हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा

देश के आम चुनावों के दूसरे चरण में इस 26 अप्रैल को राजस्थान की 13 सीटों पर चुनाव होने हैं, इसके साथ ही राजस्थान की सभी 25 सीटों पर चुनाव हो जाएंगे, लेकिन इतने महत्वपूर्ण समय में राजस्थान के लिए कांग्रेस स्टार-प्रचारकों के पास समय नहीं होना सीधे तौर पर यह जताता है कि कांग्रेस को राजस्थान से कोई बड़ी आस नहीं है। राहुल गांधी के दौरे रद्दे हो चुके हैं, वजह तबीयत नासाज होना बताई जा रही है। प्रियंका गांधी की सभाओं में भीड़ कम आने की आशंका के चलते कार्यक्रम ही नहीं बनाए गए हैं। इसके अलावा किसी तीसरे नेता की राजस्थान में मांग ही नहीं है।
इससे पहले पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जिन्हें पिछले चुनाव तक राजस्थान कांग्रेस का बड़ा चेहरा माना जाता था, लेकिन वे इस बार पूरी तरह से ‘पुत्र-मोह’ में नजर आ रहे हैं। अपने पुत्र वैभव को जालौर से जिताने के लिए उन्होंने जमीन-आसमान एक कर दिया है। इस बीच वैभव का वह बयान भी चर्चा में है कि उनकी टिकट काटने में पार्टी के लोगों का ही हाथ रहा है। इस बयान को सीधे तौर पर सचिन पायलट से जोड़ा जा रहा है, लेकिन सचिन पायलट हमेशा की तरह ऐसे विवादों से दूरी बनाए हुए कांग्रेस के लिए प्रचार कर रहे हैं। उन्होंने भाजपा से ज्यादा सीटें कांग्रेस को मिलने के बयान ने हलचल मचा दी है, लेकिन यह साफ है कि इस लोकसभा चुनाव में राजस्थान की अधिकांश लोकसभा सीटों पर सचिन पायलट का प्रभाव नजर आ रहा है। उनके अलावा एक नाम गोविंद डोटासरा का बतौर प्रदेशाध्यक्ष सामने आता है, लेकिन वे कुछ ज्यादा नहीं कर पा रहे हैं।
यह सही है कि अगर रामेश्वर डूडी मैदान में होते तो फिजां बदली-बदली नजर आती, क्योंकि भाजपा के खिलाफ जाटों के ‘अंडर-करंट’ को रामेश्वर डूडी की उभार सकते थे, लेकिन उनकी अस्वस्थता के चलते यह नहीं हो पाया। ऐसे में कांग्रेस के राजनीतिक-त्रिकोण में शामिल अशोक गहलोत जहां जालौर में पैक हो गए हैं तो रामेश्वर डूडी के आडे स्वास्थ्य संबंधी मसला है। बचे सिर्फ सचिन पायलट हैं, जो न सिर्फ राजस्थान संभाल रहे हैं बल्कि उनकी देश के दूसरे क्षेत्रों से भी मांग बढ़ रही है।
एक तरफ जहां कांग्रेस का हथियार डाल देना चकित कर देने वाला कदम है तो दूसरी ओर इसे रणनीतिक भी कहा जा सकता है, क्योंकि कांग्रेस ही नहीं बल्कि इंडिया गठबंधन के बहुत सारे दलों को यह लगने लगा था कि उन्हें प्रतिकूल माहौल में सिर्फ अपने आपको बचाए रखने के लिए के लिए मैदान में रहना चाहिए। इस रणनीति के तहत कांग्रेस का कुल दावा सवा दो सौ सीटों के लिए भी नहीं है, जो बहुमत के आंकड़े से काफी दूर है। अगर इंडिया गठबंधन के दलों को भी जोड़ लें तो भाजपा जितनी सीटों पर जीतने की बात कर रही है, उतने प्रत्याशी भी इंडिया गठबंधन के नहीं हैं।
ऐसे में इन चुनावों के परिणाम तो चार जून को आएंगे, लेकिन दूसरे चरण के समीप आने के साथ ही जिस तरह के हालात राजस्थान में सामने आ रहे हैं, उससे यह जरूर लग रहा है कि अगर कांग्रेस इन सीटों पर थोड़ी भी आशान्वित होती तो कुछ अधिक प्राप्त कर सकती थी, लेकिन आपसी समन्वय के अभाव में सभी बड़े नेता अपने-अपने लोगों को जिताने की जुगत में लगे हैं।

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