ज्योतिष और भाग्य चक्र

कही ये योग आप की कुंडली मे तो नही ?

भारतीय ज्योतिष अपने आप में सम्पूर्ण है  आज के समय काल में ऐसे कोई कसौटी ही नहीं है जो ज्योतिष को परख सके.ज्योतिषी के सही गलत होने पर शंका हो सकती है किन्तु ज्योतिष पर कोई शंका करना हास्यपद है.समस्या बस इतनी है की आज के दौर में शास्त्र को नयी भाषा में परिभाषित करना जरुरी है.मूल तत्व वही रहेंगे किन्तु समझाने की प्रक्रिया थोडा बदलाव चाहती है.
महाभारत में देवी कुंती श्री कृष्ण से कहती है कि मेरे पुत्र महापराक्रमी और विद्वान् है, किन्तु फिर भी हम अपना जीवन वनों में भटकते हुए व्यतीत कर रहे है. ऐसा इसलिए होता है क्योकि भाग्य कर्मो पर आधारित होता है और उसी के हिसाब से आपको फल देता है. अगर कोई व्यक्ति बहुत विद्वान है किन्तु उसका भाग्य उसके साथ नही है तो ऐसा प्रतीत होता है कि उसकी सारी विद्या निरर्थक है. जीवन में भाग्य और पुरुषार्थ दोनों का अपना ही अलग महत्व होता है.
भाग्य में बाधा डालने वाले कुछ योग –
लग्नेश यदि नीच राशि में, छठे, आठवे, 12 भाव में हो तो भाग्य में बाधा आती है। राहू यदि लग्न में हो, मंगल चतुर्थ स्थान में हो तथा नीच का शनि जन्मपत्री में किसी भी स्थान में हो तो भाग्य में बांधा आती है।
लग्नेश यदि सूर्य, चंद्र व राहू के साथ 12वें भाव में हो तो भाग्य में बाधा आती है।  पंचम भाव का स्वामी यदि नीच का हो या वक्री हो तथा छठे, आठवें, 12वें भाव में स्थित हो तो भाग्य के धोखे सहने पड़ते हैं।
नवम भाव में सूर्य के साथ शुक्र यदि शनि द्वारा देखा जाता हो। तो भाग्य साथ नहीं देता। नवमेश यदि 12वें या 8 वें भाव में पाप ग्रह द्वारा देखा जाता हो, तो भाग्य साथ नही देता। नवम भाव का स्वामी 8वें भाव में राहु के साथ स्थित हो तो पग-पग पर ठोकरे खानी पड़ती है।  नवमेश यदि द्वितीय भाव में राहु या केतु के साथ हो और शनि के द्वारा देखा जाता है, तो व्यक्ति का भाग्य बंध जाता है। नीच का गुरु नवमेश के साथ अष्टम भाव में राहु, केतु द्वारा दृष्ट हो तो भाग्य साथ नहीं देता। यदि नीच का गुरु छठे, 8वें, या 12वें भाव मे हो और राहु या शनि द्वारा देखा जाता हो तो भाग्य साथ नहीं देता।अपनी कुंडली के अनुसार सूर्य, गुरु, लग्नेश व भाग्येश के शुभ उपाय करने से भाग्य संबंधी बाधाएं दूर हो जाती है।