हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा

भाजपा के लिए राजस्थान का रण मुश्किल होता जा रहा है जितने जोश के साथ भाजपा ने रण-राजस्थान का उद्घोष किया था, वह जोश काफूर होता नजर आ रहा है। पहले तक जिस भाजपा को राजस्थान में सौ फीसद लक्ष्य मिलने में कोई दिक्कत नजर नहीं आ रही थी, उसी भाजपा को नित-नयी चुनौतियां मिल रही हैं। नरेंद्र मोदी के लिए चूरू और नागौर में सभाएं करवाने के  लिए तैयारियां शुरू हो गई है। जाट-नेताओं के माध्यम से यह संदेश पहुंचाया जा रहा है कि स्थानीय लड़ाई नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर सोचा जाए। भाजपा के साथ रहेंगे तो राष्ट्रीय स्तर पर फायदा मिलेगा।

सिर्फ नागौर ही नहीं बीकानेर बेल्ट में जाटों का असंतोष सिर चढ़कर बोल रहा है। श्रीगंगानगर और बीकानेर की लोकसभा सीट के अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षण का यह आखिरी टर्म है। इसके बाद नये सिरे से सीटों का आरक्षण होना है। ये दोनों सीटें पहले भी जाट-प्रभाव वाली मानी जाती रही है, ऐसे में इस समाज का पहले से ही सक्रिय होना लाजिमी मानी है। ऐसे में जाट-वोटों का ध्रुवीकरण होने से रोकना भाजपा के लिए पहली शर्त बन गई है। अंदरखाने से जिस तरह की खबरें सामने आ रही है, उसमें भरतपुर बेल्ट में भी जाटों का असंतोष उभरा है, जिसे एक बारगी तो दबा दिया गया है, लेकिन अगर पूरे राजस्थान में अंडर-करंट के तरह इस धुवीकरण को देखा जा रहा है तो इसे नजर-अंदाज नहीं किया जा सकता है।

हालांकि, भाजपा को यहां होने वाले नुकसान का अंदेशा भी है। भले ही भाजपा इसे स्वीकार नहीं करे, लेकिन इस चुनाव में यह साफ लग रहा है भाजपा अपने लक्ष्य का सौ फीसदी हासिल नहीं कर पाएगी। इसके लिए भाजपा ने अपनी उन लोकसभा सीटों पर फोकस कर लिया है, जहां उसे मेहनत करनी है। झुंझुनू, कोटा, टोंंक, बाडमेर और चूरू लोकसभा की सीट भाजपा के लिए सबसे मुश्किल साबित होने वाली है तो नागौर में ज्योति मिर्धा की राह तब ही आसान हो सकती है, जब जाट समाज पूरी तरह से भाजपा का साथ दे। अगर भितरघात हुई तो हनुमान बेनीवाल के लिए स्थितियां अनुकूल हो सकती हैं।
भाजपा के प्रत्याशी कैलाश चौधरी के लिए बाड़मेर-जैसलमेर की सीट इस वजह से मुसीबत बन चुकी है, क्योंकि यहां रवींद्रसिंह भाटी ने मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में सफलता हासिल कर ली है। आरएलपी के उम्मेदाराम ने नाटकीय घटनाक्रम में जिस तरह से कांग्रेस का दामन पकड़ा, इसे सियासी एंगल से देखा जाने लगा है। खासतौर से कांग्रेस का आरएलपी के लिए नागौर में गठबंधन होने के बाद यह भी कहा जाने लगा है कि उम्मेदाराम का कांग्रेस में शामिल होना रणनीतिक था, लेकिन शिव के विधायक रवींद्रसिंह भाटी ने सारा खेल की गड़बड़ा दिया है। रवींद्रसिंह के प्रति भाजपा की नीति पहले भी ढुलमुल रही, लोकसभा चुनाव में भी यही हाल रहा। जिस तरह लोग भाटी के समर्थन में आ रहे हैं, ऐसा लगता है यहां चुनाव रोमांचक होने वाला है।

भाजपा के सुखबीर जौनपुरिया को टोंक में कांग्रेस के हरीश मीणा टक्कर दे रहे हैं तो झुंझुनू में भाजपा के शुभकरण चौधरी के बारे में कहा जा रहा है कि उनकी पार्टी के लोगों से ही खतरा है। चूरू के लिए भाजपा के सांसद राहुल कस्वां टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर कांग्रेस से टिकट ले आए हैं, इनका मुकाबला भाजपा प्रत्याशी पैरा ओलंपिक खिलाड़ी देवेंद्र झाझडिय़ा से होगा, लेकिन फिलहाल राहुल कस्वां का जोर है।
वसुंधराराजे के करीबी प्रहलाद गुंजल के कोटा में कांग्रेस का प्रत्याशी बनने के साथ ही फिजां बदल गई है। एक नए घटनाक्रम में हालांकि भाजपा ने कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ता-पदाधिकारियों को भाजपा में शामिल करवाया है, लेकिन लोकसभाध्यक्ष ओम बिरला के लिए यह सीट आसान नहीं होगी।
इन परिस्थितियों में भाजपा सौ फीसदी लक्ष्य हासिल कर पाएगी या नहीं यक्ष प्रश्न बन गया है।

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