– हरीश बी. शर्मा

आज से विक्रम संवत की शुरुआत हो रही है। देश का अनजान व्यक्ति भी इस विक्रम संवत की वैज्ञानिक काल-गणना को स्वीकार करता है। भले ही हम कितने ही एडवांस क्यों न हो गए हों, हमारे आंगन में तिथियों का कलरव ही गूंजता है। अंगे्रजी तारीखों का अपना महत्व है, लेकिन जब बात शादी के मुहूर्त निकालने की आती है तो पंचांग देखा जाता है।

जन्म का समय हो चाहे मृत्यु का वार। सारा कुछ तिथियों से ही होता है। व्रत हो चाहे त्यौंहार। तिथियां ही हैं आधार। सिर्फ एक 14 जनवरी की मकर संक्रांति का संयोग छोड़ दिया जाए तो ऐसा कोई भी पर्व या अवसर नहीं है, जिसका निर्धारण विक्रम संवत की काल गणना के बगैर हो जाए। बीज यानी दूज यानी द्वितीया का महत्व तो सभी ने स्वीकार किया है। लोक में कहावतें प्रचलित है, क्या तेरस क्या तीज। हां, शास्त्रोक्त ही नहीं लोक-सम्मत भी है विक्रम संवत।

गांवों में सूरज की छाया और चांद के चलने से पता लगा लेते हैं कि घड़ी कौनसी चल रही है। नक्षत्र का पता तारों की तरतीब से लगा लिया जाता है। पंडितों ने इसे व्यवस्थित किया। शब्दों में पिरोया। भारतीय ज्ञान की परंपरा तो यह मूलत: लोक की देन है। बस, फर्क इतना है कि इसे हिंदुओं ने मानना शुरू कर दिया और इस्लाम के पास चूंकि अपना एक हिजरी सन था, तो इसे मुख-सुख की वजह से हिंदु नववर्ष कहना शुरू कर दिया गया।

इस बात में भी कोई संदेह नहीं है कि इस देश में नववर्ष के बहुत-बहुत प्रस्थान-बिंदु हैं। मार्च की क्लोजिंग भी एक ऐसा ही प्रस्थान बिंदु है, जिसे जनवरी को नया साल मानने वाले भी मनाते हैं। तो क्या सिर्फ इसलिए इस नववर्ष की वैज्ञानिकता को छोड़ दें कि इसमें हिंदु जुड़ गया। इस नासमझी का कोई क्या करे जो यह कहते हुए इस नववर्ष की प्राचीन सनातन परंपरा को झटक देते हैं कि हिंदु तो भाजपा का है, संघ का है।  यह सच है कि समकालीन राजनीतिक व्यवस्थाओं के चलते हिंदु भाजपा का हो रहा है, लेकिन 1980 में पैदा हुई भाजपा और 1925 में बने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से कितना पहले हिंदु शब्द प्रचलित था, यह तो स्वीकार करें।  अगर सिंधु सभ्यता से भी हिंदु निकला है तो भी बहुत पुराना।

वस्तुत: हिंदु वह हुआ जिसने सनातन परंपरा को माना। वेदों में आस्था रखी और तदनुरूप आचरण किया। क्योंकि भारतीय सनातन परंपरा बात कहने की छूट देती है तो यहां भी बात कही जाती रही। मत-मतांतर चलते रहे। पंथ-सम्प्रदाय बनते रहे। धर्म भी बने। लेकिन विक्रम के क्रम पर किसी को चुनौती नहीं थी। यही वजह है कि आज भी काल-गणना के नाम पर विक्रम संवत सर्वश्रेष्ठ है। यही वजह है कि इसकी मान्यता है वरना ऐसी क्या वजह है कि हम सारे काम अंग्रेजी तारीखों से करते हैं, लेकिन अंतर में तिथियों का आधार होता है। यह आधार ही भाारतीयता है। वरना, अब तक तो भारतीयता को खत्म कर दिया जाता।

जिस भारतीय इतिहास में राम और कृष्ण को मिथ कहते हुए इतिहास में नहीं पढ़ाया जाता हो, लेकिन आज भी जन-मन में राम और कृष्ण जिंदा हो, उसकी वजह हमारी ज्ञान परंपरा ही है। इस ज्ञान परंपरा का प्रतीक है विक्रम संवत। बस, इतना ही मानें! मनाएं नववर्ष। आप सभी को एक पूर्व वैज्ञानिक काल-गणना वाले भारतीय नववर्ष विक्रम संवत्सर की मंगलकामनाएं।