• डॉ. देव अरस्तु पंचारिया

इतिहास अपने अंदर इतना कुछ छुपाये बैठा है कि एक आम जीवन कई तथ्यों से बिना अवगत हुए ही रहता है। पारम्परिक इतिहास में कई तरह की छोटी व बड़ी घटनाएं अक्सर बताई जाती है लेकिन कुछ आयाम ऐसे हैं जो बहुत कम लोग ही जानते हैं क्योंकि वे सभी घटनाएं बेहद गहरी और सूक्ष्म होतीं हैं जिनके कारण अधिकतर तो वे बाहर ही नहीं आ पातीं जिससे मानवजाति न जाने कितने ही मौलिक और गूढ़ ऐतिहासिक तथ्यों से अपरिचित रहती है।

ऐसा ही एक इतिहास का आरम्भ हुआ 18 वीं शताब्दी के मध्यकाल में जब अंततः पृथ्वी नारायण शाह ने नेपाल के एकीकरण के बाद उसकी कमान अपने हाथ में ली और राज्य पूर्ण रूप से अपने संरक्षण में ले लिया जिसके पश्चात देश के प्रति उन्होंने अनगिनत उत्थान के कार्य किये जिसमें विस्तार से विदेशी व अन्य नीतियां प्रमुख हैं। लेकिन ये वो इतिहास है जो अक्सर सुनने में आता है, एक इसी कालखंड का दूसरा पहलु जो जल्दी से सामने नहीं आता और वो है इसके राष्ट्र ध्वज की रहस्मयी कहानी।

यूँ तो कहा जाता है की पृथ्वी नारायण शाह के कार्य- काल के दौरान ही नेपाल का झंडा बना लेकिन फिर एक प्राचीन मान्यता यह भी है कि नेपाल का राष्ट्र ध्वज वैदिक काल से ही चला आ रहा है और इसकी पुष्टि करता है चंगुनारायण मंदिर में लगा एक धातु का वही झंडा जो आगे चलकर राष्ट्र ध्वज बना । ये मंदिर भक्तपुर जिले में स्थित है, जिसे 325 ईo में बनाया गया था और ज़ाहिर तौर से पृथ्वी शाह इसके बनने के बहुत बाद में आये । वैसे तो हर देश का ध्वज उसका प्रतिनिधि होता है और सब अपने आप में विशिष्ट होते हैं परन्तु नेपाल के राष्ट्र ध्वज को यदि सबसे रहस्मयी और तार्किक ध्वज कहें तो इसमें कोई भी अतिरंजना नहीं होगी और ऐसा कहने के पीछे का कारण भी हैरान कर देने वाला है जो कई प्रश्न भी खड़े करता है ।

दुनिया में सभी देशों का झंडा एक चतुर्भुज है लेकिन केवल नेपाल एक ऐसा देश है जिसका ध्वज त्रिकोणीय है क्योंकि इसमें दो त्रिकोणीय पताका विध्यमान है । इस झंडे की प्रतीकात्मकता को लेकर कई धारणाएं हैं जिसमें सबसे आधुनिक है कि इसमें लाल रंग वीरता और नीला शांति का प्रतीक है वहीँ इसमें चन्द्रमा और सूर्य के प्रतीक कहतें हैं कि नेपाल के अस्तित्व की आयु सूर्य और चन्द्रमा के समान है । वहीं दूसरी ओर यदि इसे नेपाल की पुरातन संस्कृति की नज़र से देखें तो इन सबका एक पूर्णतः अलग मतलब निकल कर सामने आता है कि इसका इस विशेष आकार में होना “वैदिक यंत्रों” के अनुसार है और इसके प्रतीक भी उसी प्रकार हैं; वहां की पौराणिक आधारशिला कहती है कि “षट्कोण” का ऊपरी हिस्सा “अग्नि” का प्रतीक है और नीचे वाला हिस्सा “पानी” का पर्याय है; अब अगर षट्कोण के हिस्से अलग-अलग कर दिए जाये तो ये झंडा बन जाता है ।

यदि पृथ्वी की जीवन प्रणाली की स्थिरता देखें तो पानी सूर्य की अग्नि से वाष्प बनकर बरसता है जिससे फिर आगे का सारा पारिस्थितिकी तंत्र सभी जीवों के संबंध में चलता रहता है । संक्षिप्त में; वैदिक काल की मान्यतानुसार नेपाल का राष्ट्र ध्वज पुरे पृथ्वी गृह की संपूर्ण जीवन प्रणाली को दर्शाता है । इसके साथ-साथ, एक गौर करने वाला विषय यह भी है कि पानी और अग्नि ग्रीस के कई महान शास्त्रीय दार्शनिकों के चार प्रमुख तत्वों वाले दर्शन में से भी प्रमुख तत्व ये दो हैं जो इस ध्वज को एक दार्शनिक कोण भी प्रदान करता है ।

लेकिन अभी भी सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा कुछ और ही है, जो शायद नेपाल के प्रति एक आम नज़रिये को तब्दील और तार्किक भी कर देगा। पुराने ध्वज में कुछ छोटे फेर-बदल के साथ; आज जो नेपाल का झंडा है उसे राष्ट्र-ध्वज 16 दिसंबर 1962 में स्वीकार लिया गया और इसी के साथ इसको सही प्रकार से बनाने की विधि को भी अपने संविधान में जगह दी और इसे “स्केड्यूल – 1” में अंकित किया गया ।

“स्केड्यूल – 1” के निर्देशानुसार इसे बनाने की प्रक्रिया को कुल 4 बड़े भागों में बांटा गया है, जिसमें सबसे पहले बॉर्डर के अंदर आकृति बनाने की विधि, फिर चन्द्रमा, सूर्य और अंत में बॉर्डर बनाने की प्रक्रियाओं को क्रमशः स्थान दिया गया है जो अब उनके अंदर ही कुल 24 चरणों के हिस्सों में बताये गए हैं और सबसे आकर्षक बात यह है कि ये सभी चरण एक गणितीय रूपरेखा का पालन करते हुए आगे बढ़ते हैं; हालाँकि ये बहुत अधिक बुनियादी ज्यामिति है जैसे कि ये अपने प्रारंभिक काल में हुआ करती थी लेकिन इसी झंडे को बनाने की विधि में कई ऐसे चरण भी हैं जिनके बिना ज्यामिति पूरी सार्थक नहीं बन सकती, लेकिन वे ध्वज का हिस्सा भी नहीं हैं और इसके लिए उन बिच में बनने वाली ज्यमितियों को अनुमानित/ काल्पनिक (Imaginary) संज्ञा दी गयी है, जो अक्सर गणित के क्षेत्र में होता है जिसे तकनिकी भाषा में मौलिक एक्सिओम्स (Fundamental Axioms) का एक हिस्सा माना जाता है; बिलकुल शुरुआत में इन एक्सिओम्स की खोज भी ग्रीस के कई महान शास्त्रीय दार्शनिकों की देन रही । इसके आलावा झंडे की ऊंचाई और सबसे लंबी चौड़ाई का एक निश्चित अनुपात भी गणितीय रूप से निर्धारित है जो कि लगभग 1:1.21901033 है ।

तो अब कई अनुमान लगाए जा सकते हैं लेकिन एक बहुत मौलिक प्रश्न यहाँ ज़रूर निकल कर आता है कि यदि ये ध्वज वास्तव में सदियों पुराना है तो कैसे ये दर्शनशास्त्र व गणित से ताल्लुक रखता है ? नेपाल तक इतना तकनिकी साहित्य कहाँ से आया और वो आज कहाँ है ? ऐसे कई प्रश्न तो हैं मगर इनमें से किसी का उत्तर अभी तक सामने नहीं आया क्योंकि ये वो पहलु है जिसपर आज तक किसी ने खास गौर ही नहीं किया । ऐसे कई और प्रश्न भी हैं और इस चर्चा को भी अभी काफी आगे बढ़ाया जा सकता है परन्तु वर्तमान तथ्य भी अभी तो अपने ही अस्तित्व में आने कि तलाश में है; और यही सत्य का आकर्षण भी है और गरिमा भी कि इसकी तलाश कभी ख़त्म नहीं होती ।