लगातार फ्लॉप होती फिल्मों से बॉलीवुड सकते है। फिल्मों की कोस्ट को कंट्रोल किया जा रहा है। स्टार्स को अपने मेहनताने में कमी करने को मजबूर होना पड़ रहा है। महज ट्रोलिंग की वजह से ही फिल्में बॉक्स ऑफिस पर कोई कमाल नहीं दिखा रही, ऐसा सौ फीसदी सच नहीं है। बॉलीवुड फिल्मकारों को कंटेट पर पुन: ध्यान देना होगा। आज के युवा फिल्मकारों ने शाहरुख खान, सलमान खान और आमिर खान की फिल्मों को ही जिया है। खान तिकड़ी की फिल्मों में रोमांस का एंगल ज्यादा था लेकिन सत्तर और अस्सी के दशक का हीरोज्म गायब था। साउथ की मसाला फिल्मों में हिंदी दर्शकों को वही लार्जर देन लाइफ कैरेक्टर देखने को मिल रहे है, जिस कारण हिंदी ऑडियंस ऐसी फिल्मों को हाथोंहाथ ले रही है।

बॉलीवुड के अनेक हस्तियां ट्रोलर्स को ही मुंहतोड़ जवाब देने में लगी है। ट्रोलर्स का भले ही कोई निहित एजेंडा होगा,लेकिन वे भी दर्शक वर्ग को ही तो रिप्रजेंट करते है। बड़ी उदारता से ट्रोलर्स को अच्छे कंटेट से ही माकूल जवाब दिया जा सकता है। बॉलीवुड सेलिब्रिटीज को भी अब सार्वजनिक रूप से कोई टीका-टिप्पणी करने से पहले सौ बार सोचना होगा,क्योंकि सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में कोई भी बयान बासी नहीं होता है। मौका पड़ते ही सोशल मीडिया पर वही विवादित बयान ट्रेंड होने लगते है। जनमानस की भावना की कद्र करके ही बॉलीवुड में फिर से बॉक्स ऑफिस की टकसाल ओवर फ्लो होकर हाउसफुल के बोर्ड लगवा सकती है।

अर्जुन कपूर, तापसी पन्नू के बचकाने बयानों से ट्रोलर्स को नई खुराक मिल रही है। बॉलीवुड के बड़े थिंक टैंक को इन बयानवीरों पर लगाम लगवानी होगी,अन्यथा परिस्थितियों में सुधार की बजाय और भी बुरा दौर आ सकता है। वक्त रहते फिल्मों की पटकथा में नयापन और बेवजह की मीडिया बाइट्स से स्टार्स ने दूरी नहीं बनाई तो अस्सी के दशक का वीडियो लाइब्रेरी वाला दौर फिर से दस्तक दे सकता है।

बॉलीवुड बंद होने की कगार पर है, इस बात में रत्ती भर भी दम नहीं है। मनोरंजन रिसेशन फ्री होता है, लोगों को एंटरटेनमेंट कन्ज्यूम करने की लत बरसो से है और अनंतकाल तक रहेगी। आम सिने लवर रीमेक और लवर बॉय सिनेमा से उकता सा गया है। जनता को फिर से मैनहुड सिनेमा से लगाव हो गया है। साउथ की पुष्पा,केजीएफ 2 फिल्में चली ही इसलिए क्योंकि उनमें जनता को वही डोमिनेट करता हुआ हीरो देखने को मिला,बॉलीवुड से भी दर्शकों की यही उम्मीद बन रही है। बॉलीवुड को अमिताभ,धर्मेंद्र, विनोद खन्ना वाले दौर को आज के युग के साथ सामंजस्य बिठाकर जनता के सामने परोसना होगा, तभी जाकर टिकट खिड़की पर फिल्में आसानी से 500-1000 करोड़ का धंधा कर पाएगी।

— मनोज रतन व्यास