लॉयन न्यूज़, नागौर। ”किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करने के विविध आयामों में से एक अतीव महत्त्वपूर्ण आयाम है-उसकी मातृभाषा। मातृभाषा ही वह माध्यम है, जो व्यक्ति को सोचने, विचारने एवं अपने मन के भावों को अभिव्यक्त करने का प्रारंभिक सहारा बनती है। मातृभाषा हमारे सुनने, बोलने, पढऩे एवं लिखने का ऐसा सशक्त जरिया है, जो एक व्यक्ति के मन के भावों को दूसरे के मन में प्रविष्ट करता है। हमारे मन में जो विचार बिंदु रूप में उत्पन्न होते हैं, वे मायड़भाषा में ही होते हैं। हमारी मातृभाषा राजस्थानी एक स्वतंत्र एवं समृद्ध भाषा है, जिसका लगभग एक हजार वर्षों लम्बा इतिहास है। यह हर दृष्टि से संवैधानिक मान्यता की पूर्ण हकदार है।” यह विचार नागौर के डेह ग्राम में आयोजित मायड़ भाषा राजस्थानी पुरस्कार उच्छब में जिला कलेक्टर डॉ. जितेन्द्र कुमार सोनी ने व्यक्त किए।

नेम प्रकासण, डेह एवं अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित मायड़ भाषा राजस्थानी पुरस्कार उच्छब के मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए डॉ. सोनी ने कहा कि किसी भी भाषा को वैयाकरणिक दुरूहता से बचाते हुए प्रसाद गुण सम्पन्न बनाना चाहिए। भाषा तो बहता नीर है, उसकी ताकत उसका प्रवाह ही है, हमें अपनी मायड़भाषा के सहज प्रवाह को बनाए रखते हुए सृजन सातत्य रखना चाहिए। उन्होंने डेह के भाषा उच्छब को मातृभाषा के लिए उत्कृष्ट कार्यक्रम बताते हुए आयोजकों को लख-लख बधाई दी।

इस राष्ट्रीय साहित्यकार सम्मान समारोह की अध्यक्षता करते हुए राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर के पूर्व अध्यक्ष श्याम महर्षि ने मायड़भाषा राजस्थानी के प्रचार-प्रसार एवं सृजन-प्रोत्साहन की दृष्टि से नेम प्रकाशन के इस ‘पुरस्कार-उच्छब’ को अत्यन्त सराहनीय कदम बताया। श्री महर्षि ने कहा कि राजस्थानी भाषा का साहित्य बहुत समृद्ध है तो उसकी संस्कृति विश्ववंद्य है। राजस्थानी की विकास परम्परा पर प्रकाश डालते हुए महर्षि ने कहा कि इस भाषा में हमारी प्रकृति, संस्कृति, तीज-त्योहार, परम्पराएं, रीति-रिवाज से जुड़ा व्यावहारिक ज्ञान संचित है। इस भाषा का लोक साहित्य अत्यंत समृद्ध है। हमें इस भाषा के विविध रूपों को सहेज कर रखना चाहिए। उन्होंने भाषा उच्छब को राजस्थानी भाषा के विकास एवं प्रचार-प्रसार का उम्दा माध्यम बताते हुए आयोजक मंडल की सराहना की।

भाषा-उच्छब के विशिष्ट अतिथि पदम मेहता, सम्पादक माणक मासिक व दैनिक जलते दीप, जोधपुर ने राजस्थानी पत्रकारिता एवं उसके समक्ष चुनौतियों पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि राजस्थानी में काम करना अपनी जड़ों को बचाने जैसा पुण्य कर्म है। उन्होंने कहा कि जो मिठास, जो अपनत्व एवं जो आंतरिक उल्लास का भाव राजस्थानी वार्तालाप में होता है, वह अन्य किसी भाषा में नहीं आ सकता क्योंकि यह हमारी मातृभाषा है और मातृभाषा हमारी जन्मदात्री माता एवं मातृभूमि की ही तरह हमारे जीवन का अहम हिस्सा है।

समारोह के विशिष्ट अतिथि रुद्रेश शर्मा, सम्पादक राजस्थान पत्रिका (नागौर संस्करण) ने भाषाओं को मानवीय विकास की रीढ़ बताते हुए कहा कि मातृभाषा व्यक्ति के भावनात्मक विकास का सशक्त माध्यम है। उन्होंने राजस्थान-पत्रिका के मायड़भाषा हथाई स्तंभ को आमजन से जुड़ाव का आधार बताया। शर्मा ने कहा कि जो व्यक्ति अपनी जड़ों से जुड़ा रहता है, उसके विकास रथ को कोई रोक नहीं सकता। उन्होंने साहित्यकार सम्मान एवं भाषा उच्छब जैसे आयोजनों को जीवनमूल्यों की रक्षार्थ उपादेय कदम बताया।

इस समारोह के मंचासीन अतिथि शक्तिसिंह चांपावत़, उप-तहसीलदार डेह; रणवीरसिंह उदावत, सरपंच ग्रामपंचायत डेह;जेठूसिंह चौहान पंचायत समिति सदस्य डेह ने भी अपने विचार व्यक्त किए तथा सभी ने इस भाषा-उच्छब को बहुत लाभकारी बताया। भाषा-उच्छब के इस भव्य आयोजन में लोकगायक सत्यपाल सांदू ने कानदान कल्पित रचित अमर गीत ‘आजादी रा रखवाळा, सूता मत रीज्यो रे’ की प्रस्तुति कर रंग जमाया। युवा गीतकार प्रहलादसिंह झोरड़ा ने ‘झीणा-झीणा धोरियां रै बीच म्हारो गांव है’ गीत प्रस्तुत कर खूब तालियां बटोरी। सम्मानित साहित्यकार दीपसिंह भाटी ‘दीप’ जैसलमेर ने डिंगल के ‘बरसाळा-छंदो’ की उम्दा प्रस्तुति कर डिंगल के नादसौंदर्य का रसास्वदन करवाया। सोजट सिटी के सम्मानित साहित्यकार वीरेन्द्र लखावत ने अपने चिर परिचित अंदाज में राजस्थानी हास्य-व्यंग्य गीत ‘आप अठै आया सगळां नैं रामा-स्यामा’ प्रस्तुत कर मंच सहित सबको लोटपोट किया।

कार्यक्रम का शुभारम्भ वीणापाणि माँ सरस्वती की वंदना से हुआ। पीएचईडी विभाग के अधिशासी अभियंता जे.के.चारण ने ‘नित नरां बळबुध देण देवी, सुरां आगल सुरसती’ नाम से वंदना प्रस्तुत कर राजस्थानी के डिंगल स्वरूप से रूबरू करवाया। कार्यक्रम-संयोजक एवं राजस्थानी के ख्यातनाम साहित्यकार लक्ष्मणदान कविया ने स्वागत-उद्बोधन देते हुए राजस्थान के विभिन्न अंचलों से पधारे साहित्यकारों एवं साहित्य-हेताळुओं का हार्दिक अभिनन्दन किया। उन्होंने कहा कि मातृभाषा हमारे अस्तित्व का आधार है। मातृभाषा से दूरी का मतलब है-स्वयं के धरातल से बिछुडऩा अत: हम दुनियां में कहीं भी रहें लेकिन हमें अपनी मातृभाषा एवं मातृ-संस्कृति से जुड़े रहना चाहिए।

कार्यक्रम का मंतव्य बताते हुए मंच-संयोजक एवं राजस्थानी साहित्यकार डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’ ने बताया कि संपूर्ण राजस्थान में यह ‘भाषा-उच्छब’ अपनी प्रकृति का एक अकेला कार्यक्रम है, जिसमें एक साथ 16 साहित्यकारों को उनके श्रेष्ठ सृजन हेतु सम्मानित किया जाता है। संपर्णू राजस्थान से ही नहीं वरन प्रवासी राजस्थानी रचनाकारों को भी इस समारोह में पुरस्कृत किया जाता है। इस बार के आयोजन में सम्मानित होने वाले साहित्यकार बीकानेर, जोधपुर, झालावाड़, बाड़मेर, जैसलमेर, कोटा, पाली, चूरू, नागौर जिलों के रहने वाले हैं, वहीं मुंबई से भी एक रचनाकार को इस समारोह में पुरस्कृत किया गया है। राजस्थानी की विविध विधाओं, यथा कविता, कहानी, उपन्यास, बालकाव्य, बालगद्य के साथ ही युवा साहित्यकार सम्मान, नारी सृजन सम्मान आदि क्षेत्रों में उम्दा सृजन करने वाले कलमकारों को 11000 रूपये, बखाणपाना, स्मृतिचिह्न, राजस्थानी साहित्य, शॉल एवं श्रीफळ प्रदान कर सम्मान किया गया।

पुरस्कार समारोह के आयोजन सचिव एवं नेम प्रकाशन के अध्यक्ष पवन पहाडिय़ा ने बताया कि इस समारोह में रवि पुरोहित बीकानेर (कृति : उतरूं ऊंडै काळजै) को नेमीचंद पहाडिय़ा पद्य पुरस्कार, महेन्द्र मोदी, मुम्बई (कृति : अध जागी रातां अध सूता दिन) को अमराव देवी पहाडिय़ा गद्य पुरस्कार, संतोष चौधरी जोधपुर (कृति : रात पछै परभात) को कमला देवी पहाडिय़ा उपन्यास पुरस्कार, बाबूलाल छंगाणी बीकानेर (कृति : कैवै जिकण नै कैवण दो) को सोहनी देवी सूरजमल पांड््या व्यंग्य पुरस्कार, किशनलाल वर्मा कोटा (कृति : नारदजी की कळजुग जातरा) को मोहनदान गाडण भक्ति काव्य पुरस्कार, दीपसिंह भाटी ‘दीप’ जैसलमेर (कृति : डिंगल रसावळ) को सोहनदान सिंहढायच डिंगल पुरस्कार, मदनगोपाल लढा महाजन बीकानेर (कृति : दादी मां री लाडली) को सिरदाराराम मौर्य बाल साहित्य गद्य पुरस्कार, श्याम महर्षि श्रीडूंगरगढ को समग्र योगदान हेतु जुगलकिशोर जैथलिया राजस्थानी भाषा सेवा सम्मान, महेन्द्रसिंह छायण बाडमेर (कृति : इण धरती रै ऊजळ आंगण) को छगनमल बेताला युवा पुरस्कार, ओमप्रकाश तंवर चूरू (कृति : संजोग) को पारसमल पांड्या राजस्थानी साहित्य पुरस्कार, डॉ कृ्ष्णा आचार्य बीकानेर (कृति : लाल चूड़ौ) को मैना देवी पांड्या राजस्थानी लेखिका पुरस्कार, वीरेन्द्र लखावत सोजत सिटी (कृति : इमरत संतान) को चण्डीदान देवकरणोत अनुवाद पुरस्कार, शिवचरण सैन शिवा झालावाड़ (कृति : टमरक टूं रे टमरक टूं) को अमितसिंह चौहान राजस्थानी बाल पद्य पुरस्कार, श्रीनिवास तिवाड़ी जोधपुर को गोपालसिंह उदावत वय वंदन पुरस्कार, डॉ. जेबा रसीद जोधपुर (कृति : कदै तांई को) को पारस देवी बेताला राजस्थानी कहाणी पुरस्कार तथा राजस्थानी लोक कलाकार हजारीलाल चूई (डेगाना) को सेठ भंवरलाल बेताला राजस्थानी लोककला पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

भाषा-उच्छब में लक्ष्मणदान कविया की ‘समय सार सतसई’ एवं ‘गजलां हंदा गोख’, पवन पहाडिय़ा की ‘छींक, छेती अर छींकी’, डॉ. गजादान चारण की ‘जीवटता री जस जोत’ एवं ‘राजस्थानी साहित्य : साख अर संवेदना’, दीपसिंह भाटी ‘दीप’ की ‘सूरां-पूरां री शौर्यगाथावां’, भंवरलाल कासणिया की ‘दो दुणी पांच’ तथा श्रीनिवास तिवाड़ी की ‘मरुधर री माटी’, ‘तिणकला’ एवं ‘मन में ही रैगी’ आदि कुल 10 राजस्थानी पुस्तकों का लोकार्पण किया गया। मंचासीन अतिथियों ने राजस्थानी के इस सृजन-सातत्य की बारम्बरा सराहना की। कार्यक्रम में कुंजलमाता सेवासंघ के पूर्व प्रबंधक गोपाल पारीक, आयोजन समिति के उत्साही कार्यकर्ता फतूराम छाबा, साहित्यकार गिरिराज व्यास, रामरतन लटियाल, रामरतन विश्नोई, भा.जी.बी.नि. जायल के दिनेश मीणा, पदमचंद प्रजापत सहित अन्य गणमान्य विद्वानों एवं महानुभावों को सम्मानित किया गया।

आयोजन सचिव पवन पहाडिय़ा ने आभार ज्ञापित करते हुए कहा कि उनके अंतरमन में मायड़भाषा के प्रति जो अगाध सम्मान का भाव है, उसे संपूर्ण राजस्थान के साहित्य सेवक और अधिक प्रगाढ़ता प्रदान करते हैं। उन्होंने मंचासीन अतिथियों सहित सम्मानित साहित्यकारों, प्रायोजकों एवं उपस्थित भाषा-प्रेमियांं का हृदय की अतल गहराइयों से आभार ज्ञापित किया। पहाडिय़ा ने कहा कि व्यक्ति आते-जाते रहते हैं लेकिन परम्पराएं जिंदा रहनी चाहिए। यह भाषा उच्छब उस दिन अपने मंतव्य को प्राप्त करेगा, जब घर-घर में राजस्थानी भाषा दैनिक व्यवहार का प्रथम माध्यम बनेगी। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ किया गया।