हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा

त्यौंहारों को देखते हुए एक बार फिर स्वास्थ्य विभाग मिलावटी सामान को बेचने से रोकने के लिए लग गया है। बुधवार को मिठाई के कारखानों सहित घी बनाने वालों पर छापा मारा गया, सैंपल लिए गए। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इस तर की कार्रवाई सिर्फ त्यौंहारों पर ही क्यों होती है। इससे भी बड़ा सवाल यह है कि स्वास्थ्य विभाग द्वारा की जाने वाली कार्रवाई का आधार क्या होता है।

जैसे, बुधवार को स्वास्थ्य विभाग ने कार्रवाई की, उसके पीछे ग्राहकों की शिकायतें थी या स्वत:स्फूर्त संज्ञान। अगर स्वत:स्फूर्त संज्ञान था तो फड़बाजार में कार्रवाई क्यों नहीं हुई, जहां शहर का सबसे सस्ता भुजिया-पापड़ और मिठाइयां खुलेआम मिल सकती है। अगर शिकायत पर कार्रवाई हुई तो क्या यह पहली शिकायत थी। बात यह नहीं है कि जहां कार्रवाई हुई,  वहां कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। अगर गलत का संदेह भी है तो सेंपल भरना स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी है, लेकिन इस तरह की कार्रवाई का आधार पहले से स्पष्ट होना चाहिए वरना स्वास्थ्य विभाग अपने पर लगे हुए भ्रष्टाचार  के आरोप से बच नहीं पाएगा।
अमूमन देखा गया है कि दीपावली या होली के दिनों में इस तरह की कार्रवाई होती है, जैसे यह कोई दस्तूर हो। दबी जबान में इसे लोग ‘दस्तूरी’ से भी जोड़ देते हैं कि एक जगह कार्रवाई होगी तो फिर बाकी के सारों को चेता आ जाएगा। अगर ऐसा है तो बहुत ही गलत है, जिसके चलते समाज में मिलावट खोरों को कभी खात्मा नहीं हो सकता।

लेकिन स्वास्थ्य विभाग का तो यह दायित्व है कि समाज को मिलावटखोरों से मुक्ति दिलाए। ऐसे में सिर्फ दीपावली या होली पर इस तरह के अभियान चलाने का अर्थ है, सिर्फ लीक पिटना। इसके अलावा इससे कुछ भी हासिल नहीं होना है। पिछली दीपावली पर भी मिलावटी सोनपापड़ी पकड़ी गई थी। इस बार भी ऐसे ही कुछ कारखानों पर कार्रवाई होगी, लेकिन मिलावट का धंधा बदस्तूर जारी रहेगा।
अगर मिलावट-खोरों पर रोक लगानी है तो पहले एक सघन अभियान चलाकर यह देखना होगा कि सस्ता बेचने वालों का नेटवर्क कितना है। अगर हम इन सभी पर नजर डालें तो पाएंगे कि बाजार में डेढ़ सौ रुपये से शुरू होकर तीन सो रुपया किलो तक भुजिया मिल रहा है। साफ है कि या तो महंगा बेचने वाला गलत है या सस्ता बेचने वाला मिलावटखोर। जिस तरह सरकार या प्रशासन को महंगा बेचने वाले से जवाब-तलबी करनी चाहिए। ठीक उसी तरह से सस्ता बेचने वाले की निर्माण प्रक्रिया की जांच होनी चाहिए कि आखिर वह इतना सस्ता कैसे बेच सकता है।

मिठाई से लेकर नमकीन तक इस तरह की जांच प्रक्रिया की जरूरत है, जिसमें किसी को भी छूट नहीं दी जाए। अगर ऐसा होगा तब ही स्वास्थ्य विभाग अपने होने को सार्थक कर पाएगा। वरना, मिलावटखोरों पर कोई अंकुश नहीं लगेगा और त्यौंहारों के मौकों पर होने वाले ऐसे अभियान दस्तूर या दस्तूरी के लिए ही माने जाते रहेंगे। प्रशासन को चाहिए कि इस तरह का अभियान नियमित, निरंतर और पारदर्शिता के साथ चलाए ताकि मिलावटखोरों को भी भय हो।

‘लॉयन एक्सप्रेस’ के संपादक हरीश बी.शर्मा के नियमित कॉलम ‘हस्तक्षेप’ के संबंध में आपके सुझाव आमंत्रित हैं। आप 9672912603 नंबर पर वाट्स अप कर सकते हैं।