे घोर विरोध री कहाणी : हेली रै मांय 

अंग्रेजी साहित्य मांय रमा मेहता आपरी न्यारी नै निकेवळी ओळखाण राखै। रमा मेहता रो रचियो लोक चावो अंग्रेजी उपन्यास ‘‘इन साईड द हवेली’’ (1979 मांय साहित्य अकादमी रो पुरस्कार प्राप्त है) रो राजस्थानी भासा मांय अनुवाद ‘‘हेली रै मांय’’ नांव सूं संजय पुरोहित कर्यो है। इण सारू संजय जी नै मोकळी-मोकळी बधाई। कै इयां अंग्रेजी उपन्यास रो राजस्थानी मांय अनुवाद कर राजस्थानी उपन्यास परम्परा मांय बधेपो कर’र आपरो महताऊ योगदान दियो है।
मिनखा री पैली मुळकाण अर पैली आंसू री छाया कविता हुवै तो कहाणी री परम्परा ‘नानी री नानी’ यानि नानी मांय इज है, पण उपन्यास परम्परा घणी जूनी नीं है। आथूणै देसा मांय भी इण री जिन्दगी घणी लम्बी-चौड़ी नीं हैं। उपन्यास री सरूवात मध्यमवर्गीय मिनखा रै जीवण रा साचा चित्राम ने उकेरण सागै हुवै, इणी कारण उपन्यास नें मध्यमवर्ग रो महाकाव्य कैयो जावै। मानव जीवण रो जितो खरो लेखो-जोखो उपन्यास रै सारेै सूं आवै, बितो दूजी किणी विद्या रै सारै सूं नी आवै। ओ ईज कारण है कै उपन्यास जीवण अर जगत री सच्चाइयां सूं मुंडो नी लुकावै। अर समाज री सच्चाई नै दर्पण री भांति दिखावण रौ जतन करै!
ओ इज जतन ‘‘हेली रै मांय’’ उपन्यास में देखण नें मिलै।
इन उपन्यास मांय राजस्थान रै उदयपुर री सज्जनगढ़ रियासत री लोक चावी ‘‘जीवण सिंह जी री हेली’’ यानी ‘‘जीवण निवास’’ री मायली गाथा रो खरो-खरो चितराम चितरीत हुयो है। इण हेली मांय च्यार-च्यार पीढिय़ा रै दुख:-दरद नै, हरक-सोक रै सागै सामंतवादी परम्परावां अर रूढिय़ां रै सागै प्रगतिशील मूल्यां रै टकराव अर हियै री उथळ-पूथळ नै घणी बारीकी रै सागै तीन खण्डा मांय उकेरी हैै।
‘हेली रै मांय’ अेक सामंत कथा है, जिण मांय अेक आधुनिक विचारां वाळी भणी-गुणी छोरी ‘‘गीता’’ रै जीवण संघर्ष री गाथा है, जिकी बंबई जिसे सैर में भणियोड़ी है, मां-बाप पढिय़ा-लिख्यां खुले विचारां वाळा हुवै, गीता रो पाळण-पोसण भी अेक खुलै अर स्वतन्त्र वातावरण मांय हुवै। बा आपरै परिवार अर मित्रा सागै खुळ’र बंतळ कर सकै, इसै नुवै जमानै री सोच वाळी ‘‘गीता’’ रो ब्यावं इसे राजसी परवार रै राजकुमार अजय सिंह सागै हुय जावै, जिण रो परिवार जूनी नै रूढ़ीवादी परम्परावां सूं बंधियोड़ो है, जठै लुगाई ने बोलण री आजादी नी, हेली मांय घूमण री छुट नी फगत जनाना डयोढी ताई आव जाव। अठै ताई आपरै धणी सूं बंतळ करण सारू रात नै उडिकणो पड़ै। रात दिन घूंघट मांय फडफ़ड़ावती गीता जिन्दगी अेक हेली मांय भेळी होय’र रैय जावै मोकळी अबखायां रो सामनो करती गीता इणी बंधणा नै तोड़णो चावै पण, किणी रो साथ नी मिलै। अठै ताई पढिय़ो लिख्यो धणी अजय सिंह उदयपुर विश्वविद्यालय मांय व्याख्याता है। गीता चावै कै  बा धणी रै सागै उदैपुर सूं दूर जावै जठै अे रूढ़ीवादी लोग नी हुवै। परवार री पंचायती नी हुवै, अेक स्वतंत्र जीवण जीवै। पण अजयसिंह आपरै बुढै़ मां-बाप नै अर इण हेली नै छोड’र नीं जावणो चावै।
बखत रै सागै गीता समझोतो करै हेली रा काण-कायदा सीखै अर उणा नें निभावै भी। इण बीच गीता मां बण जावै। अर बेटी रै जनम री खुसियां पूरी हवेली मांय मनाई जावै। बेटी रै लालण पालण रै सागै गीता अपणै आप मांय बदळाव लावै, हेली अर हेली रै बारै रै लोगा री बातां नै मौसां नें सैन करै। वा निरासा नें छोड़’र आपरी नोकराण्यां अर उणा रै टाबरा नै पढावणां सरू करै समाज मांय चेतना जगावै। अर धिरै-धिरै रूढ़ीवादी परम्परावां रो विरोध करै अर आपरी छोटी बेटी रो ब्याव वीर सिंह सागै करने सूं मना कर देवै, अठै ताई नौकराणी री बेटी सीता रो ब्याव भी टाबर पणै में नी करण देवै, अर अेक नूवी परम्परा चालू करावै कै नोकराणी री बेटी सीता ने पोसाळा भेजै। असाय लोगा री मदद सारू आगै आवै। अर नोकर अर स्वामी री छेती ने कम करै।
धीरे-धीरे बखत बदळ तो जावै अर अेक दिन गीता इण हेली री धणियाणी बण जावै। जीवण निवास हेली फगत सामंता, उणरी लुगाया अर टाबरा रो फगत रैवण जाग्या नी है अर ना ही नोकरां रै काम करण ठौड़, जिका फगत आपरै मालिको री आज्ञा रो पालन करें, आ हवेली ढळते सामंतवाद रो प्रतीक है। गीता मां-बाप री मजबुरी रो प्रतीक है जिका नीं चावता थकां आपरी बेटी ने अेक ओपरे मिनख सागै जीवण यापन करण सारू भेज देवै। जठै री परम्परावां-रीति-रिवाज समझ सूं परै है। पण अेक पढ़ी लिखी नोकराणियां अर उण रै टाबरा नै भणा’र उणा रो जीवण सुधारण रो जतन करै, अठै ओ संकेत मिलै कै शिक्षा ही उण रै जीवण मांय सुधार ला सकै।
बात करा ‘‘हेली रै मांय’’ रै जीवण री कै हेली रा लोग किण भांत आपरो जीवण यापन करता, उणा रो साचो चितराम इण उपन्यास मांय देखणै मिलै उपन्यासकार हेली री अेक-अेक घटना रो सांगो पांग चित्रण करयो, अठै ताई भीतां रै सीला आयागी, किड़ीया सीरो ले जावती दिखे तो, झाड़ अर सिलबट्टो रो चित्रण्ध देखण मेले। अठै ताई इण हेलियां मांय रासण भी तोल’र देवता हा, पारी पैली ईज रासण तोल’र साग अर घी-तेल काढ़’र धर दिया हो। आद इण भांत रा चितराम उण बखत व्यस्था रो चित्रण करै।
उल्थौ (अनुवाद) करणै रो काम जिम्मेदारी रो काम है तो सागै ई सागै अनुवादक री गंभीरता, सजगता, बखत री ऊंडी जाणकारी अर जनमानस-परिवेस री परख हुया ही दुसरी भासा सूं आपरी भासा मांय अनुवाद सफल हो सकै भाई संजय ओ काम सफलता रै सागै कर्यो है।
अेक सफल सजग उल्थाकार री आख्यां खुली, कान चौकन्ना अर हियो विसाल होवणो चाहिजै। जिण पोथी रो अनुवाद करां उण रै हिया मांय उतर’र, खंगाळण री अर मूळ रचना रै लेखक री भावना अर भावां नै आपरै हिया मांय उतरण खिमता हुवै बो ही अनुवाद कर सकै।
फगत भासा ग्यांन रै पांण अनुवाद कर देवणै सूं की नीं सरै किणी दूजी भासा नै जांणणो अेक बात हुवै अर उण भासा नै आपरै हियै माय उतारणो, उण नै आपरै संवेदनात्मक स्तर माथै महसूस कर’र आपरी भासा में उकेरणो अेकदम न्यारी बात है। अनुवादक रो काम फगत पोथी रो या रचना रो सीधो भासाई अनुवाद करणो नी है, बल्कि अनुवाद करी जावण वाळी रचना रै अंतस में उतर’र नै धिरज रै सागै आपरी भासा में ढाळणो है।
‘हेली रै मांय’ उपन्यास री भासा या अनुवाद इयां लागै के ओ अनुवाद नी हो’र मूल लेखक री रचना है। सगळा संवाद, वातावरण आद रा चितराम मूल सूं घणा प्रभावी है। इण रो कारण साफ है लेखक राजस्थानी संस्कृति अर राजस्थानी जन जीवण में जीवै अर जुडिय़ा थका है। जिका भाव मायड़ भासा राजस्थानी मं आया है वै दूजी भासा में आय नी सकै। अनुवाद रो काम, नुवै सिरजण जितो इज, बल्कि उण सूं भी दोरो काम है।
‘हेली रै मांय’ बदळतो जुग मिलै तो आधुनिकता रै विगसाव मांय परम्परावां अर संस्कार असल में मानखै रै मोल नै कूंतै।
असल मांय तो मोटौ साच तौ बगत हुया करै अर ‘‘हेली रै मांय’’ उपन्यास आपरै बगत नै अरथावै साच नै सैचुड़ करै। हेली परम्परावां, नोकरा रा सोसण, अत्याचार, दिखाटी रोब, दासियां री आपसी खुणस, ऊंच नीच रा भेद भाव, रूढ़ीवादी परम्परावा, लोगा रा सुभाव अर बेमतलब री बात, विधवा रै पेटै न्यारी-न्यारी सोच, नवी पीढी री नुवा विचार, आपसी फूट अर मांयलौ असली साच, युवामना रा सुपना, टाबरपणै सूं कु संस्कार नारी मनां री पीड़, नारी नारी दुसमण, पीढ़ी-दर पीढ़ी सोसण, नोकराणियां रा मन मरजी सूं ब्याव, नारी रै मन रो कोई मोल नी है। मां री कसका कुंवरा रा ठरका, जूण री अबखायां जीवण री जरूरतां आद किता ई साच इण ‘‘हेली रै मांय’’ सूं बारै आया है।छेवट मांय आ कैय सकां कै ‘गीता’ मारफत आपरै बगत नै अंगेजती थकी आ कथा मिनखीचारै रै मोटै काळजै री बानगी राखै। हेली रै मांय गीता बखत सागै हेली री खोखली परम्परावां नै धीरज अर समझदारी रै सागै मिटावणा जतन करै।
उपन्यासकार सगळै पात्रा नै आपरै मन मरजी सूं टोरिया है। कैयां रो फगत नाम ही गिणाया, बोले तो एक ही ख्यालीज है। उपन्यास आपरै उपन्यास मांय दृश्यां अर घटनावां री सबदा रै सागै सूं जिका चितराम चित्रित कर्या है वै सरावण जोग है। उपन्यास रा पात्र आपरै संवादा रै सारै आपारै सामी जीवतां-जागतां आ’र खड़ा हो जावै। मिनख अर लुगाई दोनूं पात्रां मांय आपरै भीतर री भावनावां अर विचारां नै प्रकट करणै री खीमता है। ख्याली रसोईयो नोकराणियां सूं बंतळ करै अर सैंगा री बातां ध्यान सूं सुणै, पण दाळ हिलावण सारु रसोई मांय जावै। धापू डेढ हुसियार है। वा हवेली री मायळी बातां जाणन रो दावो करै। टाबर मौज मस्ती करै।
सरस संवाद, रळियावणी भासा सूं ओ उपन्यास आज रै संदर्भा मांय ई प्रासंगिक कैयो जाय सकै । ‘हेली रै मांय’ आज ई भणा तो कथा-बुणगट मांय चित्रात्मकता, रंजकता अर प्रवाह सूं मोहित हुया बिना नीं रैय सका। पण कठै ई कठैई आंगळ भासा सबद अखरै जरूर है पण पाठकां नै बाध्यां राखण में सफल उपन्यास है।