हस्तक्षेप
– हरीश बी. शर्मा
जयपुर के धरने में नहीं पहुंच पाए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आज बीकानेर की साढ़े छह सौ लोगों के बैठने की क्षमता वाले रवींद्र रंगमंच से चुनाव का आगाज करने के लिए आ रहे हैं। रात को रुकेंगे। संभव है संगठक के हालात पर नेताओं से बात भी करें। आगे उन्हें नागौर भी जाना है तो दूर तक बीकानेर जिले के नेताओं से मुलाकात करते हुए जाएं।
अशोक गहलोत के लिए बीकानेर एक तरह से दूसरा घर रहा है। लेकिन, पूर्व मेयर भवानीशंकर शर्मा के निधन के बाद बीकानेर के प्रति उनका मोह छूट-सा गया लगता है। शर्मा के रहते गहलोत कभी डॉ.बी.डी.कल्ला के प्रति सॉफ्ट नहीं रहे। यह तो यशपाल गहलोत कच्चे निकले, वरना अभी भी डॉ.कल्ला गहलोत लिए ‘प्लान-बी’ ही होते। यशपाल गहलोत के नाम से इतिहास में यह दर्ज होगा कि एक व्यक्ति को दो विधानसभा से टिकट मिला, लेकिन वह एक भी विधानसभा से चुनाव नहीं लड़ पाया। देश के लोकतांत्रिक इतिहास में यह रिकार्ड बीकानेर के यशपाल गहलोत के अलावा कोई नहीं तोड़ पाएगा। हालांकि, बीकानेर से भंवरसिंह भाटी और फिर गोविंद मेघवाल को मंत्री बना देना, प्रकारांतर से डॉ.कल्ला के प्रभुत्व को चुनौती ही है। शहर अध्यक्ष के पद पर फिर से यशपाल गहलोत को रखना, नगर निगम का नेता प्रतिपक्ष चेतना चौधरी को बना दिया जाना और नगर विकास न्यास अध्यक्ष के लिए भी कल्ला की डिजायर को तरजीह नहीं मिलना, यही साबित करता है कि बीकानेर में गहलोत कैम्प से कल्ला के बढ़ते प्रभाव को रोकने की सारी कोशिशें होती रही हैं, लेकिन भवानीशंकर शर्मा के रहते जितनी सहजता से यह सब हो जाता था, वैसे हालात नहीं है। हालात यह है कि बीकानेर में कांग्रेस पूरी तरह से बिखर चुकी है।

‘द कश्मीर फाइल्स’ से प्रभावित डोटासरा ने गहलोत को भी लपेट लिया!

रामेश्वर डूडी की देहात कांग्रेस में दखल को रोकने के लिए वीरेंद्र बेनीवाल और गोविंद मेघवाल बड़ी भूमिका में हैं। सामान्यतौर पर रामेश्वर डूडी के साथ दिखने वाले भंवरसिंह भाटी भी देहात की राजनीति पर डूडी से अलग राय रखते हैं। हालांकि, कन्हैयालाल झंवर के अलावा अब डूडी ने मंगलाराम को भी साध लिया है, लेकिन इस बीच केश कला बोर्ड का अध्यक्ष महेंद्र गहलोत को बनाए जाने के बाद एक नया धु्रवीकरण कांग्रेस में शुरू हो रहा है। जहां, देहात कांग्रेस के अध्यक्ष रहे लक्ष्मण कड़वासरा को भूदान अध्यक्ष बना दिए जाने से हलचल बढ़ गई है।

इस कांग्रेस को संभालने के लिए अशोक गहलोत अगर समय रहते कोई जतन नहीं करते हैं तो चुनाव के दौरान हालात खराब हो सकते हैं। नेताओं की इस लड़ाई और प्यादों से वजीरों को मात देने की रणनीति के चलते कांग्रेस लगातार कमजोर होती जा रही है। बीकानेर के ब्लॉक की बात करें तो पश्चिम के दोनों ब्लॉक पर डॉ.कल्ला अपने समर्थकों को अध्यक्ष पद देना चाहते हैं तो कन्हैयालाल झंवर पूर्व विधानसभा से अपना दावा छोडऩे के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में संगठन के अध्यक्ष यशपाल गहलोत के पास ‘वेट एंड वॉचÓ के अलावा कोई चारा भी नहीं है। यूथ कांग्रेस के जिला अध्यक्ष धनपत चायल सहित पूर्व विधानसभा से फरमान अली और पश्चिम से प्रदीप शर्मा के बीच भी फासले हैं, जिससे काम सिरे नहीं चढ़ रहा है।  दूसरी ओर, जिस एनएसयूआई के लिए अशोक गहलोत बीकानेर आ रहे हैं, उसे भी डूंगर कॉलेज के अलावा कहीं जीत हासिल नहीं हुई है। यहां से अध्यक्ष श्रीकृष्ण गोदारा हैं। रामपुरिया कॉलेज से लोकेंद्रसिंह जीते, जो एनएसयूआई से ही थे, टिकट नहीं मिली तो बागी हो गए। बाकी एनएसयूआई का कोई बड़ा योगदान बीकानेर की छात्र राजनीति में नहीं है। लिहाजा, कभी छात्र राजनीति में एनएसयूआई का जो दबदबा हुआ करता था, वह भी कम होता नजर आ रहा है।

 

पूरी कांग्रेस सत्ता के इर्दगिर्द सिमटी हुई है और संगठन पूरी तरह से गौण है। महेंद्र गहलोत आज भी खुद को देहात अध्यक्ष बताते जरूर हैं, लेकिन देहात  संगठन को मजबूत बनाने के लिए उन्होंने कुछ किया ही नहीं। अब केश कला बोर्ड के अध्यक्ष बना देने के बाद उनके पांव जमीन पर ही नहीं हैं। इधर, शहर अध्यक्ष यशपाल गहलोत भी रबड़ की मुहर भर है। पिछले विधानसभा चुनाव में हुए ‘हादसेÓ से अव्वल तो वे उबर ही नहीं पाए हैं। अगर वे उबरना भी चाहते हैं तो हालात साथ नहीं देते। शहर कांग्रेस कार्यालय को लेकर भी अनिश्चितता बनी है। भाजपा ने अपनी सरकार के रहते जमीन लेकर कार्यालय बना लिया, लेकिन साढ़े तीन साल में कांग्रेस इस दिशा में कुछ नहीं कर सकी।

 

भाजपा से कांग्रेस में आए गोपाल गहलोत और शशि शर्मा की सक्रियता के लिए भी कांग्रेस के पास कोई योजना नहीं है। ये दोनों ही नेता गैर कांग्रेसी असंतुष्ट नेताओं को कांग्रेस से जोडऩे में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। गुलाम मुस्तफा बाबू भाई, वल्लभ कोचर, बाबू जयशंकर जोशी, मकसूद अहमद और हारुन राठौड़ को भी संगठन के काम में लगाकर सक्रिय किया जा सकता है। अनिल कल्ला में गजब की नेतृत्त्व क्षमता देखी गई है। यह शहर साक्षी है कि उन्होंने राजीव यूथ क्लब के माध्यम से 15 साल पहले वह कर दिखाया, जिसे करने की आज भी कोई कल्पना नहीं कर सकता। एक अच्छी फैन-फॉलोइंग वाले युवा नेता के रूप में अनिल कल्ला को भूलाया नहीं जा सकता। जिस सोशल मीडिया मैनेजमेंट के मुद्दे पर  भाजपा का आइटी सेल कांग्रेस को लगातार डिफिट दे रहा है, उसके लिए अनिल कल्ला एक बड़ी संभावना हो सकते हैं। इसके साथ ही दिवंगत चंद्रप्रकाश गहलोत और गुलाब गहलोत के परिजनों के प्रति भी सरकार व संगठन का ध्यान जाए तो अच्छा संदेश जा सकता है। संगठन के स्तर पर ऐसा नहीं होने के कारण कांग्रेस में मांग और आपूर्ति का सिद्धांत भी जोर पकडऩे लगा है।

 

पिछले कुछ दिनों से मुसलमानों का धु्रवीकरण नगर विकास न्यास अध्यक्ष पद के लिए हो रहा है। नगर निगम में एससी के पार्षद नंदलाल जावा के इर्दगिर्द लामबंद हो रहे हैं। इनका सवाल है कि सभी के लिए कुछ न कुछ तो एससी के लिए क्या? नगर निगम में चेतना चौधरी को नेता प्रतिपक्ष बना देने के बाद कुछ दिन तो हलचल रही, लेकिन सुभाष स्वामी के समर्थन के बाद नेता प्रतिपक्ष का पलड़ा भारी है, क्योंकि सुभाष स्वामी अपने वार्ड से लेकर निगम के गांधी म्यूनिसिपल हॉल तक एक जैसे तेवर के  लिए चर्चित हैं। लेकिन कांग्रेस के पास अकेले एक सुभाष स्वामी ही नहीं है।  अगर सलीके से सिर्फ युवाओं को ही तरजीह मिले तो कमल कल्ला, राजकुमार किराड़ू, मनोज बिश्नोई, आनंद जोशी, मनोज सहारण, संजय आचार्य, विमल भाटी, नितिन वत्सस, महेंद्रसिंह बडग़ुजर, आनंदसिंह सोढ़ा, चित्रेश गहलोत, जावेद परिहार, बिशनाराम सियाग, हजारीमल देवड़ा, सुमित कोचर जैसे अनेक नाम हैं, जिनका मन कांग्रेस की दुर्गति पर रोता होगा, लेकिन इनका रिकगनाइजेशन नहीं हो रहा है। इन्हें आगे नहीं आने दिया जा रहा है। लिहाजा, सरकार होने के बाद भी बीकानेर में कांग्रेस अपरहैंड नहीं है।

 

अशोक गहलोत राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं। शह-मात के खेल में पारंगत। राजनीति में यह सब आना जरूरी भी है, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि राजनीति तब ही कर पाएंगे, जब राजनीति में रह पाएंगे। यह बात भले ही बीकानेर के संदर्भ में हो, लेकिन समूचे देश में कांग्रेस के कमोबेश ऐसे ही हालात  हैं। इस आलेख को पढ़ते जाइये और नाम बदलते जाइये, लगेगा देश में हर जगह इसी हालात में कांग्रेस है। जरूरत है अशोक गहलोत जैसे सुलझे हुए राजनेता की, जो इस बात को स्वीकार करे और एक कार्ययोजना बनाकर इधर-उधर बिखरे हुए कांग्रेसजनों को एक माला में पिरोये। कड़ी से कड़ी जोड़ें। अशोक गहलोत को लोग जादूगर कहते हैं, संभव है इस बार भी जादू चल जाए।