नेशनल हुक
कांग्रेस ने दक्षिण भारत के राज्यों को छोड़कर बाकी देश में वाम दलों के साथ सीटों का समझौता किया है, क्यूंकि दोनों ही इंडिया गठबंधन का हिस्सा है। मगर कांग्रेस ने केरल में वाम दलों से कोई समझौता नहीं किया है, अकेले ही सभी सीटों पर वो चुनाव लड़ रही है। बस, यहीं से माकपा व कांग्रेस में जुबानी जंग शुरू हो गई।
केरल के मुख्यमंत्री ने राहुल व कांग्रेस पर जमकर हमला बोल रखा है और दोनों दल ही एक दूसरे पर भाजपा को फायदा पहुंचाने का आरोप भी लगा रहे हैं। वाम दलों ने राहुल गांधी के चुनाव क्षेत्र वायनाड व शशि थरूर के क्षेत्र तिरुअनंतपुरम में अपने उम्मीदवार खड़े कर चुनाव को उलझा दिया है। इन दोनों सीटों पर इसी कारण मुकाबला रोचक हो गया है।
मगर वाम दलों व कांग्रेस का असली खेल केरल में बिगाड़ा है भाजपा ने। भाजपा दक्षिण के जिन राज्यों में पांव जमाने की कोशिश कर रही है उनमें कर्नाटक के बाद पहले नम्बर पर केरल है। पीएम मोदी इस राज्य में चुनावी दौरे करके जता चुके हैं कि इस राज्य को लेकर भाजपा गम्भीर है। भाजपा ने इस राज्य में कांग्रेस के बड़े नेताओं के परिजनों को भी पार्टी में लाकर कांग्रेस को झटका दिया है। कांग्रेस के दिग्गज ए के एंटनी के पुत्र तक भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। इस बार भाजपा ने राजनीतिक गणित बिगाड़ने के लिए मजबूत उम्मीदवार उतारे हैं।
भाजपा कांग्रेस व वाम दलों की लड़ाई का फायदा उठाने की रणनीति पर चल रही है। केरल के कई क्षेत्रों में उसने चुनावी गणित अपने उम्मीदवारों से गड़बड़ाया भी है। कहा जाना चाहिए कि भाजपा यहां पूरी शक्ति से चुनाव लड़ी है। क्योंकि उसके पास इस राज्य में खोने को कुछ नहीं है। वो अपना मत प्रतिशत भी बढ़ाने के प्रयास में है।
अब देखने की बात ये है कि केरल में भाजपा उम्मीदवार जो वोट लेते हैं, उससे नुकसान किसको होता है। यदि कांग्रेस विरोध के वोट भाजपा को मिलते हैं तो सीधा नुकसान वाम दलों को होगा। यदि वाम दलों के विरोध के मत भाजपा को मिलते हैं तो कांग्रेस घाटे में रहेगी। कुल मिलाकर केरल के चुनाव की धुरी बनने में भाजपा अवश्य सफल रही है। अब 4 जून को पता चलेगा कि भाजपा ने किसका चुनावी हिसाब किताब बिगाड़ा।
— मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘