नेशनल हुक
दक्षिण भारत के राज्य आंध्र प्रदेश में चुनावी मुकाबला रोचक हो गया है। इस राज्य की लगभग सभी सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला है। एक तरफ जगन रेड्डी है तो दूसरी तरफ कांग्रेस। भाजपा ने तेलगु देशम पार्टी को साथ लेकर मुकाबला त्रिकोणीय कर दिया है। इसी कारण राज्य में रोचक चुनावी स्थिति बन गई है। पिछली बार अधिकतर सीटें जगन रेड्डी ने ही जीती थी और बाकी सीटें टीडीपी व भाजपा को मिली। एक समय मे इस राज्य में कांग्रेस का वर्चस्व था मगर पिछले चुनाव में मात्र एक सीट से ही संतोष करना पड़ा था।
लोकसभा चुनाव 2024 में जगन रेड्डी के सामने सबसे बड़ी चुनोती पिछला प्रदर्शन दोहराने की है। कांग्रेस के पास तो खोने को कुछ भी नहीं है, कमोबेश यही स्थिति भाजपा की भी है। इसी कारण जगन इस बार के चुनाव में बुरी तरह से घिर गये है। पहले भाजपा ने जगन को साथ लेने की बहुत कोशिश की मगर वे साथ नहीं आये। क्योंकि उन्हें अपने मुस्लिम वोट के खिसक जाने का खतरा था। उनकी ना के बाद ही भाजपा ने टीडीपी से समझौता किया।
तेलंगाना में विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने जीत लिया, उसके बाद उसी समय से कांग्रेस ने आंध्रा को भी टारगेट कर लिया। कांग्रेस ने मास्टर स्ट्रोक लगाया और जगन की बहन शर्मिला को पार्टी में ले आये। इतना ही नहीं कांग्रेस ने शर्मिला को पार्टी की कमान भी सौंप दी। शर्मिला आक्रामक राजनीति करती है और पिता की राजनीतिक विरासत का खुद को असली हकदार बताती है। तेलंगाना का पूरा असर आंध्र में पड़ता है क्योंकि ये राज्य पहले आंध्रा का ही हिस्सा था।
कांग्रेस ने शर्मिला के साथ तेलंगाना के सीएम रेवंत रेड्डी को लगा दिया और उनके सहयोग में कर्नाटक के डिप्टी सीएम डी के शिवकुमार को उतार दिया। इन तीनों ने मिलकर काफी उलटफेर किया। कांग्रेस के जो नेता पार्टी छोड़कर अन्य दलों में चले गये थे उनमें से कइयों को शर्मिला वापस कांग्रेस में ले आई है। इसका बड़ा असर जगन पर पड़ा है। वही अब चुनाव में उनका सिरदर्द बन चुका है। जगन को बड़ी चुनोती भाजपा व टीडीपी से नहीं, कांग्रेस से मिल रही है। वो भी अपनी ही बहन शर्मिला से।
त्रिकोणीय संघर्ष होने से अधिकतर सीटों पर चुनावी समीकरण अब पूरी तरह से बदल गया है और जगन के सामने दिक्कत खड़ी हो गई है। उसे सबसे ज्यादा खतरा बहन शर्मिला से ही है। कांटे का मुकाबला होने के कारण आंध्रा को लेकर हरेक भविष्यवाणी करने से बच रहा है।
— मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘