लॉयन न्यूज, मुंबई। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के बढ़ते दाम आर्थिक सुधारों की तेज रफ्तार की राह में ‘स्पीड ब्रेकर’ का काम कर सकते हैं। यदि कीमतों पर ब्रेक नहीं लगा तो सरकार के लिए यह बड़ी चुनौती साबित हो सकता है।

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ऊर्जा सुधार जल्द अपनी सबसे कठिन परीक्षा से गुजर सकता है। साल 2014 के दौरान केंद्र में नई सरकार आने के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम काफी घट गए थे।

इसकी वजह से सरकारी खजाना भरा और ईंधन की कीमतें नियंत्रित रखने में काफी सहूलियत हुई। लेकिन, अब हालात बदल गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक देश के आयात बिल का करीब 5वां हिस्सा देने वाले पेट्रोलियम बाजार ने अपनी दिशा बदल ली है।

इस बीच लंबा चुनावी दौर भी आ रहा है, जो 2019 में आम चुनाव होने तक जारी रहेगा। ऐसे में आशंका है कि आर्थिक सुधार के मोर्चे पर सरपट दौड़ रही सरकार को लोकलुभावन घोषणाओं की ओर लौटना न पड़ जाए।

यदि ऐसा हुआ तो यह सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियों के लिए बुरी खबर होगी। देश के पेट्रोल पंपों पर ईंधन के दाम इन दिनों रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गए हैं। ईंधन पर सरकार ने टैक्स में भी इजाफा कर रखा है। ऐसे में लोगों की नाराजगी का खतरा इसे और आगे बढ़ाने की संभावनाएं खत्म करता नजर आ रहा है।

क्या है रास्ता

ब्लूमबर्ग इंटेलिजेंस के विश्लेषक कुणाल अग्रवाल और कर वाई ली के मुताबिक, ऐसी स्थिति में सरकार के समक्ष दो ही रास्ते हैं: 1. केंद्र सरकार या तो उत्पाद शुल्क में कटौती का रास्ता अपना सकती है। 2. ईंधन की कीमतों पर एक फिर सरकारी नियंत्रण लागू की जा सकती है।

इन उपायों के दो खतरे

1. यदि उत्पाद शुल्क घटाया जाता है तो इसका असर राज्यों की वित्तीय सेहतर पर होगा। 2. अगर कीमतें नियंत्रित की जाती हैं तो पेट्रोलियम कंपनियों की माली हालत खराब होगी।

विपक्ष बना रहा मुद्दा विपक्ष पहले ही ईंधन की बढ़ती कीमतों को मुद्दा बना चुका है। सार्वजनिक क्षेत्र की पेट्रोलियम कंपनियों, मसलन इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम ने 1 नवंबर से 14 दिसंबर के बीच भी कीमतों में संशोधन नहीं किया।

इस दौरान गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव हो गए और भारतीय जनता पार्टी को इन दोनों राज्यों में जीत हालिस हुई। लेकिन, इस दौरान ईंधन की कीमतें कम होने के बजाय बढ़ती रहीं। डीजल करीब 1 फीसदी महंगा हो गया और पेट्रोल के दाम 80 रुपए प्रति लीटर से ऊपर निकल गए।

आगे और महंगे नहीं होंगे ईंधन!

केआर चोकसे शेयर्स एंड सिक्यॉरिटीज के विश्लेषक वैभव चौधरी के मुताबिक वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल के दाम बढ़ रहे हैं। बावजूद इसके वे भारत में ईंधन की कीमतों में और इजाफे की उम्मीद नहीं कर रहे हैं। उनके मुताबिक संभवत: सरकार एक बार फिर कीमतों को नियंत्रित कर सकती है। पिछले 6 महीनों के दौरान कच्चे तेल की कीमतों के लोबल बेंचमार्क कीमतों में करीब 31 फीसदी का इजाफा हुआ है। 24 जनवरी को यह 3 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया था।