लाॅयन न्यूज, बीकानेर। राजस्थानी भाषा के वरिष्ठ लेकर मोहन आलोक का आज श्रीगंगानगर में निधन हो गया है। मोहन आलोक लम्बे समय किडनी से जुड़ी बिमारी के चलते अस्पताल में भर्ती थे। अपने कविता संग्रह ग-गीत के लिए साहित्य अकादमी पुरूस्कार से पुरस्कृत मोहन आलोक ने राजस्थानी कविता में एक नई विधा ‘डांखळा’ का भी अविष्कार किया।
मोहन आलोक के निधन की खबर से ही साहित्य जगत में शोक की लहर है। श्रीगंगानगर व बीकानेर के साहित्यकारों ने सोशल मीडिया पर संदेश लिखकर मोहन आलोक को श्रद्धांजलि दी।

साहित्य अकादमी के राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल के संयोजक मधु आचार्य आशावदी ने कहा राजस्थानी भाषा के वरिष्ठ लेखक, मान्यता आंदोलन को समर्पित, डांखला विधा को स्थापित करने वाले, साहित्य अकादमी, दिल्ली से सर्वोच्च राजस्थानी पुरस्कार पाने वाले, जिंदादिल इंसान, हमारे अग्रज मोहन आलोक जी का कुछ देर पहले श्रीगंगानगर में निधन हो गया। डॉ मंगत बादल जी से सूचना मिली। दुख हुआ। मेरे उनसे निकटस्थ सम्बंध थे। उनका स्नेह मुझे मिलता था। ये राजस्थानी भाषा और साहित्य के साथ मेरी व्यक्तिगत क्षति है। नमन उनकी स्मृतियों को।

कवि-आलोचक डॉ. नीरज दईया ने कहा प्रयोगधर्मी कवि मोहन आलोक न केवल राजस्थानी वरन भारतीय कविता के प्रमुख हस्ताक्षर कहे जा सकते हैं जिन्होंने आधुनिक कविता को भाषा और शिल्प की दृष्टि से आधुनिक बनाने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। कविता के पाठक को डांखळा से जोड़ते हुए अत्याधुनिक सॉनेट और नवगीत तक लेकर गए। वे बड़े कवि के साथ अद्वितीय कहानीकार और बेजोड़ अनुवादक भी थे। उनका जाना भारतीय कविता की बड़ी क्षति है।

 

कवि-कहानीकार डॉ मदन गोपाल लढ़ा ने कहा राजस्थानी कविता को भाव व शिल्प की दृष्टि से आधुनिक व समृद्ध बनाने में मोहन आलोक जी का यशस्वी अवदान है। उन्होंने विधा के स्तर पर कविता में कई प्रयोग किए। उनकी कविता में आम आदमी के सुख-दुख का विश्वसनीय अंकन हुआ है। उनके जाने से राजस्थानी जगत को अपूर्णीय क्षति हुई है। राजस्थानी भाषा की संवैधानिक मान्यता उनके जीवन का मुख्य सपना था, जो पूरा नहीं पाया।