हस्तक्षेप,
– हरीश बी. शर्मा
पाकिस्तान में क्रिकेटर से प्रधानमंत्री बने इमरान खान ने संविधान की मदद से खुद को बचाने की कोशिश की है। देश की सुरक्षा के सवाल के सामने विपक्ष चित है। हैरान-परेशान विपक्ष सुप्रीम कोर्ट की शरण मे है। सेना इस बार फ्रंट-फुट पर दिखाई नहीं दे रही है। पाकिस्तानी संसद में आया अविश्वास प्रस्ताव दरकिनार पड़ा है। संविधान की जिस धारा की मदद इमरान खान को मिली है, वह सरकार के लिए राहत का विषय है और ऐसा माना जा रहा है कि चुनाव होने तक इमरान खान की प्रधानमंत्री रहेंगे। इस पूरे प्रकरण में सिर्फ एक ही तथ्य उभरकर आ रहा है, जो कल इतिहास बन जाएगा कि पाकिस्तान में कोई भी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई। लग रहा था कि इमरान खान कर लेंगे, लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ।

क्रिकेट से समाजसेवा में आए और शादियों के लिए चर्चित रहे इमरान खान का व्यक्तित्व अंतरराष्ट्रीय स्तर का है। इमरान पाकिस्तान के ऐसे नायक हैं, जिनके राजनीति में आने से पहले न सिर्फ विदेशों में बल्कि देश में भी बड़ी कद्र थी। राजनीति का पहला रिवाज ही कद्र घटना है। इस शर्त को अनिवार्यता मानने के बाद ही कोई व्यक्ति राजनीति की पहली सीढ़ी चढऩे के काबिल होता है। अचानक से आपको चाहने वाले भी आपके शत्रु हो जाते हैं। पाकिस्तान में भी यही हुआ। पाकिस्तान के हीरो इमरान खान के राजनीति में आने की घोषणा के साथ ही सबसे पहले उनकी एक नेशनल-हीरो के रूप में कद्र कम हो गई।

कोई बड़ी बात नहीं है कि बिलावल भुट्टो, शहबाज शरीफ या ऐसे ही बहुत सारे आज के नेता कभी इमरान खान को बेइंतेहा चाहते हों। फोटो भी खिंचवाई होंगी, लेकिन आज हालात बदले हुए हैं। बतौर क्रिकेट आउट या नो-बॉल का फैसला बना किसी आरोप के मानने वाले इमरान खान ने भी तो यही किया। उन्होने अविश्वास प्रस्ताव को स्वीकार ही नहीं किया बल्कि बचने की तरकीब भी सोची और लगभग सफल भी रहे हैं। अगर विपक्ष भौंचक्का है तो यह इमरान खान की जीत है। अगर सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया है तो यह किससे छिपा है कि सुप्रीम कोर्ट भी तो संविधान सम्मत बात ही करेगा। फिर पाकिस्तान जैसे देश में यह साबित करना मुश्किल भी नहीं है कि देश के सामने संकट है।

 

जो देश लगातार भुखमरी और आतंक से जूझ रहा हो, उस देश में सुरक्षा का संकट लगाकर संसद को भंग करना न सिर्फ साबित किया जा सकता है बल्कि विपक्ष को भी कठघरे में खड़ा किया जा सकता है। ऐसे में यह भी साफ है कि आने वाले तीन महीने पाकिस्तान के लिए बहुत ही निर्णायक सिद्ध होंगे। संभव है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने आसन्न संकट के निबटारे के लिए यह कर दिया हो, लेकिन इसके लिए पाकिस्तान को बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। राजनेताओं द्वारा सत्ता बचाने और हथियाने के खेल में परेशान जनता को ही होना पड़ता है।