पूर्व उपराष्ट्रपति स्व. भैरोसिंह शेखावत की 93 वी जयंती पर विशेष
– सुरेन्द्रसिंह शेखावत
वो आज हमारे बीच नहीं है ।1952 में वो जब पहली बार विधायक बने तो विधानसभा का रास्ता आसान न था । साधारण राजपूत परिवार में जन्मे थे । उस समय राजे महाराजे और जागीरदारों के युग में साधारण राजपूत के लिए स्वीकार्यता बनाना भी किसी दलित संघर्ष से कम नही था, फिर भी वो लड़े और जीते। पहली विधानसभा में ही एक बिल को लेकर उन्हें विचारधारा और जाति के मध्य संघर्ष को झेलना पड़ा , जब सब साथ छोड़ गए तब भी वे जातीय विरोध के बावजूद विचार के साथ कर्मठता से खड़े रहे ,तभी से वे नेता हो गए। इस बात पर सदैव अडिग रहे चाहे सती प्रकरण भी क्यों न हो वे सदैव कानून के साथ खड़े रहे ।
रेगिस्तान के धोरो से लेकर पूरब के पहाड़ो तक साईकिल ,ऊंट, छकडो और बेलगाडी के रास्ते पुरे सूबे की ऐसी कोई गांव ढाणी की गली नही रही जहां वो पहुंचे नही।
राजस्थान की विधानसभा में जब वो बोलते थे तो गरीब, मजलूम ,वंचित ,पीडि़त ,शोषित, उपेक्षित की आवाज मुखर होती थी बाकी सब सुनते थे सत्ता पक्ष भी और विरोधी दल भी।
जनसंघ से लेकर भारतीय जनता पार्टी के सफर में सूबे में मुख्य सारथि रहे।दिन भर तांगे में आम सभा का एलान करने से लेकर सभा की दरी बिछाने और फिर भाषण देने तक का काम खुद ही किया तब जाकर आज ये 163 सदस्यों का कंगूरा खड़ा हुआ।
तीन बार मुख्यमंत्री के रूप में उनके कामो को गिनवाए तो जगह कम पड़ जाएगी। अंत्योदय ,काम के बदले अनाज और ऐसी न जाने कितनी योजनाए उनकी कलम की स्याही से शुरू हो पाई । गरीब को गणेश मानकर दिन रात जुटे रहे।
खाचरियावास की धूल भरी गलियों से लेकर मुल्क की राजधानी में उपराष्ट्रपति भवन तक का रास्ता बहुत उबड़ खाबड़ रहा पर वो हर मार्ग पर सधे कदमो से चलते रहे।
वहां भी सूबे की चिंता उन्हें सालती रही जब वहां से आए तो यहां के हालात देखे नही गए।अपने हाथों से बनाए घरोंदे के हालात देखे न गए तो फिर से निकल पड़े गांव ढाणियों में ।
आप सार्वजनिक जीवन में हमारे प्रेरणा स्त्रोत है ,रहेंगे भी। हम आपके विचार के उत्तराधिकारी है। आपने सार्वजनिक जीवन में जो नियम स्थापित किए उन पर चलते हुए आपके अधूरे सपनों को पूरा करने के लिए संकल्पित है।
आज स्व. भैरोसिंह शेखावत की जयंती पर शत शत नमन करते हुए पुन: संकल्प को दोहराता हूँ।

– लेखक भारतीय जनता पार्टी के देहात जिला उपाध्यक्ष है।