कांग्रेस राहुल- अडाणी के मुद्दे को रख रही जीवित, संसद ठप्प, आम चुनाव के लिए तैयार कर रही ज़मीन
नेशनल हुक
देश में आम चुनाव हालांकि अगले साल है मगर कांग्रेस व अन्य विपक्षी दलों के साथ भाजपा भी अभी से मैदान में उतर गये हैं। इसी वजह से कांग्रेस जहां विपक्ष के 18 दलों को साथ लेकर राहुल गांधी की सदस्यता रद्द करने व अडाणी के मसले को लेकर संसद से सड़क तक विरोध में उतर गई है। 10 साल से लगातार मिल रही हार से हताश कांग्रेस को इस बदले राजनीतिक परिवेश में कुछ ऊर्जा मिली है और वो भाजपा की तर्ज पर जनता के बीच उतर गई है। कल कांग्रेस के प्रमुख नेताओं ने देश के 30 से अधिक मुख्य शहरों में पीसी की और केंद्र सरकार व भाजपा पर जमकर हमला बोला। भाजपा ने भी पहली बार इसी तरह से यूपीए सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला था। उसी तरीके को कांग्रेस ने अपनाया है और साथ ही विपक्ष को एक करने की कोशिश शुरू की है।
संसद भी दूसरे सप्ताह में भी ठप्प है। कांग्रेस व उसके साथ के विपक्षी दल संसद में काले कपड़े पहन कर जा रहे हैं और कोई विधायी कार्य नहीं होने दे रहे। अपने अपने राज्यों के किले बचाने को चिंतित अन्य विपक्षी दल भी भाजपा की सोच से विपरीत कांग्रेस का साथ दे रहे हैं। हालांकि इन दलों के साथ देने की अपनी अपनी वजह भी है। आप व टीएमसी पहले खुलकर कांग्रेस से दूरी की बात कहती रही है मगर वे भी अपने हितों को देख कांग्रेस के साथ खड़े हैं। राहुल ने सावरकर पर बोलकर उद्धव शिव सेना को नाराज कर दिया, मगर अब कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों ने सावरकर के मुद्दे पर चुप रहने का निर्णय लिया है। उद्धव की पार्टी महाराष्ट्र में सावरकर के नाम पर ही राजनीति करती रही है, इसलिए उद्धव को राहुल के बयान का विरोध करना पड़ा। लगता है इस मसले पर विपक्ष की एकता को ध्यान में रख कांग्रेस ने चुप्पी साध ली है।
कांग्रेस पहली बार इस तरह से भाजपा की सरकार पर हमलावर हुई है और उसने राज्यों के चुनाव का भी चुनावी शंखनाद कर दिया है। इस साल राजस्थान,मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ के साथ कर्नाटक में चुनाव है। इन राज्यों पर कांग्रेस ने खास फोकस कर विरोध ज्यादा तेज किया है। कर्नाटक में तो चुनाव की तारीख भी घोषित हो गई है।
कर्नाटक में राजनीति ज्यादा गर्म है। ये कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का गृह राज्य है, इसलिए साख दाव पर लगी है। राहुल व अडाणी के साथ आरक्षण में बदलाव को यहां कांग्रेस ने मुद्दा बनाया है। साथ ही भाजपा के नेताओं को अपने पाले में लाने का काम भी भाजपा की ही तर्ज पर शुरू किया है, कुछ असर भी हुआ है। कर्नाटक में जिस जगह राहुल ने विवादास्पद बयान दिया और उसके कारण उनकी सदस्यता गई, वहीं अब कांग्रेस राहुल की बड़ी जनसभा कर रही है। जो इस बात का द्योतक है कि इस मसले पर कांग्रेस ज्यादा आक्रामक होना चाहती है। इन नये मुद्दों के कारण वहां कांग्रेस व भाजपा के मध्य रोचक चुनावी मुकाबला होने की स्थिति बन गई है। असर का पता तो चुनाव परिणाम से लगेगा।
चुनावी राज्य राजस्थान भी है, यहां भी कांग्रेस ने इन मुद्दों को लेकर अभी से चुनावी अभियान शुरू कर दिया है। सीएम अशोक गहलोत व सचिन पायलट के मध्य की टकराहट के बीच ये मुद्दा सामने आया है, जिस पर नेताओं के बीच की दूरी कम हुई है। एक तरह से युद्ध विराम राहुल के मुद्दे की वजह से हुआ है, जिसका लाभ सीएम गहलोत ने उठाया है। उन्होंने चुनाव के लिए ताबड़तोड़ संभाग स्तर पर सम्मेलन कर लिए है। कहने को ये राहुल व अडाणी के मुद्दे पर पार्टी को संघर्ष के लिए एक करना है मगर मूल में इसी साल के अंत में होने वाले चुनाव है। इसी तरह की गतिविधियां कांग्रेस ने मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में भी आरम्भ की है।
भाजपा भी इसके तोड़ के लिए अपने राष्ट्रीय नेताओं व केंद्रीय मंत्रियों को मैदान में उतार चुकी है। क्यूंकि उसे भी होने वाले राजनीतिक नुकसान का अंदाजा है। कुल मिलाकर राहुल व अडाणी के मुद्दे से अगले आम चुनाव की जमीन तैयार करने में सभी राजनीतिक दल लग गये हैं।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार