हस्तक्षेप
– हरीश बी. शर्मा
जयपुर में कांग्रेस के धरने की जिस तरह की रिपोर्टिंग सामने आ रही है, उसमें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के धरना स्थल पर नहीं पहुंचने और ट्विट करके  उपस्थिति दर्ज करवाने का तथ्य है। फिर यह भी सामने आ रहा है कि दो दिग्गज मंत्री परसादीलाल मीणा और शांति धारीवाल देर से पहुंचे और दूर ही रहे। बोले भी नहीं। नहीं बोलने वालों में हमारे बीकानेर जिले के तेज-तर्रार नेता गोविंद मेघवाल का नाम भी आना आश्चर्यजनक है। इससे अधिक हैरतअंगेज है प्रदेशाध्यक्ष के बार-बार आग्रह के बाद भी नेताओं का बोलने के लिए नहीं उठना। वरना, कांग्रेस में तो बोलने के बहाने स्तुतिगान की संस्कृति रही है। आप कांग्रेस के किसी भी कार्यक्रम में देखिये, वक्ता पहले मंच पर बैठे सभी लोगों के नाम लेगा और फिर इस फुट नोट के साथ बात को खत्म करेगा कि एक-एक का नाम लिये बगैर सभी का स्वागत।

 

ऐसी कांग्रेस के गुरुवार को जयपुर में आयोजित धरने में नेताओं का नहीं बोलना सवाल इसलिए खड़े करता है कि इसमें किसी के भी नहीं बोलने पर बंदिश नहीं थी। अगर सोनिया, प्रियंका, राहुल की सभा होती तो संभव था कि समय आदि की मर्यादा का आग्रह किया जाता, यहां तो बोलने के लिए कहा जा रहा था। और कोई नहीं आ रहा था। इससे नाराज कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गोविंद डोटासरा ने यहां तक कह दिया कि डरिये मत, आप पर मोदीजी इनकम टैक्स का कोई छापा नहीं पड़वा देंगे।

 

डोटासरा के इस बयान से लगता है कि उन पर इन दिनों की चर्चित फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ हावी है। इस फिल्म के एक दृश्य में फारुक मलिक उर्फ बिट्टा कस चरित्र निभाने वाले चिन्मय मंडलेकर युवक कृष्णा की भूमिका निभा रहे दर्शनकुमार को नरेंद्र मोदी का नाम लिये बगैर वर्तमान प्रधानमंत्री को भय का कारण बताता है। जयपुर के धरने पर जब वे यह बात कहते हैं तो भूल जाते हैं कि इस धरने में अशोक गहलोत भी नहीं आए हैं। इससे डोटासरा के बयान के लपेटे में गहलोत भी आ जाते हैं। हालांकि, उन्होंने ऐसा सोच-समझकर किया होता, नहीं लगता। डोटासरा राजनेता जरूर हैं, लेकिन रिस्क लेने के मामले में अशोक गहलोत पर हाथ डाल देंगे, इतने मूर्ख भी नहीं हैं। ऐसे में उनका यह कहना स्पॉन्टेनियस यानी तत्कालिक प्रक्रिया रही होगी, क्योंकि उपस्थित नेता बोल नहीं रहे थे और इस बात की प्रबल संभावना है कि उनके इस भाषण के पीछे ‘द कश्मीर फाइल्स’ के उस दृश्य का प्रभाव रहा होगा।

 

ऐसे में यहां से एक नया सवाल खड़ा होता है कि क्या कहीं न कहीं कांग्रेस और कांग्रेस के नेता इसलिए बैक-फुट पर हैं कि नरेंद्र मोदी छापे नहीं पड़वा दे? क्या वाकई नरेंद्र मोदी ऐसा कर रहे हैं? कहते हैं कि फिल्में वही दिखाती है जो समाज में घटित होता है। प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी का नेतृत्त्व सख्त है, इस बात का ताईद तो उनके साथ रहने वाले मंत्री भी करते ही हैं। सारा सरकारी सिस्टम उनकी निगाह में है। अगर कोई मंत्री पीएमओ के लिए रवाना होते समय जींस पहनकर भी निकलता है तो उसके पास फोन आ जाता है कि शुभ्र-वेश में आइये, इससे यह जाहिर होता है कि न सिर्फ सख्त है बल्कि निगरानी भी पूरी है। पहले यह सख्ती भाजपा सरकार के नेताओं पर थी, अब अगर कांग्रेस में भी इस तरह की बातें हो रही हैं तो जनता के लिए एक अच्छा संदेश है कि देश को एक ऐसा प्रधानमंत्री मिला है, जिससे विपक्ष भी डर रहा है, लेकिन यह डर नेताओं तक ही रहे तो बेहतर। अधिकांश डरावने चेहरे तानाशाह के रूप में परिवर्तित होते दिखाई दिये हैं।