हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा
राजस्थान में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए बुधवार को नामांकन का अंतिम दिन था। शनिवार तक नाम वापस लिए जा सकेंगे। इसके बाद तस्वीर साफ होगी, लेकिन जिस तरह के हालात सामने आ रहे हैं न सिर्फ कांग्रेस अपर-हैंड होती नजर आ रही है बल्कि भाजपा भी अपने लक्ष्य से पिछड़ते हुए दिखाई दे रही है। खासतौर से रवींद्रसिंह भाटी, हनुमान बेनीवाल अपनी-अपनी लोकसभा से जोर करते हुए नजर आ रहे हैं जाहिर है यह जोर भाजपा पर भारी पड़ेगा जबकि भाजपा से कांग्रेस में आए राहुल कस्वां का चूरू में बढ़ता प्रभाव भाजपा की नींद उड़ाने वाला साबित हो सकता है।

पूरे देश में जहां भाजपा की लहर की बात हो रही है, वहां राजस्थान जैसा प्रदेश जहां से भाजपा 25 की 25 सीटें जीतती रही है, इस बार इस लक्ष्य को कैसे हासिल कर पाएगी, एक बड़ा विषय है। हालांकि, भाजपा ने अपने स्टार-प्रचारकों की सूची में वसुंधराराजे का नाम शामिल किया है, लेकिन टिकटों का वितरण जिस तरह से किया गया है, नहीं कहा जा सकता कि दिग्गज भाजपाई सहमत हैं।

हालांकि, इससे भी बदतर स्थिति कांग्रेस की है। राजसमंद से सुदर्शनङ्क्षसह रावत ने न सिर्फ अपना टिकट वापस कर दिया है बल्कि यह भी कहा है कि उन्होंने टिकट के लिए आवेदन ही नहीं किया। इस पर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के ओएसडी रहे लोकेश शर्मा ने सोशल मीडियार पर टिकट बांटने की प्रक्रिया पर सवाल भी उठाए हैं। इससे पहले सुनील शर्मा को जयपुर से दिया गया टिकट वापस लेकर प्रतापसिंह खाचरियावास को दे दिया गया, इस पर भी काफी आरोप-प्रत्यारोप लगाए गए। यही नहीं, कांग्रेस ने दो सीटें तो समझौते में दे दी है। कम्युनिस्ट पार्टी को सीकर और रालोपा के लिए नागौर छोड़ते हुए हालांकि कांग्रेस ने भाजपा की राह मुश्किल कर दी है, लेकिन फिर भी कुछ ऐसी सीटें हैं, जहां कांग्रेस कड़ी टक्कर देगी।
इन विपरीत परिस्थितियों में भी कांग्रेस के साथ खड़े कार्यकर्ता और नेता इस रूप में भी नजीर हैं कि उन्होंने बुरे समय में कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ा तो दूसरी ओर कांग्रेस के रणनीतिकारों पर चाहे जो भी आरोप लगाया जाए। वे इस उद्देश्य में कामयाब रहे हैं कि भाजपा की सभी सीटों पर जीतने की सपना पूरा नहीं होने पाए।

लेकिन अभी तक यह प्रारंभिक रुझान है, जिसका आधार कांग्रेस का कुछ सीटों पर बेहतर प्रत्याशी देने की रणनीति है। हालांकि, भाजपा में भितरघात से भी असर पड़ेगा, लेकिन मान-मनोव्वल के लिए अभी काफी समय है। नाम वापसी के बाद स्थिति साफ हो पाएगी। फिर भी यह तो कहना ही होगी कि कांग्रेस ने जिस तरह से चुनावी रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है, ऐसा लग रहा है कि भाजपा के विजय-रथ को रोकने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा देगी। अगर ऐसा हुआ तो यह भाजपा के प्रदेश नेतृत्त्च के लिए बहुत ही शर्मनाक होगा। न सिर्फ वसुंधराराजे को यह कहने का मौका मिल जाएगा कि उनके बगैर पूर्ण लक्ष्य का प्राप्त करना असंभव है बल्कि अशोक गहलोत के लिए भी धूम-धड़ाके से वापसी के रास्ते खुल जाएंगे।

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