अरज ‘लॉयन एक्सप्रेस’ लगौलग आप नैं खबरां सूं जोड़्यां राख्यौ है। इण सागै ई अब साहित रा सुधी पाठकां वास्ते भी कीं करण री मन मांय आई है। ‘कथारंग’ नांव सूं हफ्ते में दोय अंक साहित रे नांव भी सरू करिया है। एक बार राजस्थानी अर फेर हिंदी। इण तरयां हफ्ते में दो बार साहित री भांत-भांत री विधावां में हुवण आळै रचाव ने पाठकां तांई पूंगावण रो काम तेवडिय़ो है। आप सूं अरज है क आप री मौलिक रचनावां म्हांनै मेल करो। रचनावां यूनिकोड फोंट में हुवै तो सांतरी बात। सागै आप रौ परिचै अर चितराम भी भेजण री अरज है। आप चाहो तो रचनावां री प्रस्तुति करता थकां बणायोड़ा वीडियो भी भेज सको। तो अब जेज कांय री? भेजो सा, राजस्थानी रचनावां…

घणी जाणकारी वास्ते कथारंग रा समन्वय-संपादक संजय शर्मा सूं कानाबाती कर सकौ। नंबर है… 9414958700

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मधु आचार्य ‘आशावादी’  मोबइल 9672869385

देश री आजादी रे वास्ते हुये स्वाधीनता आन्दोलन ने सबसूं पैला सामने लावण वाला पत्रकार। अबार तक 200 सूं ज्यादा नाटकों में अभिनय और निदेशण कर चुक्या हैं नाटक, कहाणी कविता अर जीवनानुभव पर आजतक लगभग 72 किताबां हिन्दी अर राजस्थानी में लिख चुक्या हैँ। साहित्य अकादमी नई दिल्ली रे सर्वोच्च राजस्थानी पुरस्कार संगीत नाट्य अकादमी रा निदेशन पुरस्कार, शम्भु शेखर सक्सैना साथे कई पुरस्कार सूं सम्मानित।

 

कहाणी  : मजळी जूण

सरोज सात भायां री अेक बहन ही। घणी लाडली। पांच बडा अर दो छोटा भाई हा। पण सगळा भाई उणनै छोटी ही मानता अर घणां लाड करता। मां-बापू री लाडेसर तो पैली सूं ई घणी ही। राजकंवरी दाई राखता घर आळा उणनै।
कॉलेज मांय पढण सारू पूगी तद भायां उणनै बैठाई अर मन री बात पूछी।
– बाई, थूं बताव कांई पढ़णो चावै।
ओ सवाल आठ भाई बहनां मांय सबसूं मोटे भाई करियो। मां-बापू भी सागै बैठा हा। अेकल छोरी रो मन जाणणो हो इण खातर आखो घर भेळो हुयो हो। सबसूं मोटे भाई रो सरोज घणो सनमान करती। सवाल करियो तद पड़ूतर तो देवणो ई हो।
– भाईजी, थे बतावो जिकी पढ़ाई कर लूं।
– ना बाई, थूं सगळां री लाडली है। थारै मन मांय जिकी जचै, उण री पढाई कर। हां सगळां कानीं सूं पूरी छूट है। हरअेक थारी बात मांय हामल भरैला। थूं मन मांय है जकी बताव।
सरोज सोचण लागगी। फैरूं कैयो
– भाईजी, म्हैं फोन माथै बात कर’र आऊं।
– किण सूं?
– म्हारै सागै पढण आळी छोर्या सूं। उणां री जाणसूं, कीं सागो हुय जासी।
– कर ले।
– आऊं अबार।
आ केय’र सरोज आपरै कमरे मांय गई परी। सगळा उण नै उडीकण मांय लागग्या। थोड़ी ताळ बाद सरोज कीणी सूं बात कर’र पाछी आई। आय’र बैठगी। बडे भाई बात सरू करी।
– कांई तय करियो बाई।
– म्हैं इंजीनियर बणणो चावूं।
– थन्नै किसी नौकरी करणी है।
– पढाई खाली नौकरी खातर नीं हुवै। इंजीनियर बणणो चावूं।
– ठीक है। कर तैयारी। म्हैं सगळा सागै हां।
– उण खातर अेक पीईटी रो अेग्जाम देवणो पड़सी।

– तो देय दै। थारै मन मुजब पढ़।

– तो देय दै। थारै मन मुजब पढ़।

– म्हैं आज सूं ई तैयारी मांय लागू भाईजी।

– म्हनैं ठा है थूं पास हुवैला। सरोज घणी राजी ही। उणरै मन मुजब पढण री सगळा हामल भरी ही। कमरै मांय जाय’र उण आपरै सागै पढणियै अनिल सूं बात करी ही। अनिल नै पूछ्यो, उणरी पढाई कांई हुवैला। उण बतायो कै इंजीनियरिंग करूंला। नौकरी मिळ जासी। म्हारै खातर नौकरी जरूरी है  तद ई सरोज इंजीनियरिंग री पढ़ाई करण री तेवड़ली। बा अनिल रो सागो नीं छोडणो चांवती ही। अनिल सूं उणरो न्यारै तरै रो लगाव हो। तीन सालां सूं दोनूं सागै पढता हा अर सागै रैंवता। दोनूं जणा अेक-दूजै सूं लगाव राखता। मन री बातां अेक-दूजै नै बतावता, कीं नीं लुकावता। मन ई मन दोनूं जणा प्यार करता, पण कैयो नीं। अनिल गरीब घर सूं हो। इण खातर डरतो। डर रै कारण मन री बात कैवण मांय हिचक ही। सरोज बडै घर री ही, सात भाई हा। पईसा री कमीं नीं ही। सरोज सोचती कै म्हैं छोटी हूं, पैला म्हैं  क्यूं कैवूं। उणनै इण बात री उडीक ही कै अेक दिन तो अनिल प्यार करण री बात कैवैला ई। उण री बात नै सुणण री उडीक सूं इंजीनियरिंग करण री बात घर आळा नै कैई। अनिल रो सागो रैयसी तद ई तो बो कैवैला। उणनै ठा ही कै जे अलग हुयग्या तो फैरूं दोनूं जणां रै मन री बात मन मांय ई रैय जावैला। टैम निकळै तो बात निबळी पड़ जावै। सरोज इण बात नै निबळी नीं पडण दैवणो चांवती। इणी खातर पढ़ाई रो तय करण सूं पैला फैरूं फोन पर अनिल नै जतायो कै सागै रैवणो चावूं। इणी खातर सागी पढाई कर सूं। कैई बार सरोज सोचती, जे अनिल प्यार री बात माथै चुप रैयग्यो तो कांई हुवैला। म्हनैं कैवणो चाइजै कांई, पण ठिठक जावंती आ सोच’र। म्हैं छोटी हूं, पैला कियां कैवूं। पैला कैवूं अर अनिल ना दे दी तो बहुत भूंडी बात हुवैला। इणी डर सूं सरोज प्यार री बात कैवंती हिचकती। पण सागै रैवै अर प्यार री बात जींवती रैवै, इण खातर सागो राखणो जरूरी हो। प्यार री उण री उम्मीद नै घर आळां री हामल सूं ताकत मिली। मन मांय कैई तरै रा सुपनां जींवता हुयग्या। उणनै लाग्यो कै अबै तो बात बण ई जास्सी। अनिल रो मून तूथसी अर प्यार रा बोल फूटसी। सरोज जाणती कै पइसां सूं निबळो हुवण रै कारण ई अनिल रै मुंडे माथै ताळो है। उणरै इण ताळै नै खोलणो जरूरी है। सजोगै घर री हूं इण खातर अनिल डरै। उणरो डर भगावणो ई पैलो काम है। पढाई तो हुवती रैयसी, पैला डर भगावणो है। इणी बात नै सरोज इंजीनियरिंग री पढाई मांय जावण सूं पैला गांठ बांध ली। चार साल है, इण मांय मूंडै रो ताळो तो खुलवावणो ई है। उणरै बाद तो घणी जैज हुय जावैला। प्रेम मन मांय ई दम तोड़ देवैला।

सरोज मन लगाय’र पीईटी री तैयारी मांय लागगी। जद अेक लक्ष्य मन मांय हुवै तो दूणो जोस हुय जावै। हर काम छोटो लागै, आई उणरै सागै ही। तीन नीं पांच घंटा तांई पढण मांय लाग्योड़ी रैंवती। उणनै ठा ही कै उण मांय पास हुयां ई अनिल रो सागो मिल सकै। घर आळां नै लागतो इंजीनियर बणण री कीं घणी मन मांय है, उणांनै कांई ठा हो कै किणी रै सागै रो लक्ष्य मन मांय हो।पीईटी री परीक्षा सरोज मन सूं दी अर पास हुयगी। अनिल भी पास हुयग्यो। दोनूं जणा नै अेक कॉलेज मांय एडमिशन मिलग्यो। सागो हुवणो ई हो। अनिल अबार तांई तो दूर भागतो अबै कीं उण मांय बदळाव हुयो। लाग्यो कै नौकरी पक्की है इण खातर प्रेम करणो चाइजै। पण अजै तांई सरोज रै लूंठै परिवार सूं डरतो। प्यार मांय पहल कुण करै, आ ई बात मोटी ही। इणी पहल री उडीक मांय अेक साल निकळग्यो। दोनूं पास हुयग्या। सरोज रै धीरज रो बांध अबै टूटण लाग्यो हो। उणनै लाग्यो कै जे अनिल नीं कैवै तो उणनै कैय देवणो चाइजै। अेक दिन सिंझ्या सरोज आपरै मोबाइल सूं अनिल नै व्हाट्सअप माथै मैसेज करियो अर पब्लिक पार्क मांय मिलण रो कैयो। टैम माथैं दोनूं पूगग्या। अे सागै आया, इण सूं ठा पड़ती कै दोनूं पासी सूं बात कैवण-सुणण री उंताळ ही। दोनूं जणा पब्लिक पार्क रै अेक खुणै मांय जाय’र बैठग्या। बठै कम ई लोगां री निजरां पड़ती ही। बात पैला सरोज नै ई सरू करणी पड़ी। अनिल तो चुप ई बैठो रैयो। उणरै कांनी देखण मांय ई हिचक ही।

– इंजीनियरिंग करियां पछै नौकरी तो पक्की ही है।

– हां, उण मांय तोड़ो नीं है।

– कीं खुद माथै भरोसो भी बध्यो हुवैला।

– नौकरी री आस ठावस तो देवै ई है।  बात थमगी। उणनै फैरूं सरोज सरू करी।

– अब कांई सोच्यो।

– किण बात मांय?

– जकी बात आज तांई आपां दोनूं अेक

– दूजै नै नीं केय सकिया हा। अनिल चुप हुयग्यो। कीं नीं बोल्यो।

– चुप रैयां पार नीं पड़ै। कैई बरस निकाळ दिया।

– म्हैं कांई बोलूं।

– बोलणो पड़ै तद ई बात ठा पड़ै।

– म्हारो बोलणो जरूरी है कांई।

– म्हैं तो आई सोचूं।

– पण म्हारै सोचण रो मारग दूजो है।

– आ बात म्हारी समझ नीं आई।

– आ ही समझ री बात है।

– नीं समझी तो, समझाओ म्हनैं।

– नीं समझी तो, समझाओ म्हनैं। अनिल चुप हुयग्यो। थोड़ी ताळ चुप रैयो अर उणरै बाद सरोज नै पाछो सवाल करियो।

– साच सुणण री ताकत चाइजै।

– म्हैं निबळी नीं हूं। सजोगी हूं। सुण सकूं हूं सब।

– अकरी बात है, रीस मांय आय जावैला।

– कैवण री हिम्मत करो। म्हारी म्हारै माथै छोडो। इण तरै रै पड़ूतर री उम्मीद अनिल नै नीं ही। सरोज री लापरवाही उणनै डराय दीयो। मन मांय कैई विचार आवणा सरू हुयग्या। वो सोचण लागग्यो कै आ छोरी किण माटी री बणियोड़ी है। आगै-लारै री कीं नीें सोचै। अनिल नै चुप देख’र सरोज बोली।

– कांई हुयो। मूंडै मांय मूंग घाल लिया। मूंडो खोलो।

– सरोज, साची बात सुणणो बहुत दोरो काम है। उण सूं भी दोरो काम साची बात कैवणो है। इणी तरै री बातां सोचतो हो। मूंडै मांय मूंग नीं घाल्या।

– जकी बात कैवणी सही लागै, कैवणी चाइजै।

– साच है, कैयां ई कीं रस्तो निकळै।

– कैवणो इणी खातर सई रैवै।

– तो साच सुण लेयसो नीं। सरोज नसड़ी हिलाय’र हामल भरी।

 – साव साची बात तो आ है कै म्हैं भी थन्नै प्रेम करूं। बरसां सूं करूं। थूं भी म्हनैं प्रेम करै, आ भी ठा है। थन्नै पढ़ण री जरूरत नीं है। नौकरी नीं करणी है। पण म्हारौ सागो रैवै इण खातर इंजीनियरिंग मांय आई। इण बात री म्हनैं ठा है। थैं थारै घर आळां नै राजी करिया। थूं लाडेसर है। सात भायां बिचाळै अेक सोनल बाई है। इण खातर थारी बात मानीजै। आखो घर थन्नै राजी राखै। घर मांय सोरप है। जात ऊंची है अर पइसा है, इण खातर समाज मांय भी ऊंची ठौड़ है। हरेक नै थांरै घर कांनी देखणो पड़ै अर हर बात मांय हां करनी पड़ै। पण, म्हारै सागै आ नीं है। म्हैं अेक निबळै परिवार रो हूं। मूंडो उठाय थारै घर कानीं देख नीं सकूं। थारा गुण ई म्हनैं डरावै। जै कीं ऊंच-नीच हुयगी तो म्हारै सागै कोई नीं रैवै। सगळा थारै घर आळां रै सागै रैवैला। इण खातर ई प्रेम री बात कैवण सूं डरुं। कैवण रो काळजो लावूं कियां। डर सूं कापं इणी खातर नीं कैवूं साच तो ओ है। अेक सांस मांय अनिल सगळी बातां बोलग्यो। उणां री बातां मांय पीड़ा ही, साफ निजर आंवती। सरोज अचम्भै मांय पडग़ी। उणनै इण तरै री बातां री उम्मीद नीं ही। अनिल री बातां मांय साच हो। समाज रो साच। इण माथै सरोज कदैई नीं सोच्यो। प्रेम मांय मिनख री सोचण री ताकत कम हुय जावै, सरोज नै आज ठा पड़ी। पण दूजी कांनी अनिल माथै घणौ गुमेज हुयो। प्रेम हुंवता थकां ई साच नै उण नीं बिसरायो आ हर मिनख मांय नीं मिलै। पण इण सांच सूं मोटो साच तो प्रेम हो, जको दोनूं अेक-दूजै सूं करता हा। उण रै सामीं  दूजा साच छोटा हा पण खाली सरोज खातर। अनिल रो साच उण सूं दूजो हो अर प्रेम सूं मोटो हो। सरोज कांई पड़ूतर देवै, उणरी समझ नीं आयो। इणी खातर चुप हुयगी ही। उणनै चुप देख’र अनिल बात सरू करी।

– म्हारी इण बातां रो पड़ूतर तो देवो। चुप रैवण सूं पार नीं पड़ै। इण साच माथै कांई कैवो हो।

– म्हैं मानूं इण साच नै पण प्रेम है, ओ भी साच है।

– उण मांय तो म्हैं भी हामल भरी।

– उण खातर ई रस्तो देखणो चाइजै।  रस्तो जै दीखतो तो कदैई प्रेम री बात कैय देंवतो।

– अबै ई रस्तो देख लो।

– म्हनैं तो च्यारूंमेर अंधारो लागै। जै थन्नै रस्तो दीसै तो बताय दो।  सरोज रै मूंडै ताळो लागग्यो हो। साच मांय रसतो नीं हो उण कन्नै।

– अबै आपां चालां। किणीं देख लियो तो साच तो आज ई झूूठ मांय बदळ जावैला। बोलण जोगा ई नीं रैस्यां।   सरोज चुप रैई।

 – आपां रो इण तरै सूं मिलणो ठीक नीं है। मोटी अबखाई आय सकै। म्हनैं तो डर लागै।

– डर ही प्रेम मांय मोटो रोड़ो हुवै।

– इण साच नै जाणूं पर डर भी अेक साच है। डर रै कारण कैई बातां मिनख नै मन मांय ई राखणी पड़ै।

– मन मार’र जीवणो तो ठीक नीं है।

– जीवणो पड़ै, भलाई ठीक ना हुवै।

– मन री ताकत तो देंवतो हुवैला?

– सजोगै नै देवै, निबळै नै नीं। सरोज इण पड़ूतर माथै चुप हुयगी। अनिल पाछो कैयो।

– तो अबै चालां। हुयगी बात।

– आज पैली बार प्रेम री बात तो करी, आई ठीक।

– बात सूं कांई बंटै प्रेम है, आ दोनूं जाणां पण साच भी जाणां। उण प्रेम रो कांई करां जकै रो अंत निजर नीं आवै। म्हैं चालूं। सरोज कीं नीं बोली। अनिल उठ’र व्हीर हुयग्यो। सरोज कैई ताळ अेकली बैठी सोचती रैई। उण नै लाग्यो जुग रो साच तो अनिल बतायो। इण जुग अर समाज मांय जीवां तो उण सूं अलगा होय’र जीवणो दोरो घणो है। सबळा हुवां तोई जी सकां। पण अनिल तो जात, पइसां सूं कीं घणो ई निबळो हो। सूं कीं घणो ई निबळो हो। उणनै लाग्यो म्हनैं ई कीं करणो पड़ैला। रस्तो म्हैं नीं निकाळ सकूं। पण सातुं भाई इण काम मांय हामल भरै, इण री उम्मीद तो कम है। उणां नै कियां मनाऊं, आ मोटी बात है। समाज मांय घर आळां री ऊंची ठौड़ है इण खातर मानणो सोरो काम नीं है। आज तांई तो प्रेम री सोची पण आज सोच  बदळग्यो हो। रस्तो सोधणो हो, ओ घणो अबखाई रो काम हो,पण हिम्मत हार्यां तो पार नीं पड़ै, कीं तो करणो ई पड़ैला। आ सोच’र सरोज पब्लिक पार्क मांय सूं उठी अर घर कानीं चाल पड़ी। आज उण मांय जोस नीं हो अर चैरै माथै सोच हो। घर मांय घुसता ई बडे भाई सूं सामनो हुयो। – आओ बाईसा। सरोज कीं जवाब नीं दीयो।

– कांई बात है? तबीयत तो ठीक है नीं।?

– हां। – पण चैरो तो उतरियोड़ो है। किणी कांई कैय दीयो कांई। सरोज संभळगी।

– ना भाईसा। थाकगी ही। पढाई घणी करनी पड़ै नीं।

– तो आराम करो बाईसा। पढाई थकावै तो गोळी मारो इण नै।

– ना, रोज इयां नीं हुवै। आज कीं घणो काम कर लियो।

– माथै रो काम थकावै कीं घणो ई है। – साच कैवो।

– थे आराम करो कमरे मांय। म्हैं अबार थांरै खातर दूध भिजवाऊं।

– ना भाइसा, कीं पीवण री इच्छा नीं है। आराम कर सूं।

– जरूर करो। सरोज आपरै कमरै मांय गई परी। कियां बतावै कै आज तो साच सुण’र आई है अर उणरो रस्तो सोधणो है। रस्तो नीं मिळ्यो तो मन री बात अधूरो सुपनो बण’र रैय जावैला। रस्तो भाई नीं बताय सकै, घर आळा नीं बताय सकै। खुद नै ई सोधणो है। इणी खातर चैरो उतर्यो हो। उण दिन रै बाद सरोज अर अनिल कॉलेज मांय मिलता। अेक-दूजै कांनी देखता अर निजरां नीची कर लैंवता। किणी तरै री बात नीं  हुंवती। फोन माथै बात हुवणी बंद हुयगी। सरोज घणकरी गुमसुम ई रैंवती। घर आळा घणोई पूछता पण कीं नीं बतावती। महीना निकळ्या। अबै तो सरोज अर अनिल आमी-सामी नीं हुवता। कैई दिन निकळग्या दोनूं अेक-दूजै नै नीं देख्या। जद घणां दिन हुयग्या अर अनिल निजर नीं आयो तो अेक दिन सरोज उण री क्लास रै अेक छोरे नै कॉलेज मांय रोक्यो अर बात करी।

– आजकल अनिल नीं दीसै। कॉलेज आवै है कांई।

– ना। कॉलेज नीं आवै। तीन महीना हुयग्या।

– कांई कारण।

– उण कॉलेज छोड़ दी।  सरोज नै झटको लाग्यो।

– छोड़ दी – हां।

– कांई कारण?

– पढाई छोड’र घर रै काम मांय लागग्यो।

– म्हनैं पूरी बात बताओ।

– उण रा पिताजी चालता रैया। दुकान चलावणी जरूरी ही, घर आळा रोटी उण सूं ई खावता। उणनै दुकान संभाळणी पड़ी। इण खातर पढाई छोड़ दी। अेक दिन बतायो पढाई रो जोग नीं है। सरोज कीं नीं बोली। उणनै लाग्यो उणरो प्रेम रो सुपनो अबै कदैई पूरो नीं हुवैला। नौकरी री आस अनिल री मोटी ही अर उण सूं ई दोनां रो प्रेम बंधियोड़ो हो। पण अबै तो वो सुपनो अधूरो ई रैवैला। सरोज मन मांय तेवड़ली कै आज रै बाद कॉलेज नीं आवैला। आगै पढ़ाई नीं करैला। जद अनिल ई नीं है तो पढणो किण खातर है। जीवण रा सगळ सुपनां पूरा हुवै आ जरूरी नीं है। खाथा पगां सूं घरां कांनी व्हीर हुयगी। घर मांय घुसतां ई भाईजी मिळिया। – कांई बाईसा, आज जल्दी कींकर आया?

– भाईजी पढाई मांय मन नीं लागै। अबै पढू नीं। कॉलेज नीं जाऊं।

– आपांरै पढाई कर करणो कांई है। ना जाओ। आछी बात है।  सरोज आपरै कमरै मांय गई। उणनै भाईजी री बात सुणीजी। मां नै कैंवता हा।

– मां, बाईसा पढाई छोड़ दी। आप ब्यांव री बात करो। अगले महीनै ब्यांव करसा। आ सुणता ई सरोज री आंख्यां मांय आंसू आयग्या। हर आंसू मांय टूटतो सुपनो निजर आंवतो हो।

पवन राजपुरोहित

रूड़ौ राजस्थान, बिणजारौ, राजस्थली आद पोथ्यां मांय कवितावां रो छापण ।राजस्थानी मांय निरन्तर लेखन।

 

कविता  : थारी प्रीत 

 

मन आंगणियै मुधरौ-मुधरौ

बाजै थारै नैह रै बायरौ

इण परवाई मांय

झुमतौ गावतौ

नत सुपनां संजोवतौ जीवन

कुचमादी करती

थांरी निजरां

लजखावणौ हुवतौ जीव

झाजौ हेत भरतौ

तावड़ै छिंया ज्यूं

थारौ म्हारौ सागौ

अवैरूं आपणै प्रेम रा

मीठा रसभींजा गीत

गावती जाऊ मीरा ज्यूं

बण थारी प्रीत।।।।

 

कविता : भतूळियौ.

 

कळजुग मिनख

पुग्यौ सहर

कर गियौ सूनौ

घर-गुवांड़

खेत – रूखड़ा

अरट-बेरी

देख सूनियाड़

आयौ भतूळियौ

उड़ गियौ कैलु

झीपरै रौ

बूढ़ी आंख्या

लागी मैह झाट

थळगट बैठी

जौवे बाट

आवेलौ पूत

करेलौ सार – सम्भाल

म्हारी

घर-गुवांड़

खेत-रूखड़ा अर

अरट – बेरी री

सीचैं ला अपणायत

हुवैला सूनियाड़ हरी भरी

पण पाछौ तो बावड़ै

भतूळियौ ही……..!

 

 

हरीश बी.शर्मा,  मो. 9672912603

नाटक कविता, कहाणी, गीत अर इण रे सागे पत्रकारिता करे। राजस्थानी में नाटक भी लिखै है, इण री रचनावां में थम पंछीड़ा अर फिर मैं फिर से फिरकर आता, गोपीचन्द की नाव अर देवता, अैसो चतुर सुजान, सतोळियो अर साक्षात्कार संकलन हुनर हौंसले की कहानियां जिसी घणी किताबां है।

कहाणी  : काशी काका

मुरनायक जी रै मिंदर में सावाथापणा हुय री ही। वर-वधू पख रा नेगचार चालै हा। मंतरां रै बीचै सगो सगे रै गालां पर कूंकंू लगायनै सुगन करिया फेर दोनूं सगा नारेळ अर दखणा लेयनै निज मिंदर कानीं जावण लाग्या क काका काशीनाथ बीचाळै ई रोक लियौ। दोयां रे हाथ रा नारेळ लिया अर उण माथै अणूंतो कूंकंू थेथड़ दियो। कूंकूं भरिया नारेळ पाछा झलांवता बोल्या, ‘अब चढ़ाय दो…’।
सगा आगे बधिया तो हूं पूछियौ, ‘ओ कांई खेल है काका…?’
काका काशीनाथ बोल्या, ‘अरे अे पुजारी नारेळ बेच देवै बजार में, अब कूंकूं लागियोड़ा कुण लेयसी…। चढ़ाया है तो चढावे ज्यूं काम लो। खाओ भलांई, बेचो तो नां…पण इयानै तो पइसा चइजै, पेड़ा अर माळा ई बेच खावै अे तो…’
हूं काका री इण हुसियारी पर निछावर हुवण आळौ ई हो, क कनै खड़ौ एक जणो बोल्यो, ‘पुजारी घणां हुसियार हुयग्या है काशीनाथ जी, वे जोटी उतार परा गट बेच देसी, फेर कियां रोकसो…?’
उणां री बात रो काका कनै कोई जवाब नीं हो, वै मूंडौ बणायौ अर म्हारै सागै निसरग्या। काका काशीनाथ अलबेला हा। म्हारा सागण काका हा। मोल-तौल रा माहिर। साग सागै धाणा-मिरचां तो कांई नींबू भी फोगट में लेय आंवता। केई दफै तो दो टमाटर भी घलाय लांवता। पण केवै है नीं, तैराक री ई विधवा हुवै।
अेक बार संक्रांत माथै तेरुंडौ बाटण खातर तेरै कांबळां मोलाई, सोच्यो दान-दखणा रा भाव राखण कारणै काकी राजी हुयसी। बजार सूं सस्ते भाव में मिली कांबळां खातर कुण राजी नीं
हुवै। पण जियां काका रै जस लिख्यो ई नीं हो। कांमळां घरै लाया तो काकी तईड़ौ लेय लीन्हौ। क्यंूकै अे कांबळां तो काकी दो दिन पैलां ई रैन-बसेरे आळां नैं बांट’र आई ही। वे इज कांमळा पाछी बजार में आयगी अर जोग देखो, काका ई पाछी मोलाय नैं घरां लाया।
इण रै बाद तो जाणै काका नै किणी माथै भरोसो ई नीं रैयौ। किणी पर नीं रौ अरथ क भगवान पर भी नीं। उणां रै मन में अेक बात बैठगी क साहूकार कोई नीं है। जे कोई साहूकार बतावै तो वौ सैं सूं बडो चोर, आ ही काका री आप री मानता। अर इण रै पछै तो जियां वे सगळां रा पोत चौड़े राखण रो अभियान ई छेड़ दियो।
कुण किण में किण-किण तरै री सेळ-भेळ करै, सैं ठाह ही। खुद भी ठाडा दुकानदार। डंके री चोट केंवता, कोई सेळ-भेळ बतावै, हजार रिपियां रो इन्याम लेय’र जावै। कुल मिला’र बातां रा राजा। जे बतावण नैं बैठ जावै तो भोर उगाय दे। किणी री बात कर लो, चेले सूं कम हुवै ई नीं। कोई भी पूगियोड़े रौ नांव ले लो, जवाब हुंवतो— चेलो है रे म्हारो !
सगळां नै जाणता अर जे कोई पिछाणबा सूं मना कर दे तो फैर देखी ही है, सात पुस्तां याद करा देंवता। लेण-देण में चीढ़ा। देवणो तो जियां सीख्यौ ई नीं। किराणै री बडी दुकान रा मालक हा। उधार तोलण में किणी नै मनाही नीं ही पण कवलसर पइसा नीं पूगावै तो तकादौ लेय’र घरां पूग जांवता।
केबत है नीं क जोड़ो असमान इज हुवै। वा ईज बात। काकी कस्तूरी देवी जमा ई कंवळी। दान-धरम में मन रमियौ तो फेर किणी में कोई रुचि ई ना रैयी। कंजूस काका काकी नैं कोई टाबर-टींगर भी नीं दियौ तो भी दोनूं में किणी तरै रो ओळभो नीं। काकी नैं कदै काका ओ मैणों नीं दियो क थांरी कमी है अर काकी भी कदै नीं अखरायो क थां सूं कीं नीं हुवै…। जाणे कद अर किण वेळा में दोनूं रै बीचाळै अेक समझ पनपी अर इण विसै पर दोयां में कदै झोड़-झपाट नीं हुयो।
काको आपरो कारबार चलांवता अर काकी कमायोड़ा पइसां सूं देवी-देवता मनांवती। हरजस गांवती। गवाड़ री च्यार-पांच दूजी लुगायां सागै तीरथ-डेरा, दान-पुन्न अर भगती में जूण गाळणो तेवड़ लियौ हो। उण नैं जित्ता पइसा-टक्का चाइजता मिळ जांवता। काका भलांई सारे सैर में कंजूस हा, पण काकी साम्हीं तो दातार ई हा।
कस्तूरी काकी काका री आदतां जाणती, पण आ भी जाणती क केवण सूं कीं नीं हुवैलो। इण खातर उणां नै नीं बरजती, पण करती आप री मनमरजी।
काका भी नीं रोकता। रोके तो किण मंूडै सूं। दियौ कांई हो जकौ? जे काकी कदै आडी मंडगी तो? इण सवाल रै अनेसे सूं डरते-डरते काका घर में संचळा ईज  रेंवता। आ बात अलायदी है क काकी कदै काका ने मैणा नींं सुणाया। पण डर तो डर इज हुवै। केबत है नीं भूत नीं भुवाळियो मार दे। ठाह नीं, काका रै मन में कांई हो क उणां काका रौ सुभाव घरां आंवता ई बदळ जांवतो अर काकी सदीव अेक जिसी रेंवती। अलबत आ जरूर ही क कदै किणी सूं भी इण तरै री बातां नीं करती, जिके सूं काका रै मन नैं दोरप पूगे।
संतान नीं हुवणनै परमात्मा री मरजी मानपरी अपणे आप नै भी नेम-धरम रै मारग घाल लिवी। पचास साल री उमर में बडा-बडा तीरथ देख लिया अर जाणै कित्ती इज भागवतां सुण चुकी ही। अेक अटैची हमेस त्यार रैंवती। जियां ई ठाह पड़ती क संतां रा पगलिया हुया है, खुद साम्हींं पगां पूग जांवती।
नेम-धरम तो कांई, घर-समाज में भी काकी रौ घणोंं मांन। हारी-बेमारी जे किणी नैं जरूरत हुंवती तो काकी ई याद आंवती। साच तो आ क काकी नैं कीं केवण री जरूरत ई नीं पड़ती। वा खुद जांणती। किण नै कांई चाइजै। दो-तीन हजार रा नोट तो उण री टुक्की में ई रेंवता। चुपचाप निकाळ’र झलाय आंवती, अर इण बात रै सागै क जद वापरै म्हनैं ईज दियै। काका नै ना बताइजै।
काका नै बियां भी कांई ठाह पड़तौ। आपरौ कारबार सांभ लेवे जिको ई घणै में हो। साच तो आ ही क अेक पइसे रौ मुनाफो लेंवता ई सोचता क किण रै वास्ते जोडऩो है? है कुण खावणियों। जियां-तियां कारबार में मन लगांवतो। घरां जावण रो समै हुंवतो जद साथला आप रै पोता-पोत्यां री फरमाइसां सूं भरिया थैला लेय’र रवाना हुंवता अर काका खाली हाथ। कदास उण रै लारै भी कोई हुंवतो।
काका रो मन हो क उमर बधै उण सूं पैला ई कोई कारबार रौ वारिस मिळ जावै। अब वारिस मिळै किण सूं? काकी नैं तो जियां फुरसत ई नीं ही। यार-भायला सला दी क दूजी लेय आ, किसी उमर हुई है। पण काका अणसुणी कर दी तो किणी नै खोळे लेवण री राय आई, आ बात काका रै जचगी।
तो दो-तीन बार काका काशीनाथ काकी साम्हीं किणी नै खोळै लेवण री बात चलाई। पैली तो काकी साव मना कर दियौ। पण काका भी हिम्मत नीं हारी। अेक दिन फेर काकी नै समझांवता काका बोल्या, ‘नांव रेय जासी डावड़ी, कीं तो सोच…आपां रै जावण रै पछै कुण सांभसी…’ काकी देर तांई काका नै देखती रैयी अर फेर बोली, ‘थांरी बात पूरी हुयगी हुवै तो म्हैं बोलूं?’
काका चुप हा। उणां ने ठाह पडग़ी ही क काकी ने बात जची नीं है। बस अेक’र फेर उत्तर लेवणो है। पण काकी नीं रुकी। जकी बात काकी कैयी, उण सूं काको लाजवाब। काकी बोली, ‘जद परमात्मा ई नीं दियौ तो दूजै किणी रो कियां लेय सकां हां। कांई ठाह ओ आपां रौ आखरी जलम हुवै।’
काका सरनाटे में हा। कांई केंवता। परमात्मा नैं नीं मानण वाला काका नैं इयां लाग्यो जियां उण रै तो कीं हाथे-बाथे ई नीं है। सौ-कीं परमात्मा ई करे। सारा ने परमात्मा दियो अर म्हनंै नीं दियो, तो साच है, उण री मरजी हुवैली।
उण दिनरै बाद काका कदै किणी टाबर नै खोळै लेवण री बात काकी सूं नीं करी। जूण री जातरा जारी ही। स्यात काका मुगती रा कांमी नीं हा। काकी री बातां सुण’र काका ने धचकौ-सो लाग्यौ। वे चावै हा उणां रो वंस बधै। नांव रेवै। काशी-कस्तूरी रैवास हरियो-भरियो रेवै। पण अबै कांई? काकी तो मुगति रे मारग व्हीर हुय चुकी ही। थक्योड़ा काका हार चुक्या हा।
उण दिन रे बाद काका कीं घणां हंसी-ठट्ठा करण लाग्या। केई दफै म्हारै सागे ही जीमता। आज भी आयग्या अर बोल्या, ‘टिफण में कांई है…खोल बाळ….’
काशीनाथ अर विश्वनाथ दो भाई हा। विश्वनाथ म्हारा पिताजी। उणां री मिरतु रै पछै दुकान म्हनै सांभणी पड़ी। पिताजी री फोटू कांनी देखतां काका बोल्या, ‘…मर्यां पछै लोग कठै जावे है?’
म्हनैं लाग्यो आज भाई ने भाई री याद आई है। म्हैं गिद्दी कने राख्योड़े टिफण ने खोलण लाग्यो तो वे म्हारै कांनी देखता बोल्या, ‘थने पूछूं हूं…’
‘म्हनै लाग्यो पापा ने पूछो हो, दो भायां रे बीचै म्हैं कुण…?’
काका म्हारे कांनी देखता बोल्या, ‘म्हनैं लागे मैं अेकलो ई मूरख हूं…थे सारा तो खूब हुसियार हो। चावे जियां करो। दावे जियां रैवो…’
‘सगळा बैठ’र ई सूवै काका सा…’
‘अर घोड़ो…?’
‘म्हैं कदै देख्यो नीं काका…’
‘म्हैं भी नीं देख्यो, अेक बात बताऊं, कोई नीं देख्यो पण सगळा लाग्या है आपरो आगोतर सुधारण नैं…’
म्हनैं समझ नीं आयो क आज काका चावे कांई है। आज उणां रे कनै हुसियारी रा कोई अखाणां नीं हा। म्हैं उणां साम्हीं टिफण खोल’र धर दियो। वे साग देख्यो अर बोल्या, ‘आज साग भाभीजी बणायो है…’ म्हैं कीं नीं बोल्यो। अचाणचक बोल्या, ‘चावना तो ही के थनै खोळे लेय लूं…पण…पण थांरी काकी नीं चावै…’
हूं मुळकतौ बोल्यौ, ‘काकी नै जेठूते सूं घणौ पीवरलां माथै हेत हुवैलो…’
‘अरे नीं, इसी बात नीं है…वा तो बातां ई दूजी करै। साधवां री संगत में उण नै मुगती सूं कम कीं नींं चाइजै…’
म्हैं कींं नीं बोल्यौ। दोनां बीचै मून पसरियौ रैयो। काका बोल्या, ‘सोचूं, फेर अै सब क्यूं तो करूं… म्हैं भी थारी काकी रौ सागो कर लूं…’
‘कियां?’
‘कियां फेर कियां…जे परमात्मा ई सै-कीं करण वाळो है तो फेर इयां ई ठीक। वा जावै उण ठौड़ हूं भी जावण लागूं…मिंदर, डेरा, तीरथ, सत्संग…’
‘आप नीं कर पावोला…’
‘क्यूं, क्यूं नीं कर पाऊं?’
‘आप कद मान्यौ हो परमात्मा नै…’
‘पण, वा केवै उण री मरजी सूं ही सै हुवै…’
‘हां, वै तो माने है…हंू आप री बात करूं?’
‘जे जूण ईज आखरी तो फेर कांई तो करणौ अर कांई तो नीं कर पावणो, निकाळनी तो आ जूण ईज है…’
हूं हंसियौ तो काका म्हारै साम्हीं देख्यौ, बोल्या कीं नीं। रोजीना जियां जीमणे रै बाद थोड़ी देर बोरी सूं टेक लगायनै बैठ्या अर फेर आपरी दुकान री दिस ली।
जाणै क्यूं आज काका रौ इयां जावणौ अखरग्यौ। आपरी हुसियारी रै कारणै जाणीजता काका मांय सूं इत्ता टूटियोड़ा है, आज ठाह पड़ी। काका री बातां कीं पल्लै नीं पड़ी। यूं लागै हो जियां वै किणी गतागम में हा। जकी बात ही वा नीं केय’र आडी घालै हा। गतागम में पजियौ मिनख अलोदरा फैसला करै। पण गतागम कांई हुय सकै, जे ठाह पड़ती तो कीं मारग भी सोधता। कीं भी तो नूंवो नीं हो। काकी रौ सुभाव। टाबर नीं हुवण री पीड़। आज री बात तो कोई ही इज नीं। फेर अचाणचक काका री अे बातां। कीं समझ नीं आयौ।
समझ अर म्हारै बीचै कोई अेक दिन री दूरी ही। आगले दिन काका दुकान साम्हीं सूं निकळता ठैरग्या। इयां पैली बार हुयो हो। दुकान जांवता म्हारी दुकान तो कांई कठै नीं ठैरता। तय हो, दस बज्यां दुकान खोलणी है तो चायै लोग घड़ी मिलाय लो। म्हैं अगरबत्ती करपरो गिद्दी पर बैठियो ई हो। उणां नैं देखतां ई नीचे उतर्यो अर पगेलागणा करिया तो वे बोल्या, ‘आज सूं आपां भी भगवान रै भरोसे…’
म्हनैं लाग्यो क काल अर आज आळा काका में कीं फरक तो आयो है। हंसी-ठट्ठा करण आळा काका आज पूठा लाधग्या हा। देख’र मुळक्यो अर पूछियो, ‘किसा भगवान…’
काका संजीदा हुंवता बोल्या, ‘अरे आ बात तो म्हैं भी नीं सोची, भगवान भी तो घणां है इण मुलक में… कोई नीं, सोच लेस्या…दुकान जाऊं…अर सुण?’
‘कांई?’
‘कांई नीं…’ इयां केंवता काका आगे बधग्या।
काका फेर नीं समझ आया। म्हैं भी म्हारै काम लागग्यौ। थोड़ी देर हुई क बजार में हाको फूट्यो। कोई बतावै हो, ‘काशीनाथ जी तो जबरी करी…’
म्हैं पूछियो, ‘कांई हुयो?’
‘अरे तू तो भतीजो है, जायनै खुद देख ले…’
म्हैं देख्यो, काका आप री दुकान रै आगे खड़ा हा। अेक बोर्ड माथे लिखियोड़ो हो, ‘पैला आओ, पैला पावो’। म्हैं आगे जाय’र काका सूं पूछ्यो, ‘ओ कांई है…’
तो काका बोल्या, ‘देख तू भी मजा?’
लोग इंयां खड़ा हा, जियां तमासो हुवण आळो है। तमासो ही हो। अर सै सूं पैली पैली बहीखाता उठाया अर बोल्या, ‘सारी कलमां मेट दी।’ इण रै सागै ही बहीखाता नै फाड़’र तुळी दिखाय दी। लाल जिल्द सूं बंधिया पीळा पानां धू-धू बळणा सरू हुयग्या।
म्हैं उणां नैं रोकण री आफळ करी तो वे बोल्या, ‘बोलो-बोलो ऊभों रै, देख नीं सकै तो पधारो। …आओ, खुली है दुकान, लूट मचाओ, पैला आओ, पैला पाओ…’
लोगां रै समझ नीं आयो क हुयौ कांई। पण लाळां तो सै-रे टपके ही। छाकटो नेमलो श्रीगणेश करियो। नेमलो दुकान में बडिय़ौ अर तेल रो पीपो लेयनै बारै निकळ्यौ तो काका उण रै हाथ में अेक चाय पत्ती रो पाकेट झलाय दीन्हौ। नेमले नै समान लेयनै जांवता देख दूजां रा हौसला बधिया। देखतां ई देखतां दुकान में रोळा-रोळ। कोई साबण उठाई तो कोई मिरचां रा पाकेट। दुकान में लूट मचगी। बजार में हाको फूटग्यौ। काशीनाथ इण लूटपाट रा मजा लेवण खातर दूर जाय बैठ्या। देखतां ई देखतां दुकान खाली हुवण लागी। लोग किराणे रौ समान तो कांई पंखा-लट्टू तकात नीं छोडिया।  बायरै संग बैंवती बात काकी रै कानां पूगती जित्तै तांई तो दुकान रा तळा-झाड़ होय चुक्या हा। काकी भाजती आई पण दुकान खाली हुय चुकी ही। काका दुकान साम्हीं बणियै चाय रै खोखे पर बैठा ठठा कर रैया हा। काकी उणां नैं देख’र बोली, ‘ओ कांई रासौ रचायो है…?’
‘काको बोलियौ, सै मोह-माया है कस्तूरी। म्हारै भी आ समझ आयगी…’
‘आप गैला हुयग्या लागौ। लाखूं रिपियां री दुकान लुटाय न्हांखी, अर आप सब देख रैया हो…’ काकी दूजां कांनी इसारो करती कीं बोली।
‘अे कांई करै कस्तूरी? दुकान म्हारी। माल म्हारौ। बहीखाता म्हारा।…अर सुण, इतरी देर में म्हैं तो आ दुकान भी नीलाम कर दी है। मानमलजी सौदो कर लियो है। आ दुकान अब मानमल जी री…जिकां-जिकां री उधारी है मानमलजी चूकत कर देसी अर आ दुकान उणां री। अर म्हैं थारै सागै व्हीर।’
‘ म्हारै सागै?…कठै…’
‘जठै तू जावै वठै, और कठै?’
काकी नैं कीं समझ नीं आवै हो। उण नैं लागै हो क काको गैलो हुयग्यौ है। पण किण कारणै? समझ सूं परे हो। काका रै माथै पर सळ भी नीं हो। आपरी तरै री पैली घटना हुवैली, जिणमें धोळै-दुफारे दुकान रौ मालक खुद आप री दुकान नै लुटवाई अर लूटण आळा भी लुटेरा नीं हुय र मारग बेवणिया। आवण-जावणिया। काका, जिका साग आळै सूं धाणा-मिरच अर नींबू कांई टमाटर तकात फोगट में लेय आंवता, आज दुकान री दुकान लुटाय दी।
काको बोल्या, ‘ म्हनैं गैलो ना समझ कस्तूरी। साच तो आ है क म्हनंै समझ ई आज आई है। अे ईज तो बंधण है। आज खोल दिया। देख, हूं भी उण मारग रौ जातरी। तू केवै है नीं के ओ आखरी जलम है। परमात्मा चावै ई कोयनी…फेर हूं क्यूं चावूं…उण री इच्छावां सूं ईज तो सै हुवै है नीं, हुवण दे…मत रोक…’
काकी अधबावळी-सी देखे ही। काका काशीनाथ री बातां उण रै माथै उपरियाकर निसरती निजर आवै ही। सत्संग में महाराज रौ प्रवचन उण नै याद आवै हो, वै भी आ ईज केयी ही क सब माया-मोह है। वा काका नैं देख्यो, काका में भी अेक महाराज निजर आवै हा। अणमणी काकी रै आंख्यां साम्हीं अंधारी आवण लागी।