– हरीश बी. शर्मा

राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी का कार्यर्ता असंमजस की स्थिति में है। राजस्थान भाजपा के नेताओं ने बहुत ही सलीके से कार्यकर्ता के मन में यह तो बिठा दिया है कि अब पार्टी में वसुंधरा राजे का गुणगान नहीं चलने वाला। इसके प्रभाव भी देखने में आने लगे हैं। भाजपा के अधिकारिक बैनर-पोस्टर के बाद अब नेता-कार्यकर्ताओं द्वारा लगाए जाने वाले पोस्टर्स से भी वसुंधरा राजे गायब होने लगी है, लेकिन कार्यकर्ताओं के इस सवाल का जवाब किसी भी नेता के पास नहीं है कि राजे का विकल्प कौन बनेगा।

इस सवाल का जवाब नहीं होने की स्थिति में भाजपा के नेता जहां यह कहते हुए दिखते हैं कि चुनाव नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा जाएगा, वहीं उनके पास इस सवाल का जवाब नहीं है कि वसुंधराराजे की क्या भूमिका होगी। हालांकि, भाजपा का केंद्रीय नेतृत्त्व इस बात को जानता है कि राजे को नजर अंदाज करना मुमकिन नहीं है, लेकिन राजे की सारी शर्तें मानना भी नामुमकिन है। ऐसे में राजस्थान को एक ऐसे व्यक्ति की जरूरत है, जो समन्वय का काम कर सके। राजस्थान में गुलाबचंद कटारिया से लेकर राजेंद्र राठौड़ की बात करें चाहे प्रदेशाध्यक्ष के रूप में सतीश पूनिया को देख लें, ये राजे से आमने-सामने की बात नहीं कर पाएंगे। एक संभावना अर्जुनराम मेघवाल में नजर आती है, लेकिन इस संभावना का अभी तक परीक्षण बाकी है। राजस्थान में भाजपा के सामने वसुंधरा राजे का सवाल अब परीक्षण के दौर में नहीं है। यहां भाजपा को बहुत ही सोच-समझकर चलना होगा।

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि भाजपा ने ही वसुंधराराजे को कमजोर करने में रणनीतिक सफलता प्राप्त की है। साथ ही इस तरह की चर्चाओं को भी हवा दी गई है कि राजे को केंद्र के लिए आमंत्रण है, लेकिन इस बात से किसी को इंकार नहीं है कि अंतिम फैसला राजे का ही होना है। यह अंतिम फैसला  उनके बागी होने वाला होगा तो क्या होगा, यह सवाल भाजपा को खाये जा रहा है।

भाजपा का केंद्रीय नेतृत्त्व भले ही वसुंधराराजे को फ्री-हैंड राजस्थान नहीं देना चाहता हो, लेकिन दरकिनार भी नहीं करना चाहता। लेकिन राजस्थान में घांण बिगड़ चुका है। यहां के नेताओं ने नाराजगी मोल ले ली है। ऐसे में भाजपा के संगठन महासचिव के रूप में चंद्रशेखर की भूमिका भी नगण्य साबित हुई है, जो काफी निर्णायक हो सकती थी। ऐसे में राजस्थान के जाये-जन्मे और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में काम करने का लंबा अनुभव रखने वाले सुनील बंसल को संभावना के रूप में देखा जा रहा है। उत्तर प्रदेश में बेहतरीन काम कर चुके सुनील बंसल नरेंद्र मोदी और अमित शाह के विश्वासपात्रों से हैं। कोई बड़ी बात नहीं है कि चंद्रशेखर की असफलता को देखते हुए उनके स्थान पर सुनील बंसल को राजस्थान संभालने भेज दिया जाए। वैसे भी चंद्रशेखर ने सुनील बंसल के नेतत्व में उत्तर प्रदेश में काम किया है। वे मेरठ में संभाग संगठन मंत्री रहे।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से सुनील बंसल की पटरी कम बैठ रही है, लेकिन उनकी कार्यक्षमता को लेकर योगी भी तारीफ करते नजर आते हैं। फिर यूपी जीतने के बाद बतौर संगठन महामंत्री ज्यादा काम भी नहीं रहा है तो कोई बड़ी बात नहीं है अगर सुनील बंसल को राजस्थान दे दिया जाए, क्योंकि सुनील बंसल की वसुंधराराजे से अच्छी पटरी बैठती है। संघ के प्रचारक होने के नाते उनके प्रति एक स्वाभाविक सम्मान की भावना भी राजे के मन में रहेगी। कम से कम राजे को उनके साथ काम करने में कोई आपत्ति नहीं होगी, क्योंकि यूपी चुनाव जीतने के कारण वे भी बड़ा नाम हो गए हैं। अगर ऐसा हो जाता है तो राजस्थान भाजपा को एक नया नेतृत्त्व मिलने की संभावना भी जागती है। कोटपुतली से आने वाले सुनील बंसल के लिए राजस्थान कितना अनुकूल रहेगा यह तो वक्त बताएगा, लेकिन ओम बिरला के बाद एक और वैश्य चेहरा राजस्थान की राजनीति में सक्रिय होने की संभावना नये समीकरणों की ओर इशारा कर रही है।