नेशनल हुक
पहले झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को गिरफ्तार किया गया, उन्होंने उसकी आशंका को देखते हुए पहले ही इस्तीफा देकर अपना विकल्प दे दिया था। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी पहले से ही आशंका थी कि ईडी उनको गिरफ्तार करेगी, क्योंकि वो मनीष सिसोदिया व संजय सिंह को पकड़े हुवै ही है। वे मानसिक रूप से इस गिरफ्तारी के लिए तैयार भी थे। केजरीवाल ने ईडी के 8 समन की अनदेखी की और कोर्ट में भी चले गये। उससे साबित होता है कि उनको पता था कि गिरफ्तारी होगी। ये बात वे अपने कई सार्वजनिक बयानों में बोल भी चुके थे।
केजरीवाल इतना सब जानते हुए भी लगातार हमलावर थे, ये उनकी कूटनीति थी। लोकसभा चुनाव आने वाले थे ये वो जानते थे। इसी कारण वे समन की अनदेखी कर रहे थे ताकि जबरिया उनकी गिरफ्तारी हो और वे शहीद का दर्जा हासिल कर सकें। उनको चुनाव में सहानुभूति मिले। दिल्ली व पंजाब में आप की सरकार है, गोवा, हरियाणा, गुजरात, असम में भी उनका कुछ प्रभाव है। केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद जिस तरह से आप के नेता हमलावर हुवै है और सड़कों पर उतरे हैं, उससे लगता है तैयारी पहले से ही थी।
मगर जो उम्मीद केजरीवाल व भाजपा को भी नही थी, वो भी हो गया। विपक्ष के बाकी दल केजरीवाल की गिरफ्तारी पर इतना हमलावर होंगे, ये इन लोगों ने सोचा भी नहीं था। राहुल गुस्से में आये और बयान देने के अलावा केजरीवाल के परिवार से फोन पर बात की। दूसरे दिन उनके परिजनों से मिलने उनके घर भी पहुंच गये। इस बात से कई राजनीतिक दल चोंके। क्योंकि पंजाब में कांगेस व आप आमने सामने है। अभी कुछ दिन पहले ही विधानसभा में सीएम भगवंत मान व कांग्रेस के बाजवा आमने सामने हुए थे। कड़वी भाषा मे एक दूसरे पर आरोप भी लगाये। मगर राहुल ने उनको दरकिनार किया और केजरीवाल के साथ खड़े दिखाई दिये। अन्य विपक्षी दल भी उसके बाद सरकार पर हमलावर हुवै।
भाजपा की सरकार ने बिखरते जुड़ते विपक्ष को केजरीवाल के जरिये फिर से एक होने का मौका दिया है। विपक्षी गठबंधन के सभी दल एक साथ आये और चुनाव आयोग जाकर उन्होंने केजरीवाल की गिरफ्तारी पर नाराजगी जताते हुए हस्तक्षेप का आग्रह किया। राहुल गांधी व खड़गे ने तो पीसी कर उनकी गिरफ्तारी पर रोष व्यक्त किया। क्योंकि झारखंड में हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद वहां गठबंधन कुछ अधिक मजबूत हुआ है। यही स्थिति अब आप के प्रभाव वाले राज्यों में भी बनने की आशंका है। केजरीवाल व सोरेन की गिरफ्तारी का समय राजनीतिक दृष्टि से अटपटा हो गया है। हालांकि जांच एजेंसियों की अपनी पद्धति है, जिस पर टिप्पणी नहीं की जानी चाहिए। मगर ये तय है, इन दोनों का असर चुनावी गणित पर अवश्य पड़ेगा।
— मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘